कविता
मम्मी से सुनी उसके बचपन की कहानी
सुन कर हुई बडी हैरानी
क्या होता है बचपन ऐसा
उड्ती फिरती तितली जैसा
मेरे कागज की तितली में
तुम ही रंग भर जाओ न
नानी ज्ल्दी आओ ना
अपने हाथों से झूले झुलाना
बाग बगीचे पेड दिखाना
सूरज केसे उगता है
केसे चांद पिघलता है
परियां कहाँ से आती हैं
चिडिया केसे गाती है
मुझ को भी समझाओ ना
नानी जल्दी आओ ना
गोदी में ले कर दूध पिलाना
लोरी दे कर मुझे सुलाना
नित नये पकवान खिलाना
अच्छी अच्छी कथा सुनाना
अपने हाथ की बनी खीर का
मुझे स्वाद चखाओ ना
नानी जल्दी आओ ना
अपना हाल सुना नहीं सकता
बसते का भार उठा नही सकता
मेरी अच्छी प्यारी नानी
तुम ही घोडी बन कर
इसका भार उठाओ ना
नानी ज्ल्दी आओ ना
मेरा बचपन क्यों रूठ गया है
मुझ से क्या गुनाह हुअ है
मेरी नानी प्यारी नानी
माँ जैसा बचपन लाओ न
नानी ज्ल्दी आओ न !!
बाग बगीचे पेड दिखाना
सूरज केसे उगता है
केसे चांद पिघलता है
परियां कहाँ से आती हैं
चिडिया केसे गाती है
मुझ को भी समझाओ ना
नानी जल्दी आओ ना
गोदी में ले कर दूध पिलाना
लोरी दे कर मुझे सुलाना
नित नये पकवान खिलाना
अच्छी अच्छी कथा सुनाना
अपने हाथ की बनी खीर का
मुझे स्वाद चखाओ ना
नानी जल्दी आओ ना
अपना हाल सुना नहीं सकता
बसते का भार उठा नही सकता
मेरी अच्छी प्यारी नानी
तुम ही घोडी बन कर
इसका भार उठाओ ना
नानी ज्ल्दी आओ ना
मेरा बचपन क्यों रूठ गया है
मुझ से क्या गुनाह हुअ है
मेरी नानी प्यारी नानी
माँ जैसा बचपन लाओ न
नानी ज्ल्दी आओ न !!
आपकी कविता बहुत ही अच्छी है...
ReplyDeleteमैंने भी एक याद लिखी थी अपनी नानी के नाम...
हमने कुछ दिनों पहले एक कविता पढ़ी थी, दादी या नानी पर ही, उन्होंने तो बड़े चुटीले अंदाज़ में लिखा था, पर नानी जी पर तो इसी तरह की साफ़ सुधारी कविता जमती है...
ReplyDeleteअच्छी रचना, बच्चों को तो बहुत पसंद आएगी, हमारे अन्दर के बच्चे को भी अच्छी लगी ;)
लिखते रहिये ...
कितनी प्यारी और चंचल सी कविता है | मुझे भी अपनी नानी का स्मरण हो आया| बहुत खूब..
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर चित्रण। मेरे लिये तो नानी ही मेरी माँ थीं। आभार……।
ReplyDeleteसूरज कैसे उगता है
ReplyDeleteकैसे चांद पिघलता हे
परियां कहां से आती हैं
चिड़िया कैसे गाती है
मुझको भी समझाओ ना...
बहुत ही सुंदर रचना ,बाल मन की जिज्ञासा औा नानी के प्रति उसके लगाव को बहुत कोमलता से आपने शब्दों में पिरोया है।...शुभकामनाएं।
पुरानी यादें ताज़ी हो गयी , मेरी नानी का स्वर्गवास हो गया था इस साल और मैं जा भी नहीं पाया - अब सब सूना लगेगा जब मामा के घर जाऊँगा :(
ReplyDeleteबच्चों से बालपन का छिनना न सिर्फ बच्चे के लिए,बल्कि परिवार,समाज और अंततः देश के लिए ख़तरनाक होगा। यह प्रक्रिया धीमी सही,मगर लगातार जारी है। वात्सल्य ने सूर को भी आंखें दी थीं मगर आज.............ओह!
