14 November, 2009

गज़ल

इस गज़ल को सजाया संवारा मेरे बडे भाई साहिब श्री प्राण शर्मा जी ने
इस लिये ये कहने लायक हुई है । उनका आशीर्वाद ही मेरी प्रेरणा है



तराने प्यार के सबको ज़रा गा कर सुनाया कर
कि जैसे गुल लुभाते हैं तू वैसे ही लुभाया कर

ज़रा पहचान अपने को, खुदा का बंदा होकर भी
खुदा के नाम पर बन्दे न लोगों को लड़ाया कर

परिंदे देखकर उड़ते हुए आकाश में यूँ ही
करे तेरा कभी मन ओड़नी लेकर उडाया कर

करे मजबूर कहने को मुझे तेरे फसाने को
न दूरी के ये झूठे से बहाने अब बनाया कर

करे धोखा गरीबों से मिलावट कर कमाए नोट
कभी भगवान का बन्दे जरा तो खौफ खाया कर

विदेशी खाए,पहने भी विदेशी तू, बता क्योंकर
कभी पहचान अपने देश की भी तू दिखाया कर

51 comments:

Dr. Shreesh K. Pathak said...

आपका प्रयास अब महज प्रयास नहीं रहा..सशक्त अभिव्यक्ति...प्राणजी को मेरा अभिवादन..

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

ज़रा पहचान अपने को, खुदा का बन्दा होकर भी
खुदा के नाम पर बन्दे न लोगो को लड़ाया कर
बहुत ही सुन्दर, निर्मला जी !
आपकी तरफ से इसे राज ठाकरे और उलेमाओं को समर्पित करने की आज्ञा चाहता हूँ !

Khushdeep Sehgal said...
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M VERMA said...

ज़रा पहचान अपने को, खुदा का बन्दा होकर भी
खुदा के नाम पर बन्दे न लोगो को लड़ाया कर
बहुत सार्थक सन्देश और भाव

Khushdeep Sehgal said...
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Khushdeep Sehgal said...

देख तेरे इंसान की हालत,
क्या हो गई भगवान.
कितना बदल गया इंसान...

जय हिंद...

Khushdeep Sehgal said...
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Unknown said...

वाह! वाह!! खुदा के बन्दे और भगवान के बन्दे तो एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं जी!!!

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

परिन्दे और ओढ़नी का संयोजन सुन्दर है।
'ओड़नी' को 'ओढ़नी' होना चाहिए क्या?

Khushdeep Sehgal said...
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Khushdeep Sehgal said...
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Khushdeep Sehgal said...
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ब्लॉ.ललित शर्मा said...

ज़रा पहचान अपने को, खुदा का बंदा होकर भी
खुदा के नाम पर बन्दे न लोगों को लड़ाया कर
बहुत सुंदर - आभार

Khushdeep Sehgal said...
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अजय कुमार said...

खुदा के नाम पर--------न लड़ाया कर
बहुत खूब
मजहब के ठेकेदारों सुन रहे हो ??

Khushdeep Sehgal said...

माफ करना निर्मला जी,
ये मेरा लैपटॉप सुबह सुबह चकरा गया था...ब्रॉडबैंड महाराज ऐसा गच्चा दे रहे थे कि आपका कमेंट बॉक्स खुलने पर भी मैं कमेंट नहीं दे पा रहा था...गुस्से में आकर सात-आठ बार क्लिक कर दिया और अचानक ही वो सारी बार कमेंट पोस्ट हो गया....मुझे लगता है कि मेरे लैपटॉप महाराज पर ललित शर्मा जी का कल का पौखा आ गया है...कल वो एक ही पोस्ट पर एक ही टिप्पणी को बार-बार दनदनाए जा रहे थे...लेकिन मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था...लगता है ललित जी ने अंदरखाने मेरे लैपटॉप से भी कोई सैटिंग कर ली लगती है...

जय हिंद...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

विदेशी खाए,पहने भी विदेशी तू, बता क्योंकर
कभी पहचान अपने देश की भी तू दिखाया कर

yeh pankti bahut achchi lagin....mom..

bahut hi sunder ghazal...

Hiteshita Rikhi said...

