09 January, 2010

गज़ल 
इस गज़ल को भीादरणीय प्राण भाई साहिब ने संवारा है। उनकी अति धन्यवादी हूँ।
गज़ल
हमारे नसीबां अगर साथ होते
बुरे वक़्त के यूँ न आघात होते.

गया वक़्त भी अपना होता सुहाना
सुहाने हमारे भी दिन रात  होते

जलाते न हम आशियाँ अपने हाथों
सफ़र जिंदगानी के सौगात होते

कभी वो जरा देखते हमको मुड़कर
न बर्बाद होने के हालात  होते

गरूर-ए-जबां यूँ न बेकाबू होती
न झगड़े अगर अपने बेबात होते

चली आंधियां,फासले बढ़ गये हैं
मेरे मौला  ऐसे न  हालात होते

तमन्ना अभी तक वो जिंदा है मुझमें
मुझे  थामते  हाथ में हाथ  होते

07 January, 2010

कविता
 ऐसा पहली बार हुया है कि इतने दिनों बाद पोस्ट लिखी हो। बेटी और नातिन एक माह से  आयी हुये थीं,। उनके जाते ही घर मे उदासी सी छा गयी।  उनके जाने पर मन में कुछ भाव आये  कविता के रूप मे कह रही हूँ ।

ममता
कई दिनों से घर मे थी
रोनक सी एक आयी
हंसी ,ठहाके,खेल तमाशे,
घर मे मस्ती रहती छाई
जब चली गयी घर की खुश्बू
चली गयी सब खुशियाँ
पंम्ख लगा कर उड गयी
छोटी सी वो गुडिया
तितली सी वो उडती थी
फूलों सी मुस्काती
नानी-- नानी कहतीवो
मेरे कन्धों पर चढ जाती
चहक उसकी कानों मे गूँजे
देखूँ इधर उधर
पर घर का हर कोना सूना
झाँकूँ जिधर  जिधर
शरारतें उसकी याद आयें
आँखें भर भर रोऊँ
किसे सुनाऊँ अपनी लोरी
किसे दर्द मैं कहूँ
अपनी इस ममता को
कैसे मैं सहलाऊँ
इन खाली दिवारों से
कैसे मन बहलाऊँ
रुक नहीं सकते उडते पँछी
रुक नहीं सकती बहती धारा
कहीँ भी जाये कहीं  रहे वो
जीवन हो उसका उजियारा


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