मेरे अण्दर की चिँगारी फिर दहकी------- और मै घर पर ही बी ए की तैयारी करने लगी तीन साल मे फर्स्ट क्लास मे बी ए पास कर ली----- बडा भाई दो वर्ष कालेज मे लगा कर घर बैठ गया-------छोटा बी काम मे पाँच साल लगा कर पास हुआ---- और प्राईवेट फैक्ट्री मे मुनीमी करने लगा---लडके कुछ बिगडैल भी थे ---मगर उस के लिये भी माँ को ही जिम्मेदार ठहराया जाता-------जैसी माँ वैसे ही बेटे------ माँ ने ही बिगाडे हैं-----कई बार सोचती पिता जी भी क्या करें---पैसा कमाना कौन सा आसान काम है------ मैने सोच लिया था कि मै भी नौकरी करूँगी ताकि अकेले पति पर बोझ ना पडे------ पर जब पिता जी शराब पी लेते और दोस्तों मे बैठ कर गप शप करते और ताश खेलने मे समय बर्वाद करते तो मन मे फिर एक चिंगारी उठती उन के इस अधिकार के प्रति----क्या वो बच्चों की पढाई के लिये देखभाल के लिये ये समय नहीं बचा सकते------ये जन से सुलगती चिंगारी शायद औरत की चिता के साथ ही जाती है-----
अब मेरी शादी के लिये लडका ढूँढा जाने लगा----पिताजी ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार राजेश को दामाद के रूप मे ढूँढ लिया------- बाहरवीं के बाद सरकारी दफ्तर मे क्लर्क------- उस सरकारी नौकरी के सामने मेरी बी ए बेमायने थी----- पर अन्दर कहीँ एक सकून था किाब अनपढ और फूहड तो नहीं सुनना पडेगा------मेरे संस्कारों या समाज की परंपरा ने अन्दर से आवाज़ दी या सवधान किया------ कि अपने कोकहीं लाट साहिब ना समझ लेना----याद रखना कि पति को कभी ऐसा आभास ना हो कि तुम उससे अधिक पढी हो
शादी धूमधाम से--जितनी हो सकती थी हो गयी-------सब ने सर आँखों पर बिठा लिया------नई नई शादी मे सब सुहाना लगता है-------मगर मै कुछ ही दिनों मे जान गयी थी कि स्थितीयाँ यहाँ भी मायके से कुछ अलग नहीं है------- संयुक्त परिवार मे एक छोटा भाई और दो जवान बहने----सास ससुर-----राजेश ही बडे और अकेले कमाने वाले थे-- बाबु जी अब रिटायर हो चुके थे -----शादी के तीन महीने बाद ही मेरा बी एड का इम्तिहान था------घर के काम से फुरसत कहाँ मिलती थी ---ननदें भी पढ रही थी कोई मदद भी नहीं करता-----मैने सोच लिया था कि जैसे तैसे पेपर दूँगी------राजेश को मेरी पढाई से सरोकार ना था---कहते कहीं ना कहीं कलर्क की नौकरी ढूँढ लेंगे-----मगर मैं जानती थी कि मै आगे और पढ कर तीचिंग लाईन मे जल्दी पदोन्ति पा लूँगी---- किसी तरह मैने बी एड भी पास कर ली------और् रोज टीचर के लिये वेकैंसी देखने लगी------मेरा निश्चय रंग लाया और मुझे पास के ही सरकारी स्कूल मे नौकरी मिल गयी-------
जहाँ घर मे सब को मेरी आमदन से खुशी थी वहाँ काम की भी समस्या खडी हो गयी-------ाब बहू घर मे हो तो सस्स काम करते हुये कहाँ अच्छी लगती है------फिर मै औरत ---त्याग समरपण की देवी----- घर मे किसी तरह की कलह ना हो मैं भाग भाग कर काम करती------- बहु सुबह इतनी भाग दौड करती हो कुछ काम इसके लिये भी छोड दिया करो--- और मै इसी बात पर खुश हो जाती कि चलो किसी को तो एहसास है मेरी तकलीफ का
