16 December, 2010

sukhaant dukhaant --- 3

सुखान्त दुखान्त --3
 पिछली किश्त मे आपने पढा कि बाजी शुची को अपने अतीत की कहानी सुना रही थी कि किस तरह उसने किसी अमीर परिवार मे शादी के सपने देखे थी जब उसकी शादी अमीर परिवार मे हुयी तो उसे अमीरी का सच पता चला। जितना उजला अमीरी का उजाला बाहर से लगता है उतना ही अन्दर अन्धेरा होता है। उसके शराबी कबाबी पति को जब डाक्टर ने टी बी की बीमारी बताई तो घर के लोग तो खुश थे कि बला टली लेकिन बाजी को भविश्य की चिन्ता सताने लगी।-- अब आगे

"सच कहूँ शुचि मुझे अपने भविश्य की चिन्ता थी। पति से वो दिल का रिश्ता तो जुड नही पाया था लेकिन फिर भी पति धर्म निभाने को मैने खुद को कभी पीछे नही रखा। मुझे तो जीने की भी चाह नही थी लेकिन जीवन दर्शन के कुछ सूत्र सहेज रखे थे। मेरे पिता जी कहा करते थे "-बेटा जब कभी सब ओर से निराश हो जाओ तो सब कुछ प्रभु पर छोड दो\ मन मे एक विश्वास रखो कि वो जो भी करेगा तुम्हारे भले के लिये करेगा।" वो  तो हमे राह दिखाता है मगर हम ही अपने स्वार्थ और कामनाओं की पूर्ती के लिये आँखें मूँद रखते हैं।। आज रह रह कर मन मे एक ही बात आ रही थी कि मेरी ज़िन्दगी मे कोई नया मोड आने वाला है। एक बात की मुझे मन ही मन खुशी भी थी कि मै इन्हें सेनिटोरियम ले जाने के बहाने कम से कम इस नर्क से दूर तो रहूँगी। अपने बारे मे नये सिरे से सोचने का एक अवसर मिलेगा।  जब अचानक कोई मुसीबत आती है तो आदमी सोचता है  कि भगवान मुझे ही क्यों दुख देता है लेकिन वही दुख हमारे लिये जीनी की राह तलाशता है,जीना सिखाता है।
" मुझे पति के साथ कसौली भेज दिया गया।साथ मे इनका निज़ी नौकर भी भेजा था।मेरे कसौली जाने पर ही मेरे माँ बाप को मेरी व्यथा का पता चला था। मेरी दीदी के पति शिमला के एक सकूल मे अध्यापक थे। वो सब लोग कसौली आ गये थे। वहीं एक घर किराये पर ले लिया था। नौकर जा कर कुछ जरूरी सामान ले आया था। इलाज शुरू हो गया। धीरे धीरे मेरे जीजा जी ने मेरे पति को समझाया कि , अपनी पत्नि के भविश्य के बारे मे सोचो। भगवान न करे अगर उस पर कोई विपत्ति आ गयी तो उसे कौन रोटी देगा? उसे अपने पाँव पर खडा होने की अनुमति दो। मेरे पति की आधी अधूरी स्वीकृति मे ही मुझे से मेरे जीजा जी ने नर्स दाई की ट्रेनिन्ग के फार्म भरवा लिये तब नर्स दाई की नौकरी बहुत आसानी से मिलती थी वो चाहते थी कि अगर इन लोगों ने नौकरी न भी करने दी तो हाथ मे ऐसा हुनर तो होगा कि मुश्किल मे घर बैठे भी चार पैसे कमा सकोगी। मेरे पिता तो वापिस चले गये लेकिन माँ मेरे पास रही।"
