06 July, 2009

दिल से एक पन्ना------------- संस्मरण

एक दिन अपनी एमरजेन्सी ड्यूटी पर् थी सुबह से कोई केस नहीं आया था ऐसे मे मैं किताबें पढती रहती या किसी मरीज के रिश्तेदार या मरीज से बाते करती रहती थी उस दिन किताब पढने मे मन नहीं था कुछ परेशान भी थी तो बाहर धूप मे कुर्सी रखवा कर बैठ गयी कुछ देर बाद एक बज़ुर्ग औरत मेरे सामने आ कर स्टूल पर बैठ गयी वो एक दुखी औरत थी अक्सर अस्प्ताल मे आती रहती थी और मेरे साथ कई बार अपने दुख रो लेती थी उसने बैठते ही पूछा कि बेटी क्या बात है आज कुछ उदास लग रही हो ------ मन ही मन उस की पारखी नज़र के लिये आश्चर्य हुआ मगर अनुभव एक ऐसी चीज़ है जो दिल को आँखें दे देती है मैने कहा नहीं कोई बात नहीं तो वो कहने लगी कि बेटी देखो मैं तुम से पूछूँगी नहीं मगर मैने तुम्हें कभी उदास नहीं देखा इस लिये कह रही हूँ कि कभी कोई दुख सताये तो उस समय उस दुख से निज़त पाने का एक तरीक है मै तो ऐसे ही करती हूँ कि उस समय अपने किसी पहले के उससे भी बडे दुख के पन्ने खोल लो उन्हें पढो फिर सोचो कि इतने मुश्किल समय मे भी तो तुम जीती रही हो खाया पीया और सब काम किये फिर भी मरी तो नहीं न इसी तरह ये दुख तो शायद उसके आगे कुछ भी ना हो अगर तुम्हारे पास कोई बडा दुख नहीं है तो किसी अपने से दुखी को देखो तो तुम्हें अपना दुख बहुत छोटा लगने लगेगा -------- ऐसे ही मुझे समझा कर वो चली गयी--------- और तब से मैने इस सूत्र को जब भी आजमाया तो पाया कि जैसे मेरा दुख आधा रह गया है और मैं जल्दी उदासी पर काबू पा लेती------ अब तक बहुत दुख सुख झेले मगर इस सूत्र को कभी हाथ से जाने नहीं दिया इसी लिये तो कहते हैं कि दुख बाँटने से घटता है और खुशी बढ जाती है------ आज कल भी कुछ मन की स्थिती ऐसी ही रही है तो आज फिर से अपने मन का एक पन्ना खोल कर बैठ गयी और कुछ देर के लिये परेशानी तो भूल ही गयी जब याद भी आयी तो इतनी बडी नहीं लगी जितनी मैं इतने दिन से सोच रही थी ऐसे ही एक पन्ने से आज आपका परिचय करवाना चाहूँगी------
कभी कभी मन की परतों के किसी पन्ने को खोल लेना भी मन को सकून देता है -- ( पन्ना जो सब से कीमती हो दिल के करीब हो------ इसे संस्मरण तो तभी कहा जा सकता है जब ये भूल गया हो मगर ये एक पल भी कभी भूला नहीं है तब भी इसे संस्मरण ही कहूँगी आज तक हर दुख को बडे साहस से सहा है वैसे भी असपताल जैसी जगह मे जहाँ हर पल लोगों को दुखी ही देखा है तो आदमी यूँ भी दलेर हो जाता है और शहर मे मैं अपने साहस और जीवटता के लिये जानी जाती हूँ--- मगर शायद ये उम्र का तकाज़ा है या दिल का कोई कोना खाली नहीं रहा कि आज कल मुझे जरूरत महसूस होती है कि किसी के साथ इन्हें बाँटू कई बार ये भी लगता है कि दुख मेरे हैं किसी को क्यों दुखी करूँ और इन कागज़ों से कह कर मन हल्का कर लेना ही श्रेस्कर लगता है 1 फिर दुख तो जीवन की पाठशाला हैं जिन मे आदमी जीवन जीने के पाठ पढता है औरों के साथ बाँटने से दूसरे आदमी को पता लगता है कि उससे भी दुखी कोई और है तो उसे अपना दुख कम लगने लगता है मैने लोगों के दुख बाँट कर यही सीखा है 1
24--10--1990
उस दिन मैं और मेरे पति एक पँडित जी से अपने बेटे की कुन्डली दिखा कर आये थे---उसकी शादी के लिये साथ मे लडकी की कुन्डली भी थी------- मुझे लडकी बहुत पसंद थी और बेटा भी कहता था कि मुझे तो आपकी पसंद की लडकी ही चाहिये और मजाक मे कह देता मा उसके साथ अपनी कुन्डली जरूर मिलवा लेना--अगर सास बहु की नहीं पटी तो मैं मारा जाऊँगा------ वो कोट दुआर मे बी ई एल कम्पनी मे 1990 मे सीनियर इन्जीनियर था शायद कोई ब्लोगर जो अब इस कम्पनी मे हो उसे जानता हो 1-----हम अभी घर आये ही थे कि अस्पताल से किसी के हाथ सन्देश आया कि कोट दुआर से टेलीफोन आया है कि ेआपके बेटे ने सेल्फ इमोलेशन कर ली है और उसे देल्ली सफदरजंग अह्पताल ले कर जा रहे हैं आप वहीं आ जाईये----उन दिनो आरक्षण के खिलाफ बच्चे सेल्फ इमोलेशन कर रहे थे हम तो हैरान परेशान तभी हमरे स्पताल से डक्टर और कई स्टाफ के लोग आ गये----हमे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था------वो तो ऐसा नहीं था फिर उसके घर मे कोई बेकार नहीं थ वो क्यों ऐसा कदम उठायेगा हम लोगों ने इनके बडे भाई सहिब को फोन किया---वो उनका बेटा था मगर बचपन मे जब वो 8--9 साल का था माँ की मौत हो जाने से हमने ही उसे पाला पोसा था शुरू से वो हमारे पास ही था अपने पिता के पास या गाँव कम ही जाता था वो इतना समझदार था कि कई बार मैं भी हैरान हो जाती थी और मेरी परेशानी का हल वो इतनी जल्दि निकाल लेता कि उसके बिना मुझे लगता कि मुझ पर मुसीबतों का पहाड टूट पडा है मेरी शादी के तीन महीने बाद ही इनकी मौत हो गयी थी तब हम गाँव मे ही रहते थे 1
ये पाँच भाई बहन थेऔर मेरी नौकरी के साथ इनका पालन पोशण कोई आसान काम नहीं था सब को तयार करना स्कूल भेजना और घर के काम निपटा कर खुद ड्यूटी जाना और वो उम्र तो मौज मस्ती की होती है --- खास कर जब नयी नयी शादी हुई हो फिर भी हम दोनो पति पत्नि ने मिलकर इसे निभाया----- गाँव का सकूल पाँचवीं तक था मुझे भी ड्यूटी आने जाने मे मुश्किल आ रही थी इस लिये हमने शहर मे रहने का फैसला कर लिया जो कि साथ ही तीन किमी दूर था-----------

