एक कतरा बचपन चाहिये (कहानी )
मेरा बचपन बहुत सुखमय रहा किसी राज कुमारी कि तरह घर मे किसी चीज़ की कमी नहीं थी ।सब की लाडली थी। मगर बचपन कितनी जल्दी बीत जाता है ।जवानी मे तो इन्सन के पास फुर्सत ही नहीं होती कि अपने बारे मे कुछ सोच सके। ये सफर तो हर इन्सान के लिये कठिनाईयों से भरा रहता है।ाउर जब होश आता है तो बारबार बचपन याद आता है बचपन से जुडी यादें फिर से अपनी ओर खींचने लगती हैं--- लगता है बहुत थक गयी हूँ । क्यों ना कुछ बचपना कर लिया जाये---- क्यों ना कुछ पल फिर से जी लिया जाये ----- जब इस तरह सोचती हूं तो----- उदास हो जाती हूँ------- बात बात पर परेशान होना ---- जीवन से निराश होना ----- उससे तो अच्छा है बच्ची ही बन जाऊँ------- मगर ----- सब ने मिल कर मुझे इतनी बडी बना दिया है कि अब कभी बच्ची नहीं बन पाऊँगी----- नहीं जी पाऊँगी उन गलियों मे जहाँ कोई चिन्ता दुख नहीं था ---- नहीं मिल पाऊँगी उन सखियों सहेलियों से जो मेरी जान हुया करती थी------ नहीं बना पाऊँगी रेत के घर] नहीं खेल पाऊँगी लुकन मीटी----- नहीं तोड पाऊँगे जामुन अमरूद बेर और शह्तूत ----कैसे हो गयी बडी ----- मैने तो कभी नहीं चाहा था---- मुझे तो बच्ची सी बने रहना अच्छा लगता था---- जहाँ ना कोई रोक ना टोक------ ना बन्धन------ बस एक निश्छल प्यार---- प्रेम---- खेल--- हंसी----- मुक्त आकाश की उडान ।----- मै कभी बडी होना नहीं चाहती थी ------
अब समझ आता है कि अपने आप नहीं हुई मुझे बडा बनाया गया है। पहले मेरे पिता जी ने फिर पति ने फिर मेरे बच्चों ने ------उन लोगों ने मै जिन के दिल के बहुत करीब थी------ खुद बडा कहलाने के लिये मुझे मोहरा बनाया गया शायद----- जिम के नाम के साथ मेरा नाम जुडा था । पल पल मुझे ये एहसास करवाया गया कि अब मैं बच्ची नहीं हूँ।-- मगर शायद अंदर से वो मेरे दिल को बदल नहीं पाये अब तक भी बच्ची बनी रहने की एक छोटी सी अभिलाशा कहीं जिन्दा है।
जीवन मे हर आदमी के सामने चुनौतियाँ तो आती ही रहती हैं मगर हर कोई उनका सामना अपने ही बलबूते पर करे ये हर किसी के लिये शायद सँभव नहीं होता।कुछ जीवन के किरदार दिल के इतने करीब होते हैं कि चाहे वो दुनिया मे ना भी हों तो भी हर पल दिल मे रहते हैं। मगर उनका नाम लेते इस लिये डरती हूँ कि कहीं नाम लेते ही वो जुबान के रास्ते बाहर ना निकल जायें।
बचपन से एक आदत सी पड गयी थी कि कोई ना कोई मेरे सवाल के जवाब के लिये मौज़ूद रहता। और मै बडी होने तक भी बच्ची ही बनी रही। उसके बाद जीवन शुरू हुया तो अचानक मुसीबतों ने घेर लिया। मगर तब भी मेरी हर मुसीबत मे जो मेरे प्रेरणा स्त्रोत और मुझे चुनौतियों से जूझना सिखाया वो मेरे पिता जी थे।जब तक जिन्दा रहे मैं कभी जीवन से घबराई नहीं। बाकी सब रिश्ते तो आपेक्षाओं से ही जुडे होते हैं।और फिर उन रिश्तों से मिली परेशानियों का समाधान तो कोई और ही कर सकता है।
