01 November, 2010

गज़ल ------

ग़ज़ल -- प्राण शर्मा
 
उड़ते   हैं   हज़ारों   आकाश   में   पंछी
ऊँची  नहीं  होती  परवाज़ हरिक   की
 
होना था असर कुछ इस शहर भी उसका
माना कि अँधेरी उस शहर  चली   थी
 
इक   डूबता बच्चा   कैसे   वो    बचाता
इन्सान  था  लेकिन  हिम्मत की कमी थी
 
क्या दोस्ती   उससे   क्या दुश्मनी उससे
उस शख्स  की नीयत बिलकुल नहीं अच्छी
 
सूखी जो  वो होती जल जाती ही पल में
कैसे भला जलती गीली   कोई   तीली
 
इक शोर सुना तो डर कर   सभी   भागे
कुछ मेघ थे  गरजे बस बात थी इतनी
 
दुनिया   को समझना अपने नहीं बस में
दुनिया  तो  है   प्यारे   अनबूझ   पहेली
 
बरसी तो यूँ बरसी आँगन भी न भीगा
सावन  की घटा थी खुल कर तो बरसती
 
यारी  की ही खातिर  तू   पूछता   आ कर
क्या हाल  है  मेरा  ,  क्या   चाल   है   मेरी
 
फुर्सत   जो   मिले   तो  तू   देखने    आना
इस  दिल  की हवेली अब तक है नवेली
 
पुरज़ोर   हवा  में गिरना  ही था  उनको
ए   "  प्राण  "  घरों की दीवारें थी कच्ची

37 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

दूसरा शेअर सबसे अच्छा लगा.

Apanatva said...

wah kya baat hai....
badiya bhav piroe hai....

Manish aka Manu Majaal said...

वैसे तो कई शेर खासे अच्छे बंधे है,
मगर क्यों ये हमको ग़ज़ल सी न लगती ?

मेरा पसंदीदा :

इक शोर सुना तो डर कर सभी भागे
कुछ मेघ थे गरजे बस बात थी इतनी

प्राण साहब को बधाई ...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

khoobsurati ki misaal hei ye gazal aunty ji!

शिक्षामित्र said...

दिल की हवेली सदा नई रहे,ऐसा आध्यात्मिक व्यक्तित्व के ही वश का होता है। और,आध्यात्मिकता का अर्थ यह नहीं कि व्यक्ति बाह्य जगत में साधुवेश में दिखता हो। आम लोगों में से भी कइयों का हृदय उतना ही निर्मल होता है,मगर स्वयं उस व्यक्ति को भी इसका पता नहीं होता। ऐसा हृदय थोड़े से प्रयास से उच्चतम ऊर्जा को शीघ्र प्राप्त कर सकता है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

प्राण साहब की बहुत खूबसूरत गज़ल पडने का अवसर दिया ..आभार

Aruna Kapoor said...

praan Sharmaaji ki sundar gajal...baar baar padhane par bhi man nahi bharata...yahi khaasiyat hai!....badhaai!

Riya Sharma said...

teesra sher lajwaab !

संजय भास्‍कर said...

इतना खुबसूरत .... मन मिजाज खुस हो गया पढकर.

vandana gupta said...

होना था असर कुछ इस शहर भी उसका
माना कि अँधेरी उस शहर चली थी

इक डूबता बच्चा कैसे वो बचाता
इन्सान था लेकिन हिम्मत की कमी थी

प्राण जी की गज़लें तो होती ही दिल मे उतरने वाली हैं आपकी आभारी हूँ ज़ो इतनी उम्दा गज़ल पढवाई…………………ये दो शेर तो गज़ब कर गये।

kshama said...

यारी की ही खातिर तू पूछता आ कर
क्या हाल मेरा , क्या चाल है मेरी

फुर्सत जो मिले तो तू देखने आना
इस दिल की हवेली अब तक है नवेली

पुरज़ोर हवा में गिरना ही था उनको
ए " प्राण " घरों की दीवारें थी कच्ची
Behtareen gazal chunee hai aapne...chand ashaar to gazab ke hain!

सदा said...

इक शोर सुना तो डर कर सभी भागे
कुछ मेघ थे गरजे बस बात थी इतनी

बहुत ही सुन्‍दर पंक्तियां ।

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी ग़ज़ल दीदी। सच कहा है कि जिसकी नियत नहीं अच्छी उससे क्या दोस्ती क्या दुश्मनी। आभार प्राण शर्मा जी का।

प्रवीण पाण्डेय said...

