08 July, 2016


गज़ल

रेत हाथों से फिसलने मे भी लगता वक्त कितना
ज़िन्दगी को यूं सिमटने मे भी लगता वक्त कितना

चाहतों की बेडिओं मे उम्र भर  जकडे  रहोगे   ?
बेवफा  रिश्ते  बदलने मे भी लगता वक्त कितना

चाँदनी रातों के साये  मे है जुग्नू छटपटाता
सुख के आने गम छिटकने मे भी लगता वक्त कितना

चाह जन्नत की तुझे है गर  खुदा को याद तो कर
बोल रब का नाम जपने मे भी लगता वक्त कितना

जेब मे रखती हूँ ख्वाहिश लोगों को भी क्यों दिखाऊँ?
उनकी  नजरों को दहकने मे भी लगता वक्त कितना

हुस्न पे क्या नाज , चुटकी मे जवानी भाग जाये
सोच अब ये  उम्र ढलने मे भी लगता वक्त कितना

आशिआने की दिवारे पड रही छोटी अमीरों के लिये
मुफ्लिसों के घर  निपटने मे भी लगता वक्त कितना

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2016) को  "आया है चौमास" (चर्चा अंक-2398)     पर भी होगी। 
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कविता रावत said...

बहुत दिन बाद आपकी गजल पढ़कर बहुत अच्छा लगा .. लिखती रहें माँ जी ब्लॉग पर ..

v k said...

i really like it this is amazing post keep it upgoogle-analytic-hindi

ccsu ba 1st year result 2021 subject wise said...

whoah, this weblog is excellent I like reading your articles.

Priya Gupta said...

मैं आपकी वेबसाइट को बहुत ही ज्यादा पसंद करती हूं, ऐसी वेबसाइट किसी की नहीं मिली अभी तक। और आपके ऑर्टिकल पढ़ने के बाद मैंने भीं ब्लॉग लिखाना शुरू किया हैं, क्या आप मेरी वेबसाइट देख कर बता सकते हैं। क्या मैं सही काम कर रही हूं प्लीज़ मेरी मदद करें।

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