28 August, 2009

ये क्या हो गया
साथ ही एक गाँव की घटना पर ये पँक्तियां मन मे आयी।
एक औरत पंचायत मे चुनाव जीत गयी ।
कहने को वो पंच थी मगर काम सारा उसका पति करता था
वो तो बस आँगूठा छाप ही थी।
पंचायत मे हेरा फेरी के केस मे उस औरत पर केस बन गया।
गलती आदमी ने की भुगत रही है औरत ।जिसे कुछ पता नहीं कि क्या हुआ।
ऐसे और पता नहीं कितने केस होंगे। अब ऐसे केस मे कानून भी क्या कर सकता है।
उस औरत ने कई बार कोशिश की थी कि वो पंचायत मे जाया करे
मगर आदमी ने उसकी एक नहीं चलने दी।
इस पर कुछ शब्द कविता के रूप मे------


ये क्या हो गया
पुरुष,
औरत के कन्धे से
कन्धा मिला कर
आज़ाद हो गया
नारी के कन्धे से
बन्दूक चला कर
बेदाग हो गया
देखो! मुज़रिम बनी
उसकी माँ बहन बेटी का
क्या हश्र हो गया
और इन्साफ ?
कानून की अन्धी
चद्दर ओढ कर
जाने कहाँ सो गया

27 comments:

Unknown said...

बधाई !
बहुत बधाई !

दिनेशराय द्विवेदी said...

उत्पीड़न के नए रूप को उजागर करती हुई कविता है। इसे विस्तार दिया जा सकता है।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सटीक कहा आपने. आजकल महिला आरक्षण का नया रुप ह ये.

रामराम.

Mithilesh dubey said...

उम्दा रचना निर्मला जी। अगर देखा जाँये तो गाँवो मे अक्सर ऐसा होता है।

अनिल कान्त said...

आपने बिलकुल सही कहा...महिला के अधिकारों भी गलत उपयोग करने से बाज नहीं आते कुछ लोग

mehek said...

bahut sahi baat,mahila hona upar se shiksha nahi,aur ankhein moond kar bharosa kiya usne,yahi uski galati rahi.kab khulengi ye ankhein.behtarin rachana.

vandana gupta said...

bahut hi badhiya likha hai.......mahilaon ke adhikaron ke naam par ek aur utpidan ko darshati kavita.........aur sach ko ujagar karti hai.

सदा said...

बहुत ही बेहतरीन एवं सशक्‍त प्रस्‍तुति, आभार्

शारदा अरोरा said...

सचमुच औरत के कन्धे पर बन्दूक रख कर चलाने जैसी ही बात हुई |
थोड़े शब्दों में सच बयानी !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अरे बहिन जी।
ये कविता हो गई।
इस सच्ची कविता के लिए बधाई!

विनोद कुमार पांडेय said...

पुरुष,
औरत के कन्धे से
कन्धा मिला कर
आज़ाद हो गया
नारी के कन्धे से
बन्दूक चला कर
बेदाग हो गया,

सच उजागर करती सच्ची कविता,
बहुत बधाई !!!

संगीता पुरी said...

बहुत सही !!

vikram7 said...

पुरुष,
औरत के कन्धे से
कन्धा मिला कर
आज़ाद हो गया
नारी के कन्धे से
बन्दूक चला कर
बेदाग हो गया
सुन्दर अभिव्यक्ति,सही प्रश्न

ओम आर्य said...

बिल्कुल सही कहा है आपने .......महिलाओ के कन्धे पर बन्दूक रख कर चलाने से कई लोग बाज नही आते .........एक सुन्दर कविता......बधाई

राज भाटिय़ा said...

निर्मला जी यह बात आम है, करे कोई ओर भुगते कोई, मै यहा तो नही लिख सकता, लेकिन मै एक ऎसी ओरत को जानता हुं, जिस ने लाखो रुपयॊ की हेर फ़ेरी की, लेकिन हर चेक पर साईन अपने पति के करवाये ? अब बताईये फ़ंसे गा कोन ?? निर्मला जी यह दुनिया है कम कोई नही, जिस का इमान नही वो ही ऎसे काम करते है, इस लिये हमे ना तो सारे मर्दो को, ओर नही सारी ओरतो को बुरा समझना चाहिये, आम लोग ऎसे नही होते.
आप का लेख पढ कर मुझे भी बहुत कूछ याद आ गया

Pearl Arts said...

bahoot khoob kaha aapne

Science Bloggers Association said...

Sach ko aaina dikha diya.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Udan Tashtari said...

सीधी-सच्ची-सटीक रचना. बहुत खूब. बधाई.

रंजना said...

बहुत सही कहा आपने...यही है आज का यथार्थ...पर मैं बहुत आशान्वित यह सोचकर हूँ की अगले एक से दो पीढी जाते जाते,जैसे जैसे स्त्रियाँ साक्षर होती जायेंगी,अपने अधिकारों के प्रति सचेत भी होंगी और फिर कोई उनके कंधे का इस्तेमाल बन्दूक चलने के लिए इतनी सहजता से न कर पायेगा..

समसामयिक सत्य को इसने सुन्दर और सार्थक शब्दों में अभिव्यक्ति देने के लिए मैं आपको बधाई देती हूँ..

गौतम राजऋषि said...

अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच जब-जब ब्लौग-जगत में झाँकने आता हूँ, वीर-बहुटी में देर तक विचरता हूँ।

एक बड़ी ही सशक्त रचना!

दर्पण साह said...

नारी के कन्धे से
बन्दूक चला कर
बेदाग हो गया...

...wah is mudde pe isse acche bhav ke saath shayad kavita nahi ho sakti

Yogesh Verma Swapn said...

wah nirmala ji, bahut achcha likha hai, sunder rachna, sahi vyangya.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

स्त्री उत्पीडन के नवीन रूप को उजागर करती एक सशक्त रचना!!
चन्द शब्दों में ही आपने एक बडी सच्चाई को कह डाला।

Smart Indian said...

आँखें खोलती एक अच्छी कविता

Vinay said...

रचना में बहुत दर्द है
---
तख़लीक़-ए-नज़र

आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq' said...

पति सरपंच बना शैतान ,पत्नी सरपंच किसे कहे इंसान ? इस तरह के सवालो के ज़बाब के लिए ज़मीनी काम की दरकार हैं ,महिला सशक्तिकरण के नाम पर चिल्लाने वाले तमाम संगठन बेकार हैं ,मैं व्यक्तिगत रूप से इस दिशा में कार्य करने वाले लोगो के साथ हूँ ,...............

दिगम्बर नासवा said...

NAARI KI YANTRANA, USKI TRAASADI KO BAKHOOBI LIKKHA HAI ......

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