निष्ठा
माँग
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माँ अक्सर कहती
अपने बालों मे
इतनी लम्बी माँग मत निकाला करो
ससुराल का सफर लम्बा होता है
बाद मे जाना कि
इसका अर्थ् तुम तक पहुँचने मे
एक कठिन और लम्बा रास्ता
तय करना है
बस मैने इस राह को सजा लिया
लाल् सिन्दूर से
ताकि इस पर चलने मे
मेरी ऊर्जा बनी रहे
और तुम भी इस रंगोली पर
चाव से अपने पाँव बढा सको
और तब से मैने माँग मे
सिन्दूर लगाना नहीं छोडा
बिन्दी
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शादी के बाद
जान गयी थी कि मेरे माथे
पर तुम्हारा नाम लिखा है
तुम ही मेरी तकदीर लिखोगे
और माथे पर
तुम्हारे हर आदेश के लिये
पहले ही मोहर लगा दी
बिन्दी के रूप मे
स्वीकार कर लिया
अपने भाग्य विधाता का हर आदेश
मंगल सूत्र
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जब तुम ने
मेरे गले मे डाला था
मंगल सूत्र जान गयी थी
कि मुझे तुम्हारे खूँटे से
बाँध दिया गया है
अब कभी ये बन्धन नहीं तोड सकती
तुम्हे हर पल सीने पर सजाये
अपनेजीवन पथ पर बढना होगा
और तुम्हारी उलीकी गयी परिधी मे
आज तक घूम रही हूँ
तुम्हारे नाम का मंगल सूत्र पहन कर
मेहंदी
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तुम्हारे साथ चलते
जब कभी हाथ की लकीरें
कुछ धुँधली पडने लगतीं
मैं रंग लेती मेहंदी से अपने हाथ
ताकि लोगों से छुपा सकूँ
इन फीकी पडती लकीरों को
और इस मेहंदी से
फूल और तरह तरह के चित्र
बना लेती
उन मे खो कर भूल जाती
तुम्हारी अवहेलना तुम्हारी हर बात
जो मुझे अच्छी नहीं लगती
मेहंदी नहीं मरने देती
मेरा उत्साह मेरा प्यार
चूडियाँ
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जानते हो ये चूडियाँ
किस लिये पहनती हूँ
ताकि इनकी खनखनाहट मे
याद रखूँ सात फेरों के वक्त
किये गये सात वचन
अपने कर्तव्य निभाते हुये
जब ये खनकती हैं
तो मैं भाग भाग कर
तुम्हारे आदेशों का पालन करती हूँ
और घर की रोनक
और खुशियों को कभी
कम नहीं होने देती।
पायल
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ये पायल ही है एक
जिसे मैने अपने लिये नहीं
तुम्हारे लिये ही पहना है
ताकि तुम कभी भूल जाओ
अपनी चौखट का दरवाज़ा
तो इसकी झँकार तुम्हें याद दिला दे
कि कोई है जो हर वक्त जी रही है
सिर्फ तुम्हारे लिये
और खीँच लाये तुम्हें मेरे पास
सजा लेती हूँ
अपने पाँव भी मेहंदी से
रंगोली की तरह
तुम्हारे घर आने की राह मे स्वागत हेतु
करवा चौथ
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ये भी जान लो कि मैं ये व्रत
किस लिये रखती हूँ
कि तुम मेरे इस प्रण का
यकीन करो कि
मैं तुम्हारे लिये कुछ भी कर सकती हूँ
सात जन्म का तो नहीं कह सकती
मगर इस जन्म मे
तुम्हारा साथ निभाने का प्रण लेती हूँ
और छू लेती हूँ तुम्हारे पाँव
इस आशा मे कि
तुम मुझे तन से नहीं मन से
स्वीकार करो और कुछ मोहलत दो
कि मैं अपने लिये भी
कुछ अपनी मर्जी के
आदेश पारित कर सकूँ
और तुम?
बस एक घूँट पानी पिला कर
अपना कर्तव्य पूरा कर लेते हो
आज व्रत तोडने से पहले
एक सवाल करना चाहती हूँ
क्या तुम भी मेरे लिये
इतने निष्ठावान हो
जिन्दगी मेरी है
और फैसले तुम लेते हो
क्या मुझे अपनी जिन्दगी के फैसले
खुद लेने का हक दे सकते हो?
क्या मैं अपनी तकदीर
अपने हाथ से लिख सकती हूँ?
आज देखना चाहती हूँ
तुम्हारी निष्ठा मेरे प्रति
मगर सदियों से ये सवाल
ज्यों का त्यों पडा है
तुम्हारे आदेश की प्रतीक्षा मे