07 March, 2011

दोहे--- dohe

 दोहे

सूरत से सीरत भली सब से मीठा बोल
कहमे से पहले मगर शब्दों मे रस घोल

रिश्ते नातों को छोड कर चलता बना विदेश
डालर देख ललक बढी फिर भूला अपना देश

खुशी गमी तकदीर की भोगे खुद किरदार
बुरे वक्त मे हों नही साथी रिश्तेदार

हैं संयोग वियोग सब  किस्मत के ही हाथ
 जितना उसने लिख दिया उतना मिलता साथ

कोयल विरहन गा रही दर्द भरे से गीत
खुशी मनाऊँ आज क्या दूर गये मन मीत

बिन आत्म सम्मान के जीना गया फिज़ूल
उस जीवन को क्या कहें जिसमे नहीं उसूल

67 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

sabhi dohe ek-se badkar ek hain, sabhi kuchh n akuchh sandesh dete hain, jeevan upyogi dohe

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

sabhi behad achchhe hain.

रश्मि प्रभा... said...

bina aatmsamman ke jeena bhi kya jeena hai !

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया...

devendra gautam said...

अच्छे गूढ़ अर्थ वाले दोहों के लिए बधाई. पहले दोहे में कहने की जगह कह्मे हो गया है. सुधार लें.
----देवेन्द्र गौतम

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सभी दोहे बहुत बढ़िया है!
मगर आपका लिखा हुआ दूसरा दोहा
दोहे की मर्यादा पर खरा नही उतरता है!
--
देखिए-
"रिश्ते नातों को छोड़कर, चलता बना विदेश।
डालर देख ललक बढ़ी, फिर भूला अपना देश!"
--
सही तो यह होगा-
"रिश्ते नाते छोड़कर, चलता बना विदेश।
डालर की छवि देखकर, भूला अपना देश!"
--
अन्तिम दोहे में भी कुछ कमी है-
"बिन आत्म सम्मान के, जीना गया फिजूल।
उस जीवन को क्या कहें, जिसमें नहीं उसूल।।
--
सही इस प्रकार होगा-
"बिना आत्म सम्मान के, जीना हुआ फिजूल।
उस जीवन को क्या कहें, जिसमें नहीं उसूल।।
--
आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगी!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

...अच्छे दोहे।
यह तो बहुत अच्छा लगा..
खुशी गमी तकदीर की खुद भोगे किरदार
बुरे वक्त में हों नहीं साथी रिश्तेदार

Shah Nawaz said...

इन दोहों में सच्चाई बयान कर दी आपने....

प्रतुल वशिष्ठ said...

.

आदरणीया निर्मला जी,
मयंकी संशोधित दोहे पसंद आये.

गौतम जी भी जानते दोहों के क्या बोल.
लिखने से पहले अगर 'कहमे' का दो रोल.

.

Shekhar Suman said...

बेहतरीन.... :)
सभी दोहे एक से बढ़कर एक....

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

कोयल बिरहन गा रही दर्द भरे से गीत.
ख़ुशी मानों आज क्या दूर गए मन मीत !

सुन्दर भावों से परिपूर्ण हैं सारे दोहे !

sonal said...

बहुत बढ़िया

sonal said...

बहुत बढ़िया

मुकेश कुमार सिन्हा said...

kya kahne hain di........har baat me aage..:)

Sushil Bakliwal said...

आनन्दवर्द्धक दोहे । हर दोहा जीवन की सच्चाईयों का ज्ञान कराता हुआ । शानदार प्रस्तुति...

सदा said...

बहुत खूब ....बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर निर्मलाजी ....... सभी दोहे अर्थपूर्ण

हरकीरत ' हीर' said...

वाह...वाह.....निर्मला जी ..
आल राउंडर बनने की पूरी तैयारी है आपकी ...
पहले ग़ज़ल अब दोहे भी .....???
वो भी एक से बढ़ कर एक .....
और हाँ हाईकू भी तो ....

बधाइयां ......

