दोहरे मापदंड
शुची बहुत दिनो बाद आयी थी। कितने दिन से मन था उसके पास बैठूँगी अपने दिल की बात करूँगी\ मगर आजकल वो बहुत परेशान है, अपनी मकान मालकिन से। शहरों मे पानी की कितनी किल्लत रहती है। इसके चलते रोज़ उसका मकान मालकिन से झगडा हो जाता है। अब और कहीं अच्छा घर मिल नही रहा। वैसे भी रिओज़ रोज़ घर बदलना कौन सा आसान है। एक बार मैने कहा भी था कि थोडा खुद को उसकी जगह रख कर देखो, शायद वो भी सही हो! उसने बताया कि मकानमाल्किन का हुक्म है कि सुबह जब पानी आता है तभी उठ कर अपना काम निपटा लिया करे। बस एक घन्ट ही वो ऊपर पानी देंगे बाद मे टंकी भरने के लिये ही रखेंगे। टंकी के पानी से काम करना उन्हें बिलकुल अच्छा नही लगता कई बार टंकी भरी न हो तो पानी खत्म हो जाता है फिर दिक्कत होती है। आजकल बच्चों को जल्दी उठने की भी आदत नही रही। कई बार एक घन्टे मे काम खत्म नही होता तो मुश्किल। सुबह वो मुझे यही बात बता रही थी और नहाने के लिये बाल्टी भरने को लगा दी। तभी पानी खत्म हो गया।
:माँ पानी नही आ रहा।'
" चला गया?अब 12 बजे आयेगा।"
" तो क्या टंकी भी खाली है?"
हो गयी होगी। हमारी ऊपरवाली किरायेदार देर से उठती है तो सारा काम टंकी से ही चलता है इस लिये खत्म हो गया होगा।"
" तो आप उनसे कहती क्यों नही?"
" कई बार कहा है।"
" आप नीचे से उनका पानी बन्द कर दिया करो?"
" कैसे करूँ तुम्हारी बातें सुन कर सोचती हूँ वो भी मुझे उसी तरह कोसेगी जैसे तुम अपनी मकानमालकिन को कोसती हो।"
अब शुची मेरी तरफ देख कर कुछ सोचने लगी थी। यही बात तो मै उसे समझाना चाहती थी थोडा खुद को बदले। बार बार कहाँ घर बदलती रहेगी और ऐसे ही परेशान रहेगी। हो सकता है मकानमालकिन अपनी जगह सही हो।
59 comments:
सही बात है। हमें अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
ठीक बात.. नजरिया ही कई चीजों को बदल देता है.
किसी का नजरिया समझने के लिए जरूरी है उस की परिस्थितियों में खुद को रख कर देखा जाए।
kitne pyaar se aapne samnewale ko samjhaya hai... dekhne me laghu hai
नमस्ते आंटी जी,
पानी की समस्या तो हर जगह ही है, सुबह उठ के पानी भर लेने में ही समझदारी है!
अच्छी लघु-कथा!
हम सुधरेंगे जग सुधरेगा। प्रेरक लघुकथा।
इसी तरह के एक उदाहरण एक बार मेरी माँ ने मेरी बहन को दिया था :)
सही कहा ...परिवर्तन नजरिये में होना चाहिए !
अच्छा सन्देश
अच्छा संदेश दिया है....कहानी के माध्यम से...
जबतक खुद उस परिस्थिति में ना हों..असलियत का अंदाजा नहीं होता
सही बात है। हमें अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
सही बात नज़र बदलते ही नज़ारा बदल जाता है।
सच्ची शिक्षा.
शिक्षाप्रद लघु कथा ! हम लोग दूसरों को ही सजेशन देने में माहिर है !
kabhi kabhi soch badalnee jaruri ho jati hai........:)
kabhi kabhi soch badalnee jaruri ho jati hai........:)
बहुत सुन्दर लघुकथा..बधाई.
देहरादून से प्रकाशित 'सरस्वती सुमन' पत्रिका के लघु-कथा विशेषांक का अतिथि संपादन मेरे द्वारा किया जा रहा है. आपकी लघुकथाओं की प्रतीक्षा बनी रहेगी.
दृष्टिकोण हमारे जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित करता है ..
दृष्टिकोण बड़ा करना होगा।
बेहतरीन प्रस्तुति ।
बहुत अच्छी सीख, जब हमारे सामने कोई मुझे गलत लगाने वाला हो तो हमें कभी कभी खुद को उस जगह पर रख कर देख लेने की सीख आपका सही जीवन दृष्टिकोण प्रदर्शित करता है. बहुत सही सीख दी आपने.
