22 September, 2009

कवच --- गताँक से आगे कहानी
पिछली किश्त मे आपने पढा कि आशू एक कम उम्र की लडकी अपने ही कालेज के प्रोफेसर से प्यार करने लगती है मगर बाद मे पता चलता है कि वो शराबी कबाबी आदमी है वो मायके आ जाती है वहाँ भी उसे वो तंग करता है जब कि वो पढ लिख कर अपने पाँव पर खडे होना चाहती है । अब आगे -----

*अशू वो तलाक के कागज़ ले कर चिल्ला रहा है कि अगर नहीं आयेगी तो ये तलाक के कागज़ साईन कर के भेज दे।* मैने आशू को बताया।
*तलाक? कभी नहीं। मुझ से तलाक ले कर ये किसी और की ज़िन्दगी बर्बाद करेगा मैं ऐसा कभी नहीं होने दूँगी।*
* तो इस तरह तंग करता है तो पोलिस की मदद ले लेते हैं।*
*नहीँ, अगर आज पोलिस की मदद ले भी लूँ तो क्या फायदा।,ाइसे दानव तो दुनिया मे भरे पडे हैं क्या पता पोलिस मे इस से भी बडे बडे दानव हों वो इसके साथ मिल जयें तो क्या करूँगी। ये अन्त हीन प्रयत्न होगा।*
* भाभी आपने मुझे माँ दुर्गा की कहानी सुनाई थी ना?उसने अपनी नौ शक्तियों के साथ कैसे दानवों का संहार किया था!अपने बताया था कि रक्त्बीज नाम के राक्षस को मारने के लिये उसे अपनी शक्ति *काली* की सहायता लेनी पडी। माँ दुर्गा जब भी रक्तबीज पर प्रहार करतीउस दानव के खून की बूँद से एक और रक्तबीज पैदा हो जाता।तभी उसने अपनी शक्ति काली से कहा कि वो दानव के शरीर से गिरने वाली हर बूँद को पी जाये।इस तरह दुर्गा ने उस की शक्ति को शीण कर के उसका वध किया।*भाभी वो सतयुग की नारी थी। मगर सृ्श्टी का दस्तूर तो वही है। मैं पढ लिख कर शक्ति अर्जित करूँगी और कलयुगी रक्तबीजों का संहार करूँगी।उस आदमी ने मुझ नासमझ को बहका कर गुरू-शिश्य के रिश्ते को कलंकित किया है। मैं अपनी गलती का प्रायश्चित करूँगी।अप देखना भाभी दुराचारी आदमी के पास बल क्षणिक होता है। इसके बाद तो उसके मन मे एक डर समाया रहता है। वो मुझे आगे बडते हुये देख ईर्ष्या मे ही समाप्त हो जायेगा। इसी लिये मैं उसे और गिर लेने देना चाहती हूँ।जिस ने भगवान की दी हुई सौगात प्रेम का अपमान किया है वो कभी किसी का प्यार नहीं पा सकेगा।*
मै आशू के मुँह की तरफ देख रही थी।एक अधखिली कली इतनी सयानी बन गयी थी। चोट आदमी को बहुत कुछ सिखा देती है बस धर्य होना चाहिये।
दिन निकलते गये।।उसने बी ए फर्स्ट कलास मे पास की। उसके बाद वो आ.- ए- एस् की तैयारी करने लगी।दीपक की हरकतों से उसके मनोबल मे वृ्द्धी ही हुई। जब दीपक ने देखा कि उसकी हर कोशिश बेकार है तो उसने कुछ रिश्तेदारों को मध्यस्त बना कर दवाब डाला।काफी कोशिश के बाद आशू को मना लिया कि एक बार फिर से कोशिश करनी चाहिये ।उसके माँ बाप भी यही चाहते थे कि अब वो अपनी गलतियाँ मान रहा है तो उसे एक अवसर देना चाहिये। इस तरह आशू फिर से उसके साथ घर चली गयी। मगर आब उसने निश्चय कर लिया था कि उसका कोई जुल्म नहीं सहेगी।
कुछ दिन तो थीक चलता रहा। मगर वो पंजाबी की एक कहावत है कि कि वादडियाँ सजादडियाँ निभण सिराँ दे नाल् [अर्थात् अच्छी बुरी आदतें जब तक आदमी जिन्दा है साथ ही रहती हैं} तीन चार महीने बाद फिर वही सिलसिला शुरू होने लगा।अशू ने सब तरह से कोशिश कर के देख ली मगर उसके व्यव्हार मे कओई फर्क नहीं आया असल मे उसका असली मकसद उसे आई-ए-एस की परीक्षा से रोकना था जो उसने पूरा कर दिया और वो प्रिलिमिनरी टेस्ट पास ना कर सकी इतने तनाव मे कर भी नहीं सकती थी। अब आशू फिर से अपने मायके चली गयी।फिर उसने सोच लिया कि अब चाहे कुछ भी हो जाये वो उसके पास कभी नहीं आयेगी।अपनी पढाई की ओरे ध्यान देगी।
