17 November, 2010

कविता [माँ जैसा बचपन लाओ न}



कविता

मम्मी से सुनी उसके बचपन की कहानी
सुन कर हुई बडी हैरानी
क्या होता है बचपन ऐसा
उड्ती फिरती तितली जैसा
मेरे कागज की तितली में
तुम ही रंग भर जाओ न
नानी ज्ल्दी आओ ना
अपने हाथों से झूले झुलाना
बाग बगीचे पेड दिखाना
सूरज केसे उगता है
केसे चांद पिघलता है
परियां कहाँ से आती हैं
चिडिया केसे गाती है
मुझ को भी समझाओ ना
नानी जल्दी आओ ना


गोदी में ले कर दूध पिलाना
लोरी दे कर मुझे सुलाना
नित नये पकवान खिलाना
अच्छी अच्छी कथा सुनाना
अपने हाथ की बनी खीर का
मुझे स्वाद चखाओ ना
नानी जल्दी आओ ना


अपना हाल सुना नहीं सकता
बसते का भार उठा नही सकता

मेरी अच्छी प्यारी नानी
तुम ही घोडी बन कर
इसका भार उठाओ ना
नानी ज्ल्दी आओ ना


मेरा बचपन क्यों रूठ गया है
मुझ से क्या गुनाह हुअ है
मेरी नानी प्यारी नानी
माँ जैसा बचपन लाओ न
नानी ज्ल्दी आओ न !! 

68 comments:

POOJA... said...

आपकी कविता बहुत ही अच्छी है...
मैंने भी एक याद लिखी थी अपनी नानी के नाम...

Manish aka Manu Majaal said...

हमने कुछ दिनों पहले एक कविता पढ़ी थी, दादी या नानी पर ही, उन्होंने तो बड़े चुटीले अंदाज़ में लिखा था, पर नानी जी पर तो इसी तरह की साफ़ सुधारी कविता जमती है...
अच्छी रचना, बच्चों को तो बहुत पसंद आएगी, हमारे अन्दर के बच्चे को भी अच्छी लगी ;)
लिखते रहिये ...

Anonymous said...

कितनी प्यारी और चंचल सी कविता है | मुझे भी अपनी नानी का स्मरण हो आया| बहुत खूब..

सूर्यकान्त गुप्ता said...

बहुत ही सुंदर चित्रण। मेरे लिये तो नानी ही मेरी माँ थीं। आभार……।

महेन्‍द्र वर्मा said...

सूरज कैसे उगता है
कैसे चांद पिघलता हे
परियां कहां से आती हैं
चिड़िया कैसे गाती है
मुझको भी समझाओ ना...

बहुत ही सुंदर रचना ,बाल मन की जिज्ञासा औा नानी के प्रति उसके लगाव को बहुत कोमलता से आपने शब्दों में पिरोया है।...शुभकामनाएं।

राम त्यागी said...

पुरानी यादें ताज़ी हो गयी , मेरी नानी का स्वर्गवास हो गया था इस साल और मैं जा भी नहीं पाया - अब सब सूना लगेगा जब मामा के घर जाऊँगा :(

शिक्षामित्र said...

बच्चों से बालपन का छिनना न सिर्फ बच्चे के लिए,बल्कि परिवार,समाज और अंततः देश के लिए ख़तरनाक होगा। यह प्रक्रिया धीमी सही,मगर लगातार जारी है। वात्सल्य ने सूर को भी आंखें दी थीं मगर आज.............ओह!

Yashwant R. B. Mathur said...

दिल को छू लेने वाली कविता.

Asha Lata Saxena said...

सुंदर अभिव्यक्ति |बधाई आशा

Sunil Kumar said...

आत्मीय संबंधों को दर्शाती रचना बहुत सुंदर , आभार

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

maa jaisa bachpan laao na...

wah wah wah!

vandana gupta said...

वाह! बहुत प्यारी कविता ।

कडुवासच said...

...sundar rachanaa !

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) said...

बचपन को याद कराती बहुत ही प्यारी कविता।

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर व चंचल बाल कविता।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बाल सुलभवृत्ति की याद दिलाती है ये रचना.

