31 December, 2008


नासमझों को समझाना क्यों है
आजमाये को आजमाना क्यों है
जाने दो रूठ्ने वालों को
बंद दरवाजे पे जाना क्यों है
तकरार सदा दुख देती है
बीती बातों को दोहराना क्यों है
जिस्के जीवन मे सुरताल नहीं
उसे संगीत सुनाना क्यों है
जीत तुम्हारे दुआर खडी है
नींद का फिर बहाना क्यों ह
माना जीवन् कठिन डगर है
चुनौतियों से घबराना क्यों है
नववर्ष सौगातें लाया है
इस उत्सव को गंवाना क्यों है
ये जीवन अद्भुत सुन्दर है
इसको व्यर्थ गंवाना क्यों है



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नववर्ष के लिये सब को मंगलकामनायें
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30 December, 2008



रोज सोचा करते थे
वो सब के दोस्त?
मगर केसे?
अपनी ही किस्मत
क्यों धोखा खा गयी
जब गिरगिट को
देखा रंग बदलते
उनकी तरकीब
समझ आ गयी

मुझे अपने दिल के करीब रहने दो
न पोंछो आँख मेरी अश्क बहने दो
ये इम्तिहां मेरा है जवाब् भी मेरा होगा
दिल का मामला है खुद से कहने दो
जीते चले गये ,जिन्दगी को जाना नहीं
मुझे मेरे कसूर की सजा सहने दो
उनकी जफा पर मेरी वफा कहती है
खुदगर्ज चेहरों पे अब नकाब रहने दो
तकरार से कभी फासले नहीं मिटते
घर की बात है घर में रहने दो !!
ग़ज़ल

मुझे अपने दिल के करीब रहने दो
न पोंछो आँख मेरी अश्क बहने दो
ये इम्तिहां मेरा है जवाब् भी मेरा होगा
दिल का मामला है खुद से कहने दो
जीते चले गये ,जिन्दगी को जाना नहीं
मुझे मेरे कसूर की सजा सहने दो
उनकी जफा पर मेरी वफा कहती है
खुदगर्ज चेहरों पे अब नकाब रहने दो
तकरार से कभी फासले नहीं मिटते
घर की बात है घर में रहने दो !!

28 December, 2008

poem--- man manthan


कविता

मेरी तृ्ष्णाओ,मेरी स्पर्धाओ,
मुझ से दूर जाओ, अब ना बुलाओ
कर रहा, मन मन्थन चेतना मे क्र्न्दन्
अन्तरात्मा में स्पन्दन
मेरी पीःडा मेरे क्लेश
मेरी चिन्ता,मेरे द्वेश

मेरी आत्मा
, नहीं स्वीकार रही है
बार बार मुझे धिक्कार रही
प्रभु के ग्यान का आलोक
मुझे जगा रहा है
माया का भयानक रूप
नजर आ रहा है
कैसे बनाया तुने
मानव को दानव
अब समझ आ रहा है
जाओ मुझे इस आलोक में
बह जाने दो
इस दानव को मानव कहलाने दो

गजल

कुच कर दिखाने की कोशिश तो कर
जीवन बनाने की कोशिश तो कर
खुदा को कोसने से पहले
तकदीर बनाने की कोशिश तो कर
कब तक अन्धेरों से डरता रहेगा
दीया जलाने की कोशिश तो कर
दुश्मन कोई खुदा तो नहीं
उससे टकराने की कोशिश तो कर
मन मे जो चोर लिये बैठा है
उसे डराने की कोशिश तो कर
नाकामी को जीत का आगाज समझ
बिगडी बनाने की कोशिश तो कर
सच से बडा कोई धन नही
उसे भुनाने की कोशिश तो कर
असम्भव कुछ भी नहीं जहां मे
हिम्मत दिखाने की कोशिश तो कर
जीवन कितना अदभुत सुन्देर है
देख्नेने दिखाने की कोशिश तो कर

