गज़ल
1222 1222 1222 1222
रहे तालिब सदा तेरे
दीदार-ए-नूर के जानम
न आया तू न कोई भी
पता तेरा मिला मुझ को
वफा को ही मिले धोखा
बता ऐसी रवायत क्यों
मैं हैराँ हूँ उजाले मे
भी अंधेरा मिला मुझ को
हज़ारों रोनकें होती रहें
होते रहें उत्सव्
उजडता सा सदा मेरा
जहाँ डेरा मिला मुझ को
सदा जीता रहा मर मर
के मैं यारो ख्यालों मे
मिला ये तोहफा देखो
जो गम तेरा मिला मुझ को
तिरे कन्धे पे सिर रख कर
लगा कोई मेरा भी है
चलो जीने को कोई साथ
ही मेरा मिला मुझ को
करे कोई गिला तो क्या?
बताओ तो सही *निर्मल*
मुहब्बत में बना बन कर
खुदा मेरा मिला मुझ को
41 comments:
सदा जीता रहा मर-मर
के यारो मै खयालो में
मिला ये तोहफा देखो
जो गम तेरा मिला मुझको !
बहुत सुन्दर !
गज़ल बहुत सुंदर बन पड़ी है। बधाई!
Adaraneeya Nirmalaa ji,
bahut hee khuubasoorat gajal hai apkee---har sher apane aap men mukammal.
Poonam
तिरे कन्धे पे सिर रख कर
लगा कोई मेरा भी है
चलो जीने को कोई साथ
ही मेरा मिला मुझ को
बहुत उम्दा गजल है, बधाई
"मैं हैरां हूँ उजाले में
भी अंधेरा मिला मुझको"
बेहतरीन!!
मीनाकुमारी जी का शेर याद आ गयाः
टुकड़े टुकड़े दिन बीता धज्जी धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था उतनी ही सौगात मिली।
बेहतरीन गजल, बधाई।
बहुत सुंदर.
रामराम.
waah! bahut sundar gazal Nirmala ji.
तिरे कन्धे पे सिर रख कर लगा कोई मेरा भी है
चलो जीने को कोई साथ ही मेरा मिला मुझ को
वाह ......... सुभान अल्ला ........ कमल का शेर है ... सच में जीने का कोई तो सहारा चाहिए इस भरी दुनिया में .......
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है ...
बहुत खूबसूरत गज़ल है जी
bahut acchha gajal,very nice---jab bhi mila lutera hi mila mujhko,subhkamanaaye.
woh jab bhi mila--lutera hi mila mujhko. very nice , achhi gajal. subhakaamanaaye.
bahut hi khoobsoorat gazal.
सदा जीता रहा मर-मर
के यारो मै खयालो में
मिला ये तोहफा देखो
जो गम तेरा मिला मुझको !
बेहतरीन गज़ल!!!!
सदा जीता रहा मर-मर
के यारो मै खयालो में
मिला ये तोहफा देखो
जो गम तेरा मिला मुझको !
बड़ी ख़ूबसूरत पंक्तियाँ हैं...गम को भी तोहफा बना लेने का हुनर लाजबाब है.....सुन्दर ग़ज़ल..
सुन्दर रचना! बेहतर प्रस्तुति!
वफा को ही मिले धोखा
बता ऐसी रवायत क्यों
मैं हैराँ हूँ उजाले मे
भी अंधेरा मिला मुझ को
वाह दिल की बात कही है आपने निर्मला जी बहुत सुन्दर गजल है दिल के बहुत करीब है यह ..शुक्रिया
मैं हैरां हूँ उजाले में
भी अंधेरा मिला मुझको
बहुत ही बेहतरीन रचना, आभार
रहे तालिब सदा तेरे
दीदार-ए-नूर के जानम
न आया तू न कोई भी
पता तेरा मिला मुझ को
सुन्दर गजल , आभार
इस ग़ज़ल को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा। ग़ज़ल रचना मर्मस्पर्शी है इसके कई शे’र दिल में घर कर गए।
बहुत बेहतरीन रचना है।बधाई स्वीकारें।
सदा जीता रहा मर मर
के मैं यारो ख्यालों मे
मिला ये तोहफा देखो
जो गम तेरा मिला मुझ को
bahut hi sunder ghazal hai...
"वफा को ही मिले धोखा
बता ऐसी रवायत क्यों
मैं हैराँ हूँ उजाले मे
भी अंधेरा मिला मुझ को"
गज़ल के सबी शेर काबिल-ए-तारीफ़ हैं।
बधाई!
behad umda gazal
करे कोई गिला तो क्या?