वाह बहुत खूब
विदेशी खाए,पहने भी विदेशी तू, बता क्योंकर
कभी पहचान अपने देश की भी तू दिखाया कर
बहुत अच्छा लगा बधाई

डिम्पल मल्होत्रा said...

करे मजबूर कहने को मुझे तेरे फसाने को
न दूरी के ये झूठे से बहाने अब बनाया कर....yakeen ho jata hai jab jhutte bhane sfayee se khaye jaye......

ओम आर्य said...

आपकी इस रचना मे भावनाओ का गंगा यमुनी एहसास है ............पढकर मन को शुकून मिला!

सादर

ओम

Apanatva said...

ज़रा पहचान अपने को, खुदा का बन्दा होकर भी
खुदा के नाम पर बन्दे न लोगो को लड़ाया कर

विदेशी खाए,पहने भी विदेशी तू, बता क्योंकर
कभी पहचान अपने देश की भी तू दिखाया कर

bahut khoobsoorat gazal hai . Badhai

Kulwant Happy said...

शानदार है...अद्भुत हैं। शायद कुछ शब्द बहुत भारी हैं। जो लय को तोड़ते हैं।

दिगम्बर नासवा said...

Gazal mein aap ke haharat ho gayee hai ab ... aadarniy Praan ji to usmein chaar chaand lagaate hain .... aapka jeevan ka lamba anubhav in sheron mein jaan daal deta hai .... bahoot lajawaab hain sab sher ....

रंजना said...

WAAH ! WAAH ! WAAH ! LAJAWAAB !! HAR SHER LAJAWAAB !!

BAHUT HI SUNDAR RACHNA....Bada hi aanand aaya padhkar..aabhar.

अर्कजेश said...

वाह वाह बहूत खूब कहा है आपने ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

ज़रा पहचान अपने को, खुदा का बंदा होकर भी
खुदा के नाम पर बन्दे न लोगों को लड़ाया कर ।।

बेहतरीन गजल.....लेकिन ये दो पंक्तियाँ तो कमाल की लिखी आपने...।।
आभार्!!

शोभना चौरे said...

बहुत अच्छी भावनाओ से पूरित गजल
आइये भार को हम बाँट ले
जिंदगी के प्यार को हम बाँट ले
मिलके गए मिलके मुस्कुराये हम
अपनी जीत हर को हम बाँट ले |

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

bahut khoob ghazal kahi hai....
kare dhokha gareebon se milawat kar kamaye not.....achchha kataksh hai....

badhai

आभा said...

खुदा के नाम पर वंदे न लोगों को लडाया कर.बहुत अच्छी भाव पूर्ण गजल ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सुंदर जी.
आपकी पोस्ट में शीर्षक खाली रहता है...

राज भाटिय़ा said...

ज़रा पहचान अपने को, खुदा का बन्दा होकर भी
खुदा के नाम पर बन्दे न लोगो को लड़ाया कर

विदेशी खाए,पहने भी विदेशी तू, बता क्योंकर
कभी पहचान अपने देश की भी तू दिखाया कर
बहुत सुंदर रचना निर्मला जी, आप को ओर प्राण शर्मा जी कॊ धन्यवाद

विवेक सिंह said...

क्या बात है आपकी गज़ल पढ़कर लोग लैपटॉप तोड़कर भी टिप्पणी करने पर उतारू हो गये :)

क्या करें ? गज़ल है ही इतनी अच्छी !

बहुतखूब ।

rashmi ravija said...

ज़रा पहचान अपने को, खुदा का बन्दा होकर भी
खुदा के नाम पर बन्दे न लोगो को लड़ाया कर
काश आपकी यह बात लोगों के समझ में आ जाती तो दुनिया कितनी ख़ूबसूरत हो जाती...सुन्दर,प्रेरणादायक ग़ज़ल

Mithilesh dubey said...

माँ जी चरण स्पर्श

बेहद उम्दा , लाजवाब रचना । बधाई

मनोज कुमार said...

इसको पढ़कर एक भावनात्मक राहत मिलती है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर रचना!
बाल-दिवस की शुभकामनाएँ!

स्वप्न मञ्जूषा said...

