अन्तर्राष्टिय महिला दिवस
(व्यंग कविता)
आज महिला दिवस उस पर ये छुटी
हमने भी इसे मनाने की हठ कर ली
सोच लिया कि अपना अधिकार जताना है
हमे महिला मीटिंग मे जाना है
सुबह उठते ह हमने किया ऎलान्
हमारे तेवर देख कर पती थे हैरान
आज गर्व से अपना चेहरा था तमतमाया
उस पर महिला दिवस का था रंग छाया
पती से कहा उँची आवाज़ मे
आज से हम महिला मीटिंग मे जायँगे
एक सप्ताह तक आप घर चलायेंगे
आज का विशेश दिन हम अपनी
आज़ादी से शुरु करते हैं
आप सम्भालो घर की चारदिवारी
हम महिला मीटिंग मे चलते हैं
तुम बच्चोंको खिला पिला कर
स्कूल पहुँचा देना
घर के काम काज से निपट
माँ की टाँग दबा देना
बर्तन चौका सब निपटाना समय पर
हम रात को देर से लौटेंगे घर
बस फिर हफ्ता भर हमने
पती को खूब नचाया
महिलायों के जीवन का
वास्तविक दृ्षय दिखलाया
हमने अपनेअधिकार दिखा
कर धूम मचा दी
सदियों से चली आ रही
पती प्रथा की नींव हिला दी
तब सोचा ना था कि
ये महिला दिवस
इतना रंग लायेगा
कि अपने घर का
इतिहास बदल जायेगा
17 comments:
बड़ी प्रसन्नता हुई. लेकिन इस से तो मातृसत्तात्मक व्यवस्था अच्छी थी. आभार
महिला दिवस की शुभकामनाओं सहित...... !!
शुभकामनाऐं.. आपने तो ईटं से ईंट बजा दी..:)
महिला दिवस पर ही नहीं .....हमें .हमेशा ही अपने पर गर्व है ....अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभ कामनाएं
बहुत सुंदर ... महिला दिवस की शुभकामनाएं ।
बहुत सुन्दर।
सुन्दर रचना, महिला दिवस की शुभकामनाएं ।
बहोत ही बढ़िया ब्यंग मारा आपने निर्मला जी,सोचता हूँ के क्या महिलायें जो हमारी आधारशिला है को आजादी सिर्फ वो सात दिन के लिए ,जो हमारी आधार है उन्हें हम क्यूँ हमेशा धार पे रखते है... ???
अर्श
निर्मला जी,आप ने बिलकुल सही लिखा है,एक दिन मना कर क्या होगा ? घर तो दोनो का ही है...लेकिन आप ने पुरे सात नही ज्यादा छुट्टी मारी है,
धन्यवाद इस सुंदर कविता के लिये
महिला दिवस की शुभकामनाएं ।
wah nirmala ji , aapne to rang jama diya, doosre kharboojon ka bhi rang change kara diya. bahut achchi vyangya rachna, holi ki shubhkaamnaon ke saath bahut bahut badhai.
Adarneeya Nirmala ji,
bahut khoobsoorat vyangya hi.mahila divas evam holi kee badhai sveekar karen.
Poonam
बहुत सुन्दर कविता पढ्क्षवाने के लिए आभार.
बधाई.
होली की रंगारंग मंगल कामनाओं सहित
सादर
द्विजेन्द्र द्विज
जय हो ... मंगलमय हो ...
बहुत बढिया. महिला दिवस के माध्यम से बहुत ही सटीक व्यंग्य किया आपने......वर्तमान परिवेश में स्थितियां इस प्रकार की बन चुकी हैं कि हम लोग अपने अधिकारों की बात तो करते हैं,किन्तु अपने कर्तव्यों के निर्वहण के बारे में कोई भी सोचने को तैयार नहीं हैं....अब चाहे वो पुरूष हो अथवा स्त्री.
आपको होली के पावन पर्व पर सपरिवार हार्दिक शुभकामनाऎं.....
very true! I really enjoyed this poem a lot..Keep it up!
namskaar madam ji,,,thanx for comment,,,bahut acha lga aap ne mere ko coomment kiya...aur aap ka blog dekh kar b,,,meine aapke blog mein sign b kr liya hai ji...aap b mere blog sign in kr lena,,thanx ji..
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