14 June, 2009

अच्छा लगता है (कविता )

कभी कभी
क्यों रीता सा
हो जाता है मन
उदास सूना सा
बेचैन अनमना सा
अमावस के चाँद सी
धुँधला जाती रूह
सब के होते भी
किसी के ना होने का आभास
अजीब सी घुटन सन्नाटा
जब कुछ नहीं लुभाता
तब अच्छा लगता है
कुछ निर्जीव चीज़ों से बतियाना
अच्छा लगता है
आँसूओं से रिश्ता बनाना
बिस्तर की सलवटों मे
दिल के चिथडों को छुपाना
और
बहुत अच्छा लगता है
खुद का खुद के पास
लौट आना
मेरे ये आँसू मेरा ये बिस्तर
मेरी कलम और ये कागज़
और
मूक रेत के कणों जैसे
कुछ शब्द
पलको़ से ले कर
दो बूँद स्याही
बिखर जाते हैँ
कागज़ की सूनी पगडंडियों पर
मेरा साथ निभाने
हाँ कितना अच्छा लगता है
कभी खुद का
खुद के पास लौट आना

26 comments:

विवेक सिंह said...

सुन्दर भाव !

विवेक सिंह said...

सुन्दर भाव !

shubhi said...

भागती दौड़ती जिंदगी में खुद के लिए भी समय कहां है और जब यह मिलता है तब हम अपनी उदासियों को लेकर बैठ जाते हैं, जब ऐसा हो जाये कि अपने साथ रहना अच्छा लगे तब कविता का जन्म होगा ही

ओम आर्य said...

सही कहा आपने कभी कभी ऐसा भी होता है ........अच्छा लगता है.

अनिल कान्त said...

shubhi ji ne sahi kaha...waise mujhe kavita bahut achchhi lagi ...bilkul dil ke kareeb

Unknown said...

khud ka khud k pas laut aana jaavan ki sabse badi ghatnaa hai............
aapki kavita padh kar yon laga jaise kisi ne aadhyatmik aanand me bhigo diya ho......
BADHAAI HO !

Anonymous said...

हाँ कितना अच्छा लगता है
कभी खुद का
खुद के पास लौट आना..

बिलकुल सही कहा आपने.. बहुत सुन्दर भाव

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

भाव-भरी कविता के लिए,
शुभकामनाएँ।

रंजन (Ranjan) said...

बहुत खूब!!!

P.N. Subramanian said...

"बहुत अच्छा लगता है खुद का खुद के पास लौट आना" बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. आभार.

Yogesh Verma Swapn said...

bahut khoob , kitna achcha lagta hai khud ka khud ke pass lautna. damdaar shabd,anubhav men doobe.

Unknown said...

बहुत सुन्दर कविता है, अपनी आत्मा की अभिव्यक्ति लगती है.

"अर्श" said...

BISTAR KE SILWATO ME DIL KE CHITHADE KO CHHUPAANA....AISE SHABD AUR AISI BAAT .... BAS SOCH KE GUM HUN AUR NISHABD BHI .... KE APNE AAP SE MILNE KE LIYE BHI AB KITNE JATAN HAI... MAGAR HAAN ACHHA TO LAGTAA HI HAI.... ISLIYE CHUP HUN KE KHUD SE KHUD KO MILNE KE LIYE ...BAHOT HI KHUBSURAT ANDAAZ AAJ ...DHERO BADHAAYEE AAPKO...


ARSH

vandana gupta said...

khud se batiyana achcha lagta hai..........achche bhav

राज भाटिय़ा said...

यह तो एक कवि के मन के भाव है...
बहुत सुंदर भाव.
धन्यवाद

डॉ. मनोज मिश्र said...

सुंदर रचना .

दिगम्बर नासवा said...

सब के होते भी
किसी के ना होने का आभास

वाह.......... क्या कहा है........... ऐसा होता है अक्सर जब आप खुद में खोये हों, किसी दर्द में समाये हों.......... लाजवाब

AKHRAN DA VANZARA said...

SUKOMAL EHSAS KI ABHIVYAKTI SE BHARPOOR KAVITA....
BADHAAI HO...

Anonymous said...

हाँ कितना अच्छा लगता है
कभी खुद का
खुद के पास लौट आना
vah!
bahut khoobsurat rachana

Ashk said...

हाँ कितना अच्छा लगता है
कभी खुद का
खुद के पास लौट आना.
kavita ke bhaav man ko chhoo gaye.

Science Bloggers Association said...

खुद का खुद के पास लौट आना। वाह, क्‍या बात है।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

रचना बहुत अच्छी लगी.....
एक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में।आप के सुझावों की आवश्यकता है,देंखे और बतायें.....

अर्चना said...

achchha lagata hai aansuon se .........chithadon ko chhupana.
bahut achchhi lagi.

Prem Farukhabadi said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

सहज साहित्य said...

अच्छी कविता है, एक दम ताज़ा और सादगी लिए हुए ।

स्वप्न मञ्जूषा said...

हाँ कितना अच्छा लगता है
कभी खुद का
खुद के पास लौट आना..

bahut achha...

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