21 July, 2009

मेरी नज़र से देखो---गताँक से आगे----कहानी

अनु-------- और वो अचानक अनुजी से अनु पर आ गया था------ मैं फिर असहज हो गयी----- मैं तुम्हरे दुख को समझ सकता हूँ----तुम्हारी भावनाओं की कद्र करता हूँ---महसूस कर सकता हूंम------मैं जानता हूँ कि मुझे देख कर तुम्हें सुमित की याद आती है------- बीते दिनों की यादें------मगर क्या करूँ मैं कितना दुखी हूँ----शायद तुम नहीं समझ सकती------- सुमित ने मुझे आँखें दे कर इस घर से बाँध दिया है------ उसकी आँखें उसके परिवार को ना देखें उसके माँ-बाप को ना देखेंतो ये अपराधबोध मैं सह नहीं सकता------ वरुण के लिये कितने सपने थे इन आँखों मे------ फिर इन आँखों के सपनों का क्या करूँ-------मेरी बातों का बुरा मत मनना मैं किसी परिस्थिति का कोई अनुचित लाभ उठाना नहीं चाहता------- मैं बस ये जानना चाहता हूँ कि क्या तुम इन आँखों के सपनो क्प छीन लेना चाहती हो?------क्या तुम्हें अच्छा नहीं लगता कि मैं उसकी इच्छा पूरी करूँ------ तुम क्यों मुझ से बात करना नहीं चाहती----हम इकठे कितना चहका करते थे-------- ऐसा तो नहीं कि तुम पहले मुझ से बात नहीं करती थी------ बल्कि सुमित से भी अधिक हम दोनो बातें करते थे----- हँसते खेलते थे------- फिर इन आँखों ने क्या कसूर कर दिया-------
नहीं---- सुजान ऐसी कोई बात नहीं है ---तुम समझते क्यों नहीं ------- सुमित के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता---
सुमित की आँखे?------क्या ये भी नहीं------ सुजान एक दम मेरी आँखों मे झाँक रहा था-------
मै सामने दरिया की ओरे देखने लगी------- सुजान सामने दरिया मे उठती लहरों को देख रहे हो?------ागर ये दरिया के किनारे तोड कर् बाहर बहने लगेंगी तो तबाही मचा देंगी-----सच कहूँ तुम से बात करते हुये मुझे तुम से नहीं इन आखों से डर लगता है------
अगर इन लहरों को मजबूत किनारों से बाँध दिया जये तो ये शाँत दरिया मे बहने लगेंगी------- तुम्हें पता है मम्मी पापा तुम्हारे और वरुण के लिये कितने चिन्तित रहते हैं------- वो तुम से खुल कर कोई बात नहीं कर सकते------- सच कहूँ तो उन्होंने मुझे सुमित की जगह स्वीकार कर लिया है-------क्या तुम ऐसा नहीं कर सकती-----
ये क्या कह रहे हो-------क्या तुम नहीं जानते कि सुमित के बाद मै ाउर वरुण ही मम्मी पापा का सहारा हैं----- मैं उन्हें छोड दूंम्गी ये तुम ने कैसे सोच लिया-------मैं उसकी बातों से कुछ विचलित सी हो गयी थी--------
ये मैने नहीं सोचा मम्मी पापा ने सोचा है---------वो चाहते हैं कि तुम वरुण और उन की खुशी के लिये मुझ से शादी कर लो तो उनकी चिन्ता समाप्त हो जायेगी और इस तरह हम सब एक ही घर मे इकठे रह लेंगे--------
सुजान बस करो मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती------सुमित के बिना कुछ भी नहीं ------
मै कब कहता हूँ कि तुम उसके लिये ना सोचो----बल्कि तुम ऐसे सोचो कि जिन आँखों मे तुम्हारी तस्वीर रहती थी वो तुम्हारी इस बेरुखी से आहत नहीं होंगी------- ये आँखें तुम्हारे इन्तज़ार मे बैठी हैं---- मान लो अगर इसके विपरीत आज मेरी आँखें सुमित् के लगी होती तो क्या तुम इन आँखों मे ना देखती------ तुम्हें मुझ से डर नहीं लगता तो फिर इन आँखों से क्यों ----- वो मेरा दोस्त ही नही--- मेरी जान था--- आज जहान भी वही है मेरा----- मैं और तुम मिल कर उसे याद किया करेंगे दुख बाँट लिया करेंगे ---सब जिम्मेदारियां मिल कर निभा सकेंगे --मै तुम्हें एक दम फैसला लेने को नहीं कहता----तुम नहीं चाहती तो कोई बात नहीं मगर सहज व्यवहार तो करो मुझे क्यों सज़ा देती हो-------मुझे इस दर्द से मुक्त करो-----कहते कहते सुजान रो पडा-------
मैं चाय बना कर लाती हूँ----- मैं रसोई मे चली गयी------चाय का पानी खौल रहा था मगर मेरा दिल बेचैन हो रहा था सोच मे खडी रही-------
खैर चाय बना कर बालकनी मे आ गयी
