19 May, 2009

अब और तब ( कविता )

तब रिश्ते
अग्नि के चारों ओर
फेरे दे कर
तपाये जाते
प्रण ले कर
निभाये भी जाते
सात जन्मों तक
ि
कई बार
रिश्तों मे
एक पल निभाना भी
हो जाता है कितना कठिन
िे ताउम्र 
िता 
 
तभी तो आजकल
रिश्ते कागज़ पर
लिखाये जाते हैं
अदालत मे और
बनाये जाते है
वकील दुआरा
अब कितना आसान हो गया
रिश्ते को तोड्ना
कागज़ पर कुछ
शब्द जोड्ना
बन्धन से आज़ाद
और हो जाना

15 comments:

"अर्श" said...

zindagi ko is samaanantar tarike se aap dekhti hai ye soch ke hatprabh hun aur stabhdh hun... aaj pe yug me yahi hotaa hai ,magar hamaare desh me aaj bhi wo fere liye jaate hai ye soch ke sukhadh anubhuti hoti hai..


arsh

संगीता पुरी said...

यही है धर्म और कानून में अंतर .. धर्म का पालन करने में 'स्‍व' को जगह नहीं मिलती .. जबकि कानून का सहारा लेनेवाले सिर्फ 'स्‍व' की सोंचते हैं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

धर्म और कानून में यही अंतर होता है।

शारदा अरोरा said...

बहुत बढ़िया , इस नजरिये से तो सोचा ही नहीं था , अब लगता है कि रिश्ते जो अग्नि के चारों ओर तपाये जाते रहे , वो मन की कच्ची स्लेट पर एक नाम लिख कर भी तपा दी जाती रही , तभी तो वो नाम अमिट हो जाता रहा |

P.N. Subramanian said...

कगाज़ पर बनाये जाने वाले बंधन शाश्वत नहीं हो सकते.

Anonymous said...

कहते हैं रिश्ते बनाना जितना आसान है, निभाना उतना ही कठिन. लेकिन हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति हमें रिश्तों को जीना सिखाती है ना कि निभाना. आजकल निभाने वाली प्रवृत्ति जोर पकड़ रही है. इसी वजह से ये कागज़ पर बनाये जाने वाले रिश्ते बन रहे हैं.

साभार
हमसफ़र यादों का.......

दर्पण साह said...

saare rishtey aasan nahi hain,
Kintu nibhane padte hai...

kuch kagaz kore acche hain...
shabd chupane padte hai !!

-Darpan Sah

संध्या आर्य said...

रिश्तो को जीना लोग भूल रहे है शायद यही कारण है कि रिश्ते कागज पर बनने लगे है....... अच्छी रचना

Science Bloggers Association said...

bilkul sahi. rishte yakeen dwara hi bante hain.

-Zakir Ali ‘Rajnish’{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

रंजना said...

कितना सही कहा आपने......एकदम खरा खरा सच...

सोचने को विवश करती बहुत ही सुन्दर रचना...

Udan Tashtari said...

बिल्कुल सही कहा आपने..रिश्तों मे।ं जिस तपिश की जरुरत है, वो नदारत हो गई है.

दिगम्बर नासवा said...

सत्य कहा..........रिश्तों में वो ताजगी........वो बंधन..........वो भावना कहाँ रही अब............कागज़ के बंधन खुशबू तो नहीं देते न............अच्छी अभिव्यक्ति

प्रेमलता पांडे said...

good words!

vandana gupta said...

sach kaha......tab aur ab mein kitna antar aa chuka hai.......rishtey ab kaagaz ke ban gaye hain man ke nahi,janam janam ke nhi.....sirf kagzi rishtey ho chuke hain.

Hiteshita Rikhi said...

you are doing commendable job by writing such beautiful poems.ab aur tab is a very beautifully written poem,each word has a deeper meaning and makes every sense to the reader.

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