गज़ल
शोखियाँ नाज़ नखरे उठाते रहे
वो हमे देख कर मुस्कुराते रहे
हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड जाते रहे
याद उसकी हमे यूँ परेशाँ करे
पाँव मेरे सदा डगमगाते रहे
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीबे हमे यूँ रुलाते रहे
वो वफा का सिला दे सके क्यों नहीं
बेवफा से वफा हम निभाते रहे
शाख से टूट कर हम जमीं पर गिरे
लोग आते रहे रोंद जाते रहे
जब चली तोप सीना तना ही रहा
लाज हम देश की यूँ बचाते रहे
[ये शेर मेजर गौतम राज रिशी जी के लिये लिखा था]
52 comments:
मुझे एक शब्द में कहने दीजिये..."उम्दा.."
आपने बहुत ही बढ़िया गजल पेश की है।
आभार!
बेवफा से हम वफ़ा निभाते रहे ....
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...
बेहद खूबसूरत रचना प्रस्तुत की है आपने। आपकी वापसी देखकर खुश हूँ।
जब चली तोप सीना तना ही रहा
लाज हम देश की यूं बचाते रहे...
गौतम भाई और देश के सभी रणबांकुरों के लिए आपने हम ब्लॉगर्स के विचारों को सुंदर अभिव्यक्ति दी है...
आपकी पोस्ट पढ़कर जान में जान आई...जब से आपने तबीयत खराब होने की बात बताई है...ईश्वर से यही
प्रार्थना है कि आपको जल्दी से जल्दी पूरी तरह स्वस्थ कर दे...
जय हिंद...
निर्मला दी,
बड़े प्यारे शेर निकले हैं....दिल की बात करते से लगते हैं... वाह...
हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड़ जाते रहे
*******
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
साधू ! साधू!!
हाथ से टूटती ही लकीरे रही
ये नसीब हमें यूँ ही रुलाते रहे
बेहद खूबसूरत !
nirmalaji ek ek sher cha gaya hai zahan par .bahut sunder . badhai!
nirmalaji ek ek sher cha gaya hai zahan par .bahut sunder . badhai!
याद उसकी हमे यूँ परेशाँ करे
पाँव मेरे सदा डगमगाते रहे
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीबे हमे यूँ रुलाते रहे
जब चली तोप सीना तना ही रहा
लाज हम देश की यूं बचाते रहे...
सभी शेर खूबसूरती से अहसास बयाँ कर रहे हैं. बहुत बहुत धन्यवाद आपका!
bahut badhiya lagi yeh ghazal.......
sundar gazal -badhai
निर्मला जी
अच्छी गजल। मेरे ब्लाग पर आपकी अनुपस्थिति खल रही है, सूनापन लग रह है।
हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड़ जाते रहे
----------------------
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
बेहद खुबसूरत लगे यह ख्याल ........आप्की रचनाओ मे अनुभव देखने को मिलता है जिससे अर्थ गहरा हो जाताहै .........बहुत बहुत ही सुन्दर रचना!
सुन्दर सरस रचना के लिए बधाई
very nice poetry..mind blowing
Nirmala ji...bahut badhiya gazal ek baar fir se badhiya abhivyakti..
kahani ho ya gazal har post behtareen..dhanywaad...
बहुत समय बाद अच्छा लगा दुबारा आपको ब्लॉग पर देख कर ..........
इस कमाल की ग़ज़ल में सब शेर कमाल के हैं ............ आदरणीय प्राण जी जिस ग़ज़ल को हाथ लगादे वो तो वैसे ही निखर जाती है ...........
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
ye sher khasa pasand aaya ....
अच्छी रचना -धन्यवाद !
