अति अन्त है
एक नदिया का पानी रोज़ अपनी रवानगी मे बहता, किनारों की तरफ भागने की कोशिश करता मगर नदी से बाहर नही निकल पाता। उसके मन मे बहुत क्षोभ था कि वो स्वतन्त्र क्यों नही। सामने ऊँचे हिम शिखरों के देख कर उसका मन ललचाता कि काश वो उस शिखर पर पहुँच जाये और दुनिया के नज़ारे देखे। उसने सूरज की किरण से कहा
"तुम मुझे भाप बना दो ताकि मैं उस हिम शिखर तक पहुँच जाऊँ।"
किरण ने उसे समझाया " तुम पानी हो नदिया मे ही रहो यही तुम्हारी तकदीर है। दूर की चमक दमक देख कर अपने पाँव के नीचे की जमी मत छोडो"
मगर पानी नही माना। उसने कहा कि --
" ये तुम इसलिये कह रही हो कि मैं कहीं बडा न बन जाऊँ मुझ मे भी पहाड जितनी शक्ती न आ जाये।"
नही मैं इस लिये कह रही हूँ कि तुम जितनी शक्ती किसी मे नही। झुकने मे जो ताकत है वो ऊँचा सिर करने मे नही। तुम खुद को जैसे चाहो ढाल सकती हो। मगर पर्बत की तकदीर देखो वो अपना सर भी नही हिला सकता। कहीं मर्जीसे आ जा नही सकता वो भी तो अपनी सीमाओं मे से बन्धा हुआ है! रोज़ सूरज का इतना ताप सहता है फिर भी अडिग है। क्या तुम उसकी तरह सभी कष्ट सह सकती हो? तभी तो वो पर्बत है। क्या तुम उसकी तरह सभी कष्ट सह सकती हो?भगवान ने सब को कुछ न खुछ काम दे कर संसार मे भेजा है इस लिये जिसको जिस हाल मे भगवान ने रखा है उसे खुशी से स्वीकार कर सब का भला करते रहना चाहिये। तुम भी अपनी सीमा मे बन्ध कर रहना सीखो और सब की प्यास बुझा कर मानवता की सेवा करो। अगर कोई एक बार राह भटक गया तो न घर का रहता है न घाट का।"
मगर पानी ने उसकी एक नही सुनी तो सूरज की किरण कहा कि चलो मैं तुम्हें भाप बना देती हूँ तुम शिखर पर चली जाओ। पानी भाप बन कर पर्बत पर चला गया और ठंड से बर्फ बन कर चोटी पर जम गया। वो बहुत खुश हुया कि यहाँ से खडे हो कर वो दुनिया के नज़ारे देख सकता है। आज वो भी कितना ऊँचा उठ गया है नदिया यूँ ही नाज़ करती थी कि उसने मुझे पनाह दे रखी है। सूरज की किरण रोज़ उससे मिलने आती तो झूम कर कहता कि देखों आज मैं भी पर्वत हूँ। वो मुस्कुराती और अपनी राह चल देती। मगर एक दिन पानी का घमंड देख कर उसने कहा कि कुछ दिन ठहरो अब गर्मी आने वाली है। अभी सूरज देवता का ताप इतना बढ जायेगा कि तुम सह न पाओगी। मगर पानी तो अपनी इस सफलता पर झूम रहा था उसे किसी चीज़ की परवाह नही थी। कुछ दिनो बाद गर्मी का मौसम आया। वहाँ रोज़ सूरज की तपता तो पानी पिघलने लगता। धीरे धीरे पानी पिघलता तो कभी किसी तालाब मे तो कभी कहीं जमीन पर बूँद बूँद टपक जाता। उसे नदिया तक जाने का रास्ता भी नही पता था वो तो सपनों के पंख लगा मदहोश हो कर पहाड पर आया था। वैसे भी पानी के पहाड पर चले जाने के बाद नदी सूख गयी थी और अब वहां बडी बडी इमारतें खडी हो गयी थीं। पानी के लिये जगह ही कहाँ बची थी? इस तरह कुछ हिस्सा कहीं तो कुछ कहीं गया। जैसे किसी शरीर के टुकडे करके अलग अलग जगह फेंक दिये गये हों। एक दिन किरण को पानी का धडकता हुया दिल एक नाले मे दिखा तो उसने कटा़क्ष किया---
" क्या तुम्हारा दिल पर्बत पर नहीं लगा?"
