( कविता )
आत्मा की आग
यूँ तो किसी ना किसी आग को
मेरी आत्मा
सदियों से सवीकार रही है
तडप उठती
यदा कदा
मगर अब चीतकार रही है
क्योंकि
ये आग
मिलन की नहीं
विछोह की नही
कुछ पाने की नहीं
कुछ खोने की नही
ये आग
कर्मठ की
अक्रमण्यता से
इन्सान की हैवानियत से
नेताओं के फरेब से
शहीदों की आत्मा से रिसते घाव से
साधूयों सन्तों के ऐश्वर्य
ए.सी आश्रम ए सी गाडियों से
राज्यवाद भाषावाद जातिवाद
और भ्रष्टाचार से
मेरे दिल मे सुलगी है
मेरी आत्मा पुकार रही है
हे गाँधी, हे नहरू
हे भगतसिह राजगुरू
हे आज़ाद हे पटेल
कहाँ हो?
फिर धरती पर आओ
अपने उतराधिकारी शासकोंसे त्रस्त
देशवासियों को बचाओ
इन्हें राष्ट्र प्रेम की
पाँचवीं पास तो कराओ
नहीं तो ये आग
पता नहीं क्या गुल खिलायेगी
जनता अब नहीं सह पायेगी
अब तो जनता
नेताओं पर
जूते भी बरसाने लगी है
देश भगतों की याद
सताने लगी है
आओ जलदी आओ
मेरी आत्मा की आग बुझाओ
यूँ तो किसी ना किसी आग को
मेरी आत्मा
सदियों से सवीकार रही है
तडप उठती
यदा कदा
मगर अब चीतकार रही है
क्योंकि
ये आग
मिलन की नहीं
विछोह की नही
कुछ पाने की नहीं
कुछ खोने की नही
ये आग
कर्मठ की
अक्रमण्यता से
इन्सान की हैवानियत से
नेताओं के फरेब से
शहीदों की आत्मा से रिसते घाव से
साधूयों सन्तों के ऐश्वर्य
ए.सी आश्रम ए सी गाडियों से
राज्यवाद भाषावाद जातिवाद
और भ्रष्टाचार से
मेरे दिल मे सुलगी है
मेरी आत्मा पुकार रही है
हे गाँधी, हे नहरू
हे भगतसिह राजगुरू
हे आज़ाद हे पटेल
कहाँ हो?
फिर धरती पर आओ
अपने उतराधिकारी शासकोंसे त्रस्त
देशवासियों को बचाओ
इन्हें राष्ट्र प्रेम की
पाँचवीं पास तो कराओ
नहीं तो ये आग
पता नहीं क्या गुल खिलायेगी
जनता अब नहीं सह पायेगी
अब तो जनता
नेताओं पर
जूते भी बरसाने लगी है
देश भगतों की याद
सताने लगी है
आओ जलदी आओ
मेरी आत्मा की आग बुझाओ