हर शब्द लाज़बाब।

शारदा अरोरा said...

खूबसूरत ग़ज़ल ,
गा कर सुनाई जाए तो और भी अच्छी लगे

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

प्राण शर्मा जी की ग़ज़ल बहुत बढ़िया है!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Zindagi ki galiyon se guzarti huyi Gazal.

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मन की गति से चलें...
बूझो मेरे भाई, वृक्ष पहेली आई।

दिगम्बर नासवा said...

प्राण जी मेरे पसंदीदा ग़ज़लकारों में से एक है .... बहुत ही कमाल का लिखते हैं ... आम आदमी के लिए लिखते हैं ... नमन है उनकी लेखनी को ...

shikha varshney said...

प्राण साहब की ग़ज़लें बहुत ही उम्दा होती हैं आभार आपका.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.

रामराम.

Bharat Bhushan said...

अच्छी रचना. ग़ज़ल के मिज़ाज़ की.

रंजना said...

इक डूबता बच्चा कैसे वो बचाता
इन्सान था लेकिन हिम्मत की कमी थी

ओह...क्या बात कही है.....
सारे शेर मन में उतरने वाले...
इस सुन्दर रचना को रचने वाले कोमल ह्रदय और प्रखर लेखनी को शत नमन !!!

M VERMA said...

लाजवाब रचना ..

rashmi ravija said...

इक शोर सुना तो डर कर सभी भागे
कुछ मेघ थे गरजे बस बात थी इतनी

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं...ख़ूबसूरत ग़ज़ल पढवाने का शुक्रिया

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

निर्मला माँ,
नमस्ते!
आनंद! आनंद! आनंद!
आशीष
--
पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

डॉ टी एस दराल said...

बढ़िया ग़ज़ल है निर्मला जी ।

उस्ताद जी said...

1/10

निहायत हल्की है ग़ज़ल.
भाव जरा भी नहीं ठहरते दिल में.
वाह-वाह पर न जाईये.

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति .........

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सुंदर गजल के आभार

Anonymous said...

अच्छी गजलें लेकिन आपकी बाकी की गजलों से पीछे रह गयीं...फिर भी दूसरा और तीसरा शेर अच्छा लगा..
मेरे ब्लॉग पर कभी कभी....

ZEAL said...

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फुर्सत जो मिले तो तू देखने आना
इस दिल की हवेली अब तक है नवेली....

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ये पंक्तियाँ इतनी खूबसूरत लगीं , कि शब्दों में बयान नहीं कर सकती। स्नेह और ममता रखने वाले पवित्र दिलों की हवेली सदैव नई नवेली ही रहती है। बहुत सुन्दर रचना निर्मला जी।

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Pawan Kumar said...

कपिला जी
आदरणीय प्राण साहब की ग़ज़ल पेश करने का आभार....
अद्भुत ग़ज़ल.....!!!!!!!!!!!
ग़ज़ल के सारे कतए एक से बढ़कर एक थे......
मगर ये दिल को छू गया......
उड़ते हैं हजारों आकाश में पंछी
ऊँची नहीं होती परवाज़ हरिक की.....
बहुत उम्दा........!!!!!!

Aruna Kapoor said...

धन्यवाद! ...दिपावली की शुभ-कामनाएं!

उपेन्द्र नाथ said...

nirmala ji bahoot hi sunder nazm likhi hai aap ne..........

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

होना था असर कुछ इस शहर भी उसका
माना कि अँधेरी उस शहर चली थी !!

हालाँकि कविता/गजल वगैरह की अपनी समझ बिल्कुल जीरो है. बस जो मन को अच्छी लगी, हमारे लिए तो वही उम्दा रचना है और जो न समझ में आई तो बेकार :)

यहाँ दूसरे वाले शेर में "अन्धेरी" शब्द कुछ खटक सा रहा है. इसके बदले "आँधी" होता तो ज्यादा अच्छा लगता.

vijai Rajbali Mathur said...

आप सब को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
हम आप सब के मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली की कामना करते हैं.

Sajal Ehsaas said...

aap log gyaani hai mujhe itna pata to nahi..jo mamooli samajh aur ehsaas hai usse ye vichaar hai ki kaafiye me zara kamee hai...vichaar zaror umdaa hai


http://pyasasajal.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

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