07 February, 2010

विकल्प 
लघु कथा
रामू मालिक को सिग्रेट के धूँयें के छल्ले बनाते हुये देखता तो अपनी गरीबी और बेबसी का गुबार सा उसके मन मे उठने लगता। क्यों मालिक अपने पैसे को इस तरह धूयें मे उडाये जा रहे हैं? माना कि दो नम्बर का बहुत पैसा है मगर फिर भी----- उसके घर मे आज चुल्हा नही जला है--- उसके मन मे ख्याल आता है। अगर साहिब चाहें तो इसी धूँएं से उसके घर का चुल्हा जल सकता है। फिर सिगरेट शराब से घुड घुड करती छाती के लिये दवाओं का खर्च  क्या मेरे बुझे चुल्हे का विकल्प नही हो सकता??----
जिस बख्शिश मे मिले अवैध धन की मैं सारा दिन चौकसी करता हूँ क्या किसी के काम नही आ सकता ---- मालिक कभी ये क्यों नही सोचते।
--- ये सब बातें उसके दिमाग मे तब आती जब वो भूखा होता या घर मे चुल्हा नही जलता----  नही तो मालिक से माँग कर वो भी सिग्रेट और शराब पी ही लेता था। आज ये सोचें उसे परेह्सान कर रही थी। जैसे ही मालिक ने उसे आवाज़ दी वो चौंका और मालिक के पास जा खडा हुया
* जा दो बोतल व्हिस्की और दो सिग्रेट की डिब्बी ले आ* मालिक ने उसे पैसे थमाते हुये कहा। और वो थके से कदमो से जा कर सामान ले आया।
वो जब घर जाने लगा तो मालिक ने कहा* लो 50 रुपये बख्शिश के*
बख्शिश मिलते ही उसके मरे हुये से पाँवों फुर्ती आ गयी।और वो भूल गया घर का बुझा चुल्हा,भूख से बिलखते बच्चे,पत्नि की चिथडों से झाँकती इज्जत, भूख से पिचका बूढी मा का पेट  और चल पडा मालिक की तरह बख्शिश मे मिले पैसों को धूँयें मे उडाते हुये वैसे भी ऐसे ख्याल उसे तभी आते जब जेब खाली होती थी । शायद ऐसी कमाई बच्चों की भूख का विकल्प नही हो सकती।


40 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत स्सव.प्हीरेमचंद लघु कथा है, आपकी इस कहानी को पढकर स्व. प्रेमचंद की कफ़न का स्मरण हो आया. बहुत मार्मिक है और साथ ही सोचने पर मजबूर भी करती है.

शुभकामनाएं.

ताऊ रामपुरिया said...

भूल सुधार :-

बहुत स्सव.प्हीरेमचंद लघु कथा है, = बहुत सटीक लघु कथा है, पढा जाये.

दिनेशराय द्विवेदी said...

मनुष्य चरित्र बहुत विचित्र है। बख्शीश का घर पर थोड़े ही हिसाब देना है, क्यों न मौज कर ली जाए। मनुष्य का विमानवीयकरण इन्हीं परिस्थितियों की उपज है। प्रेमचंद ने कफन में इन्हीं को दिखाया है।

Mahfooz said...

बहुत मार्मिक कहानी.......


Mahfooz....

Udan Tashtari said...

सटीक...सही कहा आपने.

मार्मिक कथा.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

क्या खूब चित्रण किया है मनुष्य की फितरत का.

अजित गुप्ता का कोना said...

यही है सत्‍य। व्‍यक्ति जब तक ही दूसरों को उपदेश देता है जब तक उसे नहीं मिलता। जैसे ही उसे मिला वह भी उसी नदी में नहाने लगता है।

परमजीत सिहँ बाली said...

मानव मन का बहुत सुन्दर चित्रण किया है। बहुत सुन्दर लघु कहानी है।

Smart Indian said...

सही है. शराब ने कितने घर डुबोये हैं.

वाणी गीत said...

ऐसी बख्शीश ईमान डगमगा देती है...बच्चों की भूख और गरीबी भुला देती है ...
मार्मिक रचना ...!!

Amrendra Nath Tripathi said...

ऐसा तो होता ही है ..
मानव ही करता है ..
यह लघुकथा पिछली की अगली कड़ी लग रही है .. आभार !

Apanatva said...

marmik katha.........

दिगम्बर नासवा said...

बहुत सटीक है ये लघु कहानी स्तब्ध हूँ आपके सोचने की दृष्टि पर ........... सच में कुछ ऐसे लोगों को देखा है ...जो दारू और शराब में अपना गम भुलाने का बहाना खोजते हैं ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सत्य को बताती विचारणीय लघुकथा ....

