गज़ल
ये गज़ल भी मेरे बडे भाई साहिब श्रद्धेय प्राण शर्मा जी के आशीर्वाद से लिखी और उन दुआरा ही संवारी गयी है।
इसकी पूजा करती रहूँ मै
भारत की ही बेटी हूँ मैं
क्या मंदिर और क्या गुरुदुआरा
सब का ही सन्मान करूँ मैं
इश्क मुहब्बत मुल्क है मेरा
इसको ही महबूब कहूँ मैं
खूँ का हर कतरा है इसका
अर्पण इसको क्यों न करूँ मै
दुर्गा जैसा बल हो मुझ मे
दुश्मन से न कभी भी डरूँ मैं
देश के खेतों खलिहानों मे
मस्त पवन सी मुक्त बहूँ मैं
देश का गौरव जिस कारण हो
ऐसे अद्भुत काम करूँ मैं
देश की सरहद पर डट जाऊँ
सच्ची पहरेदार बनूँ मै
इसकी पूजा करती रहूँ मै
भारत की ही बेटी हूँ मैं
क्या मंदिर और क्या गुरुदुआरा
सब का ही सन्मान करूँ मैं
इश्क मुहब्बत मुल्क है मेरा
इसको ही महबूब कहूँ मैं
खूँ का हर कतरा है इसका
अर्पण इसको क्यों न करूँ मै
दुर्गा जैसा बल हो मुझ मे
दुश्मन से न कभी भी डरूँ मैं
देश के खेतों खलिहानों मे
मस्त पवन सी मुक्त बहूँ मैं
देश का गौरव जिस कारण हो
ऐसे अद्भुत काम करूँ मैं
देश की सरहद पर डट जाऊँ
सच्ची पहरेदार बनूँ मै
31 comments:
aaj maine pahlee tippni ki hain ..........................pahle kahani kee doosri kisht padhuga fir gazal par aata hun ...............
bahut behtreen gazal likhi hai aapne...waah
ग़ज़ल बहुत सुंदर है, तरन्नुम में पढ़ने पर आनंद आया। ग़ज़ल में प्रार्थना जैसी चीज देख कर नयापन भी लगा।
माँ जी चरण स्पर्श
क्या बात है, क्या लिखा है आपने लाजवाब शब्द नहीं है कुछ कहने को। क्या जज्बा है आपका देश के प्रति क्या अब ऐसे लोग मिलते है। बहुत ही उम्दा गजल........
बहुत लाजवाब जी.
रामराम.
निर्मला जी नमस्कार १
लीक से हटाकर लगा आपका ये गजल , बिलकुल प्रार्थना
bahut hi umda gazal,badhai
बहुत ही सुन्दर हर पंक्ति का अपना एक रंग, बहुत-बहुत आभार
इसकी पूजा करती रहूँ मै
भारत की ही बेटी हूँ मैं
क्या मंदिर और क्या गुरुदुआरा
सब का ही सन्मान करूँ मैं
बेहतरीन प्रस्तुति है,
बधाई।
इश्क मुहब्बत मुल्क है मेरा
इसको ही महबूब कहूँ मैं
wah ye mishra pasand aaiya ...
..par maa ji ye ghazal nahi hai !!
isliye 'Pran Sir' se fir se janchwa lein !!
निर्मला जी
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति। अक्सर गजल में देश प्रेम की जगह नहीं होती लेकिन आपने तो प्रेम का विस्तार कर दिया। बधाई।
क्या मंदिर और क्या गुरुदुआरा
सब का ही सन्मान करूँ मैं,
एक ग़ज़ल के माध्यम से आपने अनेक संदेश प्रस्तुत की है..हमें ग़ज़ल बहुत अच्छा लगा..
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल ..बधाई..
waah waah........gazal ko naye roop mein prastut kiya hai aapne.........badhayi.
देश का गौरव जिस कारण हो
ऐसे अद्भुत काम करुँ मैं
जिस ग़ज़ल को प्राण शर्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त हो जाये, वो ग़ज़ल तो बेहतरीन होगी.
उपरोक्त शेर बहुत पसंद आया. इसे तो हर युवा की जुबान पे होना चाहिए, उसके कर्मों में दृष्टिगत होना भी चाहिए, तभी देश का गौरव गर्त से निकलकर सतह पर और फिर आकाश की और आ सकता है.
इसी विषय पर मेरी २१ सितम्बर की पोस्ट पढें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं.
हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
सुंदर गजल कही है आपने।
बधाई।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
देश के खेतों खलिहानों मे
मस्त पवन सी मुक्त बहूँ मैं
वाह निर्मला जी वाह...बहुत खूब ग़ज़ल कही है आपने...
नीरज
खूँ का हर कतरा है इसका
अर्पण इसको क्यों न करूँ मै
और भी --
देश के खेतों खलिहानों मे
मस्त पवन सी मुक्त बहूँ मैं
खूबसूरत ज़ज्बात और सुन्दर रचना.
बहुत खूब
बहुत ही सुन्दर, देश भक्ति मै डुबी हुयी,
धन्यवाद
AAPAKE IS JAJBE KO SALAM ..........BEHAD KHUBSOORAT LIKHA HAI GAZAL .........BAHUT BAHUT BADHAAYI
देश का गौरव जिस कारण हो
ऐसे अद्भुत काम करुँ मैं ||
निर्मला जी, बहुत ही उम्दा गजल प्रस्तुत की है आपने...जिसके जरिए बहुत ही अच्छा संदेश दे दिया।।।
bahut hi sundar likhi hai aapne yah gajal ..khaaskar yah panktiyaan
इश्क मुहब्बत मुल्क है मेरा
इसको ही महबूब कहूँ मैं
दुर्गा जैसा बल हो मुझ मे
दुश्मन से न कभी भी डरूँ मैं
देश के खेतों खलिहानों मे
मस्त पवन सी मुक्त बहूँ मैं
bahut hi shandar gazal,ye sher bahut hi pasand aaye.
wah nirmala ji , gazalon ka dair bahut badhia chal raha hai aapka, badhaai.
gazalon ka daur likhna tha dair likha gaya. bhool sudhaar.
जैसे बसंत के आते पेड़ों पर रौनक सी लौट आती है। वैसे ही अब आपके लेखन में कुछ खास मिल गया और शब्दों पर निखार नजर आ रहा है।
bahut sundar..
padhte samay tarannum ban hi gaya...
Behtreen gazal hai...mujhe to last se pahli wali gazal zyada achhi lagi...
इश्क मुहब्बत मुल्क है मेरा
इसको ही महबूब कहूँ मैं
bahut pyaaraa sher huaa hai is khoobasoorat ghazal main.
bahut hi achchi gazal......... bilkul leek se hatkar......
क्या मंदिर और क्या गुरुदुआरा
सब का ही सन्मान करूँ मैं
इश्क मुहब्बत मुल्क है मेरा
इसको ही महबूब कहूँ मैं
बहुत लाजवाब लिखा है .......... ग़ज़ल का हर sher khita huva fool है आपकी bagiya का .........
यह कविता मुझे बहुत अच्छी लगी!
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