07 July, 2009

गताँक से आगे दिल के पन्ने---------- संस्मरण

तीनो जब सफदरजँग अस्पताल पहुँचे तो वहाँ काफी पूछताछ करने पर पता चला कि इस अस्पताल मे जगह नहीं थी उन दिनों सेल्फ इमोलेशन के बहुत केस हो रहे थे इस लिये इस अस्प्ताल मे जगह नहीं मिली थी या कम्पनी वालों का कोई षडयँत्र था------- मुझे आज भी विश्वास है कि अगर उसे सही उपचार मिलता तो शायद बच जाता
उसे जे.पी अस्पताल ले गये थे हमलोग फिर जेपी अस्पताल पहुँचे तब मोबाईल तो होते नहीँ थे---- और जो मुश्किल हमे उस दिन आयी उसे शब्दों मे लिखा नहीं जा सकता एक ओर जवान बेटा जिन्दगी और मौत से लड रहा था दूसरी ओरे कंपनी वालों का ये गैरज़िम्मेदाराना रवैया! फिर हम लोग जे पी अस्पताल पहुँचे तो बाहर कम्पनी की एक गाडी खडी थी---हमने जल्दी मे उन्हे बताया कि हम लोग नगल से आये हैं और शशी के पेरेँटस हैं------वहाँ उसके कुछ दोस्त हमे वार्ड मे ले गये-------
जैसे ही हमने बेटे को देखा कलेजा मुँह को आ गया 80 प्रतिशत बर्न था-----सारा शरीर ढका था----था जैसे वो हम लोगों का ही इन्तज़ार कर रहा था----देखते ही उसने मुझे इशाराकिया कि रोना नहीं और अपने दोस्त को स्टूल लाने के लिये इशारा किया-------हमारे आँसू नहीं थम रहे थे ----उसके दोस्तों ने हमे पानी पिलाया मगर एक घूँट भी हलक से नहीं उतर रहा था------उसने मेरा हाथ जोर से पकड लिया ये दोनो भाई तो बाहर चले गये और उसके दोस्तों से पूछताछ करने लगे------मैने उसके चेहरे को सहलाया--- उसके माथे को चूमा----- और उसके हाथ को जोर से पकड लिया उसके चेहरे और हाथों के उपर के हिस्से के सिवा हर जगह जले के निशान थे---- कपडा उठा कर उसके शरीर को देखने लगी तो उसने मेरा हाथ जोर से दबा कर मुझे मना कर दिया मैने पूछा बेटा ये तुम ने क्या किया--------ये किस जन्म का बदला लिया------उसने बस इतना ही कहा----मैने कुछ नहीं किया ----वो जो मैने बताया था कि------ अभी उसने इतना ही कहा था ---कम्पनी के एक आदमी ने उसे चुप करवा दिया और मुझ से कहा कि आँटी अभी आप बाहर बैठिये डाक्टर आने वाले हैं-----बाद मे आप जितनी चाहें बातें कर लेना वो चुप तो हो गया मगर उसने मेरा हाथ नहीं छोडा और ना ही मैं बाहर गयी--------
सामने लाडला बेटा क्षण क्षण मौत के मुँह मे जा रहा था और हम कुछ भी कर पाने मे असमर्थ -----------
बाहर ये दोनो रो रो कर बेहाल हो रहे थे मगर कोई हमे कुछ भी बताने से कतरा रहा था-----वो एक टक मेरी ओर देख रहा था----पता नहीं कहाँ से उसकी आँखों मे इतना दर्द उभर आया था मुझे लगा कि जलन से दर्द हो रहा होगा मगर वो जान गया था कि मै इन्हें सदा के लिये तडपने के लिये छोडे जा रहा हूँ--------जरा मुंह खोला मैं आगे हुई ------- वो बोला-----जैसे कहीं दूर से आवाज़ आ रही थी-------- मैने आपको बताया था कि मुझे----
कि मुझे सपना आया था कि कोई मुझे---मारने------ के लिये आता है------वो------- और इसके आगे वो कुछ ना कह सका------- बेहोश हो गया-----सारा दिन हम उसके सिरहाने कभी हाथ पकडते कभी उसे बुलाने की कोशिश करते----मगर उसकी नीँद गहरी होती गयी------ उसके दोस्तों ने हमे बहुत कहा कि आपके लिये पास ही कमरे बुक करवा दिये हैं आप चल कर खाना खा लें और आराम कर लें मगर आराम तो शायद जीवन भर के लिये छिन गया था-------फिर वो खाना वहीं ले आये मगर सामने जवान बेटा जाने की तयारी कर रहा हो तो कोई एक भी कौर कैसे खा सकता था------ ुसके बेड के साथ ही हमने एक चद्दर बिछा ली और दोनो वहीं बैठ गये भाई साहिब को जबरन कमरे मे भेज दिया मगर वहाँ कहाँ उनका मन टिकता था अभी पत्नि और बेटी के गम से उभर नहीं पाये थे कि अब बेटा भी----------- बार बार कमरे से बेटे को देखने आ जाते---------