बताओ तो सही *निर्मल*
मुहब्बत में बना बन कर
खुदा मेरा मिला मुझ को
वाह क्या बात है .........बेहद सुन्दर रचना .....शब्द और भाव दोनो ही खुबसूरत है....बधाई!
निर्मला जी बहुत ही सुंदर गजल लिखी आप ने
धन्यवाद
"मैं हैरां हूँ उजाले में
भी अंधेरा मिला मुझको"
बहुत ही सुन्दर गजल...
बधाई!!
करे कोई गिला तो क्या?
बताओ तो सही *निर्मल*
मुहब्बत में बना बन कर
खुदा मेरा मिला मुझ को
सुंदर अभिव्यक्ति ।
उम्दा गज़ल ।
wah nirmala ji, करे कोई गिला तो क्या?
बताओ तो सही *निर्मल*
मुहब्बत में बना बन कर
खुदा मेरा मिला मुझ को
aapto bahut umda gazal kah rahi hain, aapko aur pran sahab ko badhai.
meri itni aukat nahin ki aapke likhe ko achchha bura kah sakoon. lekin itna janta hoon ki agar kalam me Maa Sharde ka vaas dekhna ho to koi yahan dekh le....
काफी दिनों बाद ब्लॉग पर एक अच्छी ग़ज़ल से रूबरू हुआ ,.. मजा आगया इस ग़ज़ल को पढ़कर , सारे ही शे'र कमाल के बन पड़े हैं ,. और जहां ग़ज़ल पितामह के पास से होकर ग़ज़ल आयी हो तो और क्या कहने /... हर शे'र चमक हुआ और खुद बोल रहा है .. बधाई अछि ग़ज़ल से ब्लॉग जगत को रूबरू कराने केलिए ...
अर्श
वफा को ही मिले धोखा
बता ऐसी रवायत क्यों
मैं हैराँ हूँ उजाले मे
भी अंधेरा मिला मुझ को
bahut sundar panktiyan...aur aapka prayas bahut hi safal raha..
badhai..
वफा को ही मिले धोखा
बता ऐसी रवायत क्यों
मैं हैराँ हूँ उजाले मे
भी अंधेरा मिला मुझ को
bahut sundar panktiyan...aur aapka prayas bahut hi safal raha..
badhai..
बहुत सुंदर ग़ज़ल , बधाई। अच्छा निर्वाह |
आपका लिंक पकड़ते हुए इधर आ गई... और आई तो देखा कि यहाँ तो समा ही अलग है...! नर्मल दी ने तो जाने कितनी गज़ल लगा रखी हैं...! और मैं कह रही थी तरही मे कि पहली गज़ल..!!! अजब पागल हूँ मैं भी...!!
वाह वाह...ऐसे ही छाई रहिये...!
और मेरे भाई ने आजकल ऐड कंपनी ज्वाईन कर ली है...! कभी अपनी उँगलियों की तारीफ करता है कभी मेरी नज़्मो की...!
but he as a sweet naughty guy...! :)
इस कोशिश का तो ज़वाब नहीं.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल.
एक बेहतरीन ग़ज़ल मैम...बेमिसाल रदीफ़ को बड़ी सहजता से निभाया है आपने। सारे अशआर खूब बने हैं। खास ये मेरा सबसे ज्यादा पसंदीदा है "सदा जीता रहा मर मर के मैं यारो ख्यालों मे/ मिला ये तोहफा देखो जो गम तेरा मिला मुझको"
इतनी ज़ल्दी ग़ज़ल की गहराइयां छूना कमाल है आपकी प्रतिभा पर रश्क़ होता है.
सदा जीता रहा मर-मर
के यारो मै खयालो में
मिला ये तोहफा देखो
जो गम तेरा मिला मुझको
वाह........
बहुत ही ख़ूबसूरत नज्मो में पिरोई हुई गजल..............
ab kya kahoon....
itni dher saara pendhing kaam pada hai...
itni rachnaaiyen baaki hai padhne ke liye ....
...aur phir manan karne ke liye ,
bus itna hi kahoonga ki behterin hai ,
aur jo sabse zayada pasanad aayi wo line:
"हज़ारों रोनकें होती रहें
होते रहें उत्सव्
उजडता सा सदा मेरा
जहाँ डेरा मिला मुझ को"
accha, acchTAM,acchaTEST.
HAHA
Pranam !
गजल और गायकी दोनो अच्छी बन पड़ी हैं |
बधाई
आशा
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