27 December, 2008



अपने नसीब पर खडी रोती है इन्सानियत
भूखे पेट अनाज बोती है इन्सानियत
मां का आन्चल भी दागदार हो गया
कचरे में भ्रूण पडी रोती है इन्सानियत
आसमां की बुलन्दियों को छूती इमारतें
फिर भी फुटपाथ पर पडी सोती है इन्सानियत
घर की लक्ष्मी घर की लाज है वो
सडक पर कार में रेप होती है इन्सानियत
रिश्ते नाते धन दौलत में बदल गये
भाई की गोली से कत्ल होती है इन्सानियत
यथा राजा तथा प्रजा नहीं कहा बेवजह
नेताओं की नीचता पर शर्मसार होती है इन्सानियत
मैं नेता बनूंगा
एक दिन बेटे से पूछा ;बेटा क्या बनोगे?:
कौन सा प्रोफेश्न अपनाओगे,किस राह पर जाओगे
वह थोडा हिचकिचाया,फिर मुस्कराया और बोला
मैं नेता बनूंगा
मैं हुआ हैरान उसकी सोच पर परेअशान
नेता बनना होता है क्या इतन आसान?
फिर पूछा :बेटा नेता जैसी योग्यता कहां से लाओगे
लोगों में अपनी पहचान कैसे बनाओगे
वह बोला मुझे सब पता है
नेता के लिये मिनिमम कुयालिफिकेशन है---
1पहली जमात से ऊपर पास हो या फेल्
2 किसी न किसी केस में कम से कम एक बार हुई हो जेल
3 मैथ् मे करोडों तक गिनत जरुरी है इस के बिना नेतागिरी अधूरी है
4 माइनस डिविजन चाहे ना आये पर प्लस मल्टिफिकेशन बिना
नेता बनने की चाह अधूरी है
5 सइकालोजी थोडी सी जान ले
ताकि वोटर की रग पह्चान ले
6 डराईंग में कलर स्कीम का ग्याता हो
गिर्गिट की तरह रंग बदलना आता हो
लाल, काले सफेद से ना घबराये
नेता की पोशाक में हर रंग समाये
7 पिताजी बस अब भाई दादाओं के हुनर जानना है उस के लिये किसी अछे डान को
गुरू मानना है
डाक्टर इंजनिय्र बनकर मै भूखों मर जाऊंगा
नेता बन कर ही होगा गाडी बंगला और विदेश जा पाऊंगा
मैने सोचा, बहुमत में नेताओंको ऎसा पाया
और अपने बेटे की बुधी पर हर्शाया

25 December, 2008



ऎ वरदा ऎ सौभाग्य वती,
तेरे अपने घर मे
तेरा व्यपार्
तेरा तिरस्कार्
तेरी पीडा बड्ती जा रही है.
मैं अपनी असमर्थता पर,
शर्मसार हूं,
लाचार हूं,
मैं तेरी कर्जदार हूं.
मुझे याद है वो दिन ,
जब इसी घर के रन बांकुरे,
तुझे पाने को
तेरा गौर्व बढाने को ,
बसन्ती चोले पहन
प्रतिश्ठा की पगडी बांध
सरफरोशी की तमन्ना लिये,
तुझे व्याह कर दुल्हन बना कर लाये थे
तेरी उपलब्धि अपनी सम्पदा पर,
सब कितना हुलसाये थे,
हर्शाये थे.
अपना कर्तव्य निभा,
तुझे लोकहित समर्पित कर ,
अपने शृ्द्धा-सुमन अर्पित कर
चले गये,
कभी ना आने के लिये.
मुझे याद है किस तरह तूने ,
परतन्त्रता की कालिमा को धोकर,
अपनी स्वर्णिम किरणे दे कर,
इस देश पर अन्न्त उपकार किया
अथाह प्यार दिया.
पर तेरा ये द्त्तक हुया पथभृ्श्ट,
जीवन मुल्यों से निर्वासित ,
बुभुक्शा
जिगीशा
लिप्सा
से क्षुधातुर,
दानव बना जा रहा है,
तुझे बोटी बोटी कर खा रहा है.
तुझे पतिता बना रहा है .
एक दुखद आभास,
तेरे व्यपार का
तेरे तिरस्कार का
मेरे अहं को
जड बना रहा है,
दानव का उन्मांद,
दूध के उफान सा
जब बह जायेगा
तेरा गौरवमई लाव्णय
क्या रह जायेगा
तेरी बली पर
बाइतबार,
तेरे शाप क हक् दार,
देख रही हू लोमहर्शक ,
दावानल हो उदभिज ,
इस देश को निगल जायेगा
तेरा अभिशाप नहीं विफल जायेगा
मैं जडमत लाचार हूं
शर्म सार हूं
.

