GAZAL
पिघल कर आँख से उसकी दिल ए पत्थर नहीं आता"
वो हर गिज़ दोस्तो मेरे जनाज़े पर नहीं आता
दिखाया होता तूने आइना उसको सदाक़त का
जो आया करता था झुक कर, कभी तनकर नहीं आता।
मुझे विशवास है मेरे खुदा की राज़दारी पर
चलूँगी जब तलक वो ले के मंज़िल पर नहीं आता
छुपा कर अपने ग़म देता है जो खुशियाँ ज़माने को
वो शिकवा दर्दका लब पर कोई रखकर नहीं आता
किनारे पर खड़ा तब तक तकेगा राह वो मेरी
सफीना जब तलक भी नाखुदा लेकर नहीं आता
सितारे गर्दिशों में लाख हैं तक़दीर के माना
मगर जज़्बे में कोई फर्क़ ज़र्रा भर नहीं आता
बिना उसके मुझे ये ज़िंदगी दुश्वार लगती है
कोई झोका हवा का भी उसे छूकर नहीं आता
इजाज़त किस तरह देता है दिल ऎसी कमाई की
निकम्मे को जो तिनका तोड़ कर दफ्तर नहीं आता)
ग़रीबी में वो रुस्वाई से अपनी डरता है निर्मल
किसी के सामने यूँ शख्स वो खुलकर नहीं आता
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