एक नई गज़लें
1
किसी को दर्द हो सहती नहीं मैं
हो खुद को दर्द पर कहती नहीं मैं
थपेडे ज़िन्दगी के तोड़ देते
नहीं इतनी भी तो कच्ची नहीं मैं
सलीका जानने का फायदा क्या
अमल उस पे अगर करती नहीं मैं
मुकद्दर के तसीहे नित सहे पर
यूं हाहाकार भी करती नहीं मैं
वफ़ा उनको न आये रास चाहे
जफ़ा लेकिन कभी करती नहीं मैं
न मेरे साथ तुलना हो किसी की
सुनो मैं भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ
जताऊँ जो किया उसके लिए था
मगर उनकी तरह हल्की नहीं मैं
मैं खुद की सोच पर चलती हूँ निर्मल
किसी के जाल में फंसती नहीं मैं
-------------------------------------------------------
इसी बह्र पर एक पुरानी गज़ल
कमी हिम्मत में कुछ रखती नहीं मैं
बहुत टूटी मगर बिखरी नहीं मैं
बड़े दुख दर्द झेले जिंदगी में
गो थकती हूँ मगर रुकती नहीं मैं
खरीदारों की कोई है कमी क्या
बिकूं इतनी भी तो सस्ती नहीं मैं-
रकीबों की रजा पर है खुशी अब
कहें कुछ भी मगर लडती नहीं मैं
बडे दिलकश नजारे थे जहां में
लुभाया था मुझे भटकी नहीं मैं
मुहब्बत का न वो इजहार करता
मगर आँखों में क्यों पढती नहीं मैं
अगर चाहूँ फलक को छू भी लूँगी
बिना पर के मगर उड़ती नहीं मैं
नहीं इतनी भी तो कच्ची नहीं मैं
सलीका जानने का फायदा क्या
अमल उस पे अगर करती नहीं मैं
मुकद्दर के तसीहे नित सहे पर
यूं हाहाकार भी करती नहीं मैं
वफ़ा उनको न आये रास चाहे
जफ़ा लेकिन कभी करती नहीं मैं
न मेरे साथ तुलना हो किसी की
सुनो मैं भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ
जताऊँ जो किया उसके लिए था
मगर उनकी तरह हल्की नहीं मैं
मैं खुद की सोच पर चलती हूँ निर्मल
किसी के जाल में फंसती नहीं मैं
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इसी बह्र पर एक पुरानी गज़ल
कमी हिम्मत में कुछ रखती नहीं मैं
बहुत टूटी मगर बिखरी नहीं मैं
बड़े दुख दर्द झेले जिंदगी में
गो थकती हूँ मगर रुकती नहीं मैं
खरीदारों की कोई है कमी क्या
बिकूं इतनी भी तो सस्ती नहीं मैं-
रकीबों की रजा पर है खुशी अब
कहें कुछ भी मगर लडती नहीं मैं
बडे दिलकश नजारे थे जहां में
लुभाया था मुझे भटकी नहीं मैं
मुहब्बत का न वो इजहार करता
मगर आँखों में क्यों पढती नहीं मैं
अगर चाहूँ फलक को छू भी लूँगी
बिना पर के मगर उड़ती नहीं मैं
5 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-07-2016) को "हास्य रिश्तों को मजबूत करता है" (चर्चा अंक-2418) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Great post. Check my website on hindi stories at afsaana
. Thanks!
Jude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
Pub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers
whoah, this weblog is excellent I like reading your articles.
मैं आपकी वेबसाइट को बहुत ही ज्यादा पसंद करती हूं, ऐसी वेबसाइट किसी की नहीं मिली अभी तक। और आपके ऑर्टिकल पढ़ने के बाद मैंने भीं ब्लॉग लिखाना शुरू किया हैं, क्या आप मेरी वेबसाइट देख कर बता सकते हैं। क्या मैं सही काम कर रही हूं प्लीज़ मेरी मदद करें।
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