Razi Shahab said...

achchi kahani

vandana gupta said...

aaj ke waqt mein ha rinsaan ke deen imaan sirf paisa ho gya hai aur uski jaroorat isse aage wo kuch nhi sochta
premchand ji ki kahani kafan bhi isi ka udaharan hai.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

लघु कथा बहुत सुन्दर और मार्मिक है!

Parul kanani said...

dil mein bas gayi hai.

Parul kanani said...

dil mein bas gayi hai.

श्यामल सुमन said...

कहानी के अन्त ने मूक कर दिया। नमन है आपको।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

kavita verma said...

bahut marmik katha.

Arvind Mishra said...

न बदलने वाली नियति

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सुंदर विचार. सही नियति. असमर्थता की विहंगमता.

Pran Sharma said...

Aapkee laghukatha bahut pasand
aayee hai.Samjhiye ki dil mein
ghar kar gyee hai.

तिलक राज कपूर said...

आज इस ब्‍लॉग पर आपकी रचनायें पढ़ने का पहला मौका मिला। आप तो पूरी तरह लेखन को समर्पित हो चुकी हैं। इस गति से पोस्‍ट लगाने की सोच भी नहीं सकता, शायद सोच भी लूँ- लेकिन यह गुणवत्‍ता बनाये रखना तो मेरे लिये असंभव सा है।
अच्‍छा साहित्‍य जाना जाता है अभिव्‍यक्ति की पूर्णता और निहित संदेश के लिये। हमारे यहॉं साहित्‍य युग-निर्माण का माध्‍यम रहा है, इसने समाज को दिशा दी है। इस दिशा से आपका लेखन सार्थक है।
साधुवाद

निर्मला कपिला said...

आज मेरे भाई सहिब आदरणीय प्राण शर्मा जी भी मेरे ब्लाग
पर आयी उन्का बहुत बहुत धन्यवाद बाकी सभी पठकों का भी धन्यवाद जो मुझे उत्साहित किया। श्री तिलक राज जी पहली बार मेरे ब्लाग पर आये उनका बहुत बहुत धन्यवाद । आप सब मेरे प्रेरणास्त्रोत हैं ।

डॉ. मनोज मिश्र said...

बेहतरीन लेखन.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

bahut achha laga padh kar

शोभना चौरे said...

बहुत सटीक लघुकथा
इन बख्शीशो ने ही तो रिश्वतो का रूप ले लिया है और समाज का अधिकांश वर्ग पतन कि ओर अग्रसर होता चला जा रहा है |
आपकी लघुकथा ने सारा सच बयान कर दिया आज का |

दीपक 'मशाल' said...

भावों को बिलकुल सही जामा पहनाया मासी जी... कहते हैं ना कि 'जैसा अन्न वैसा मन' उसी तरह पैसे के साथ भी है... आपने इस सुन्दर लघुकथा के माध्यम से फिर चरितार्थ कर दिया..
जय हिंद...

रानीविशाल said...

Adraniya,
main aapke lekhan se bahut prabhavit hu.jesa ki "tauji" ne kaha ki aapki is laghu katha ko pad kar Prem Chanji ka lekhan yaad aajata hai...!! unhone bhi apane lekhan ke madhyam se jan jagaran ke jo sarahniya karya kiye the avismarniya hai !! aapko naman ki aap bhi sahitya srajan ke isi dheya ko pura kar rahi hai.......Aabhar
Saadar
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

rashmi ravija said...

बहुत ही सार्थक और मार्मिक कहानी है...हकीकत बयान करती हुई

सदा said...

बहुत ही मार्मिक चित्रण इस लघुकथा में प्रस्‍तुत किया है आपने, शाश्‍वत् परम सत्‍य है यही ।

rajesh singh kshatri said...

Bahut Sundar Chitran hai...

रंजना said...

कितनी गहरी और तीखी बात कह दी आपने,इस छोटी सी कथा के माध्यम से....

बहुत बहुत सुन्दर....

shama said...

Laghu katha sachme behad sundar hai...ek kasak chhod jati hai..muhse aah nikalti hai!

डॉ टी एस दराल said...

ये मन भी न बड़ा लालची होता है।
आपने कम शब्दों में बड़ी सही बात कह दी ।

Urmi said...

कहानी बहुत सुन्दर लगा पर साथ ही साथ मार्मिक भी! बधाई!

M VERMA said...

मार्मिक और चोट करती हुई लघुकथा.

डॉ. नवीन जोशी said...

निर्मला जी, बहुत खूब!! अनुभवों की गहरी समझ दिखती है आपकी कहानियों मैं, बहुत बहुत साधुवाद!!

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