वाणी गीत said...

दादी अम्मा मुझे बताओ , दिन भर सूरज क्यूँ ढलता ...
घटता बढ़ता चाँद रोज क्यूँ है कैसे बादल बनता ..

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

तरही मुशायरे में एक शेर कुछ यूं हुआ था-
वो दादी-नानी के क़िस्सों की गुम सदाएं हैं
परी कथाएं भी अब तो ’परी कथाएं’ हैं
और आज...
आपकी इस खूबसूरत कविता ने...
बचपन की ऐसी ही यादों को जगा दिया...
बहुत उम्दा लिखा है.

Aruna Kapoor said...

बचपन की सुंदर यादों को....सुंदर शब्दों में ढाल कर....कविता का रुप दिया है आपने....बहुत बहुत बधाई!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत प्यारी कविता

रंजू भाटिया said...

बहुत ही मासूम कविता ,बहुत पसंद आई यह ..शुक्रिया

हरकीरत ' हीर' said...

अच्छी अच्छी कथा सुनाना
अपने हाथ की बनी खीर का
मुझे स्वाद चखाओ ना
नानी जल्दी आओ ना

निर्मला जी बहुत ही प्यारी बाल कविता लिखी ....

ZEAL said...

माँ की याद दिला दी आपने , अब नहीं हैं वो मेरे पास !

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी रचना दीदी। मैं तो इसे दो तीन बार गा चुका। आभार इस प्रस्तुति के लिए।

M VERMA said...

बालपन की अलौकिक स्मृतियाँ
बहुत सुन्दर रचना

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय निर्मला माँ
नमस्कार
बहुत ही मासूम कविता ,बहुत पसंद आई यह ......शुक्रिया

Bharat Bhushan said...

बहुत भावुक देने वाली रचना.

shikha varshney said...

नानी होती ही है सबसे प्यारी बहुत सुन्दर कविता.

Asha Joglekar said...

मैने अपनी नानी को नही देखा और मै दादी हूँ । पर आप की ये कविता बहुत अच्छी लगी । मां की तरह नानी भी मन के कहीं बहुत करीब होती है ।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आप भी यादों में खो गईं...बचपन की यादें हीती ही ऐसी हैं कि हर कोई ढूंढना चाहता है।
..अच्छा लगा.

Unknown said...

धन्य हो निर्मला जी !

बहुत बहुत कोमल और भावभीनी कविता के रूप में आपने जैसे शब्दों का आँचल पसार दिया है

वाह वाह ..........आनन्द आगया ..........बधाई इस अनुपम रचना के लिए

PN Subramanian said...

आहा! कितनी सुन्दर. बहुत अच्छी लगी. आभार.

mark rai said...

बहुत ही सुंदर चित्रण....
मुझे अपनी नानी का स्मरण हो आया...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत प्यारी और मासूम कविता

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बचपन को लेकर आपने बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है!

उपेन्द्र नाथ said...

मत भावुक हो उठा... बहुत प्यारी कविता

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

आपकी कविता पढकर नानी की याद आ गयी. बहुत दिन हो गए है नानी घर गए हुए. अच्छी व भावुक कविता लिखी है आपने.

पूनम श्रीवास्तव said...

ADaraniya Mam,
Bahut khoobasurati se apne bal manobhavon ki abhivyakti ki hai---bachapan yad aa gaya.itane sundar balgeet ke liye shubhkamnayen.
Poonam

अनामिका की सदायें ...... said...

आजकल आप कहाँ हैं...जो इतनी सुंदर सुंदर बालसुलभ कवितायें निकल रही हैं. :)

सुंदर कविता.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

आत्मीय रचना. बहुत सुन्दर.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

निम्मो दी.. छुटकी को थोड़ा और बड़ा हो जाने दीजिए , वो भी अपनी मम्मी से यही सब सवाल करेगी.. सुभद्रा कुमारी चौहान स्मरण हो आईं!!

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर !

रानीविशाल said...

दिल को छू गई आपकी यह रचना ....सचमुच अब हालात यह है की सम्पूर्ण सुविधाओं के बिच भी बच्चें बचपन स्वछन्द रमणीयता से दूर हो रहे है .