------- मै भी कभी फिर से उसका हाथ पकड कर बैठ जाती----कभी दोनो इसकी बातें करने लगते------उसके दोस्तों से भी सच्चाई का कुछ पता नहीं चला----सब जैसे अजीब सी खामोशी ओढे हुये थे------- बास का कहीं अता पता नहीं था---- अर्जेन्ट काम के लिये गये ---क्या मौत से भी कुछ अधिक काम हो सकता है -----शायद------
हमने उसके शरीर से जब कपडा उठा कर देखा तो उसकी छाती मे बाई ओर चाकू का निशान था चाकू से उसके सीने पर वार कर उपर से
से मिट्टी का तेल डाल कर जलाया गया था------ अगर ये दिल पर चाकू नहीं लगा होता तो शायद वो बच जाता मगर जिसने भी मारा था बडी होशियारी और पूरे पलान से मारा थाएक आदमी का तो काम हो नहीं सकता क्यों कि वो भी 6 फुट का भरवां शरीर का जवान था------ लडकियों की तरह सुन्दर गोरा और बहुत शरमीला सही मायने मे एक इन्सान था------- देश के लिये और समाज के लिये कुछ करने का जज़्वा लिये कुछ भविश्य के पलान मेरे साथ बनाता था-------इससे पहले वो जब घर आया था तो एक महीना घर रहा अर उसने कहा था कि अब आपसे नौकरी छुडवा लूँगा अपने ज़िन्दगी मे बहुत मेहनत कर ली अब हम मिल कर एक ऐसी संस्था चलायेंगे जो गरीब बच्चों की पढाई लिखाई के लिये काम करेगी-------- इस उम्र मे ये जज़्वा मुझे हैरानी होती थी------- आज जब भी ऐसे किसी लडके को देखती हूँ तो मुझे उस मे वही दिखाई देता है-------- बस कम्पनी के लोग इस बात पर अडे रहे कि इसने सेल्फ इमोलेशन की है अब तो कोट दवार जा कर ही कुछ पता लग सकता था-----कभी पोलिस से पाला नहीं पडा था--------- समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें-------
अगले दिन तक उसका चेहरा और आँखें भी सूज गयी थी------ अस्पताल वालों का रवैया इतना खराब था कि यहाँ कुछ ना ही कहूँ तो अच्छा है-------सुबह से ही उसके मुँह से काफी सक्रीशन्स निकल्ने लगी थी बाहर से तो साफ कर देते मगर उसके गले से घर्र घर की आवाज बहुत आ रही थी एक बार स्ताफ ने मशीन से साफ किया पर बार बार कहते तो डाँट देती फिर कई बार उनकी नज़र बचा कर मैं मशीन से साफ कर देती------- डरिप की बोतल भी कई बार खुद ही बदल देती------ागले दिन के शाम के 6 बज गये थे और मैं तो आते ही समझ गयी थी कि बस अब इसका हमारा साथ इतना ही है फिर भी जो दो दिन मिले उन्हें जी भर कर उसके साथ जी लेना चाहते थे---------
ये दोनो उसके दोस्तों से बाहर बातें कर रहे थे और मै उसका हाथ पकड कर उसके बेड के पास बैठ गयी----उस समय अपने दिल का हाल शायद मैं दिल छीर कर भी ना बता पाऊँगी मेरे अपने तीन बेटियाँ थी और ये दोनो बेटे थे सोचती हूँ उधार की कोई चीज़ मुझे फलती ही नहीं है------- संकट के समय मेरा सरा ध्यान उस संकट को दूर करने मे होता है मैं औरतों की तरह उस समय ्रोती नहीं हूँ--------- और अब जब जान गयी थी कि ये संकट अब टलने वाला नहीं तो हिम्मत जवाब दे गयी और मेरे सब्र का बाँध टूट गया था उसका हाथ जोर से पकड कर मैं फूट फूट कर रोने लगी--------कोई आज मुझ से मेरी जान ले ले और बदले मे बेटे की जान दे दे------हम सब इसके बिना नहीं जी पायेंगे---------कैसे महसूस होता होगा जब कोई दिल का टुकडा आप से बिछुड रहा होता है और आपके सामने तड्प तडप कर दम तोड रहा है आप कुछ नहीं कर पा रहे हैं हम तीनो बस रो रहे थे------ और 26 aअक्तुबर की काली रात 11 बजे उसने आखिरी साँस ली------- सब कुछ जैसे खत्म हो