ये गज़ल मैने पंजाबी मे लिखी थी अपने गुरुजी स. बलबीर सैणी जी के आशीर्वाद से और इसे हिन्दी मे भी लिखा है। इसे अर्श जी से पास करवाया है । अर्श को धन्यवाद नहीं आशीर्वाद है कि मेरा बेटा अब मुझे राह दिखाने के कबिल हो गया है।
अपना कोई हाल नहीं
साँसों मे सुरताल नहीं
मार गयी मंहगाई जब्
रोटी है तो दाल नहीं
बेटों ने खुद बांटा घर
माँ का हल फिलहाल नही
गीत गज़ल सब झूठे हैं
जिसमे बह* र् ख्याल नहीं
जेब भले ही खाली हो
दिल का पर कँगाल नहीं
नेतायों पे फंदे हो
काम दिखें करताल नहीं
जो नेता ना खेल सके
ऐसी कोई चाल नहीं
तेरे झूठ बना दूँ सच
बद नीयत बदहाल नहीं
बात जमीनी संसद मे
लेकिन रोज बवाल नहीं
निर्मल जीवन *निर्मल* है
कोई और सवाल नहीं
34 comments:
ghazal aap bahut accha likhne lagi hain shuruaat se hi,
is line ne vishesh taur par prabhavit kiya:
बेटों ने खुद बांटा घर
माँ का हल फिलहाल नही
bilkul sahi kaha aapne...
बात सदन मे हो जमीनी
चर्चे तो हों बवाल नहीं
................
desh ki janta ko to samjha lein//neta ko kaun samjhaey...
pranam.
सुन्दर भाव!
अपना कोई हाल नहीं
साँसों मे सुरताल नहीं।
मार गयी मंहगाई अब
रोटी है तो दाल नहीं।
बहुत बढ़िया।
बधाई!
बहुत सुंदर रचला.
बहुत लाजवाब रचना. अर्शजी बहुत शानदार और उम्दा लेखन करते हैं.
रामराम.
बेटों ने खुद बांटा घर
माँ का हल फिलहाल नही
मार गयी मंहगाई अब
रोटी है तो दाल नहीं
निर्मला जी क्या कहने हैं इन दोनों शेरों के. बहुत बढिया. एक बात जो मैं मानता हूं कि अच्छे लोग जो भी लिखेंगे अच्छा ही लिखेंगे हर बार सही साबित होती है. देखियेगा जल्द ही आपका ग़ज़ल संकलन सामने होगा. आमीन
और हां मेरा नाम संजीव गौतम है. आपने टिप्पणी में मनोज लिखा है.
यदि आप को अच्छा लगे तो कभी नवगीत की कर्यशाला में नवगीतों पर भी हाथ आज़माइये.
आज के दौर पर क्या खूब ग़ज़ल लिखी है आपने....मज़ा आ गया
मुबारकां निर्मला जी मुबारकां...दरअसल पञ्जाबी से हिंदी में तर्जुमा करते वक्त वो रवानी नहीं रह पाती...हर जबान की अपनी मिठास होती है...आप इसे पञ्जाबी में भी पेश करें तो मजा आजाये ...अर्श जी ने बहुत मेहनत की है इसके लिए उन्हें बधाई लेकिन पता नहीं क्यूँ एक आध शेर मुझे खटक रहा है जैसे:
जेब भले ही खाली हो
दिल की पर कँगाल नहीं
इसे अगर यूँ कहें तो कैसा रहेगा?
जेब भले ही खाली हो
दिल लेकिन कँगाल नहीं
और
नेतावों पे फंदे हो
कानून हो करताल नहीं
बात सदन मे हो जमीनी
चर्चे तो हों बवाल नहीं
में रवानी नहीं आ पारही..इसे ठीक करें...बाकि सारे शेर बल्ले बल्ले हैं...
नीरज
बेटों ने खुद बांटा घर
माँ का हल फिलहाल नही
आज कल हर जगह कुछ ना कुछ खो सा रहा है,सब जल्द बाज़ी मे है और रिश्तों के लिए तो उनके पास समय ही नही है.
निर्मल जीवन *निर्मल* है
कोई और सवाल नहीं
सबसे सुखी वही है जिसका जीवन निर्मल है..
बहुत अच्छी कविता, हमे सुंदर विचारों से अवगत कराती हुई..
बहुत ही जानदार और शानदार. आभार.
