31 January, 2009


रिश्ते


ये रिश्ते
अजीब रिश्ते
कभी आग
तो कभी
ठंडी बर्फ्
नहीं रह्ते
एक से सदा
बदलते हैं ऐसे
जैसे मौसम के पहर
उगते हैं
सुहाने लगते हैं
वैसाख के सूरज् की
लौ फूट्ने से
पहले पहर जैसे
बढते हैं
भागते हैं
जेठ आशाढ की
चिलचिलाती धूप की
साँसों जैसे
फिर
पड जाती हैं दरारें
मेघों जैसे
कडकते बरसते
और बह जाते हैं
बरसाती नदी नालों जैसे
रह जाती हैं बस यादें
पौष माघ की सर्द रातों मे
दुबकी सी सिकुडी सी
मिटी कि पर्त् जैसी
चलता रहता है
रिश्तों का ये सफर् !!


17 comments:

योगेन्द्र मौदगिल said...

अरे वाह.. क्या सुंदर कविता है.... बधाई....

Vinay said...

बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ, बहुत सुन्दर रचना!

Anonymous said...

एक यथार्थवादी कविता के लिए आपका आभार।

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

आदरणीय निर्मला जी ,
रिश्तों में अज के समय में जो दरार ,खटास आती
जा रही है उसका अच्छा वर्णन है कविता में .
हेमंत कुमार

समयचक्र said...

बहुत सुंदर
बसंत पंचमी पर्व की हार्दिक शुभकामना

संगीता पुरी said...

सही कहा....चलता रहता है रिश्‍तों का यह सफर।

P.N. Subramanian said...

मौसम के साथ रिश्तों का सफरनामा रोचक रहा. आभार.

राज भाटिय़ा said...

निर्मला जी, मुझे तो लगता है पेसा ही सब से खराव है जो आज रिशतो मे भी दरार डाल रहा है.
बहुत सुंदर कविता लिखी आप ने धन्यवाद

Himanshu Pandey said...

इस रचना के लिये धन्यवाद.
पंक्तियां सजा कर स्थापित की गयी मालूम होती हैं.
इन्हें अगर केवल देखें, पढ़े नहीं तो यह एक आकृति बनायेंगी. गजब की रिश्तेदारी है इनमें.

पूनम श्रीवास्तव said...

Respected Nirmalaji,
bahut hee kadvee sachchai ko likha hai apne rishtey kavita men.aj ke badalte parivesh ka sahee chitran.
Poonam

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सफर, सफर है, इसमें यादें आती जाती है।
रिश्तों की बुनियाद, सफर में बनती जाती है।

सुनीता शानू said...

आपने रिश्तों की सही परिभाषा दी है निर्मला जी।

सदा said...

वाह ...बहुत ही बढि़या ...

Yashwant R. B. Mathur said...

सटीक बात कहती कविता।

सादर

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

रिश्ते सचमुच ऐसे ही होते हैं....
सुन्दर विवेचना...
सादर...

रेखा said...

बहुत ही सही कहा है आपने ....सार्थक रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सटीक लिखा है सुन्दर रचना

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