गया-----हम लुटे से देख रहे थे मौत का तमाशा------- सुबह तक उसके सिरहने रोते बिलख्ते बैठे रहे------ सुबह उसे पोस्ट मार्टम के लिये ले गये------ काश कि कोई उसका दिल चीर कर मुझे देता तो पूछती ये सब कैसे हुआ------- हमे दोपहर एक बजे लाश मिली------- घर मे किसी को बताया नहीं था------- यही कहा था कि इलाज चल रहा है बूढे दादा दादी का बुरा हाल था-------- कम्पनी वालों ने गाडी का प्रबँध किया और उसके 4-5 दोस्त साथ दूसरी गाडी मे भेज दिये--- गाडी मे सीट के नीचेलाश थी और उपर हम लोग बैठे थे----कितना भयावह होगा वो पल कोई भी सोच सकता है------ अब दो दिन से कुछ खाया भी नहीं था--- रो रो कर दिल बैठा जा रहा था भाई सहिब का भी बुरा हाल था रास्ते मे लडकों ने गाडी रुकवाई और एक ढाबे से खाने का प्रबँध किया-------- ये सब तो नीचे ढाबे मे चले गयी मगर मैं वहीं बैठी रही------ उससे एक पल भी -----पल भी दूर नहीं होना चाहती थी-----कल के बाद दूर चला जयेगा तो कहीं भी बैठी रहूँगी कौन पूछेगा------- मन मे पता नहीं क्या आया कि मुझे लगा कि जोर की भूख लगी है वैसे भी मुझे टेन्शन मे बहुत भूख लगती है और उस दिन बेटे की लाश के उपर बैठ कर मैने खाना खाया------- मैं भी उसे बता देना चाहती थी कि तुझ बिन भी हम जिन्दा रहेंगे तू बिलकुल चिन्ता मत करना-------
रात को हम घर पहुँछे तो शहर और गाँव से सब लोग जमा थे---हमने एक घँटा पहले फोन कर दिया था कि हम लाश ले कर आ रहे हैँ--------बेटे की शादी के सपने देख रहे थे आज उसकी लाश देख कर दुनिआ ही रो पडी------ फिर पता नहीं कैसे सब लोग उतरे मुझे इतना पता है कि मैं रात भर मे एक मिनट उसका हाथ नहीं छोड पाई----- मगर अगले दिन उसे सब ले गये मेरा हाथ छुडा कर----- सारा शहर और गाँव उसकी उसकी आखिरी यात्रा मे हुमहुमा के चल रहा था------- और उसके बाद आज तक उसे तलाश रही हूँ
इसके बाद क्या होना था उस की करम किरिया के बाद कोटद्वार मेरे पति और भाई सहिब गये थे पोलिस को साथ ले कर जब घर खोला तो कफी सामान गायब था रसोई मे गये जहाँ बताया था कि उसने अपने आप आग लगायी तो नीछे फर्श पर कोई ऐसा निशान नहीं था कि यहाँ तेल डाला गया हो रसोई की शेल्फों पर कागज़ बिछे हुये थे जो तस के तस थे हाँ दिवार पर हाथ के जले पँजे के निशान जरूर थे बाहर बरामदे मे उसका ट्रँक पडा था जिसके नीचे जले के निशान थे शायद उसके जले हुये कपडों से आग बुझाने क्वे लिये रखा गया था ट्रँक के बीच पडे कपडे भी नीचे की तह जल गयी थी मतलव उसे रसोई से बाहर जलाया गया था वहाँ घर भी कुछ दूर थे मगर उसके बास का घर इतना दूर नहीं था कि उसकी चीखें सुनाई ना देती खैर बहुत हाथ पैर मारे मगर कुछ पता ना चला जब वो पिछली बार घर आया था तो उसने बताया था कि उसे बास के कुछ राज पता चले हैं कि वो कम्पनी को किस तरह लूट रहा है इसके बारे मे बास से उसकी बात भी हुई बास के एक नेपाली नौकर था जो उसे आजकाल घूर घूर कर देखता था इससे पहले भी वो बैंगलोर टूर पर गया तो उसके घर चोरी हो गयी थी हम लोग उसकी ट्राँसफर पँचकूला करवाने के लिये प्रयास रत थे मगर तभी ये घटना हो गयी निस्ँदेह उस नेपाली नौकर और बास का कहीं ना कहीं हाथ था मगर हमारा उस शहर मे कौन था जो सहायता करता एक दो बार फिर गये मगर पोलिस ने आत्म हत्या का मामला कह कर उसे केस को बाद मे फाईल कर दिया------ इस तरह हम लुटे हुये सब कुछ देखते समझते हुये भी कुछ ना कर सके---------- आज भी इन्तज़ार रहता है कि शायद कहीं से निकल कर एक बार आ जाये मगर जाने वाले कहाँ आते है------------