दीपक ने भी जैसे कसम खा ली थी कि वो उसे पढने नहीं देगा।ाब सरेआम वो दूसरी लडकी के साथ घूमने लगा और लोगों से आशू के बारे मे उलटी सीधी बातें करने लगा।ाशू के भाई की नौकरी दिल्ली मे ही लग गयी और वो अपने भाई के पास दिल्ली चली गयी। इसके माँ बाप भी वहीं रहने लगे।
तीन साल हो गये थे। मगर फिर कभी आशू की कोई खबर नहीं आयी। ना ही उसने कोई पत्र लिखा। शायद वो अपना पता किसी को बताना नहीं चाहती थी।
तीन साल बाद अचानक उसका एक पत्र आया था ,जिसमे उसने लिखा था कि भाभी आपकी बहुत याद आती है और सच मानो तो आपके कारण ही मैं अपनी जिन्दगी को नया मोड दे पाई। आपने मुझे दुर्गा की कथा पडने के लिये कहा था, बस उस कथा ने मेरी सोच बदल दी और मुझे शक्ति दी कि मैं आगे बढूँ।अब भी रोज़ वो कथा पढती हूँ और जल्दी ही मुझे फल मिलने वाला है, जिस दिन दुर्गा मुझे वो कवच दे देंगी तो सीधे पहले आपके पास ही आऊँगी।
इस पत्र को आये भी चार पाँच महीने हो गये थे। आज सुबह मैं काम से निबट कर बाल्कनी मे बैठ गयी।अंदर काम वाली काम कर रही थी। अचानक नीचे हमारे घर के सामने एक लाल बत्ती वाली गाडी आ कर रुकी।उसमे से एक सिपाही निकला।मैं सरसरी नज़र डाल कर अंदर चली गयी,सोचा नीचे वाले वकील साहिब से कोई मिलने आया होगा। तभी सीडियों पर पैरों की आवाज़ सुन कर मैं दरवाजे पर आयी। एक सिपही मेरे दर्वाजे पर खडा था। दिल धक से रह गया----
*मैडम नीची आपको हमारे आफिसर बुला रहे हैं*
* लेकिन क्यों?इस समय मेरे पति घर पर नहीं हैं आप काम बतायें मैं उन्हें फोन कर के बुला लेती हूँ।
*उन्हों ने आपकी ननद के बारे मे बात करनी है।* सिपाही बोला।
मै डर गयी।ाभी चार माह पहले तो उसकी शादी हुई है।वो अपने घर मे बहुत खुश है,फिर ऐसी क्या बात हो गयी कि पोलिस आयी है? डर से मेरी टाँगें काँप रही थी।जैसे तैसे मैं सीढीयाँ उतर कर गाडी के दर्वाज़े के पास पहुँची,तभी एक दम गाडी का दरवाज़ा खुला और आशू एक दम मेरे गले से लिपट गयी।आश्चर्य और खुशी से मेरी चीख निकल गयी।
*अशू ये क्या मज़ाक है तुम ने तो मेरी जान ही निकाल दी? कहते हुये मैने उसे बाहों मे भर लिया।
*भाभी आज तुम्हारी दुर्गा आयी है ,तुम क्यों डर रही हो?डर तो उन रक्तबीजों को होना चाहिये जिन्हें मै एक एक कर निगलने वाली हूँ। आशू हँसते हुये बोली।
रात भर हमने खूब बातें की। उसने मुझे बताया कि उसे जब पता चला कि दीपक ने उस लडकी से शादी कर ली है तो मैने सब से पहले उस पर केस दर्ज़ करवाया। आप देखना मैं इस आदमी का क्या हाल करती हूँ बहुत सी लडकिओं के सबूत हैं मेरे पास जिन को इसने शादी का झाँसा दे कर लूटा ।
भाभी मैने अपनी भूल का प्रय्श्चित कर लिया है। माँ दुर्गा मे मुझे आई ए एस बना कर शक्ति दी है।
*हाँ आशू भूल कर के ही तो पता चलता है कि हम कहाँ गलत थे। भगवान जो ्रता है अच्छे के लिये ही करता है। उसके खेल को किस ने जाना। समाप्त