मैं जब भी परेशान होती या किसी मुसीबत मे होती तो झट से उनके पास चली जाती। और जाते ही उनके कन्धे पर अपना सिर रख देती । उन्हों ने कभी मुझ से ये नहीं पूछा था कि मेरी लाडाली बेटी किस बात से परेशान है। शायद मेरा आँसू जब उनके कन्धे पर गिरता तो वो उसकी जलन से मेरे दुख का अंदाज़ लगा लेते---- हकीम थे ---मर्ज ढूँढना उन्हें अच्छी तरह आता था। बस वो मेरे सिर पर हाथ फेरते अगर उन्हें लगता कि समस्या बडी है तो मेरे सिर को उठा कर ध्यान से मेरा चेहरा देखते और मुस्करा देते तो ~--- तो आज मेरी मेरी बेटी फिर से छोटी सी बच्ची बन गयी है\------- अच्छा तो चलो अब बडी बन जाओ------ ।और फिर कोई ना कोई बोध कथा या जीवन दर्शन से कुछ बातें बताने लगते । और इतना ही कहते कि मैं तुम्हें कमज़ोर नहीं देखना चाहता । तुम्हें पता है कि तुम्हारे दोनो भाईयों की मौत के बाद तुम ही मेरा बेटा हो और तुम्हें देख कर ही मै जी रहा हूँ । क्या मेरा सहारा नहीं बनोगी\-- और मै झट से बडी हो जाती \ मुझे लगता कि क्या इस इन्सान के दुख से भी बडा है मेरा दुख \ जीवन मे दुख सुख तो आते ही रहते हैं फिर वो मुझे याद दिलाते कि अपना सब से बडा दुख याद करो जब वो नहीं रहा तो ये भी नहीं रहेगा ! और उनकी बात गाँठ बान्ध लेती । सच मे जब कोई परेशानी आती है तो हमे वही बडी लगती है जैसे जीवन इसके बाद रुक जायेगा । आज लगता है कि उन्होंने ही मुझे बडा बना दिया। मै तो बचपन मे ही रहना चाहती थी।
उनकी मौत के बाद भी उन्हीं के सूत्र गाँठ बान्ध कर चलती रही हूँ । वो बडी बना गये थे सो बडी बनी रही मगर अब भी कहीं एक इच्छा जरूर थी कि कभी एक बार बच्ची जरूर बनुंम्गी जिमेदारियों से मुक्त हो कर अपना बचपन एक बार वापिस लाऊँगी शरीर से क्या होता है-----बूढा है तो--- रहे दिल मे तो बचपन बचा के रखा है ना------ इस उम्र मे श्रीर से यूँ भी मोह नहीं रहता बस आत्मा से दिल से जीने की तमन्ना रहती है।
पिता के बाद पति --- फिर तो दिल जिस्म दिमाग कुछ भी मेरा नहीं रहा------ सब पर उनका ही हक था ---- क्यों कि वो भी मेरे दिल के करीब थे इस लिये उन्हों ने भी सदा यही एहसास करवाया कि तुम अब बच्ची नहीं हो उनकी मर्यादा अनुसार----- उनकी जरूरत मुताबिक बडी बनो---और तब तो पिता की तरह कोई सिर पर हाथ फेरने वाला भी नहीं होता। उनके बाद बच्चे बच्चों के लिये तो तब तक बडे बने रहना पडता है जब तक वो जवान नहीं हो जाते----- उनके जवान होते ही वो अपने अपने जीवन मे व्यस्त हो गये ----- अब जब भी अकेली होती तो बचपन फिर याद आता मन होता बचपन मे लौट जाऊँ------ बिलकुल अब बच्चों की तरह व्यव्हार करने लग जाती------- फिर कभी परेशान होती तो पिता की जगह बेटे का कन्धा तलाश करने लगती------।कुछ दिन से पता नहीं क्यों मन परेशान सा रहता था । अपने किसी बच्चे से कहा तो उसने जवाब दिया कि----- माँ तुम्हें क्या हो गया है क्यों बच्चों जैसी बातें करने लगी हो\ वो भी सही था अब बच्चे तो माँ को सदा महान या बडी ही देखना चाहते हैं न। वो कैसे समझ सकते हैं कि इस उम्र मे अक्सर बूढे बच्चे बन जाते हैं। शायद बच्चों मे रह कर---- और उस दिन मुझे लगा कि आज सच मुच मेरे पिता जी चले गये हैं।सदा के लिये बडी बना कर् । क्या बच्चे अपने माँ बाप को थोडा सा बचपन भी उधार नहीं दे सकते\ आज मन फिर से बचपन मे लौट जाने को है ---- मगर जा नहीं सकती पहले पिता जी ने नहीं जाने दिया अब बच्चे भी मेरे पिता का किरदार निभा रहे हैं । काश कि जीवन के कुछ क्षण उस बचपन के लिये मिल जायें ------ तो शायद जीवन संध्या शाँति से निकल जाये। बस कुछ दिन बचपन के उधार चाहिये------ मैं बडी नहीं बनी रहना चाहती अब --- शायद इसका जवाब भी पिता जी के पास था मगर अब वो लौट कर नहीं आयेंगे ------- तब उनके पास जाने की जल्दी लग जाती है । क्यों कि अब मुझे फिर से बचपन चाहिये--------
19 comments:
bachapn ek sukhad ehsaas hai..
