सुखान्त दुखान्त -- आखिरी कडी
पिछली किश्त मे आपने पढा कि बाजी शुची को अपने अतीत की कहानी सुना रही थी कि किस तरह उसने किसी अमीर परिवार मे शादी के सपने देखे थी जब उसकी शादी अमीर परिवार मे हुयी तो उसे अमीरी का सच पता चला। जितना उजला अमीरी का उजाला बाहर से लगता है उतना ही अन्दर अन्धेरा होता है। उसके शराबी कबाबी पति को जब डाक्टर ने टी बी की बीमारी बताई तो घर के लोग तो खुश थे कि बला टली लेकिन बाजी को भविश्य की चिन्ता सताने लगी। बाजीपने पति के साथ सेनिटोरियम मे चली गयी वहीँ अपने जीजा की मदद से नर्स दाई की ट्रेनिन्ग लेने लगी । त्क़भी एक दिन उन्हें एक औरत मिली जिसने जो उनके ससुराल वालों का सच बताने आयी थी। उस औरत ने बाजी बताया कि कैसे उसके पति की सौतेली माँ और सास उसके पति के खिलाफ षड्यन्त्र रच रहे हैं। जिसे सुन कर उसने पति की देख भाल का पूरा जिमा खुद पर ले लिया और उसे घर ले आयी। अब बाजी की नौकरी भी लग गयी थी। अब आगे पढें------" इनकी हालत मे बहुत सुधार होने लगा था फिर भी इनके अन्दर एक गम और हीन भावना सी रहती।कितना मुश्किल था एक करोड पति नवाब के लिये अपने एक नौकर की हैसीयत जितनी पत्नी पर निर्भर करना। आठ वर्ष हो गये थे शादी को हमारा बच्चा भी नही हुया था। यूँ भी कोठों की रोनक बढाने वालों के अपने आँगन सूने ही रहते है।" "इस बीच अस्पताले मे एक औरत बच्चे को जन्म दे कर भाग गयी। मैने वो बच्चा गोद ले लिया। बेटा दो साल का हुया था कि एक दिन मेरे पति अपने भाईयों से मिलने और अपनी जमीन जायदाद का प्ता लेने अपने घर गये मगर वहाँ से उनकी मौत की खबर ही आयी। उनकी मौत भी मेरे लिये राज़ ही रही जबकि उनकी हालत पहले से बहुत अच्छी थी। घर वालों ने बताया कि उन्हें सोते हुये अपने कमरे मे मृ्त पाया गया और मेरे पहुँचने से पहले लाश का दाह संस्कार कर दिया ग्या था। मेरा 10 साल का संघर्ष एक पल मे राख हो गया। सपनो का ऐसा ही अन्त होता है जब हम अपने पँखों के आकार से बडे सपने देखने लगते हैं।। मेरे बेटे के सिर से बाप का साया उठ गया था बेशक ये साया अपनी छाँव उसे नही दे सका था। मुझे जमीन जायदाद मे से कुछ नही मिला बोले की उसने सब कुछ बेच कर खा लिया है। अब तो मुझे दुख झेलने की आदत सी पड चुकी थी।"बिना पँख आकाश पर उदने का सपना लिये मैं जमीन पर भी कोई सुख नही भोग पाई।कितना अच्छा होता मै बचपन से ही अपने पाँव पर खडे होने का सपना पालती।ये टीस आज तक मुझे सालती है। शुचि, अपनी कहानी आज इस लिये तुम्हें बताई कि मै नही चाहती कि मेरी तरह कल को तुम भी धन दौलत के लालच मे अपने पाँव के नीचे की जमीन खो दो।।"" बाजी जरूरी तो नही कि सब लोग एक जैसे होते हैं?" मैने आशंका जताई।" हाँ , लेकिन धन दौलत की मोटी परत मे उनके जीवन मे झाँकना , उसे भेदना किसी गरीब आदमी के लिये सम्भव नही होता। रिश्ते हमेशा बराबरी मे ही सुखमय होते हैं, प्रेम प्यार मान सम्मान पाते हैं।"बाजी कुछ देर चुप रही -- हाँ तुम कुछ बताने आयी थी मगर मैं आपनी कहानी ले कर ही बैठ गयी।" बाजी ने मेरी तरफ देख कर पूछा। बाजी मेरी एक सहेली है क्लासमेट मै अक्सर उसके घर जाती हूँ। उसकी माँ मुझे बहुत प्यार करती है। उसका भाई बी.य़े के बाद पढाई छोड कर पिता के साथ अपना बिज़नेस सम्भाल रहा है। वो मुझ मे बहुत दिलचस्पी लेता है। जब भी उसके घर जाऊँ वो आस पास मँडराता रहता है।