ग़ज़ल तो पहले ही तरही में वाह वाही लूट चुकी है । दी आपका स्वास्थ्य कैसा है । अपना खयाल रखियेगा । नेट वगैरह तो होता रहेगा किन्तु अभी तो डाक्टर का कहा मानें ।
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
बहुत ही सुन्दर रचना, आपका स्वास्थ्य कैसा है ।
निर्मला जी,
इतनी खूबसूरत गज़ल जो तरही की समापन किश्त में प्रकाशित हुई और एक दीपवली के उपहार की तरह ही है।
दुबारा पढ़ी और गुनगुनायी।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
didi
hat sher dil mein ghar kar gaye
रूमानी जज्बों की सुंदर अभिव्यक्ति।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
waah !
gazab..............
kya khoob gazal
बहुत सुंदर गजल लिखी आप ने.धन्यवाद
बहुत सुंदर गजल लिखी आप ने.धन्यवाद
bahut umda gjal
aasha hai ab aapka svasth theek hoga ?
bahut umda gjal
aasha hai ab aapka svasth theek hoga ?
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
बिलकुल सही लिखा आप ने, बहुत सुंदर गजल कही आप ने.
धन्यवाद
बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना........
आभार्!
निर्मला जी,
आपको गजल कहते देख बहुत बहुत अच्छा लग रहा है...
कितनी ख़ुशी हुई है बता नहीं सकता....
मतले से शुरू करके...आखिरी मेजर साब वाले शे'र तक गजल पढने में मजा आ गया.....
अगली गजल का इंतज़ार है...
बहुत ही सुंदर और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! बधाई!
बढ़िया गजल पेश की है।
इस ग़ज़ल के और आपके नये अंदाज़े-बयां के हम तो कायल हो गये थे उसी दिन से....
और ये गुरूजी जो ऊपर लिख रहे हैं...क्या सचमुच? क्या हुआ है आपको??
अपना ख्याल रखिये!
gazal to pahale hi ustadana rahi , tarahi me khub dhum machaya hai isne... aapki tabiyat sudhaar par hai jaankar khushi hui... agali dhamaakedaar gazal ka intazaar kar rahaa hun....
arsh
जब चली तोप सीना तना ही रहा
लाज हम देश की यूँ बचाते रहे
aapki gazal
hm sb ki gazal ho gayi hai
sach ! parh kar bahut achhaa lagaa
aapki achhee sehat ke liye
Bhagwaan ji se prarthnaa kartaa hooN
हम फकीरों से पूछो न हाले जहां
जो मिले भी हमें छोड़ जाते रहे
वाह निर्मला जी बहुत ही लाजवाब.....!!
शाख से टूट कर......वाला भी बढिया लगा .....
और मेजर गौतम वाले को सैल्यूट ....!!
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
khubsoorat gazal hai..har sher lazabaab,hamesha ki tarah..
शाख से टूट कर हम जमीं पर गिरे
लोग आते रहे रोंद जाते रहे
kyaa baat hai. bahut sundar.
हम फकीरों से पूछो न हाले जहां
जो मिले भी हमें छोड़ जाते रहे
वाह । बहुत खूब लिखा ।
वो वफा का सिला दे सके क्यों नहीं
बेवफा से वफा हम निभाते रहे
वफादार निभाते ही रहे है
बेवफाई को भी यूँ ही ...!!
मेजर साहब को समर्पित शेर का तो कहना ही क्या सलाम ..!!
shaandaar gazal............thanks
हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड़ जाते रहे
*******
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
gautam ji aapka jawab nahi ,padhkar hum bejuban ho gaye ,laazwaab kuchh sher to kamaal ke hai .
निर्मला जी मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ऐसे ही हौसला देते रहिये. इतनी अच्छी ग़ज़ल है आपकी कि सिर्फ इतना ही कह सकती हूँ
वन्दे मातरम्
रचना दीक्षित
आपने बहुत ही बढ़िया गजल पेश की है।
हिन्दीकुंज
Behtareen gazal !!! Sabhi sher lajawaab hain !!!
bahut hisunder kavita aur andaz to bahut hi badiya hai good wishes
बहुत ही सुंदर और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! बधाई!
Post a Comment