31 comments:

Sudhir (सुधीर) said...

मैंने आपकी दोनों कडियाँ एक साथ पढ़ी...मजा आया, बाँध कर रखा कहानी ने और सदा की तरह मानवीय संवेदनाओं को छूने ववाली कहानी है...

Arvind Mishra said...

कहानी अच्छी लगी ! मगर क्या प्रतिशोध ही श्रेय है ? क्षमा ?

या देवी सर्वभूतेषु क्षमा रूपेण संस्थिता
नमस्ततसये ........

दिनेशराय द्विवेदी said...

कहानी अच्छी लगी।
कथानक कुछ अधिक लंबाई मांगता था। इस कहानी में आशु के भीतर का अंतर्द्वंद पहले प्रोफेसर से प्रेम होने के दौरान का फिर पति की असलियत पता लगने के बाद का, फिर दुर्गा की कथा से प्रेरणा पाना और खुद में दुर्गा के साथ के साथ काली का चरित्र विकसित करना। बीच में फिर से पति के साथ जाने की कमजोरी या विवशता जो भी हो, बहुत से मोड़ थे जो विस्तार चाहते थे। आप चाहें तो इसे एक लघु उपन्यास का रूप दे सकती हैं। इस के साथ अन्य चरित्र मां-बाप, भाई आदि को भी उभरने का अवसर मिलेगा।

Smart Indian said...

कहानी अच्छी लगी. अगर कहानी सच है तो बहुत सी लड़कियों को दुर्गा के बारे में जानने की ज़रुरत है.

Udan Tashtari said...

सही समाप्ति: भगवान जो करता है, भले के लिए ही करता है.//..फर्म बिलिवर हूँ इसका... बेहतरीन रही श्रृंख्ला!!

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही सुलझे हुये तरीके से यह काहानी लिखी गई. और मेरी समझ से कहानी का मजा तभी है जब हर पाठक अपने २ हिसाब से उसका अर्थ करे. इस पर यह कहानी खरी उतरी है. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

भाभी आज तुम्हारी दुर्गा आई है ,तुम क्यों डर रही हो?:
दुर्गा ही दुष्टों का संहार करती है,
बहुत बढ़िया आज के सामाजिक परिदृश्य को अंकित करती हुयी,

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"हाँ आशू भूल कर के ही तो पता चलता है कि हम कहाँ गलत थे। भगवान जो करता है अच्छे के लिये ही करता है। उसके खेल को किस ने जाना। "

बहुत अच्छी कहानी रही।
बधाई!

Mithilesh dubey said...

मैंने आपके इस कहानि हर एक भाग पढा़। हर भाग पढ़ने के आगे कि कहानि जानने की लालसा बढति गयी, आपके कलम मे जादु है, और आप भँलि-भाती जानती है कि पढ़ने वालो को क्या पसन्द है। कहानि का अन्त लाजवाब रहा। बहुत-बहुत बधाई आपको इस बेहतरिन कहानि के लिए।

Mishra Pankaj said...

निर्मला जी नमस्कार !
पहलाभाग भी आज ही पढ़ रहा हु आपने एक संयमित और सकारात्मक कहानी प्रस्तुत किया है .
बधाई स्वीकार करें

विनोद कुमार पांडेय said...