21 December, 2008


ब्च्चो मै हूं तुम्हारी दादी मेरा नाम है आजादी,
अपनी फरियाद सुनाने आई हूं,मैं तुम्हें जगाने आई हूं,
जब देशभक्त परवानों ने आजादी के दिवानों ने,
दुशमन से मुझे छुडाया था तो अपना लहू बहाया था,
मुझे अपने बेटों को समर्पित कर वो चले गये,
कुछ ही वर्शों में मेरे बेटे भी बदल गये,
देश को बोटी बोटी कर खा रहे हैं, मुझे पतिता बना रहे हैं,
अपना हाल सुनाने आई हूं, मै तुम्हें जगाने आई हूं
बडे बडे नेता अधिकारी बन गये हैं,
सिर से पाँव तक भृ्श्टाचार में सन गये हैं,
संविधान की धज्जियां उडा रहे हैं,
स्वयं हित भाई से भाई लडा रहे हैं,
वीरों की कुर्वानी भूल गये हैं,
आदर्श इतिहास सब धूल गये हैं,
इनके घोटालों का बसता भारी है,
कोने कोने मे शड्यंन्त्रकारी है,
देश की ताजा तस्वीर दिखाने आई हूँ, मैं तुम्हें ज्गाने आई हूँ.
बच्चो ये भारत देश तुम्हारा है,
इस पर अब हक तुम्हारा है,
तुम्हारे अविभावक कर देंगे इसे निलाम,
तुम फिर से बन जाओगे गुलाम,
अपनी संस्कृ्ति को तुम पेह्चान लो,
अपने कर्तव्य को भी जान लो,
इन भृ्श्टाचारियों से देश बचाओ,
प्यार से ना माने तो अर्जुन बन जाओ,
तुम्हे़ खबर्दार बनाने आई हूं, मैं तुम्हें जगाने आई हूँ

17 December, 2008


बच्चो, करो देश की रक्षा,फिर इतिहास दोहराओ, बच्चो अर्जुन बन जाओ.
जब कुरुक्षेत्र मै अर्जुन ने, अपनों पर शस्त्र उठाया था,
काँप उठा था उस का कलेजा, विश्वास भी डगमगाया था.
तब कृ्ष्ण  ने गीता सन्देश दिया, उसे सत्य समझाया था
आज उसी सन्देश को तुम फिर उठ कर अपनाओ,
बच्चो अर्जुन बन जाओ.
घर घर में दुर्योधन बैठै आजादी से खेल रहे है
भृ्ष्टाचार - आतन्कवाद भारतवासी झेल रहे हैं
देश का गौरव धूमिल कर बर्बादी की ओर धकेल रहे हैं,
अगर शान से जीना है तो भारत मां की आन बचाओ,
ब्च्चो अर्जुन बन जाओ
फिर इतिहास दोहराओ, बच्चो अर्जुन बन जाओ

07 December, 2008






मुझे कुछ पता नही कि मैं क्या हूं,
कभी जर्रा तो लगता कभी खुदा हूं
फुर्सत मिली ही नहीं अपनी तलाश की,
कभी इधर कभी उधर भटकती सदा हूं
कभी नर्मियां मिली तो कभी तल्खियां,
पतझर बसन्तों की अदा हूं
मै उन की मन्जिल ना सही रास्ता तो हूं,
इच्छाओंकी मजबूरी फर्जों का तकाजा हूं
जीना तो दुनियां में इक रस्म क तरह् है,
उन रस्मों का सदका अरमानों की चिताहूं
रस्में ना निभाउं तो खुदा भी न माफ करेगा,
दुनियां कोसेगी खुदा की खता हूं
जिन्दगी ने इस मुकाम पर पहुंचा दिया निर्मल,
भटके हुए राही की मन्जिल का पता हुं
जोर से हंस के दबा देती हुं सिस्की रूह की,
खुद ही दर्द हूं मैं खुद ही दवा हूं

26 November, 2008

लिख्नना बहुत कुछ चाह्ती हूं मगर लिख्नना नहीं आता नएएसीख रही हू ध्न्याबाद आपने मुझे एक नयी दुनियाँ से परीचित करवाया

कविता (जिन्दगी)
खिलते फूल सी मुसकान है जिन्दगी
समझो तो बरी आसान है जिन्दगी
खुशी से जिएं तो सदा बहार है जिन्दगी
दुख मे तलवार की धार है जिन्दगी
पतझर बसन्तो का सिलसिला है जिन्दगी
कभी इनायतें  तो कभी गिला है जिन्दगी
कभी हसीना की चाल सी मटकती है जिन्दगी
कभी सूखे पते सी भटकती है जिन्दगी
आगे बदने वालों के लिये पैगाम है जिन्दगी
भटकने वालों  की मैयखाने मे गुमनाम है जिन्दगी
निराशा मे जी का जन्जाल है जिन्दगी
आशा मे सन्गीत सी सुरताल है
कहीं  मखमली बिस्तर पर सोती है जिन्दगी
कहीं फुटपाथ पर पडी रोती है जिन्दगी
कभी होती थी दिलबरे यार जिन्दगी
आज चौराहे पे खडी है शरमसार जिन्दगी
सदिओं से मा के दूध की पह्चान है जिन्दगी
उसी औरत की अस्मत पर बेईमान है जिन्दगी
वरदानो मे दाऩ क्षमादान है जिन्दगी
बदले की आग मे शमशान है जिन्दगी
खुशी से जीओ चन्द दिन की मेहमान है जिन्दगी
इबादत करो इसकी भगवान है जिन्दगी

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