: मेरी धन दौलत की मृग त्रिष्णा तो टूट चुकी थी।सोने चाँदी के ताले तोड कर मैं आत्मनिर्भर बन अपने पँखों परआअपने आसमां पर उडना चाहती थी। दो माह बाद मुझे दाखिला मिल गया और पढाई भी शुरू हो गयी।रोज़ इनको नहलाने धुलाने और  दवाई आदि देने के बाद मै अपनी क्लास एटेन्ड करने चली जाती थी। इनके भाई हर महीने इन्हें आ कर पैसे आदि दे जाते। वैसे मेरी पढाई से वो अन्दर ही अन्दर इस लिये खुश थे कि चलो एक जिम्मेदारी और टलेगी। इस लिये पैसे की उन्होंने कभी कमी नही होने दी। वैसे भी 6 महीनी इनका यहाँ ईलाज चलना था। नौकर सारा दिन इन्बके पास ही रहता।"
एक दिन डाक्टर ने कहा कि मुझे एक बात की समझ नही आयी कि पाँच महीने के ईलाज मे उतना फर्क नही पडा जितना पडना चाहिये था।इनके साथ के बाकी मरी इनसे स्वस्थ हो गये थे। उन्होंन्बे अभी छ: महीने और रखने के लिये कहा।"
मै भी चि9न्तित थी कि फर्क क्यों नही पड रहा। ये भेद खुला जा कर 8-9 महीने बाद । वो भी एक दिन एक औरत के कारण।
" एक दिन मै जैसे ही क्लास से बाहर आयी तो एक औरत को अपने इन्तजार मे खडे पाया।
"कृष्णा बहन ये बहिन जी आपसे मिलने आयी हैं।: बूढी चपडासिन ने उस औरत की ओर इशारा किया।
"नमस्ते।" वो औरत मेरे पास आते हुइये बोली।
:" नमस्ते। मैने आपको पहचाना नही?"
" आप मुझे नही जानती लेकिन मै आपको पहचानती हूँ। मैं आपसे एक जरूरी बात करने आयी हूँ। क्या हम कहीं अकेले मे बैठ सकते हैं?"
क्यों नही , चलो।" मै उसे बाहर ग्राऊँड मे ले गयी। हम दोनो एक बृक्ष के नीचे छाँव मे एक बैंच पर बैठ गयी। मैं हैरान थी कि ये औरत कौन है और मुझ से क्या जरूरी बात करना चाहती हैं? वो लगभग मेरी उम्र की सुन्दर औरत थी। उसका सादा लिबास और आवाज मे शह्द जैसी मिठास थी जिसने मुझे प्रभावित किया।
"आप हैरान मत होईये। मै आपको सब कुछ बता दूँगी। मुझे कुछ दिन से ही महसूस हो रहा था कि मुझे आपसे मिलना चाहिये और आपको एक सच बताना चाहिये। ैसी लिये आज चली आयी।"   क्रमश:

12 December, 2010

सुखान्त दुखान्त ---2

 सुखान्त दुखान्त --2
कल आपने पढा शुची ने अपने मन की बात अपनी बाजी से करने के लिये जैसे ही भूमिका बाँधनी चाही तो बाजी की शादी की बात जानने के लिये उसकी उत्सुकता बढ गयी। और बाजी उसे अपने अतीत मे ले चली थी- उस अतीत मे जहाँ उसके अमीरी के लिये देखे गये सब सपने बिखर गये थे।  ----- अब आगे पढें-0-

" हमारे पडोस मे एक शादी थी। उस शादी मे मेरे ससुराल वालों ने मुझे देखा तो मै उनको भा गयी। उन्होंने अपने इसी पडोसी के दुआरा मेरे रिश्ते की बात चलाई। मेरा हाथ माँगते हुये उन्होंने कहा था कि उनके पास धन दौलत की कमी नही है, बस उन्हें सुन्दर और सुशील कन्या चाहिये।माँ और मेरे जीजा जी ने इस शादी का विरोध भी किया ये कह कर कि अभी इसकी उम्र 16 साल हुयी है-- इसे आगे पढाना चाहिये। मगर पिता जी का मानना था कि घर बैठे इतना अच्छा रिश्ता आ रहा है तो हाथ से क्यों जाने दें।फिर पढ कर ये कौन सी लाट साहिब बन जायेगी? सच कहूँ तो इस रिश्ते की बात सुन कर मैं भी खुश हो गयी थी। मेरे सपने भी ऐसे ही थे जैसे आज तुम्हारे हैं।एक मध्यम परिवार की लडकी किसी रईस खानदान की बहु बन जाये तो और क्या चाहिये उसे। पति सुन्दर और खानदानी रईस थे-- मै तो जैसे आसमान पर उडने को आतुर थी। मुझे लगा मुझ जैसा खुशनसीब इन्सान इस दुनिया मे नही।
" शुची एक बात बताऊँ? इस रईसी की दहलीज के बाहर  जितनी रोशनी होती है, अन्दर उतना ही अन्धेरा होता है।मेरे पिता ने भी दहलीज ही देखी थी। अन्दर जा कर पता चला कि कि मैं एक घनघोर अन्धेरे मे आ गयी हूँ।जहाँ न तो संवेदनायें थी न प्यार न रिश्तों की गरिमा थी। शादी के दो चार दिन की गहिमा गहिमी के बाद जब सभी महमान चले गये तो मै दिन भर अकेली दीवारों का मुँह ताका करती। मेरे पति सुबह घर से जाते तो रात को देर गये घर आते। बाकी लोग अपने अपने कमरों मे अपनी अपनी ज़िन्दगी मे मस्त रहते। रातों मे अपने सपनो का आसमां ढूँढती और दिन मे खुद को यथार्थ की कठोर, पथरीली जमींन पर खडे पाती। मेरे सपने किसी रैन के कोठे की रौनक थे और मेरा यथार्थ   लाचार आँसू बहाने के लिये। किस से कहती और क्या कहती? मेरे सपनों का राज कुमार तो शराब और शबाब मे मस्त था। रात को देर से शराब के नशे मे आना कई बार तो किसी कोठे पर ही रात कटती थी।ऊपर से जूए की लत। मुझे शादी के कुछ दिन बाद ही पता चला कि उनकी पहले भी शादी हो चुकी थी पर एक साल बाद ही पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी।मेरे पति की माँ सौतेली थी। इनकी पहली शादी के बाद इनके पिता भी चल बसे थे। उनके बाद सौतेली माँ का व्यवहार भी इनके साथ अच्छा नही था । उसके अपने भी दो बेटे थे।

" मैं धीरे धीरे महसूस कर रही थी कि वो इनकी ऎयाशी को और भी हवा देती थी। सारा कारोबार इनके अपने बेटों ने सम्भाल रखा था ये तो बस नाममात्र ही वहां जाते थे। मेरे कई बार कहने पर भी वो इन्हें कभी समझाती नही थी बल्कि उलटा कहती कि" किसी से माँग कर ऎयाशी नही करता, ये रईसी शौक ऐसे ही होते हैं। उसे क्या कमी है?"
मै बेबस न तो अपने माँ बाप को दुखी करना चाहती थी और न इस घर मे मेरी कोई सुनने वाला था। घर मे बेशक नौकर चाकर थे मगर मन लगाने के लिये किचन का काफी काम मै उनके साथ कर लेती। माँ तो सीधे मुंह बात नही करती थी देवरानियाँ भी अपनी अमीरी के दर्प मे मुझे सुना कर ताने से कसती रहती। हर बात के लिये मुझे ये एहसास करवाया जाता कि जैसे मैने जिन्दगी मे अच्छा खाया पहना ही नही। गरीब घर से जो आयी थी। मगर अब सहन करने के सिवा कोई चारा नही था।

"मुझे नही लगता कि शादी के कुछ दिन छोड कर मैने उन्हें दिन के उजाले मे कभी देखा हो।देर रात गये घर आना कभी दिल किया तो पति का हक जता कर शरीर से खेल लेना--- बस इतना ही सम्बन्ध था हमारा। शादी के बाद  5--6 साल बाद ही शराब और शबाब ने इन्हें खोखला कर दिया। बुखार खाँसी रहने लगा। डाक्टर ने जाँच कर के बताया कि इन्हें टी.बी. है, इन्हें घर मे रखना ठीक नही। किसी सेनिटोरियम मे भेज दें। माँ और भाईयों के चेहरों पर एक सकून सा था कि चलो बला टली। लेकिन मेरा तो कलेजा मुँह को आ गया? अगर इन्हें भी कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा? जो लोग इनके जीते जी ही मेरी इतनी अवहेलना कर रहे हैं वो बाद मे मेरे साथ क्या करेंगे? क्रमश:
 

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