"मुझसे तलाक़ लेकर किसी और की जिंदगी बर्बाद करेगा वो" क्या बात है निर्मला जी..कितने सुंदर सुंदर बातों के साथ आपकी कहानी आगे बढ़ रही है...बहुत ही बढ़िया कहानी...जीवन के कई हिस्सों पर प्रकाश डालती हुई...मानवता के इतने रूप पिरोती हुई..
बहुत सुंदर कहानी...बधाई!!

vandana gupta said...

kahani ne shuru se aakhir tak baandhe rakha aur jo aashu ne kiya wo hi har ladki ko karna chahiye ..........aaj nari kahan kamtar hai...........har nari ko prerit karti kahaani hai.........badhayi

वाणी गीत said...

नवरात्री में माँ दुर्गा की प्रतिमूर्ति आशु की कहानी बहुत अच्छी रही..अंत भला तो सब भला ..!!

दिगम्बर नासवा said...

sach kaha aurat jahaan komal bhaavouk hai vaheen vo durga ka roop bhi hai ...apni asli shakti ko pahchaanna aur fir sankalp kar ke use poora karna NARI shakti ke hi bas mein hai ... aapki kahaani bahoot hi sundar, aasha ka sanchaar karti hai ...

Ria Sharma said...

ये बात तो बिलकुल सही है...... आहत होकर यदि नारी अपनी शक्ति को समेट कर व पहचान कर कुछ करना चाहे तो वो कर गुजरती है....
नारी शक्ति को दर्शाती सुन्दर कहानी !!

राज भाटिय़ा said...

निर्मला जी बहुत सुंदर लगी आप की कहानी, ओर अन्त बहुत ही सुंदर, नारी चाहे तो दुनिया बदल सकती है, यह आप की कहानी ने सिद्ध कर दिया.
धन्यवाद

ओम आर्य said...

bahut hi khubsoorat kahani lagi ........jo ladaki ko kai tarah se pribhashit karata hai .......bahut hi sundar rachana............atisundar

निर्मला कपिला said...

मिश्राजी आपने इसे प्रतिशोध कहा है पहली बात तो मैं इसे प्रतिशोध नहीं मानती।क्यों कि उसने एक बार उसे माफ करके दोबारा से रिश्ते संभालने की कोशिश की थी। अगर उसने संघर्ष कर के अपनी ज़िन्दगी बनाई है तो ये प्रतिशोध नहीम हुया। क्या ये अधिकार केवल पुरुश को ही है कि वो चाहे कुछ भी करे? फिर अगर ये प्रतिशोध है तो माँ दुर्गा ने भी तो उस दुश्ट दानव का संहार किया था वो कैसे सही हुआ और फिर आज तक अपराधियों को सजा मिलने का विधान क्यों चल रहा है? बुरा आदमी अगर बार बार गलती करता है तो सजा का हकदार है। फिर अगर प्रतिशोध भी हो तो भी प्रतिशोध क्यों उपजता है? सिर्फ अन्याय से आशू के साथ अन्याय हुया इस लिये वो उसे सजा दिलवाने की हकदार है। वैसे भी ये कहानी सच है यथार्थ मे उस लडकी ने उसे इतनी ही सजा दी कि उसे तलाक कई साल बाद दिया। वो आदमी शराबी बना अब भी हमारे शहर मे घूमता है और वो लडकी अपनी मेहनत से आज बहुत बडी प्रशास्निक अधिकारी है।

और देवेदी जी आपकी बात सही है। मगर ये कहानी मैने तब लिखी थी जब अभी कहानियां लिखनी शुरू की थी ये मेरी तीसरी कहानी थी बाद मे ये ध्यान मे नहीं आया कि इन सब को एक बार संशोधित कर के लिखूँ शायद पुस्तक छपवाने की जल्दी थी। सभी कहानियों मे कुछ न कुछ खामियाँ रह गयी हैं आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने सच मे एक अच्छे पाठक और हितैशी की नज़र से ये कहानी पर कम्मेन्ट दिया बाकी सब का भी बहुत बहुत धन्यवाद जो सब मुझे प्रोत्साहित करते हैं मैं सब की आपेक्षूं पर उतरने की पूरी कोशिश करूँगी

निर्मला कपिला said...