bachpan hamari jiwan me bahut khas hai..
kya khusiya kya masti kya pal hote the..
mujhe ek baar fir se ub dino ki talash hai..
aapne yaad dila di..bahut badhiya lekh..
जिंदगी उतनी तो नहीं बीती कि आपके एहसास को महसूस कर सकूँ लेकिन इतना जरूर जनता हूँ...बचपन सबसे प्यारा और सुखमय होता है....कमबख्त जो जल्दी बीत जाता है और फिर कभी नहीं आता
आपने बिल्कुल सही बचपन की यादें इंसान ताउम्र अपने साथ समेट के रखता है, आपकी यह पोस्ट बहुत ही सुन्दर आभार् ।
"कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन" कहते हैं बुढापे में आदमी में बचपना आ जाता है.हम भी कभी कभी प्रयास कर कुछ पल खो से जाते हैं. सुन्दर रचना. आभार
वो कागज की कस्ती वो वारिश का पानी.........................। बचपन हर गम से
बेगाना.......................। इत्यादि कितने गीत भी बनाये और गाये गये । मगर ये
बचपन निकल जाने के बाद हमारे यादों में ही रह जाता है । बहुत ही
वेहतरीन मन की अभिव्यक्ति है । आपके पास तजूरबा बहुत है और जीवन
का अच्छा सफर तय कर लिया है इसलिए दुबारा उस बचपन को पाने
की इच्छा बलवती हो रही है । लेकिन आप चली जायेगीं तो बच्चों का क्या
होगा । मेरी कविता की एक लाईन है
ऐ उपर वाले माँ को अपने बच्चों के साथ रहने दे ।
अनाथों को अपने नाथ के साथ रहने दे ।
लिखने में अगर कभी कोई गुस्ताखी हो जाय तो उसके लिए माफी चाहूँगा ।
मनोभावों का बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने।
बधाई!
बचपन कहां वापस आता है??
कोई लौटा दे बचपन ।
मनोभावों का सुन्दर चित्रण किया है आपने। बधाई!
