नारी की फरियाद
मैं पाना चाहती हूँ अपना इक घर
पाना चाहती हूं प्रेम का निर्झर
जहाँ समझी जाऊँ मैं इन्सान
जहाँ मेरी भी हो कोई पहचान
मगर मुझे मिलता है सिर्फ मकान
मिलती है् रिश्तों की दुकान
बाबुल के घर से पती कि चौखट तक
शंका मे पलती मेरी जान
कभी बाबुल् पर भार कहाऊँ
कभी पती की फटकार मैं खाऊँ
कोई जन्म से पहले मारे
को दहेज के लिये मारे
कभी तन्दूर में फेंकी जाऊँ
बलात्कार क दंश मैं खाऊँ
मेरी सहनशीलता का
अब और ना लो इम्तिहान
नही चाहिये दया किसी की
चाहिये अपना स्वाभिमान
बह ना जाऊँ अश्रूधारा मे
दे दो मुझ को भी मुस्कान
अब दे दो मेरा घर मुझ्को
नही चाहिये सिर्फ मकान्
जहाँ मेरी भी हो कोई पहचान
मगर मुझे मिलता है सिर्फ मकान
मिलती है् रिश्तों की दुकान
बाबुल के घर से पती कि चौखट तक
शंका मे पलती मेरी जान
कभी बाबुल् पर भार कहाऊँ
कभी पती की फटकार मैं खाऊँ
कोई जन्म से पहले मारे
को दहेज के लिये मारे
कभी तन्दूर में फेंकी जाऊँ
बलात्कार क दंश मैं खाऊँ
मेरी सहनशीलता का
अब और ना लो इम्तिहान
नही चाहिये दया किसी की
चाहिये अपना स्वाभिमान
बह ना जाऊँ अश्रूधारा मे
दे दो मुझ को भी मुस्कान
अब दे दो मेरा घर मुझ्को
नही चाहिये सिर्फ मकान्