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

एक से एक दोहे हैं जी,
किस किस का जिक्र करुं,
"रिश्ते नातों को छोड़कर, चलता बना विदेश।
डालर देख ललक बढ़ी, फिर भूला अपना देश!" इस दोहे में पंजाब की त्रासदी नजर आती है।

आभार

ZEAL said...

.

उस जीवन को क्या कहें, जिसमें नहीं उसूल...

So true ! There is no point living without principles.

.

Amit Chandra said...

सारे दोहे अच्छे है। खासकर चौथा वाला।

निर्मला कपिला said...

धन्यवाद शास्त्री जी , इसमे अन्यथा लेने की कोई बात ही नही। बल्कि आपका आभार है कि आपने इसे अच्छी तरह पढा और मेरी गलती बताई। बहुत बहुत धन्यवाद।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सभी उम्दा और बढ़िया दोहे है !

vandana gupta said...

गज़ब के दोहे है…………सभी शानदार्।

वाणी गीत said...

यूँ तो हर दोहा लाजवाब है ,
मगर
उस जीवन को क्या कहें जिसके नहीं उसूल ... सार्थक सन्देश भी दे रहा है ...

दिगम्बर नासवा said...

गहरे अर्थ लिए है हर दोहा .. अपने आप में मुकम्मल बात कहता हुवा ...
बहुत लाजवाब ...

shikha varshney said...

bahut achhe nirmala ji .

rashmi ravija said...

सभी दोहे एक से बढ़कर एक....

डॉ टी एस दराल said...

बहुत सुन्दर दोहे हैं । दोहे लिखने के लिए भी बड़ी दिमागी कसरत करनी पड़ती है ।

संजय @ मो सम कौन... said...

’जितना उसने लिख दिया...."

और अंतिम दोहा बहुत अच्छे लगे।

सभी दोहे प्रेरक हैं।

आभार स्वीकारें।

Unknown said...

बहुत बढ़िया

महेन्‍द्र वर्मा said...

बिना आत्मसम्मान के, जीना गया फिजूल,
उस जीवन को क्या कहें, जिसमें नहीं उसूल।

प्रेरणास्पद दोहे हैं। इन दोहों को पढ़ने का अपना एक अलग ही आनंद है।

Satish Saxena said...

बहुत अच्छे दोहे ! शुभकामनायें आपको !

Sawai Singh Rajpurohit said...

आदरणीया निर्मला जी,
बहुत सुन्दर दोहे

Asha Lata Saxena said...

दोहे गहरे भाव लिए,बहुत अच्छे लगे
आशा

Patali-The-Village said...

सभी दोहे बहुत बढ़िया है| एक से बढ़कर एक| धन्यवाद||

ताऊ रामपुरिया said...

मजा आगया.

रामराम

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

निम्मो दी!
पहले भी कहा है शायद मैंने.. आपकी सभी रच्नाओं में आपका अनुभव बोलता है.. ये दोहे भी आपके अनुभव से हमें सीख देते हैं.. चरण स्पर्श!!

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर दोहे जी, धन्यवाद

Smart Indian said...

बढ़िया प्रेरक दोहे|दूसरा दोहा पढकर मेरे मन में भी वही बात आयी थी जो शास्त्री जी ने लिखी।

abhi said...

बेहतरीन...

"है संयोग वियोग सब किस्मत के ही हाथ
जितना उसने लिख दिया उतना मिलता साथ"

बहुत बहुत सुन्दर

दर्शन कौर धनोय said...

Prerna dayak dohe likhe haae aapne --dhayvaad--|

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

sundar dohe

सोमेश सक्सेना said...

खुशी गमी तकदीर की भोगे खुद किरदार
बुरे वक्त मे हों नही साथी रिश्तेदार

कोयल विरहन गा रही दर्द भरे से गीत
खुशी मनाऊँ आज क्या दूर गये मन मीत

बिन आत्म सम्मान के जीना गया फिज़ूल
उस जीवन को क्या कहें जिसमे नहीं उसूल

वाह वाह , बहुत खूब.