खामोशी ----- बाहर खामोशी मगर दोनो के दिल मे आँधियाँ चल रही थी------ सुजान किनारे मजबूत करना चाहता था-----मगर मैं इन आँखों से डर रही थी----- कैसे बताऊँ सुजान को कि इन आँखों मे झाँकने की उस की कितनी तमन्ना है-----वो तो आँख खुलते ही सुबह पहले इन आँखों मे झाँका करती थी------ जब से इस घर मे आयी थी ----ेआज भी मन होता है------- मगर-------
क्या तुम्हें इन आँखों को देखने की चाह नहीं होती----- अचानक जैसे सुजान ने मेरी चोरी पकड ली थी मेरे दिल की बात जान ली थी------- शायद्
अच्छा तो मैं चलता हूं----- मै यहां इस समय इस लिये आया था कि पापा चाहते थे कि मै तुम से बात करूँ------ वरुण की ज़िन्दगी-------- शहीद बेटे के माँ बाप का सकून------ जो उन्हें ये आँखें देख कर मिलता है--------इन सब के लिये तुम कुछ कर सकती हो मै कर सकता हूँ-------- मै किसी और लडकी से शादी कर के पता नहीं ये जिम्मेडारियाँ निभा पाऊँगा कि नहीं ----- और फिर लोगों को बातें बनाते देर नहीं लगती-------- मैं नही चाहता कि कल को लोग मेरे यहाँ आने पर उँगली उठायें ------ सोच लो फैसला तुम्हारा है अगर फिर भी तुम्हारी ना है तो मैं कहीं दूर चला जाऊँगा-------- कहते हुये सुजान बाहर निकल गया-------
क्या सोचूँ मै------- सुमित तुम कहाँ हो-------- आँखें बह रही थी-------- इस दरिया की तरह----- सुजान ठीक ही तो कहता है सब का सपना टूट जायेगा-------- मम्मी पापा ने तो सुजान की आँखों मे सुमित को पा लिया हओ इसके जाने से वो टूट जायेंगे------- मैं----- हाँ मुझे भी तो सुजान का जाना अच्छा नहीं लगेगा--------कैसे देख पाऊँगी इन आँखों को---
धीरे धी दिन चल रहे हैं-------शाँत हूँ इस दरिया की तरह उसने इस दान से कितने जनों को जीने की राह दिखाई है और मै उसके इस दान को शर्मिन्दा करने जा रही हूँ-------- इस घर को इन आँखों की जरूरत है-------
सुजान रोज़ उसी तरह आता है------- वरुण से खेलता है------- मैं छुप छुप कर उन आँखों को देखती हूँ----वही चमक------वही कशिश् ------- दिल धडक उठता है------ सब की कोशिश रहती है कि जब सुजान आये तो मै उन सब के बीच बैठूँ -------- हाँ सच कहूँ अब मुझे भी उन आँखों का इन्तजार रहता है--------
एक दिन मम्मी पापा बाज़ार गये थे------दिन के 11 बजे थे पापा पैटोल पँप चले गये और मै वरुण को सुला रही थी--------
क्या कर रहे हैं माँ बेटा------- असमय सुजान की आवाज़ सुन कर मै चौँक पडी-------वरुण सो गया था उसे लिटा कर मै बालकनी मे सुजान के पास आ कर खडी हो गयी-------
आज इस वक्त कैसे आयी------- मैने धीरे से पूछा -------
क्या अब इस घर मे आने के लिये मुझे इजाज़त लेनी पडेगी-------- सुजान हंसा
नहीं नहीं ---मैने सोचा कोई काम है-------
बैठौ ------- शुक्र है मुझे देख कर कुछ सोचने भी लगी हो-------- उसने मेरी आँखों मे देखा------ अनु तुम कुछ भी कहो----- मगर ये आँखें तुम्हारी अन्दर तक झाँक लेती हैं------- ये जानती हैं कि तुम चोरी चोरी इन्हें देखती हो----- उसकी नज़र मेरे चेहरे पर थी------
हाँ सुजान------- सुमित शायाद इसी लिये इन्हें तुम्हें दे गया कि मैं इन्हें देख कर जी सकूँ------- उसके होने का एहसास पा सकूँ------- मगर मुझे डर है कि क्या मै तुम से इन्साफ कर पाऊँगी----- तुम मे सुमित को पा सकूँगी-----
अरे सुमित को क्यों भूलेंगे हम दोनो मिल कर उसे ज़िन्दा रखेंगे-------वैसे भी शहीद हो कर अमर हो गया है वो------
हाँ शायद सच कहता था सुमित कि ------ अनु ये आँखें तुम्हें जीनी की शक्ति देंगी ---- इन आखों से तुम्हे बाँध रखूँगा------- और मैने अपना हाथ सुजन के हाथ पर रख दिया------
धूप मे लहरों पर किरणो का नृ्त्य ------झिलमिल करता दरिया---उछलती कूदती लहरें किरणो से गले मिलती----- और दरिया मे हलचल मचा देती------- आज आसपास के पेड फिर से झूमने लगे थे----- इन आंखों ने मेरे दिल मे हलचल मचा दी थी------- वो लौट आया है------ जिन्दा है------ और मै बहे जा रही थी दरिया के साथ साथ ------ समाप्त्

