01 February, 2009


धर्म करता है
आन्तरिक प्राकृ्ति
मानवता गुण सचेत
शिव और मानव्
हो जाता है एक
साम्प्रदाय करता ह
बाह्म अमानवता गुण
सचेत
शिव और आत्मा
हो जाते हैँ अचेत
और्
ब्राह्मन्ड
एक से अनेक् !!

8 comments:

P.N. Subramanian said...

".....और्
ब्राह्मन्ड
एक से अनेक्"
सुंदर परिकल्पना. आभार.
आश्चर्य है कि अभी तक किसी ने आपको सुझाव नहीं दिया कि टिप्पणियों के लिए वर्ड वेरिफिकेशन को समाप्त कर दें. इससे कोई लाभ नहीं है उल्टे टिपण्णी करने वालों को परेशानी का अनुभव होता है और बहुत सारे लोग तो टिपण्णी किए बगैर चले जाते हैं. कृपया इस ओर ध्यान दें.

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर लिखा आप ने , शिव ओर मानव के बारे.
P.N. Subramanian जी की बात कबिले गोर है.
धन्यवाद

विवेक सिंह said...

बहुत बढिया !

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत ही उम्दा रचना है।बधाई स्वीकारें।

राज भाटिय़ा said...

बिलकुल सही किया, अब ठीक है.
धन्यवाद

Amit Kumar Yadav said...

Bahut sundar...!!
___________________________________
युवा शक्ति को समर्पित ब्लॉग http://yuva-jagat.blogspot.com/ पर आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??

राजीव करूणानिधि said...

सुंदर रचना. मानव, शिव और ब्रह्माण्ड को एक में ही पिरो दिया आपने. सच कहा है. बधाई.

Anonymous said...

kavita asimit roop se sundar hai...


meri hindi kavitao ki chhoti si koshish yaha se shuru hoti hai,
kripya aakar mera hausla barhayie

http://merastitva.blogspot.com

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