कविता
उसके अहं में छिपा विष
उसकी मैं
तू की अवहेलना
शोषण की बुभुक्शा
कामुक्ता कि लिप्सा
अभिमान की पिपासा
कर देती है आहत
तर्पिणी का अनुराग,
सहनशीलता,सहिश्णुता,त्याग
पंखनुचा की आहों से
सिसकता है
घर की दिवारों का
हर कण
क्योंकी
उन दिवारों ने
घुटते देखा है
उस आम औरत को
उस नाम की अर्धांगिनी को
जिसकी पहचान होती है
"बेवकूफ गंवार औरत,
तुझे अकल कब आयेगी "
हाँ सच है
उसे अभी अकल नही आयी
और सदियों से सहेजे खडी है
इस घर की चारदिवारी को
पर
जब कभी
अतुष्टी का भावोद्रेक
अत्याचार की अतिमा
हर लेगी
उसकी सहनशीलता
जगा देगी उस के
स्वाभिमान को
तो वो मीरा की तरह
इस विश को
अमृ्त नहीं बना पायेगी
सतयुग की सीता की तरह
धरती मे नहीं समायेगी
ये कलयुग है
क्या नहीं सुन रहा
दंडपाशक का अनुनाद
तडिताका निनाद
बनादेगी तुझे निरंश,पंगल
कर देगी सृ्ष्टी का विनाश
उस प्रलय से पहले
सहेज ले
घर की दिवारों को
अपना उसे
अर्धनारीश्वर की तरह
समझ उसे अर्धांगिनी !!
उस प्रलय से पहले
सहेज ले
घर की दिवारों को
अपना उसे
अर्धनारीश्वर की तरह
समझ उसे अर्धांगिनी !!
6 comments:
jaha seeta bhee sukh paa na saki, tu us dharti kee nari hai. jo julm teri takdeer me hai wo julm yugon se jari hai. narayan narayan
काश समझ जाएँ कि नारी ही पुरूष को पूर्णता प्रदान करती है.
हमे बदलना है, बस खुद को यहाँ ,
दिल कहता है, सब कुछ बदल जाएगा |
कदम तो उठाओ, बे झिझक एक बार,
इस हवा का रुख़, बदल जाएगा ||
बहुत सुदर कविता ......
.......जिसकी पहचान होती है
"बेवकूफ गंवार औरत,
तुझे अकल कब आयेगी ".......
........तो वो मीरा की तरह
इस विश को
अमृ्त नहीं बना पायेगी
सतयुग की सीता की तरह
धरती मे नहीं समायेगी........
एक आम औरत के अंतर्मन की पीडा का सहज चित्रण
एक माँ और औरत ही समझ सकती है .....
माँ आप को मेरा सदर प्रणाम .....
नोट : कृपया आप अपने ब्लॉग Word Verification से हटा दे , इससे लोगों को comment देने में आसानी होगी
बहुत सच्चे भाव हैं। प्लीज़, वर्ड वैरीफिकेशन वाली बात की तरफ़ ध्यान दीजियेगा।
पिछले साल मैंने भी किसी टिप्पणीकार की सलाह के बाद ही इसे अपने ब्लाग से हटाया था।
aap jin shabdo ka chayan karti hai unse bhav ki marmikta kai guna badh jati hai.
behad jatil bhaav ko bhi itni saralta se abhivyakt karna aap ki visheshta hai.
aap jaisi kavivyatri ko padhna yakinan khushi ki baat hai.
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