ReplyDeleteदिल को छू लेने वाली कविता.
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति |बधाई आशा
ReplyDeleteआत्मीय संबंधों को दर्शाती रचना बहुत सुंदर , आभार
ReplyDeletemaa jaisa bachpan laao na...
ReplyDeletewah wah wah!
वाह! बहुत प्यारी कविता ।
ReplyDelete...sundar rachanaa !
ReplyDeleteबचपन को याद कराती बहुत ही प्यारी कविता।
ReplyDeleteसुन्दर व चंचल बाल कविता।
ReplyDeleteबाल सुलभवृत्ति की याद दिलाती है ये रचना.
ReplyDeleteदादी अम्मा मुझे बताओ , दिन भर सूरज क्यूँ ढलता ...
ReplyDeleteघटता बढ़ता चाँद रोज क्यूँ है कैसे बादल बनता ..
तरही मुशायरे में एक शेर कुछ यूं हुआ था-
ReplyDeleteवो दादी-नानी के क़िस्सों की गुम सदाएं हैं
परी कथाएं भी अब तो ’परी कथाएं’ हैं
और आज...
आपकी इस खूबसूरत कविता ने...
बचपन की ऐसी ही यादों को जगा दिया...
बहुत उम्दा लिखा है.
बचपन की सुंदर यादों को....सुंदर शब्दों में ढाल कर....कविता का रुप दिया है आपने....बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता
ReplyDeleteबहुत ही मासूम कविता ,बहुत पसंद आई यह ..शुक्रिया
ReplyDeleteअच्छी अच्छी कथा सुनाना
ReplyDeleteअपने हाथ की बनी खीर का
मुझे स्वाद चखाओ ना
नानी जल्दी आओ ना
निर्मला जी बहुत ही प्यारी बाल कविता लिखी ....
माँ की याद दिला दी आपने , अब नहीं हैं वो मेरे पास !
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना दीदी। मैं तो इसे दो तीन बार गा चुका। आभार इस प्रस्तुति के लिए।
ReplyDeleteबालपन की अलौकिक स्मृतियाँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
आदरणीय निर्मला माँ
ReplyDeleteनमस्कार
बहुत ही मासूम कविता ,बहुत पसंद आई यह ......शुक्रिया
बहुत भावुक देने वाली रचना.
ReplyDeleteनानी होती ही है सबसे प्यारी बहुत सुन्दर कविता.
ReplyDeleteमैने अपनी नानी को नही देखा और मै दादी हूँ । पर आप की ये कविता बहुत अच्छी लगी । मां की तरह नानी भी मन के कहीं बहुत करीब होती है ।
ReplyDeleteआप भी यादों में खो गईं...बचपन की यादें हीती ही ऐसी हैं कि हर कोई ढूंढना चाहता है।
ReplyDelete..अच्छा लगा.
धन्य हो निर्मला जी !
ReplyDeleteबहुत बहुत कोमल और भावभीनी कविता के रूप में आपने जैसे शब्दों का आँचल पसार दिया है
वाह वाह ..........आनन्द आगया ..........बधाई इस अनुपम रचना के लिए
आहा! कितनी सुन्दर. बहुत अच्छी लगी. आभार.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर चित्रण....
ReplyDeleteमुझे अपनी नानी का स्मरण हो आया...
बहुत प्यारी और मासूम कविता
ReplyDeleteबचपन को लेकर आपने बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है!
ReplyDeleteमत भावुक हो उठा... बहुत प्यारी कविता
ReplyDeleteआपकी कविता पढकर नानी की याद आ गयी. बहुत दिन हो गए है नानी घर गए हुए. अच्छी व भावुक कविता लिखी है आपने.
ReplyDeleteADaraniya Mam,
ReplyDeleteBahut khoobasurati se apne bal manobhavon ki abhivyakti ki hai---bachapan yad aa gaya.itane sundar balgeet ke liye shubhkamnayen.
Poonam
आजकल आप कहाँ हैं...जो इतनी सुंदर सुंदर बालसुलभ कवितायें निकल रही हैं. :)
ReplyDeleteसुंदर कविता.