लक्ष्मी जी की उत्पति कथा
समुद्र मंथन को लेकर लिखे गए पिछले लेख में जहां उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणियां मिलीं, वही कुछ जिग्यासाएं भी प्रकट की गईं। कुछ शिकायतें भी रहीं। सबसे बड़ी शिकायत तो यह रही कि लेख की लंबाई काफी ज्यादा हो गई थी। हालांकि उसमें अभी अधूरी कथा का ही विवरण था, मगर फिर भी निस्संदेह लंबाई ज्यादा रही, इसकी एक वजह यह थी कि मैं एक व्यख्या को एक ही लेख में समेटना चाहता था। भविष्य में इस संबंध में ध्यान रखूंगा। इसे ही ध्यान में रखते हुए पहले संस्कृत में लिखने और फिर अनुवाद देने से बचते हुए सीधे अनुवाद को लिया गया। इसके लिए अब अनावश्यक संदर्भ में भी कटौति की जाएगी। निर्मला कपिला जी का सवाल लक्ष्मी जी की उत्पत्ति को लेकर रहा। उनका कहना था कि लक्ष्मी जी की उत्पत्ति समुद्र से हुई है, यह उन्होंने पहली बार पढ़ा है। इसके अलावा और भी सवाल उलझे हैं।
लक्ष्मी जी की उत्तपति को लेकर पुराणों में ही अनेक मत हैं, मगर सबसे प्रचल्लित में उन्हें समुद्रमंथन से उत्पन्न नवरत्नों में से एक माना गाय है। यह वर्णन स्कन्ध पुराण के अलावा लिंग पुराण में भी मिलता है। लिंग पुराण के अनुसार भी लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से ही बताई गई है। इसके अनुसार अलक्ष्मी की उत्पत्ति पहले हुई बाद में समुद्र मंथन से लक्ष्मी निकलीं। लिंग पुराण में कहीं भी लक्ष्मी नाम का उल्लेख नहीं मिलता, बल्कि हर जगह उन्हें नारायणी नाम से जाना गया है।
ब्रह्मवैवर्तपुराण में कृष्ण के मन से लक्ष्मी की उत्पत्ति बताई गई है जो कि पीतांबरा हैं एवं सुंदर आभूषणों से सुसज्जित हैं और हरि के पृष्ठ भाग में स्थित है तथा धन वैभव की देवी हैं। विष्णु पुराण में लक्ष्मी दक्ष पुत्री बताई गई है, जिनका विवाह धर्म से हुआ था। इनकी उत्पत्ति के विषय में दूसरी कथा इनको भृगु और ख्याति से उत्पन्न मानती है।
sudhirraghav.blogspot.com
SHABD BACHAPN APNE AAP ME EK NICHHAL AUR PAAK SHABD KI TARAH HI EK SACH HAI ... US WAKHT KYA KARTE HAI KUCHH PATAA NAHI MAGAR USKE JAANE KE BAAD YAADEN KAISE RAH JAATI HAI USKI IS BAAT SE ACHAMBHIT RAHTA HUN... YAHI SOCHTA HUN JAB US WAKT HOSH NAHI RAHTA TAB USKI YAADEN KAISE BAN JAATI HAI... JAB TAK HOSH SAMBHAALO TAB TAK WO WAKHT CHALI JAATI HAI... YE AJIB ITAFAAK HAI... AUR SAMAY KE NIYAMAANUSAAR JO CHALAA GAYAA WO LAUT KE NAHI AATA FIR... WO WAKHT BAHOT HI SUKHM MAGAR SAAF AUR SAUNDARYAPURN HOTA HAI... AAJ KI LEKH KAMAAL KI HAI BAHOT AANAND AAYA... JIS TARAH SE AAPNA UMRA KO PARIBHASHIT KIYA HAI ... BAHOT HI SUNDAR AUR SIKHNE WAALI BAAT HAI... SAADAR CHARAN SAPRSH
ARSH
bahut hi sundar abhiwyakti di aapane ......aapane kahaanee ke maadhayam se bachapan ko kaee jagah chhoogayi aapaki rachana .......behad sundar ......aabhar
om
Dil ko chhu gayi aapki baat.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मन से पढा हूँ ,भई वाह.
sab kuch wapas mil sakta hai shayad bas jo nhi mil sakta wo bachpan hi hai,uski masumiyat kahan se laynege agar mil bhi jaye to.
अद्भुत पोस्ट ...एक नारी के जीवन के कई पडावों को एक साथ पार करती है..सच में बुजुर्ग भी वापस रेत घडी की तरह बच्चे ही हो जाते है ....आपकी बेहतरीन पोस्टो में से एक में रखना चाहूँगा
MAN K BHEETAR TAK
EK SPANDAN ANUBHAV HUA
UMDA RACHNAA !
Bachpan se umda kuchh bhi nahin.
"युवा" ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
वाह अत्यन्त सुंदर लिखा है आपने! मैं तो अपने बचपन के दिनों को याद कर रही थी जो फिर लौट कर कभी नहीं आयेगी!
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