मिश्राजी आपने इसे प्रतिशोध कहा है पहली बात तो मैं इसे प्रतिशोध नहीं मानती।क्यों कि उसने एक बार उसे माफ करके दोबारा से रिश्ते संभालने की कोशिश की थी। अगर उसने संघर्ष कर के अपनी ज़िन्दगी बनाई है तो ये प्रतिशोध नहीम हुया। क्या ये अधिकार केवल पुरुश को ही है कि वो चाहे कुछ भी करे? फिर अगर ये प्रतिशोध है तो माँ दुर्गा ने भी तो उस दुश्ट दानव का संहार किया था वो कैसे सही हुआ और फिर आज तक अपराधियों को सजा मिलने का विधान क्यों चल रहा है? बुरा आदमी अगर बार बार गलती करता है तो सजा का हकदार है। फिर अगर प्रतिशोध भी हो तो भी प्रतिशोध क्यों उपजता है? सिर्फ अन्याय से आशू के साथ अन्याय हुया इस लिये वो उसे सजा दिलवाने की हकदार है। वैसे भी ये कहानी सच है यथार्थ मे उस लडकी ने उसे इतनी ही सजा दी कि उसे तलाक कई साल बाद दिया। वो आदमी शराबी बना अब भी हमारे शहर मे घूमता है और वो लडकी अपनी मेहनत से आज बहुत बडी प्रशास्निक अधिकारी है।

और देवेदी जी आपकी बात सही है। मगर ये कहानी मैने तब लिखी थी जब अभी कहानियां लिखनी शुरू की थी ये मेरी तीसरी कहानी थी बाद मे ये ध्यान मे नहीं आया कि इन सब को एक बार संशोधित कर के लिखूँ शायद पुस्तक छपवाने की जल्दी थी। सभी कहानियों मे कुछ न कुछ खामियाँ रह गयी हैं आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने सच मे एक अच्छे पाठक और हितैशी की नज़र से ये कहानी पर कम्मेन्ट दिया बाकी सब का भी बहुत बहुत धन्यवाद जो सब मुझे प्रोत्साहित करते हैं मैं सब की आपेक्षूं पर उतरने की पूरी कोशिश करूँगी

Arshia Ali said...

इसे ही कहते हैं कि अंत भला तो सब भला।
( Treasurer-S. T. )

Vineeta Yashsavi said...

Bahut Achhi rahi ye kahani...

ab agli kahani kab sunaogi...

Arvind Mishra said...

मैंने रचनाकार का पक्ष पढा -हकीकत ही है ऐसी तो फिर बात ही अलग है -कहानियां भी सामाजिक सच्चाईयां ही उजागर करती हैं !

मुकेश कुमार तिवारी said...

निर्मला जी,

कहानी अपनी दोनॊं कड़ियों में बांधे रखती है। और आशू के रूप में यह पैरोकारी भी करती है कि नारी को कठिन/विषम परिस्थितियों में निराशा त्याग अपना हौसला बनाये रखना चाहिये।

बहुत ही सधा हुआ लेखन।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

AAKASH RAJ said...

कहानी बहुत ही अच्छी लगी|

Urmi said...

बहुत अच्छी लगी आपकी लिखी हुई सुंदर और दिलचस्प कहानी! लिखते रहिये!

Naveen Tyagi said...

bahut achchi kahani hai.

सदा said...

मैने आज एक साथ पूरी कहानी पढ़ी, बहुत ही अच्‍छी लगी, इस प्रस्‍तुति के लिये आभार

Mumukshh Ki Rachanain said...

"भूल कर के ही तो पता चलता है कि हम कहाँ गलत थे। भगवान जो करता है अच्छे के लिये ही करता है। उसके खेल को किस ने जाना। "

दुर्गा ही दुष्टों का संहार करती है

नवरात्रि के इस शुभ अवसर पर ये कहानी बहुत ही सार्थक सन्देश दे गई.
आपको हार्दिक बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

दर्पण साह said...

bus lagta hai kuch dino aapke blog se doori banani padegi....

...kuch zayadas hi bhavuk kar gayi aapki kahani ka antim bhaag !!

बाल भवन जबलपुर said...

आप का स्पष्टीकरण एवम सार्थक पोष्ट के लिए आभार
लगातार देख रहा हूं अच्छी पोष्ट है
बधाईयां

बाल भवन जबलपुर said...

सार्थक पोष्ट के लिए आभार
बधाईयां

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