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द भावमय करती प्रस्‍तुति ।

अजित गुप्ता का कोना said...

निर्मला जी देर से आ पायी। शादियों का मौसम है तो कम ही समय मिल पाता है। दोहिती अमेरिका से आ गयी है तो उसके लिए कविता लिखी जा रही है। बढिया है। उसे हमारी तरफ से भी प्‍यार दें।

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

आदरणीया निर्मला कपिला जी, उम्र के इस पड़ाव पर भी आपके अंदर के बचपन को देख कर आप से ईर्ष्या हो रही है| सत्य वचन बोलने की धृष्टता करने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ|

दिगम्बर नासवा said...

सच आज वो बचपन नहीं है .. खो गया है समय की रफ़्तार में ... गहरे भाव लिए ..... बहुत देर तक सोचता रहा इसे पढने के बाद ... क्या कमी रह गयी हम लोगों से ...

अंजना said...

बहुत सुन्दर कविता......

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह! बहुत ही सुन्दर एवं उपारी सी बालसुलभ कविता....पढकर आनन्द आया!!
आभार्!

Arvind Jangid said...

शब्दातीत अभिव्यक्ति, साधुवाद.

Apanatva said...

manobhavo kee sunder abhivykti jo laad aur pyar kee chashnee me pagee huee hai.
Ati sunder

रंजना said...

वाह और आह दोनों एक साथ मुंह से निकला...

भावुक मोहक अतिसुन्दर कविता...वाह !!!

कुछ टंकण त्रुटियाँ रह गयीं हैं,किपाया उन्हें दूर कर लें...

जैसे :-

कैसे ,केसे रह गयी हैं..इसी प्रकार अन्य स्थानों पर भी ऐ के स्थान पर ए की मात्रा रह गयी है..

kumar zahid said...

नानी की कहानी और नानी की मनुहार बहुत हृदयस्पर्शी है ..

बचपन में एक कविता पाठ्यक्रम में थी ..

नानी के घर गई अभी मां तू परसों से
ऐसा लगता है कि मिली ना हो बरसों से ..

बचपन कभी पीछे नहीं छूटता मांजी!

Avinash Chandra said...

मीठी...बहुत मीठी

कविता रावत said...

bahut pyari pyari nani se manhaar karti baal sulabh rachna...
bahut achha laga....

RAJWANT RAJ said...

nani hoti hi jo aisi hai .is rishte se me ek anokha snsar bsa hota hai jise bhut hi sahaj prwah me aapne pathko ke samne prstut kiya hai .
mnbhawan !

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

क्या कहूँ, बहुत ही सुन्दर रचना है ... यादों को ताज़ा कर गई ... अब वो बचपन कहाँ ... हम भी अपने बच्चों को वो खुशी कहाँ दे पाए है ..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सम्बन्धों की खूबसूरत चित्रकारी..

विनोद कुमार पांडेय said...

बचपन से दादी एवं नानी का बेहद मजबूत रिश्ता है.बचपन के नाम एक भावपूर्ण पैगाम...खूबसूरत कविता इस भावपूर्ण कविता के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...पुराने बचपन के दिन याद आ जाते है जब ऐसी प्रस्तुति सामने होती है...सुंदर रचना के लिए आभार

Tarun said...

Nirmala ji, bahut acchi aur pyari kavita hai

रश्मि प्रभा... said...

kitni mithi si masumiyat hai is rachna me ...

अंजना said...

Shri Guru Nanak Dev ji de guru purab di lakh lakh vadhaian hoven ji

Manav Mehta 'मन' said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........

वीरेंद्र सिंह said...

Bahut pyaari kavita. Sach men.....

mridula pradhan said...

bahut achchi lagi.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

मैंने अपनी नानी जी नहीं देखी ... लेकिन मैंने अपनी माँ को नानी के रूप में बच्चो को बहुत प्यार करते देखा है.. आपकी कविता दिल को छु गयी.. निर्मला जी सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई ..

रचना दीक्षित said...

बहुत सुन्दर बालसुलभ कविता.बहुत प्यारी अभिव्यक्ति

Urmi said...

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!

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