मगर मैने कभी उस से खुल कर बात नही की। 2-3 दिन पहले उसकी मम्मी ने हंसते हुये मुझसे कहा था कि क्या मेरी बहु बनोगी? मैं हंस दी थी तब उन्होंने कहा था कि सोच कर बताना। मगर आपको पता है कि मैं आपसे पूछे बिना साँस भी नही लेती। मगर मुझे भी वो लडका अच्छा लगता है। यही मन की बात आपसे करने आयी थी।" कह कर मै नज़र नीची कर के बाजी की प्रतिक्रिया सुनने को उतावली थी।" शुचि सब से पहले तो उस औरत की बेवाकूफी कहूँगी कि उसने बिना सोचे समझे तुम्हारे हाथ ,मे एक ख्वाव पकडा दिया। अगर उसे तुम पसंद भी हो तो उसे तुम से नही पहले तुम्हारे घर वालों से बात करनी चाहिये थी। मगर ये तो बताओ कि वो है कौन?।""वो वर्मा जी का बेटा जिनके तीन पैट्रोल पँप हैं।""ओह वो?""हाँ , क्या आप जानती हैं उन्हें?"बहुत अच्छी तरह। एक बार यही लडका मेरे पास किसी लडकी को ले कर आया था उसकी एबार्शन करवाने लेकिन मैने फटकार कर भगा दिया था।" "क्या?" मै हैरान थी "उपर से भोला भाला और अन्दर से शैत? मुझे फंसाने की कोशिश? पर क्या उसके माँ-बाप को पता है उसके बारे मे?"" बेटा माँ बाप को सब पता है सारा शहर जानता है उस बिगडैल लडके को। वो उस लडके की माँ है तेरी माँ नही। अगर तुझे बेटी समझती तो कभी तुम से ऐसा नही कहती। अपने स्वार्थ मे अन्धी हो कर तेरा जीवन दाँव पर लगाने की बात नही सोचती। उसने ही तो बाप से बेटे की बातें छिपा कर उसे इतना बिगडैल बनाया कि अब बाप की भी नही मानता।"" देख शुचि इस उम्र मे प्यार महज एक स्वाभाविक आकर्षण है।इसमे उलझ कर लडके लडकियाँ अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं, अपने पथ से दूर हो जाते हैं। तुम एक मेधावी लडकी हो और मैने तुम्हारी जिम्मेदारी के लिये तुम्हारी माँ को वचन दिया है। जैसे मैने अपने बेटे यानी तुम्हारे भाई को पढाया है वैसे ही मै चाहती होऔँ कि तुम भी आगे बढो। अगर तुम्हारे दिल मे मेरा जरा भी सम्मान है तो मुझे एक वचन दो।"'क्यों नही बाजी! आपने तो माँ से बढ कर मुझे प्यार दिया है कहें क्या वचन दूँ?"आज के बाद तुम उनके घर नही जाओगी ।" बाजी मै वचन देती होऔँ आपकी कहानी सुन कर मुझे ज़िन्दगी के मायने समझ मे आगये हैं। मै खूब पढूँगी और अपनी योग्यता के बल पर अपनी मंजिल पाऊँगी।" बाजी की कहानी ने मुझे अन्दर तक हिला दिया था। मैं बाजी वाला इतिहास दोहराना नही चाहती थी। पहले भी बाजी के पथप्रदर्शन मे ही पढ रही थी। मैने खूब मेहनत की और बाजी की प्रेरण से मै डाक्टरी के अन्तिम वर्ष मे पहुँच गयी थी। उस दिन मै और बाजी बहुत खुश थी, आज नतीजा आने वाला था ।र पिता जी और भईया अखबार जल्दी लेने चले गये थे। बाहर की आवाजें सुन कर हम दोनो की तन्द्रा भंग हुयी।---" बाजी< बाहर पिता जी और भाईया आये है।" हम दोनो बाहर गयी। मैने पूरी यूनिवर्सिटी मे टाप किया था। देखते देखते आस पडोस की भीड बधाई देने के लिये जमा हो गयी थी। झो भी मुझे बधाई देता मैं बाजी की ओर इशारा कर देती। वही तो हकदार थी इसकी। उनके जीवन के सुखान्त दुखान्त ही मेरे लिये प्रेरणा और सफलता के क्षितिज बने थे। बाजी के चेहरे का सकूँ और चमक बता रही थी कि अब उनके पँख कितने बडे हो गये थे और आकाश छूने को आतुर। समाप्त।