भाई सहिब गांव से20 मिनट मे आ गये उस समय आठ बज गये थे और गाडी 9-30 पर जाती थी-----हमने जल्दी से कुछ जरूरी सामान लिया हमे डाक्टर साहिब स्टेशन छोड आये-------- बाकी बच्चों को मेरे स्टाफ ने ही संभाला हम ने ये सफर कैसे काटा होगा इसे बताने की जरूरत नहीं है ऐसा सफर उस दिन भी किया था जब इसकी बडी बहन की दहेज हत्या हुई थी और हम ऐसे ही गये थे उस दिन भी-------

27 comments:

Ashok Pandey said...

भावुक कर देनेवाला है यह संस्‍मरण।

Ashok Pandey said...

भावुक कर देनेवाला है यह संस्‍मरण।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर और भावुक प्रसंग है. शुभकामनाएं.

रामराम.

seema gupta said...

दिल भर आया....

regards

सर्वत एम० said...

बहुत ही दर्दनाक दिल हिला देने वाला वाकया है. आपने पत्रिकाओं-अख़बारों की तरह इसे भी 'शेष अगले अंक में..' जैसा कर दिया है. ब्लॉग और ब्लोगर्स के साथ ऐसा ज़ुल्म मत करें. ऐसी ही क्रियाये अपनाने वाली कई पत्रिकाओं को छोड़ चुका हूँ. अकेले मैं ही नहीं, कई लोग ऐसा पसंद नहीं करते. यदि ब्लॉग भी व्यावसायिक पत्र-पत्रिकाओं जैसा व्यवहार करने लगेंगे फिर पाठकों को ब्लॉग और पत्रों के फर्क का क्या पता चलेगा. आप की उम्र अभी इतनी ज्यादा भी नहीं हुई कि पोस्टिंग एक सेटिंग में पहाड़ हो जाये. मेरी बातों को अन्यथा न लीजियेगा. अपना समझ कर 'भाषण' दे रहा हूँ. कुछ बुरा लगा हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ.आपको मेरे शेर पसंद आये, शुक्रिया.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

मानवीय भावनाओं को उद्वेलित करने वाला..आभार.