बेटों ने खुद बांटा घर
माँ का हल फिलहाल नही
बहुत ही बेहतरीन पंक्ति दिल को छूते शब्द आभार् ।
बेटों ने खुद बांटा घर
माँ का हल फिलहाल नही
गीत गज़ल सब झूठे हैं
जिसमे बह* र् ख्याल नहीं
जेब भले ही खाली हो
दिल की पर कँगाल नहीं
waah ye sher bahut pasand aaye,saari gazal hi bahut sunder hai.bahut badhai.
नायाब रचना है
नायाब रचना है
आज तो यही कडुवा सत्य है कि दाल अब थाली से गायब हो चुकी है.
Chhotee baher ki shaandaar ghazal.
{ Treasurer-T & S }
MUJHE TO SAB SHER LAJAWAAB..........EKSE BADH KAR EK LAGE...
बेटों ने खुद बांटा घर
माँ का हल फिलहाल नही
JEEVAN KI SATY KO LIKHA HAI ....
जेब भले ही खाली हो
दिल का पर कँगाल नहीं
BAHOOT HI FAKEERAANA ANDAAZ HAI IS SHER MEIN.......
YE HINDI KI GAZAL HAI......PUNJAABI MEIN KITNAA SWAAD HOGA ....MAIN SAMAJH SAKTA HUN....
HUN INNU PUNJAABI VICH VI LAA DYO TE DUGN MAZAA HO JAAU....
bahut hi shandar gazal.........aur kuch panktiyan to lajawaab hain.
chhote bahar ki kamaal ki gazal .....samasamayik hai bahut hi sundar
माँ प्रणाम आपकी इस गजल ने तो दिल को छू लिया कौन कहता है की आप अभी सीख रही है ,, ये गजल देख कर तो येसा सोचने का भी मन नहीं करता भुत ही बेहतरीन गजल और कई शेर तो भुत व्हाबुक बन पड़े है
बेटों ने खुद बांटा घर
माँ का हल फिलहाल नही
मेरा प्रणाम
स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
माँ प्रणाम आपकी इस गजल ने तो दिल को छू लिया कौन कहता है की आप अभी सीख रही है ,, ये गजल देख कर तो येसा सोचने का भी मन नहीं करता भुत ही बेहतरीन गजल और कई शेर तो भुत व्हाबुक बन पड़े है
बेटों ने खुद बांटा घर
माँ का हल फिलहाल नही
मेरा प्रणाम
स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
बहुत सुन्दर लिखा है ..बधाई
बेटों ने खुद बांटा घर
माँ का हल फिलहाल नही
bahut khoob..yaani likhne ka shouk jeans me hi hai...kaash ye vashnagat rog parivaar me aor faile....
बेटों ने खुद बांटा घर
माँ का हल फिलहाल नही।।
वाह्! निर्मला जी, क्या दुरूस्त लिखा है। वर्तमान की सच्चाई को ब्यान करती बेहद उम्दा गजल।।
आभार्!!
nirmala ji,
shukriya aapka ki aap mere blog par aaye, main toh aapka follower ban gaya hoon so aata rahunga aap bhi apni charan dhool mere blog par laate rahiyega...
karam hoga aapka..
ACHCHHE GAZAL KE LIYE AAPKO DHERON
BADHAAEEYAN.KAEE SHER TO MUN MEIN
UTAR GAYE HAIN.NEERAJ GOSWAMI NE
JIN MISRON KO REKHANKIT KIYA HAI,
KRIPYA UN PAR DHYAAN DIJIYE.SHURU-SHURU MEIN AESA HEE HOTA HAI.AAPKA
BHAVISHYA UJJWAL HAI.
BADHAAI
UMDA RACHNAA K LIYE !
बहुत बहुत खूब.. आपकी रचनाधर्मिता, गुरुजी के आशीर्वाद और अर्श भाई के परिश्रम से यह ग़ज़ल बहुत खूब बनी है.. हैपी ब्लॉगिंग.
Khubsurat gazal...iska koi jawab nahin !!
"वन्देमातरम और मुस्लिम समाज" को देखें "शब्द-शिखर" की निगाह से...
Dil ko chu gaye aapki GHAZAl.
{ Treasurer-S, T }
बेटों ने खुद बांटा घर
माँ का हल फिलहाल नही
गीत गज़ल सब झूठे हैं
जिसमे बह* र् ख्याल नहीं
निर्मल जीवन *निर्मल* है
कोई और सवाल नहीं
ye sher khaas pasand aaye
sundar gajal likhee hai aapne
venus kesari
इस शानदार और दिल को छू लेने वाली ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई!
वाह निर्मला जी कमाल की ग़ज़ल कही है
अर्श जी शुक्रिया इतनी सुंदर ग़ज़ल पंजाबी से देवनागरी में पढने मिल रही है
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