24 September, 2009

गज़ल
ये गज़ल भी मेरे बडे भाई साहिब श्रद्धेय प्राण शर्मा जी के आशीर्वाद से लिखी और उन दुआरा ही संवारी गयी है।

इसकी पूजा करती रहूँ मै
भारत की ही बेटी हूँ मैं

क्या मंदिर और क्या गुरुदुआरा
सब का ही सन्मान करूँ मैं

इश्क मुहब्बत मुल्क है मेरा
इसको ही महबूब कहूँ मैं

खूँ का हर कतरा है इसका
अर्पण इसको क्यों न करूँ मै

दुर्गा जैसा बल हो मुझ मे
दुश्मन से न कभी भी डरूँ मैं


देश के खेतों खलिहानों मे
मस्त पवन सी मुक्त बहूँ मैं

देश का गौरव जिस कारण हो
ऐसे अद्भुत काम करूँ मैं

देश की सरहद पर डट जाऊँ
सच्ची पहरेदार बनूँ मै

31 comments:

आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq' said...

aaj maine pahlee tippni ki hain ..........................pahle kahani kee doosri kisht padhuga fir gazal par aata hun ...............

अनिल कान्त said...

bahut behtreen gazal likhi hai aapne...waah

दिनेशराय द्विवेदी said...

ग़ज़ल बहुत सुंदर है, तरन्नुम में पढ़ने पर आनंद आया। ग़ज़ल में प्रार्थना जैसी चीज देख कर नयापन भी लगा।

Mithilesh dubey said...

माँ जी चरण स्पर्श

क्या बात है, क्या लिखा है आपने लाजवाब शब्द नहीं है कुछ कहने को। क्या जज्बा है आपका देश के प्रति क्या अब ऐसे लोग मिलते है। बहुत ही उम्दा गजल........

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब जी.

रामराम.

Mishra Pankaj said...

निर्मला जी नमस्कार १

लीक से हटाकर लगा आपका ये गजल , बिलकुल प्रार्थना

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

bahut hi umda gazal,badhai

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर हर पंक्ति का अपना एक रंग, बहुत-बहुत आभार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

इसकी पूजा करती रहूँ मै
भारत की ही बेटी हूँ मैं

क्या मंदिर और क्या गुरुदुआरा
सब का ही सन्मान करूँ मैं

बेहतरीन प्रस्तुति है,
बधाई।

दर्पण साह said...

इश्क मुहब्बत मुल्क है मेरा
इसको ही महबूब कहूँ मैं

wah ye mishra pasand aaiya ...

..par maa ji ye ghazal nahi hai !!

isliye 'Pran Sir' se fir se janchwa lein !!

अजित गुप्ता का कोना said...

निर्मला जी
बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति। अक्‍सर गजल में देश प्रेम की जगह नहीं होती लेकिन आपने तो प्रेम का विस्‍तार कर दिया। बधाई।

विनोद कुमार पांडेय said...

क्या मंदिर और क्या गुरुदुआरा
सब का ही सन्मान करूँ मैं,

एक ग़ज़ल के माध्यम से आपने अनेक संदेश प्रस्तुत की है..हमें ग़ज़ल बहुत अच्छा लगा..
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल ..बधाई..

vandana gupta said...

waah waah........gazal ko naye roop mein prastut kiya hai aapne.........badhayi.

Mumukshh Ki Rachanain said...

देश का गौरव जिस कारण हो
ऐसे अद्भुत काम करुँ मैं

जिस ग़ज़ल को प्राण शर्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त हो जाये, वो ग़ज़ल तो बेहतरीन होगी.
उपरोक्त शेर बहुत पसंद आया. इसे तो हर युवा की जुबान पे होना चाहिए, उसके कर्मों में दृष्टिगत होना भी चाहिए, तभी देश का गौरव गर्त से निकलकर सतह पर और फिर आकाश की और आ सकता है.
इसी विषय पर मेरी २१ सितम्बर की पोस्ट पढें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं.

हार्दिक आभार.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

Anonymous said...

सुंदर गजल कही है आपने।
बधाई।
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

नीरज गोस्वामी said...

देश के खेतों खलिहानों मे
मस्त पवन सी मुक्त बहूँ मैं

वाह निर्मला जी वाह...बहुत खूब ग़ज़ल कही है आपने...
नीरज

M VERMA said...

खूँ का हर कतरा है इसका
अर्पण इसको क्यों न करूँ मै
और भी --
देश के खेतों खलिहानों मे
मस्त पवन सी मुक्त बहूँ मैं
खूबसूरत ज़ज्बात और सुन्दर रचना.
बहुत खूब

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्‍दर, देश भक्ति मै डुबी हुयी,
धन्यवाद

ओम आर्य said...

AAPAKE IS JAJBE KO SALAM ..........BEHAD KHUBSOORAT LIKHA HAI GAZAL .........BAHUT BAHUT BADHAAYI

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

देश का गौरव जिस कारण हो
ऐसे अद्भुत काम करुँ मैं ||

निर्मला जी, बहुत ही उम्दा गजल प्रस्तुत की है आपने...जिसके जरिए बहुत ही अच्छा संदेश दे दिया।।।

रंजू भाटिया said...

bahut hi sundar likhi hai aapne yah gajal ..khaaskar yah panktiyaan


इश्क मुहब्बत मुल्क है मेरा
इसको ही महबूब कहूँ मैं

mehek said...

दुर्गा जैसा बल हो मुझ मे
दुश्मन से न कभी भी डरूँ मैं


देश के खेतों खलिहानों मे
मस्त पवन सी मुक्त बहूँ मैं
bahut hi shandar gazal,ye sher bahut hi pasand aaye.

Yogesh Verma Swapn said...

wah nirmala ji , gazalon ka dair bahut badhia chal raha hai aapka, badhaai.

Yogesh Verma Swapn said...

gazalon ka daur likhna tha dair likha gaya. bhool sudhaar.

Kulwant Happy said...

जैसे बसंत के आते पेड़ों पर रौनक सी लौट आती है। वैसे ही अब आपके लेखन में कुछ खास मिल गया और शब्दों पर निखार नजर आ रहा है।

स्वप्न मञ्जूषा said...

bahut sundar..
padhte samay tarannum ban hi gaya...

Vineeta Yashsavi said...

Behtreen gazal hai...mujhe to last se pahli wali gazal zyada achhi lagi...

संजीव गौतम said...

इश्क मुहब्बत मुल्क है मेरा
इसको ही महबूब कहूँ मैं
bahut pyaaraa sher huaa hai is khoobasoorat ghazal main.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

bahut hi achchi gazal......... bilkul leek se hatkar......

दिगम्बर नासवा said...

क्या मंदिर और क्या गुरुदुआरा
सब का ही सन्मान करूँ मैं

इश्क मुहब्बत मुल्क है मेरा
इसको ही महबूब कहूँ मैं

बहुत लाजवाब लिखा है .......... ग़ज़ल का हर sher khita huva fool है आपकी bagiya का .........

रावेंद्रकुमार रवि said...

यह कविता मुझे बहुत अच्छी लगी!

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