25 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

यह कहानी बहुत रोचकता लिए रही,आभार.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"धूप मे लहरों पर किरणो का नृ्त्य ------झिलमिल करता दरिया---उछलती कूदती लहरें किरणो से गले मिलती----- और दरिया मे हलचल मचा देती------- आज आसपास के पेड फिर से झूमने लगे थे----- इन आंखों ने मेरे दिल मे हलचल मचा दी थी------- वो लौट आया है------ जिन्दा है------ और मै बहे जा रही थी दरिया के साथ साथ ------ "

आपकी कहानी आद्योपान्त पढ़ी।
बहुत अच्छी लगी।

mehek said...

bhavbhini kahani sunder

Udan Tashtari said...

बेहतरीन प्रवाह के साथ इस कथा का चरम हुआ. आनन्द आ गया. लेखनी पर आपकी पकड़ को नमन!!

अनिल कान्त said...

कहानी बहुत अच्छी लगी...त्याग की...दोस्ती की...जज्बातों की....एहसासों की...रिश्तों की

P.N. Subramanian said...

सचमुच बहुत अच्छा लगा. पुराने अंशों को भी पीछे जाकर पुनः पढ़ लिया. क्या आपके कहानियों का कोई संग्रह प्रकाशित हुआ है

ताऊ रामपुरिया said...

बेहद खूबसूरत कहानी. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

विवेक सिंह said...

धन्यवाद ! रोचक कहानी रही !

दिगम्बर नासवा said...

आपकी कहानी में भावनाओं का अध्बुध संगम है............ सामाजिक समस्या, प्रेम, भावनाओं का मधुर मिश्रण कमाल का है...... और आपकी गज़ब की शैली तो पढने वाले को बरबस मजबूर कर देती है की बस पढ़ते ही जाओ ........ लाजवाब....

सदा said...