ज़िन्दगी चल रही थी चार वर्शों मे ननदों की शादी कर दी देवर इँजनीयरिंग करने लगा ---- और मेरे फूल सी बेटी आ गयी------पता नहीं चला समय कैसे भाग रहा है ----मैने एम ऎ भी कर ली थी जिम्मेदारिओं से जरा फुरसत मिली तो जाना कि मेर स्वास्थ्य भी बिगडने लगा था------ अपने पहरावे के प्रति भी लापरवाह हो गयी थी------ अब पता नहीं क्यों मुझे लगता कि राजेश हर बात पर मुझ पर हावी होने की कोशिश करते रहते हैं------ मेरे खाने पहनने घर के काम मे सोने उठने हर काम मे उन्हे कुछ् ना कुछ बोलने के लिये मिल ही जाता है-------- तन्ख्वाह इनको देती थी----ापने लिये या बच्ची के लिये कुछ लेना होता था तो इन से माँगना पडता था पहले पहले तो जितने पैसे माँगती दे देते थे ये नहीं पूछते थे कि क्या लेना है------ मगर अब पहले पूछते फिर सलाह देते कि इस चीज़ की क्या जरूरत है----------ागर कहूँ कि कपडे सिलवाने हैं तो कहते कि अभी क्या जरूरत है दो महीने पहले तो सीट सिलवाया था-------चार महीनी भी इन्हें दो महीने लगने लगते-----फिर कुछ न कुछ बोल कर थिडे बहुत दे देते-----जिसमे सूट तो आ जता मगर मर्जी का नहीं-----चु्प रह जाती------ मैं कमाती थी अपनी मर्ज़ी का क्यों ना खाऊँ पहनूँ चिँगारी फिर उठती मगर उसे हवा न लगने देती------ घर की शाँती के लिये-------
घर मे कभी मेरी सहेलियाँ आ जाती--- और जब कभी कोई पुरुष सहकर्मी आ जाते तब तो राजेश को बहुत बुरा लगता------ और कई बार मेरे बन ठन कर रहने पर भी ताने कसने लगते------- अब मैने डबल एम ए भी कर ली घर के काम---- पढाई --बच्चे की देखभाल सास ससूर की जिम्मेदारी और कई छोटे मोटे काम मे सारा दिन निकल जाता कई बार इनका कोई छोटा मोटा काम रह जाता ---कमीज प्रेस करना भूल जाती ---बटन लगाना भूल जाती---- नहाने के लिये तौलिया या अन्डर वीयर बनियान रखना भूल जाती तो शुरू हो जाते----- चार अक्षर क्या पढ गयी अपनी औकात भूल गयी------- अब मेरे लिये तुम्हारे पास समय ही कहाँ है------ अपने सजने संवरने से समय मिले तब ना-----तब मेरी याद आये---- मै समझ नहीं पा रही थी कि राजेश मेरी मुश्किल क्यों नहीं समझते--------
क्रमश
18 comments:
बहुत बेहतरीन बहाव के साथ कथा चल रही है..आगे इन्तजार है जी!!
निर्मला जी!
आज भी समाज पुरुष प्रधान ही है।
मेरी माता जी 85 वर्ष की आयु मं भी
लड़कों को ही अधिक मबत्व देतीं हैं।
अगली कड़ी का इन्तजार है।
अच्छी प्रस्तुति। अगली कड़ी की प्रतीक्षा है।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत सुंदर, रोचकता से कहानी बढ रही है. आगे का इंतजार है.
रामराम.
अच्छी बढ रही है यह कहानी .. पर यह पार्ट दो बार पेस्ट हो गया है .. कृपया सुधार लें।
sahc padhte padhte kho gaye kahani mein,bahut hi achhi lagi.
सुन्दर प्रवाह. लगता है पूरा एक साथ पढ़ लें. आभार.
baton aur vicharo ke sath sath aapne samaj ke kuch tathy bhi geena dale jisame sydhar ki jarurat hai..
aage bhi padhana chahuyga aur haan yahan aapki kahani do baar aa gayi hai..to ho sake to ek part hata de kyonki wo wahi hai jaisa upar likha hai..
baki bahut hi badhiya aur rochak bhi
bahut dhanywaad..
अच्छी लग रही है ...आगे का इंतजार है
बहुत ही बेहतरीन अगले भाग की प्रतीक्षा में . . .
रोचकता बढ़ रही है
-------------
प्रेम सचमुच अंधा होता है – वैज्ञानिक शोध
रोचकता बनी हुई है.
bahut hi pravaahmay kahaani hai ........jyadatar bhartiya mansikta yahi hai..........aage ke bhag ka intzaar hai.
विनोद कुमार जीऔर संगीता जी बहुत बहुत धन्य्वाद मेरी गलती बताने के लिये मैने भूल सुधार ली हीऔर सब का धन्यवाद मुझे उत्साह देने के लिये
आगे पढ़ने की उत्सुकता है !
अभी तक आप ने बांधे रखा है इस कहानी मै अगली कडी का इंतजार है.....
आपने उत्सुकता बढा दी.... आगे का इंतजार है.
अच्छी प्रस्तुति
आगे का इंतजार है.
Post a Comment