15 April, 2009

श्रीमती प्रकाश कौर जी की एक कविता [माँ] मैने अपने पंजाबी ब्लोग पंजाब दी खुश्बू पर पोस्त की थी गलती से वो मेरे वीरबहुटी ब्लोग पर भी प्रकाशित हो गयी थी 1 अर्शजी और श्री. रूपचन्द शास्त्री मंयक जी ने उसका हिन्दी अनुवाद करने के लिये कहा मैने प्रयास किया है पर कई बार भाषा के कुछ शब्द कवित की सुन्दरता को चार चाँद लग देते हैं फिर भी उसे कहने की कोशिश की है-----

माँ

मायका अब मुझे घर नहीं लगता
घर होते हैं माँ के साथ
माँ बिना अब कैसा मायका
झूठा मान भाईयों के साथ

कौन मेरा अब सिर मुँह चूमे
भींचे कौन प्यार के साथ
कौन सुनेगा दिल के दुखडे
लाड और मल्हार के साथ

माँ के पास तो बहुत समय था
दुख और सुख सुनाने को
पर मेरे पास समय नही था
उसके साथ बिताने को

दिल भर बातें कभी ना की
सदा तुझे तडपाया माँ
रात तेरे पास रहने का
नया बहाना बनाया माँ

तेरी गोद तो वो चुंबक थी
जिस से सारे जुड जाते थे
जिधर कहे तू चल पडते थे
जिधर कहे तू मुड जाते थे

पर इक तेरे ना होने ने
कितने अनर्थ करवाये माँ
सब की दुनिया अलग हो गयी
हो गये सब पराये माँ

माँ तो सच मुच माँ होती है
माँ का कोई भी सानी नहीं
माँ जैसा हमदर्द ना कोई
माँ जैसा कोई दिलजानी नहीं

माँ की दुनिया माँ की दुनियां
जिसे देवी देवते तरसते हैं
माँ है वो प्रकाश कि जिस से
सूरज चाँद सितारे चमकते है

माँ की ममता रुख बोहड[बट] का
माँ की छाँव तो ठंडी छाँव है
माँ तो ममता का है मंदिर
माँ तो रब का दूज नाम है
माँ तो रब का दूजा नाम है1



16 comments:

Unknown said...

बहुत सुंदर कविता है, अनुवाद भी बहुत अच्‍छा है.
बधाई और एक अच्‍छी कविता पढवाने के लिए धन्‍यवाद

Vinay said...

बहुत सुन्दर कविता, मन मोह लिया

admin said...

मॉं का दरजा सबसे आला।

-----------
तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

परमजीत सिहँ बाली said...

bahut sundar rachanaa hai.

mehek said...

bahut sunder bhavpurn

अजय कुमार झा said...

aaj pehlee baar apka ye blog dekhaa , jitnaa sundar blog hai utnee hee bhaavpurn rachna hai. likhtee rahein ab niyamit padhtaa rahungaa.

Shikha Deepak said...

माँ तो सच मुच माँ होती है
माँ का कोई भी सानी नहीं
माँ जैसा हमदर्द ना कोई
माँ जैसा कोई दिलजानी नहीं
........सच ही तो है......बहुत सुंदर कविता।

दर्पण साह said...

wah...
shabd nahi mil rahe taarif ke liye...
blog jagat main kabse sakriya hoon par tippani yada kada hi karta hoon...
par isko padkar seedhe tippani main hi haath gaya...

संध्या आर्य said...

मेरी माँ ऐसी ही है ...........................माँ पीडानाशक टीकिया जैसी होती है जो एक ही छ्ण मे पुरे दर्द को सोख जाती है उसके पास होने का मतलब खुबसूरत होना,अक्लमन्द होना,विचारवान होना,एक इंसान होना, है
................कभी कभी वह पगली,बुध्दू,सोना,मुर्ख,देवीजी के नाम का सम्बोधन देती है तब कुछ भी बुरा नही लगता तब मै उसके गालो पर चिमटी भरना बिल्कुल ही नही भुलती !

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह जी बहुत ही सुंदर कविता है मां

अमिताभ श्रीवास्तव said...

सच ही कहा है..
इश्वर हर कही जा नहीं सकता इसीलिए उसने माँ बनाई है.
बहुत मर्मस्पर्शी कविता है जी यह.
इस पर ज्यादा कुछ ना लिखते हुए सिर्फ यही की
माँ का साया हर किसी के सर पर बना रहे.

मुकेश कुमार तिवारी said...

निर्मला जी,

कितना अच्छा अनुवाद है कि कविता की मूल भावना और तीव्र और प्रमुखता से सामने आती है.

श्रृद्धा से सराबोर इस भाव भरी कविता के लिये रचनाकार तो बधाई की हकदार हैं ही और साथ ही साथ बहुत ही अच्छे अनुवाद के लिये आपका हक उतना ही है.

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

"अर्श" said...

पता नहीं अगर आप उसका हिंदी आनुवाद नहीं करी होती तो एक पाप हो जाता वो ये के एक बहोत ही खुबसूरत और बढ़िया भावः से भरे कविता का स्वाद नहीं ले पाता आपने हमारी बिनती को स्वीकार इसके लिए आपका आभार... बहोत ही बढ़िया कविता है माँ पे सही कहा है आपने माँ कोई सानी नहीं है ... बस ये शब्द ही ऐसा है के इसके सिवा कुछ सूझता ही नहीं है ... माँ शब्द अपने आप में सम्पूर्ण ... इसी तरह आपकी कविता भी है... ढेरो बधाई स्वीकारें..


अर्श

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सभी कुछ तो सत्य ही लिखा है.

ओम आर्य said...

आपकी कविता anokhi है, शायद हीं किसी ने उस दर्द को लिखा होगा जो माँ के न rahne पे maayka का बे-arth हो जाना होता है

गौतम राजऋषि said...

अपनी असल भाषा में यकीनन कविता अपने अप्रतिम रूप में होगी, किंतु ये अनुवाद भी कम अनूठा नहीं है
और माँ-इस शब्द मात्र में जब पूरी सृष्टी निहित है तो कहना ही क्या

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