गज़ल्
ज़िन्दगी ये कैसा दगा दिया तुम ने
आदमी से आदमी ज़ुदा किया तुमने
चौपालो की रोनक छर्खों की गुंजन
नये दौर मे सब कुछ भुला दिया तुमने
सावन के झूले वो पनघट की सखियां
जीने की अदा को मिटा दिया तुमने
सजना की चिठी वो प्यारा कबूतर
भूला सा अफसाना बना दिया तुमने
तुम्हें थामने को जब भी उठा आदमी
पिलाया जाम और सुला दिया तुमने
कौन किस से किस की शिकायत करे
हर रिश्ते मे जहर मिला दिया तुमने
जीने का सलीका खुद को नहीं आया
फिर भी दूसरों से गिला किया तुमने