आत्मीय रचना. बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteनिम्मो दी.. छुटकी को थोड़ा और बड़ा हो जाने दीजिए , वो भी अपनी मम्मी से यही सब सवाल करेगी.. सुभद्रा कुमारी चौहान स्मरण हो आईं!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteदिल को छू गई आपकी यह रचना ....सचमुच अब हालात यह है की सम्पूर्ण सुविधाओं के बिच भी बच्चें बचपन स्वछन्द रमणीयता से दूर हो रहे है .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द भावमय करती प्रस्तुति ।
ReplyDeleteनिर्मला जी देर से आ पायी। शादियों का मौसम है तो कम ही समय मिल पाता है। दोहिती अमेरिका से आ गयी है तो उसके लिए कविता लिखी जा रही है। बढिया है। उसे हमारी तरफ से भी प्यार दें।
ReplyDeleteआदरणीया निर्मला कपिला जी, उम्र के इस पड़ाव पर भी आपके अंदर के बचपन को देख कर आप से ईर्ष्या हो रही है| सत्य वचन बोलने की धृष्टता करने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ|
ReplyDeleteसच आज वो बचपन नहीं है .. खो गया है समय की रफ़्तार में ... गहरे भाव लिए ..... बहुत देर तक सोचता रहा इसे पढने के बाद ... क्या कमी रह गयी हम लोगों से ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता......
ReplyDeleteवाह! बहुत ही सुन्दर एवं उपारी सी बालसुलभ कविता....पढकर आनन्द आया!!
ReplyDeleteआभार्!
शब्दातीत अभिव्यक्ति, साधुवाद.
ReplyDeletemanobhavo kee sunder abhivykti jo laad aur pyar kee chashnee me pagee huee hai.
ReplyDeleteAti sunder
वाह और आह दोनों एक साथ मुंह से निकला...
ReplyDeleteभावुक मोहक अतिसुन्दर कविता...वाह !!!
कुछ टंकण त्रुटियाँ रह गयीं हैं,किपाया उन्हें दूर कर लें...
जैसे :-
कैसे ,केसे रह गयी हैं..इसी प्रकार अन्य स्थानों पर भी ऐ के स्थान पर ए की मात्रा रह गयी है..
नानी की कहानी और नानी की मनुहार बहुत हृदयस्पर्शी है ..
ReplyDeleteबचपन में एक कविता पाठ्यक्रम में थी ..
नानी के घर गई अभी मां तू परसों से
ऐसा लगता है कि मिली ना हो बरसों से ..
बचपन कभी पीछे नहीं छूटता मांजी!
मीठी...बहुत मीठी
ReplyDeletebahut pyari pyari nani se manhaar karti baal sulabh rachna...
ReplyDeletebahut achha laga....
nani hoti hi jo aisi hai .is rishte se me ek anokha snsar bsa hota hai jise bhut hi sahaj prwah me aapne pathko ke samne prstut kiya hai .
ReplyDeletemnbhawan !
क्या कहूँ, बहुत ही सुन्दर रचना है ... यादों को ताज़ा कर गई ... अब वो बचपन कहाँ ... हम भी अपने बच्चों को वो खुशी कहाँ दे पाए है ..
ReplyDeleteसम्बन्धों की खूबसूरत चित्रकारी..
ReplyDeleteबचपन से दादी एवं नानी का बेहद मजबूत रिश्ता है.बचपन के नाम एक भावपूर्ण पैगाम...खूबसूरत कविता इस भावपूर्ण कविता के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...पुराने बचपन के दिन याद आ जाते है जब ऐसी प्रस्तुति सामने होती है...सुंदर रचना के लिए आभार
ReplyDeleteNirmala ji, bahut acchi aur pyari kavita hai
ReplyDeletekitni mithi si masumiyat hai is rachna me ...
ReplyDeleteShri Guru Nanak Dev ji de guru purab di lakh lakh vadhaian hoven ji
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........
ReplyDeleteBahut pyaari kavita. Sach men.....
ReplyDeletebahut achchi lagi.
ReplyDeleteमैंने अपनी नानी जी नहीं देखी ... लेकिन मैंने अपनी माँ को नानी के रूप में बच्चो को बहुत प्यार करते देखा है.. आपकी कविता दिल को छु गयी.. निर्मला जी सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बालसुलभ कविता.बहुत प्यारी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
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