22 comments:

Urmi said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपकी हर एक पोस्ट मुझे बेहद पसंद है! बस इतना ही कहूँगी कि आपकी लेखनी को मेरा सलाम!

Udan Tashtari said...

सच कहा..जाने वाले कहाँ आते है. बेहतरीन लेखन!!

ताऊ रामपुरिया said...

बेहद चुस्त कहानी है. शुरु से आखिर तक बांधे रखती है. बहुत शुभकामनाएं आपको.

रामराम.

डॉ. मनोज मिश्र said...

rochkta bnaye huye hai aapka sansmaran.

सदा said...

बहुत दुखद संस्‍मरण सामने आया, सच ही कहा आपने वाले जाने वाले लौट कर नहीं आते, आते भी हैं तो सिर्फ यादों में ।

आपके सटीक व सशक्‍त लेखन का आभार ।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

कटु यथार्थ का चित्रण. क्या कहें शब्द भी तो नहीं हैं.

नीरज गोस्वामी said...

बहुत मार्मिक दास्तान...क्या कहूँ...??
नीरज

ओम आर्य said...

वैसे भी आप बहुत ही सुन्दर रचनाये लेकर प्रस्तुत होती है ........आपका यह संस्मरण बेहतरीन है.

अनिल कान्त said...

वैसे तो इस दुनिया में बहुत तरह के दुःख हैं लेकिन इससे बड़ा कोई दुःख नहीं हो सकता की एक माँ अपने बेटे को मरते देखे कुछ कर ना सके ....उसकी लाश के पास बैठे....सारा वाक्या पढ़ते हुए मेरी आँखें गीली हो आई

Vinay said...

बहुत प्रभावशाली है

---
चाँद, बादल और शाम

राज भाटिय़ा said...

मेने यह सब पुरा पढा... मेरे मै ताकत ही नही बची की टिपण्णी दे पाऊ, सोच कर ही कांप गया हुं. अगर हो सके तो उस हस्पाल के बारे जरुर लिखे कि उन्होने केसा वर्ताव किया, उस कमीने बास के बारे लिखे, ओर खुब लिखे....
मै अंदर तक कांप गया आप के लेख के एक एक शव्द से.......

शोभना चौरे said...

pura sansmarn pdhne ke bad kuch soch hi nhi pa rhi hoo behad afsos hai .ishawar ase logo ko jarur sja deta hai kisi na kisi rup me .
ha jane vale apni kuch amit yade chod jate hai .

दिगम्बर नासवा said...

आपकी अपनी ही शैली में..........बहुत बढ़िया लिखा है, बेहद चुस्त, अंत तक बांधे रखा ....

Anonymous said...

आपने इतने सुन्दर ढंग से लिखा है की मैं तो एक सांस में ही पूरा पढ़ गया..

... जो कुछ भी हुआ बेहद दुखद ....

P.N. Subramanian said...

आपका यह संस्मरण अविस्मरणीय रहेगा. आभार.

Akanksha Yadav said...

Behad lajwab sansmaran...apki shaili aur kathya par pakad anuthi hai.


"शब्द-शिखर" पर आप भी बारिश के मौसम में भुट्टे का आनंद लें !!

Ria Sharma said...

Speechless !!!:((

रंजू भाटिया said...

मार्मिक है यह याद रहने वाला संस्मरण है यह

Dev said...

Maa aapka sansamarn padh kar aankhon me aansho aa gaye.. jivan ka sabse dukhad pahaloo aapne apni aankho se dekha, jise duniya ka koi bhi mata pita nahi dekhana chahata...such much jo aapne dekha usase bada duniya ka koi gam nahi ho sakta aur vo bhi apni aankhon ke samane apne ghar ke chirag ko dubate huye dekhana aur kuchh bhi na kar pana.. kitani vivshata hai..aur eshavr aisa q karta hai maa...q karta hai. Aapka sansamaran padh hryday na mana kah utha adhir, hay yah tera kaisa vidhan hai. Jis maa ne hhajaro longo ko jevan diya khushiya diya , tumane usi ke jevan me andhera kar diya, sari umar ka gam de diya...

....Bas maa aaj man dukhi ho gaya hai...

Aapke chanrno me sadar pranam.

कंचनलता चतुर्वेदी said...

मन को छूती सुन्दर रचना..बहुत बढ़िया लिखा है आपने!

Science Bloggers Association said...

Bahut dundar. Dil ko chho gaye aapke bhaav.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Razi Shahab said...

बहुत प्रभावशाली है

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