पानी दुखी मन से बोला "तुम ने सही कहा था हम दूसरों को ऊँचे उड कर देखते हैं तो सामर्थ्य ना होते हुयी भी वहाँ तक पहुँच जाना चाहते हैं। मगर जिस परिश्रम और कष्ट को उन्होंने सहा है वो सह नही सकते। मुझे आज ये शिक्षा मिली है कि दूसरों को देख कर अपनी सीमायें मत तोडो नहीं तो न घर के रहोगे न घाट के। अगर तुम मानवता की सेवा करना चाहते हो तो खुद को सीमा में बान्धना सीखो। नहीं तो बिखर जाओगे और मेरी तरह किसी के काम के नही रहोगे।" आखिर हर चीज़ की हर ख्वाहिश की कोई न कोई तो सीमा तो होनी ही चाहिये। अति अन्त है।
"तुम मुझे भाप बना दो ताकि मैं उस हिम शिखर तक पहुँच जाऊँ।"
किरण ने उसे समझाया " तुम पानी हो नदिया मे ही रहो यही तुम्हारी तकदीर है। दूर की चमक दमक देख कर अपने पाँव के नीचे की जमी मत छोडो"
मगर पानी नही माना। उसने कहा कि --
" ये तुम इसलिये कह रही हो कि मैं कहीं बडा न बन जाऊँ मुझ मे भी पहाड जितनी शक्ती न आ जाये।"
नही मैं इस लिये कह रही हूँ कि तुम जितनी शक्ती किसी मे नही। झुकने मे जो ताकत है वो ऊँचा सिर करने मे नही। तुम खुद को जैसे चाहो ढाल सकती हो। मगर पर्बत की तकदीर देखो वो अपना सर भी नही हिला सकता। कहीं मर्जीसे आ जा नही सकता वो भी तो अपनी सीमाओं मे से बन्धा हुआ है! रोज़ सूरज का इतना ताप सहता है फिर भी अडिग है। क्या तुम उसकी तरह सभी कष्ट सह सकती हो? तभी तो वो पर्बत है। क्या तुम उसकी तरह सभी कष्ट सह सकती हो?भगवान ने सब को कुछ न खुछ काम दे कर संसार मे भेजा है इस लिये जिसको जिस हाल मे भगवान ने रखा है उसे खुशी से स्वीकार कर सब का भला करते रहना चाहिये। तुम भी अपनी सीमा मे बन्ध कर रहना सीखो और सब की प्यास बुझा कर मानवता की सेवा करो। अगर कोई एक बार राह भटक गया तो न घर का रहता है न घाट का।"
मगर पानी ने उसकी एक नही सुनी तो सूरज की किरण कहा कि चलो मैं तुम्हें भाप बना देती हूँ तुम शिखर पर चली जाओ। पानी भाप बन कर पर्बत पर चला गया और ठंड से बर्फ बन कर चोटी पर जम गया। वो बहुत खुश हुया कि यहाँ से खडे हो कर वो दुनिया के नज़ारे देख सकता है। आज वो भी कितना ऊँचा उठ गया है नदिया यूँ ही नाज़ करती थी कि उसने मुझे पनाह दे रखी है। सूरज की किरण रोज़ उससे मिलने आती तो झूम कर कहता कि देखों आज मैं भी पर्वत हूँ। वो मुस्कुराती और अपनी राह चल देती। मगर एक दिन पानी का घमंड देख कर उसने कहा कि कुछ दिन ठहरो अब गर्मी आने वाली है। अभी सूरज देवता का ताप इतना बढ जायेगा कि तुम सह न पाओगी। मगर पानी तो अपनी इस सफलता पर झूम रहा था उसे किसी चीज़ की परवाह नही थी। कुछ दिनो बाद गर्मी का मौसम आया। वहाँ रोज़ सूरज की तपता तो पानी पिघलने लगता। धीरे धीरे पानी पिघलता तो कभी किसी तालाब मे तो कभी कहीं जमीन पर बूँद बूँद टपक जाता। उसे नदिया तक जाने का रास्ता भी नही पता था वो तो सपनों के पंख लगा मदहोश हो कर पहाड पर आया था। वैसे भी पानी के पहाड पर चले जाने के बाद नदी सूख गयी थी और अब वहां बडी बडी इमारतें खडी हो गयी थीं। पानी के लिये जगह ही कहाँ बची थी? इस तरह कुछ हिस्सा कहीं तो कुछ कहीं गया। जैसे किसी शरीर के टुकडे करके अलग अलग जगह फेंक दिये गये हों। एक दिन किरण को पानी का धडकता हुया दिल एक नाले मे दिखा तो उसने कटा़क्ष किया---
" क्या तुम्हारा दिल पर्बत पर नहीं लगा?"