विदेशी खाए,पहने भी विदेशी तू, बता क्योंकर
कभी पहचान अपने देश की भी तू दिखाया कर

aaj vastav mein isi soch ki awashyakta hai...ham sabko..
bahut sundar ghzal bahi hai Nirmala ji...kayal ho gaye ham aapke...

वाणी गीत said...

करे धोखा गरीबों से मिलावट कर कमाए नोट कभी भगवान का बन्दे जरा तो खौफ खाया कर
विदेशी खाए,पहने भी विदेशी तू, बता क्योंकर
कभी पहचान अपने देश की भी तू दिखाया कर

विदेश में रहने वाले भारतीय तो फिर भी समझने लगे हैं ...देश में रह रहे देशी मगर रहन सहन संस्कार से विदेशी होने वालों का क्या करें ...
बहुत सुन्दर कविता या ग़ज़ल ..!!

गौतम राजऋषि said...

"परिंदे देखकर उड़ते हुये आकाश में यूं ही / करे तेरा कभी मन ओढ़नी लेकर उड़ाया कर"

....बहुत अच्छा शेर है मैम!

vandana gupta said...

ek behtreen sandesh deti huyi behtreen gazal............badhayi.

Yogesh Verma Swapn said...

KYA KAHNE HAIN !!!!!!!!!! BAHUT KHOOB.............SABHI SHER .........BEHATAREEN.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत ही बेहतरीन गज़ल पेश की है आपने!
मुबारकवाद!

Urmi said...

ज़रा पहचान अपने को, खुदा का बन्दा होकर भी
खुदा के नाम पर बन्दे न लोगो को लड़ाया कर!
बिल्कुल सही संदेश दिया है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! निर्मला जी आपने अत्यन्त सुंदर गज़ल लिखा है जो दिल को छू गई!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

पंरिदे देखकर उड़ते हुए आकाश में यूँ ही
करे तेरा कभी मन ओड़नी ले कर उड़ाया कर
वाह! इस शेर की जितनी भी तारीफ की जाय कम है।

हरकीरत ' हीर' said...

आप तो खुद लाजवाब लिखती हैं निर्मला जी ....मुझे तो आपसे अभी बहुत कुछ सीखना है ....

तराने प्यार के सबको जरा गाकर सुनाया कर
कि जैसे गुल लुभाते हैं तू वैसे ही लुभाया कर

वाह..........!!

परिंदे देखकर उड़ते हुये आकाश में यूं ही
करे तेरा कभी मन ओढ़नी लेकर उड़ाया कर.....

ये तो लाजवाब कर गया ......बहुत ही बढ़िया .....!!

पता नहीं अब तक नज़रों से बची कैसे रह गई .....!!

हरकीरत ' हीर' said...
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अभिषेक आर्जव said...

दिखाने से पहले जरूरी है कि पहचान हो ,समझ हो ! अच्छी लगी पंक्तिया !

विनोद कुमार पांडेय said...

ग़ज़ल एक साथ साथ एक बढ़िया संदेश देती हुई रचना..अपने समाज के इर्द-गिर्द की कहानियो पर आधारित लग रही है आपकी यह रचना..बहुत बढ़िया हर एक पंक्ति लाज़वाब है...धन्यवाद निर्मला जी

विनोद कुमार पांडेय said...

विदेशी खाए,पहने भी विदेशी तू, बता क्योंकर
कभी पहचान अपने देश की भी तू दिखाया कर,

बहुत ही बढ़िया बात कही आपने इस पंक्ति में..लाज़वाब ..

शरद कोकास said...

यह एक ही टिप्पणी बार बार पोस्ट हो जाने का भी अजीब चक्कर है ..खामखा गिनती बढ़ा देता है । बहरहाल .. इस गज़ल मे प्राण जी को उनकी मेहनत के लिये सलाम ।

राकेश कौशिक said...

इतने सारे लोगों ने इतना सब कुछ कहा होगा. मैं तो आपको और आदरणीय प्राण शर्मा जी के लिए वाह वाह करते हुए विदा लूँगा. धन्यवाद् इतनी बेहतरीन, सच्ची और सार्थक जीवन सन्देश देती ग़ज़ल के लिए.

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