डॉ. मनोज मिश्र said...

सुंदर लगे सभी दोहे,आपको प्रस्तुति हेतु धन्यवाद.

Kunwar Kusumesh said...

बढ़िया दोहे.
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

एक से बढ़कर एक..

ज्योति सिंह said...

nirmala ji bahut achchha likha hai .aakhri me jordaar baate kah daali .mahila divas ki badhai aapko .

Bharat Bhushan said...

बहुत अच्छे दोहे लिखे हैं आपने. सभी दोहे एक से बढ़ कर हैं. इस विधा का इन दिनों में सुंदर प्रयोग आपके यहाँ देखने को मिला है. बहुत खूब.

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर और अनुकरणीय दोहे।

Minoo Bhagia said...

bahut achhe dohe

अजित गुप्ता का कोना said...

सभी दोहों के भाव अच्‍छे हैं बस 13-11की मात्राओं का पालन कर लें।

malkhan singh said...

वर्ष की श्रेष्ठ कथा लेखिका चुने जाने की बधाई.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सभी दोहे मन को भाये ...सीख देते हुए अच्छे दोहे हैं ...बाकी शास्त्री जी और अजीत जी ने बता ही दिया है ..

Urmi said...

मैं पिछले कुछ महीनों से ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए लिखने का वक़्त नहीं मिला और आपके ब्लॉग पर नहीं आ सकी!
बहुत सुन्दर और लाजवाब दोहे ! बेहतरीन प्रस्तुती!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

वाह निर्मला जी, बहुत ही सुन्दर दोहे हैं ... क्या ऐसी कोई विधा है कविता का जिसमें आपको महारत हासिल न हो ?
मान गए !

मेरे भाव said...

"बिन आत्म सम्मान के, जीना गया फिजूल।
उस जीवन को क्या कहें, जिसमें नहीं उसूल।।
--

sabhi dohe lajawab hain. aabhar.

शिक्षामित्र said...

अनुभवजन्य। अमल योग्य।

rafat said...

वाह वाह सारपूर्ण दोहे हैं सभी खास तोर पर चोथा और अंतिम बहुत अच्छे लगे धन्यवाद

Asha Joglekar said...

उस जीवन को क्या कहें जिसमें नही उसूल । वाह वाह निर्मला जी एक से बढ कर एक दोहे हैं ।

अनामिका की सदायें ...... said...

sare dohe bahut acchhe lage. clap clap karne ko dil kar raha hai aapki is vidha ko padh kar.

-सर्जना शर्मा- said...

निर्मला दी आपको बधाई भेजने के लिए आपकी ब्लॉग पर आयी लेकिन ऐसी दुख भरी कविताएं पढ़ कर मेरा मन ना जाने कैसा हो गया आंखों में आंसू आ गए . अब समझ आया मेरी सरोज बहन के जाने पर आपकी प्रतिक्रिया इतनी दिल को छू लेने वाली क्यों थीं । अब आगे कुछ नहीं लिख पा रही हूं आंसू शब्दों को समझने नहीं दे रहे हैं

रंजना said...

बिना आत्मसम्मान के जीना गया फिजूल
उस जीवन को क्या कहें जिसमे नहीं उसूल.....
क्या क्या बात कही...
बस वाह वाह वाह.....

इस्मत ज़ैदी said...

bin aatmsammaan ke jeena...........

bahut badhiya dohe hain nirmala ji khas taur se ye wala
har vidha men parangat ho gai hain didi .

Anonymous said...

mam aap ne bahut sundar prastuti di hai.

Anonymous said...

mam aap ne bahut sundar prastuti di hai.

निर्झर'नीर said...

आज आपके अभूत सरे दोहे पढ़े मन क्या आत्मा भी प्रसन्न हो जाती है आपको पढ़कर ..पहले दोहे में कहने की जगह कहमे लिख गया है ..
ग़ज़ल बहुत दिलकश और पुरमानी लगी यूँ कहो की अश्कों को शब्द बना डाला है आपने

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