पानी दुखी मन से बोला "तुम ने सही कहा था हम दूसरों को ऊँचे उड कर देखते हैं तो सामर्थ्य ना होते हुयी भी वहाँ तक पहुँच जाना चाहते हैं। मगर जिस परिश्रम और कष्ट को उन्होंने सहा है वो सह नही सकते। मुझे आज ये शिक्षा मिली है कि दूसरों को देख कर अपनी सीमायें मत तोडो नहीं तो न घर के रहोगे न घाट के। अगर तुम मानवता की सेवा करना चाहते हो तो खुद को सीमा में बान्धना सीखो। नहीं तो बिखर जाओगे और मेरी तरह किसी के काम के नही रहोगे।" आखिर हर चीज़ की हर ख्वाहिश की कोई न कोई तो सीमा तो होनी ही चाहिये। अति अन्त है।
55 comments:
itni achhi kahani, itni saral seekh , itne lachile sanskaar ....... aisi kahaniyon kee zarurat hai- badon ke liye bhi, bachchon tak to pahunchayen hi....
bahut bahut bahut badhiya
जल के माध्यम से प्रेरणास्पद बात कही है आपने, बहुत अच्छी और गहरी बात। हम अक्सर अपने पाले बदलते रहते हैं, एक जगह से संतुष्ट ही नहीं होते।
वाह, पानी को मिले अनुभव से बढ़िया सीख दी आपने !
Behad sundar katha...man me sama gayi...kaash hame bhi aisi koyi kiran mile jo samjha paye! Kayi baar apne astitv ka arth samajh me nahi aata!
सीमाएं और क्षमता के अनुरूप जीवन जीना ही श्रेयस्कर है. अति अंत है. सुन्दर बोधकथा!!
गज़ब की सीख देती है कहानी…………क्या बडे और क्या बच्चे और क्या समाज सभी को अपने दायरो और हदों मे ही रहना चाहिये नही तो वो दिन दूर नही कि हस्ती ही मिट जाये।
....हर कोई अपने हिस्से का काम करें...यही बेहतर है!...पानी जब पर्बत की बराबरी करने गया तो उसकी दुर्गति हो गई!...शिक्षा-प्रद कहानी...धन्यवाद!
निर्मला जी, आज तो सुबह सुबह ये बोध कथा पढकर मानो आत्मा प्रसन्न हो गई... सच में,अपनी सीमाओं का अतिक्रमण सदैव प्राणघातक ही होता है..फिर चाहे वो व्यक्ति हो या समाज.
बेहतरीन कहानी ..बहुत सही प्रेरणा देती है यह ...
बहुत सुन्दर और प्रेरणादायी कहानी|
अति सुन्दर.प्रेरणात्मक.
कितनी प्रेरक सीख दी है आपने...बस मुग्ध हूँ पढ़कर...
आपको ,आपके कलम और विचारों को नमन !!!!
ऐसे ही राह दिखाती रहें...
जल के माध्यम से एक बेहतरीन शिक्षाप्रद कहानी.
DIL MEIN SADAA KE LIYE UTARNE WAALEE KAHANI.AAPKEE LEKHNI KO
PRANAAM.
बहुत सुन्दर प्रेरक कथा मासी... लगता है भारत छोड़ कर भागने वालों के लिए है.. :)
बहुत ही सुंदर ओर शिक्षा देती रचना, धन्यवाद
सुंदरतम रचना के लिये आभार आपका.
रामराम.
अत्यन्त चिन्तनपरक
बहुत अच्छी लगी ये पोस्ट !
waaaaaaaaaaaaaaaaaaah !
बहुत अच्छा सीख देने वाला कहानी है... जो हमेसा जमीन पर पाँव जमाकर चलता है उसको गिरने का दर नहीं होता है.. आज आप इस बात को फिर से साबित कर दीं... बहुत अच्छा अनुभव रहा इसको पढ्ने का!! धन्यवाद!
पूर्णत: सहमत कि कोई सीमा तो होनी ही चाहिये.
कहानी लिखने के कुछ टिप्स भेजिए किसी दिन । जब कोई कहानी पढ़ता हूँ तो लगता है कि ऐसे तो मैं भी लिख सकता हूँ पर लिखने बैठो तो टाँय टाँय फिस्स हो जाती है ।
इस प्रेरणास्पद बोधकथा के लिए धन्यवाद.
