GAZAL
वो हर गिज़ दोस्तो मेरे जनाज़े पर नहीं आता
दिखाया होता तूने आइना उसको सदाक़त का
जो आया करता था झुक कर, कभी तनकर नहीं आता।
मुझे विशवास है मेरे खुदा की राज़दारी पर
चलूँगी जब तलक वो ले के मंज़िल पर नहीं आता
छुपा कर अपने ग़म देता है जो खुशियाँ ज़माने को
वो शिकवा दर्दका लब पर कोई रखकर नहीं आता
किनारे पर खड़ा तब तक तकेगा राह वो मेरी
सफीना जब तलक भी नाखुदा लेकर नहीं आता
सितारे गर्दिशों में लाख हैं तक़दीर के माना
मगर जज़्बे में कोई फर्क़ ज़र्रा भर नहीं आता
बिना उसके मुझे ये ज़िंदगी दुश्वार लगती है
कोई झोका हवा का भी उसे छूकर नहीं आता
इजाज़त किस तरह देता है दिल ऎसी कमाई की
निकम्मे को जो तिनका तोड़ कर दफ्तर नहीं आता)
ग़रीबी में वो रुस्वाई से अपनी डरता है निर्मल
किसी के सामने यूँ शख्स वो खुलकर नहीं आता
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2 comments:
बेहतरीन खूबसूरत रचनातमक अभिव्यक्ति
Bahut sundar ghazal.
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