निर्मला कपिला said...

सार्वत जी की बात से बिलकुल सहमत हूँ मगर ये संस्मरण इतना लंम्बाहै कि मुझे लगा पाठकों के लिये पढ पाना सम्भव नहीं होगा अगला भाग पूरा लिखूँगी आभार

विवेक सिंह said...

दिल छू लेने वाला संस्मरण है जी !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

निर्मला जी!
आपका संस्मरण पढ़कर मन भावुक हो गया।
दिल एक ऐसा पृष्ठ है, जिस पर अंकित हरेक
शब्द मन पर सीधा वार करता है।

रंजू भाटिया said...

बहुत मार्मिक संस्मरण लिखा है आपने अगली कड़ी जल्दी लिखे

विनोद कुमार पांडेय said...

bhavatmak yaden aapki..
mai kho gaya aap ki is sansmaran me
dil se padha atyant bahvuk ho chala tha..
badhayi

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत ही संजीदा संस्मरण .

अनिल कान्त said...

जिंदगी में कई घटनाएं और बातें ऐसी होती हैं जो दिल को झकझोर कर रख देती हैं ...इनका दर्द ...पीडा सिर्फ वही समझ सकता हो जो इन से गुजरा हो....आपको पढने से कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है

Razi Shahab said...

sanjeeda andaaz

ओम आर्य said...

दिल को छूकर गया और और भावुकता से ओत प्रोत....

दिगम्बर नासवा said...

दिल को छूने वाला दर्दनाक संस्मरण है .......... आगे की पोस्ट का इंतज़ार रहेगा

Vinay said...

रुआ रुआ खड़ा हो गया

--
चर्चा । Discuss INDIA

राज भाटिय़ा said...

अरे... आप ने तो हिला कर ही रख दिया, राम करे सब ठीक हो....
धन्यवाद

anil said...

मानवीय भावनाओं से परिपूर्ण वाकया अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा धन्यवाद .

सदा said...

आपको जब भी पढ़ा बहुत ही अच्‍छा लगा, लेकिन इस संस्‍मरण को पढ़कर दिल भर आया, कौन जाने क्‍या हो जायेगा कब किसके साथ ।

Riya Sharma said...

निर्मला जी

अति भावुक कर देने वाला संस्मरण है .....
आप हमेशा दूसरों को खुशियाँ बाँटती हैं ,हौसला अफजाई करती हैं

मेरे ऊपर आपके वरद हस्त का

बहुत आभार !!

प्रणाम !

नीरज गोस्वामी said...

कितनी गहरी और अच्छी बात बताई इस महिला ने आपको...जिंदगी जीने का गुर सिखा दिया...आपका संस्मरण बहुत मार्मिक है...आगे क्या हुआ?
नीरज

Prem Farukhabadi said...

बहुत सुंदर यह संस्‍मरण!!!!!!!आभार.

दिनेशराय द्विवेदी said...

वाकई दहला देने वाली स्थिति है। लेकिन ऐसा ही समय मनुष्य की परीक्षा का भी होता है।

"अर्श" said...

इस सस्मरण को लिखते वक्त आप कितनी रोई हैं ये मैं जानता हूँ और कुछ भी कहने के स्थिति में नहीं हूँ.

निर्मला कपिला said...

आर्श नेकहा है किइ मैन ये पोस्त लिखते हुये रोई होऊँगी मगर मैन सब को बत दूँ मैन रोती नहीं हूँ मैने दिलेरी से जीना सीख है तभि तो यहन आज सब के सामने बैठी हूँ ये सन्समरन तो इस लिये हैं कि कोई अगर दुखी है तो उसे ये एक उदाहरन है कि जीवन मे कभी हार नहीं माननी चाहिये हर दुख को जीवट के साथ जीना चाहिये एक दूसरे के दुख देख कर ही तो पता चलता है कि दुख कितना बडा हो सकता है् सुख और दुख को सम भाव से देखने की कोशिश करनी चाहिये् जब तक हम बडे दुख के बारे मे जानेंगे नहीं तो अपना दुख बहुत बडा लगेगा मैं तो आज बहुत सुखी हूँ मगर मुझ से भी बहुत बहुत लोग इस दुनिया मे हैं बस उनको जरूर देखो्

Udan Tashtari said...

अरे, ये तो कुछ ज्यादा ही भावुक कर गया. अब कुछ देर को कम्प्यूटर बंद!!

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