बहुत ही भावमय एवं रोचकता लिये हुये बेहतरीन प्रस्‍तुति आभार्

Razi Shahab said...

khoobsoorat kahani bahut achchi lagi

निर्मला कपिला said...

सुब्रह्मणियम जी कहानी पर टिप्पणी देने के लिये धय वाद सभी पाठकों ने जो मेरा उत्साहव्र्धन् किया है उसके लिये सब की आभारी हूँ हाँ अपने पूछा है कि क्या मेरा कोई कहानी संग्रह छपा है ---हाँ मेरे दो कहानी संग्रह छप चुके हैं तीसरा तयार है एक वीरबहुटी star pubalishrs chandigarh se doosaraa prem setu abhishek pubalishars delhi dhanyavaad

vandana gupta said...

bahut hi bhavuk andaz mein rochakta ko barkarar rakhte huye kahaani ka ant kiya jo ki samyanusar tha..........lajawaan kahani aur aapka lekhan to adbhut hai hi.

मुकेश कुमार तिवारी said...

निर्मला जी,

एक सुन्दर सुखांत कहानी जिसके साथ केवल अनु ही नही बल्कि पाठक भी बहे जा रहा था भावनाओं में।

लाजवाब शैली ।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

ओम आर्य said...

एक बहुत ही सुन्दर धारा प्रवाह रचाना जिसमे अंत तक अभिरुची बनी रहती है ......इसका अंत सुखांत है ..........बहुत ही सुन्दर रचना ......बहुत बढिया.अतिसुन्दर

स्वप्न मञ्जूषा said...

निर्मला जी,
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति रही आपकी इस कहानी में, बहुत अच्छा लगा एक सुखांत कहानी पढ़ कर...
रोचकता बनी रही लगातार..
बहुत बहुत बधाई...

दर्पण साह said...

इन आंखों ने मेरे दिल मे हलचल मचा दी थी------- वो लौट आया है------ जिन्दा है------ और मै बहे जा रही थी दरिया के साथ साथ....

adbhoot !!

Bahut acchi kahani aur utni hi acchi aapki soch !!

apka comment pichli post amin padha aur mail bhi prapt hui.
Dhanyvaad !!

hem pandey said...

पूरी कहानी आज ही पढ़ी. बेहद भावुक कहानी है. दूसरी कड़ी विशेष पसंद आयी. आशा है भविष्य में भी ऐसी ही उंदर कहानी पढने को मिलेगी.

admin said...

Dil ko chhu gayi aapki rachna.
Badhaayi.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Vinay said...

बहुत जानदार प्रस्तुतिकरण
----
· ब्रह्माण्ड के प्रचीनतम् सुपरनोवा की खोज
· ॐ (ब्रह्मनाद) का महत्व

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सुंदर सहज व सरल प्रवाहमान शैली.

Ria Sharma said...

बाहर खामोशी मगर दोनो के दिल मे आँधियाँ चल रही थी....
निर्मला जी ऐसा होता है ..
स्त्री मन की कशमकश को बखूबी ढाला है आपने ....अन्ततः प्रेम की विजय भी

बहुत भावनाप्रधान कहानी ..आपके अद्भुत कहानी लेखन को नमन है मेरा !!

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

आदरणीय निर्मला जी ,
प्रवाहमयी भाषा ही किसी भी कहानी को पाठकों को बांधे रहने के लिए एक सबसे बड़े औजार का काम करती है .यदि कथ्य काफी मजबूत हो और भाषा कमजोर ..तो कहानी बढिया नहीं बन सकेगी .
आपकी इस कहानी की भाषा तो प्रवाहमयी है ही शिल्प भी बहुत गठा हुआ है ...अच्छी लगी कहानी .
हार्दिक बधाई .
हेमंत कुमार

संजीव गौतम said...

संवेदनाओं की थरथराहट से भरपूर. मन को सुकून देने वाली कहानी है.

गौतम राजऋषि said...

बहुत अच्छा लिखती हैं आप....
कहानी ने अंत तक प्रवाह बनये रखा!

बधाई एक सुंदर कहानी रचने के लिये।

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