सही बात है हम बदले तो जग बदले.
अच्छी लघु-कथा!
बहुत शिक्षा दायक.
रामराम.
aadarniy mam
bahut hi sixha-prad avam sahi-marg
dikhati hai aapki laghu -katha.jab ham apne ko agle ki jagah rakh kar dekhenge tabhi sahi vastu -sthiti ko samajh payenge.
ek prerak -prastuti
hardik dhanyvaad
poonam
सही कहा । दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलना ज़रूरी है ।
जब अपने ऊपर आती है तब पता चलता है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
बहुत सही सीख दी आपने, हमें अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
पहले अपनी सोच में बदलाव करना चाहिए ...अच्छी सीख देती लघुकथा ...
अच्छी लघु-कथा,पसंद आयी,आभार.
विस्तृत दृष्टिकोण कई समस्याएं हल कर सकता है ...... सुंदर कथा
आह! काश लोग सोचते...
ise kahte hain anubhaw kee ot se kahani ke madhyam se kuch kahna ...waah
बेहतरीन लघु कथा.
सलाम.
निम्मो दी!
सच में जो पहनता है जूते वही जानता है कि कौन सी कील कहाँ चुभती है.. कभी दूसरे के जूते में पैर डालें तो पता चलता है!!
एक बहुत सुंदर सीख, धन्यवाद
बहुत सुन्दर लघुकथा...और शिक्षाप्रदान
किसी भी मामले में सामने वाली की परिस्थति में अपने को रखकर लोग तथ्यों को देखने समझने लगें तो तकरार की कोई गुंजाइश ही नहीं बचा करेगी..
बहुत सुन्दर तरीके से आपने बात समझाई है...
आभार..
behtreen Prastuti
लघु कथा इस सत्य को उद्घाटित करती है कि अपना नजरिया बदलने से कई समस्यायों का समाधान स्वतः हो सकता है !
निर्मला जी, आज पहली बार आपके ब्लोक पर आई हु --ऐसा लगता हे जेसे अब तक बहुत कुछ मिस किया हे ---आइन्दा कुछ मिस नही करने वाली हु --धन्यवाद |
Pradam Mata ji,
aapki laghu katha bahut pashand aai.
सही है। जैसा सामर्थ्य हो,वैसी ही जीवन-शैली होनी चाहिए।
सही बात है। हमें अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
सुन्दर , सार्थक सन्देश देती बेहतरीन लघु कथा ।
आभार ।
बहुत शिक्षाप्रद लघु कथा निर्मला दी ! कहानी के माध्यम से आपने जीवन की कठिनाइयों के प्रति देखने का दृष्टिकोण ही बदल दिया ! सभी इसी तरह से सोचने लगें तो मुश्किलें कितनी आसान हो जायें ! इतनी सुन्दर कथा के लिये धन्यवाद एवं आभार !
बहुत बढ़िया द्रष्टान्त ! शुभकामनायें आपको
अच्छी सीख देती बेहतरीन लघु कथा.
'मिलिए रेखाओं के अप्रतिम जादूगर से '
prerak laghukatha maasi.
जब अपने ऊपर आती है तब पता चलता है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
प्रेमदिवस की शुभकामनाये !
कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
Seedhee,saral bhashame likhi hui khoobsoorat laghukatha!
इअ बहाने ही सही, कम से कम दूसरे की मजबुरी भी तो समझे.
अच्छी सीख देती कहानी। हम नाहक की दूसरे को दोष देते हैं। एक बार उसकी जगह खुद को रखकर देखें तो समझ आ सकता है कि वह किस हद तक सही है और हम किस हद तक गलत।
बधाई हो आपको।
आदरणीया निर्मला कपिला जी सादर नमस्कार
सुबीर जी के ब्लॉग पर आपकी ग़ज़ल पढ़ी बहुत आनंद हुआ और अब ये कहानी| आप अप्रतिम हैं आदरणीया, नमन|
बहुत ही बढ़िया लघुकथा ... हर सिक्के का दो पहलु होता है जी ...
दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलना ज़रूरी है ।
नजरिया अपना अपना...
सुन्दर लघु कथा..
बहुत ही बढ़िया लघुकथा
amar rajbhar ji
surhan azamgarh
9278447743
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