गज़ल
जुलाई 2010 मे इस गज़ल पर कदम दर कदम------ http://kadamdarkadam.blogspot.com/ { तिलक भाई साहिब }के ब्लाग पर विमर्श हुआ था। जिस से ये गज़ल निकल कर सामने आयी थी। ये तिलक भाई साहिब को ही समर्पित हैीआजकल लिखने पढने का सिलसिला तो खत्म सा ही है । देखती हूँ कब तक/ जीने के लिये कुछ तो करना ही पडेगा फिर कलम के सिवा अच्छा दोस्त कौन हो सकता है?चलिये दुआ कीजिये कि कलम रुके नही।
दर्द आँखों से बहाने निकले
गम उसे अपने सुनाने निकले।
रंज़ में हम से हुआ है ये भी
आशियां अपना जलाने निकले।
गर्दिशें सब भूल भी जाऊँ पर
रोज रोने के बहाने निकले।
आग पहले खुद लगायी जिसने
जो जलाया फिर , बुझाने निकले।
आज दुनिया पर भरोसा कैसा?
उनसे जो शर्तें लगाने निकले।
प्यार क्या है नहीं जाना लेकिन
सारी दुनिया को बताने निकले।
खुद तो रिश्ता ना निभाया कोई
याद औरों को दिलाने निकले!
झूम कर निकले घटा के टुकडे
ज्यूँ धरा कोई सजाने निकले।
सब के अपने दर्द दुख कितने हैं?
आप दुख किसको सुनाने निकले।
जुलाई 2010 मे इस गज़ल पर कदम दर कदम------ http://kadamdarkadam.blogspot.com/ { तिलक भाई साहिब }के ब्लाग पर विमर्श हुआ था। जिस से ये गज़ल निकल कर सामने आयी थी। ये तिलक भाई साहिब को ही समर्पित हैीआजकल लिखने पढने का सिलसिला तो खत्म सा ही है । देखती हूँ कब तक/ जीने के लिये कुछ तो करना ही पडेगा फिर कलम के सिवा अच्छा दोस्त कौन हो सकता है?चलिये दुआ कीजिये कि कलम रुके नही।
दर्द आँखों से बहाने निकले
गम उसे अपने सुनाने निकले।
रंज़ में हम से हुआ है ये भी
आशियां अपना जलाने निकले।
गर्दिशें सब भूल भी जाऊँ पर
रोज रोने के बहाने निकले।
आग पहले खुद लगायी जिसने
जो जलाया फिर , बुझाने निकले।
आज दुनिया पर भरोसा कैसा?
उनसे जो शर्तें लगाने निकले।
प्यार क्या है नहीं जाना लेकिन
सारी दुनिया को बताने निकले।
खुद तो रिश्ता ना निभाया कोई
याद औरों को दिलाने निकले!
झूम कर निकले घटा के टुकडे
ज्यूँ धरा कोई सजाने निकले।
सब के अपने दर्द दुख कितने हैं?
आप दुख किसको सुनाने निकले।