ईद व गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनांए.
बहुत अच्छी बोध कथा ...अपनी सीमाओं में रहने की प्रेरणा देती हुई ...
nice post nirmala ji
aap sabhi ko Ganesh chaturthi aur Ied ki mubarak baad
वाह, बहुत ही सही बातें।
बहुत शानदार पोस्ट लगी आपकी, आभार।
बहुत बढ़िया!
जल के माध्यम से प्रेरणास्पद बात कही है !...बहुत अच्छी बोध कथा .
प्रेरणादायी और सही सीख देने वाली कथा........
में हमेशा से आपकी लेखनी की कायल रही हूँ..और इस बार जो शिक्षाप्रद सीख दी आपने पानी के माद्यम से वो हमेशा याद रहेगी. बहुत बहुत शुक्रिया इसे पढाने के लिए.
बहुत बढ़िया!
गणेश चतुर्थी एवं ईद की बधाई
jukane main jo takat hai ooncha sir karne main nahin.
bahut gahara chintan. prernaprad
आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
बहुत ही प्रेरक कहानी । सच है अपनी क्षमता से अधिक की चाह हमें कहीं का नही छोडती । आपको गणेश चतुर्थी की शुभ कामनाएँ ।
कहानी के माध्यम से आपने बहुत अच्छी सीख दी है। साफ है कि हमें भगवान ने जो रोल दिया है उसे ही बखुबी प्ले करें, अपनी जमीन से जुडे रहें। जो लोग अपनी जमीन से दूर भागने की कोशिश करते हैं उनका हश्र ऐसा ही होता है।
सुन्दर बोध कथा!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
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धन्यवाद!
..पानी और पर्वत के माध्यम से आपने बहुत ही प्रभावपूर्ण ढंग से दूसरों को देखकर अपनी सीमा का उलंघन न करने की सीख दी है ...बहुत ही प्रभावकारी लगी..... आभार. ..हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत शिक्षाप्रद और रोचक कहानी निर्मला दी ! अपनी मर्यादा में रहना और अपनी भूमिका की सार्थकता में संतुष्ट रहना यदि इंसान सीख जाए तो बहुत सी समस्याओं के समाधान स्वयं ही निकल आयेंगे ! बहुत खूबसूरत बोध कथा ! आभार !
वाह, पानी और पर्वत के माध्यम से से बढ़िया सीख दी अच्छी बोध कथा!
पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ मेरे सभी ब्लॉग पर टिपण्णी देने के लिए और उत्साह वर्धन के लिए! मैं वेज और नॉन वेज दोनों ही बनाती हूँ इसलिए आपको जब भी वक़्त मिले मेरे खानामसाला ब्लॉग पर ज़रूर आइयेगा! आपकी टिपण्णी मिलने से लिखने का उत्साह और बढ़ जाता है!
गहन चिंतन का परिणाम है यह कहानी। सार्थक।
प्रेरणादायी और रोचक कहानी...
बहुत अच्छी सीख दी है आपने !!!
पानी के माध्यम से बहुत गहरी बात कह दी है आपने .... शिक्षाप्रद है ... बोध कथाएँ जितना पहले सार्थक थीं आज भी उतना ही सार्थक है ....
बहुत ही प्रेरणास्पद कहानी....जीवक की सीख देती हुई...
प्रेरणा मिली इस कहानी से..वाकई दिलचस्प.
प्रेरणा मिली इस कहानी से..वाकई दिलचस्प.
निर्मला जी सही कहा अपनी चादर देख ही पैर पसारने चाहिए ......
बहुत बड़ी सीख देती रचना .......!!
सुंदर, प्रेरक कथा।
तीसरी पंक्ति में होम शिखरों को हिम शिखरों बना दें..टंकण त्रुटी है।
बहुत ही प्रेरणास्पद, इतने सहज एवं सरल शब्दों में इतनी गहरी सीख,आभार ।
बहुत सुन्दर शिक्षाप्रद कहानी है निर्मला जी, बहुत-बहुत धन्यवाद। आज मै अपने बेटों को यही पढ़कर सुना रही थी। बहुत जरूरी है कुछ बातों को कहानी के माध्यम से ही बच्चों को कहना।
hamseha hi dhir-gambhir tarike se likhti hai..yun hi yahan aana nahi hota :)
सुन्दर बोध-कथा.
प्रेरणादायक कथा! धन्यवाद.
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