10 November, 2009

गज़ल
दीपावली के शुभ अवसर पर गज़ल गुरू पंकज सुबीर जी ने एक तरही मुशायरे का आयोजन अपने ब्लाग पर किया। जिसमे देश विदेश के उस्ताद शायरों और उनके शिश्यों ने भाग लिया। कहते हैं न कि तू कौन ,मैं खामखाह। वही काम मैने किया। अपनी भी एक गज़ल ठेल दी।जिसे गज़ल उस्ताद श्री प्राण शर्मा जी ने संवारा । मगर सुबीर जी की दरियादिली थी कि उन्हों ने मुझे इस मे भाग लेने का सम्मान दिया।तरही का मिसरा था------ दीप जलते रहे झिलमिलाते रहे

शोखियाँ नाज़ नखरे उठाते रहे
वो हमे देख कर मुस्कुराते रहे

हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड जाते रहे

याद उसकी हमे यूँ परेशाँ करे
पाँव मेरे सदा डगमगाते रहे

हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीबे हमे यूँ रुलाते रहे

वो वफा का सिला दे सके क्यों नहीं
बेवफा से वफा हम निभाते रहे

शाख से टूट कर हम जमीं पर गिरे
लोग आते रहे रोंद जाते रहे

जब चली तोप सीना तना ही रहा
लाज हम देश की यूँ बचाते रहे
[ये शेर मेजर गौतम राज रिशी जी के लिये लिखा था]


52 comments:

Dr. Shreesh K. Pathak said...

मुझे एक शब्द में कहने दीजिये..."उम्दा.."

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपने बहुत ही बढ़िया गजल पेश की है।
आभार!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बेवफा से हम वफ़ा निभाते रहे ....

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...

Mithilesh dubey said...

बेहद खूबसूरत रचना प्रस्तुत की है आपने। आपकी वापसी देखकर खुश हूँ।

Khushdeep Sehgal said...

जब चली तोप सीना तना ही रहा
लाज हम देश की यूं बचाते रहे...

गौतम भाई और देश के सभी रणबांकुरों के लिए आपने हम ब्लॉगर्स के विचारों को सुंदर अभिव्यक्ति दी है...

आपकी पोस्ट पढ़कर जान में जान आई...जब से आपने तबीयत खराब होने की बात बताई है...ईश्वर से यही
प्रार्थना है कि आपको जल्दी से जल्दी पूरी तरह स्वस्थ कर दे...

जय हिंद...

Sudhir (सुधीर) said...

निर्मला दी,
बड़े प्यारे शेर निकले हैं....दिल की बात करते से लगते हैं... वाह...

हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड़ जाते रहे
*******
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे

साधू ! साधू!!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

हाथ से टूटती ही लकीरे रही
ये नसीब हमें यूँ ही रुलाते रहे

बेहद खूबसूरत !

Apanatva said...

nirmalaji ek ek sher cha gaya hai zahan par .bahut sunder . badhai!

Apanatva said...

nirmalaji ek ek sher cha gaya hai zahan par .bahut sunder . badhai!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

याद उसकी हमे यूँ परेशाँ करे
पाँव मेरे सदा डगमगाते रहे

हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीबे हमे यूँ रुलाते रहे

जब चली तोप सीना तना ही रहा
लाज हम देश की यूं बचाते रहे...

सभी शेर खूबसूरती से अहसास बयाँ कर रहे हैं. बहुत बहुत धन्यवाद आपका!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

bahut badhiya lagi yeh ghazal.......

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

sundar gazal -badhai

अजित गुप्ता का कोना said...

निर्मला जी
अच्‍छी गजल। मेरे ब्‍लाग पर आपकी अनुपस्थिति खल रही है, सूनापन लग रह है।

ओम आर्य said...

हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड़ जाते रहे
----------------------
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
बेहद खुबसूरत लगे यह ख्याल ........आप्की रचनाओ मे अनुभव देखने को मिलता है जिससे अर्थ गहरा हो जाताहै .........बहुत बहुत ही सुन्दर रचना!

अजय कुमार said...

सुन्दर सरस रचना के लिए बधाई

Razi Shahab said...

very nice poetry..mind blowing

विनोद कुमार पांडेय said...

Nirmala ji...bahut badhiya gazal ek baar fir se badhiya abhivyakti..
kahani ho ya gazal har post behtareen..dhanywaad...

दिगम्बर नासवा said...

बहुत समय बाद अच्छा लगा दुबारा आपको ब्लॉग पर देख कर ..........
इस कमाल की ग़ज़ल में सब शेर कमाल के हैं ............ आदरणीय प्राण जी जिस ग़ज़ल को हाथ लगादे वो तो वैसे ही निखर जाती है ...........

डॉ .अनुराग said...

हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे

ye sher khasa pasand aaya ....

Arvind Mishra said...

अच्छी रचना -धन्यवाद !

पंकज सुबीर said...

ग़ज़ल तो पहले ही तरही में वाह वाही लूट चुकी है । दी आपका स्‍वास्‍थ्‍य कैसा है । अपना खयाल रखियेगा । नेट वगैरह तो होता रहेगा किन्‍तु अभी तो डाक्‍टर का कहा मानें ।

सदा said...

हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे

बहुत ही सुन्दर रचना, आपका स्‍वास्‍थ्‍य कैसा है ।

मुकेश कुमार तिवारी said...

निर्मला जी,

इतनी खूबसूरत गज़ल जो तरही की समापन किश्त में प्रकाशित हुई और एक दीपवली के उपहार की तरह ही है।

दुबारा पढ़ी और गुनगुनायी।

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

मनोज कुमार said...

didi
hat sher dil mein ghar kar gaye

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

रूमानी जज्बों की सुंदर अभिव्यक्ति।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Unknown said...

waah !
gazab..............

kya khoob gazal

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर गजल लिखी आप ने.धन्यवाद

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर गजल लिखी आप ने.धन्यवाद

शोभना चौरे said...

bahut umda gjal
aasha hai ab aapka svasth theek hoga ?

शोभना चौरे said...

bahut umda gjal
aasha hai ab aapka svasth theek hoga ?

राज भाटिय़ा said...

हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
बिलकुल सही लिखा आप ने, बहुत सुंदर गजल कही आप ने.
धन्यवाद

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना........
आभार्!

manu said...

निर्मला जी,
आपको गजल कहते देख बहुत बहुत अच्छा लग रहा है...
कितनी ख़ुशी हुई है बता नहीं सकता....
मतले से शुरू करके...आखिरी मेजर साब वाले शे'र तक गजल पढने में मजा आ गया.....
अगली गजल का इंतज़ार है...

Urmi said...

बहुत ही सुंदर और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! बधाई!

Udan Tashtari said...

बढ़िया गजल पेश की है।

गौतम राजऋषि said...

इस ग़ज़ल के और आपके नये अंदाज़े-बयां के हम तो कायल हो गये थे उसी दिन से....

और ये गुरूजी जो ऊपर लिख रहे हैं...क्या सचमुच? क्या हुआ है आपको??

अपना ख्याल रखिये!

"अर्श" said...

gazal to pahale hi ustadana rahi , tarahi me khub dhum machaya hai isne... aapki tabiyat sudhaar par hai jaankar khushi hui... agali dhamaakedaar gazal ka intazaar kar rahaa hun....


arsh

daanish said...

जब चली तोप सीना तना ही रहा
लाज हम देश की यूँ बचाते रहे

aapki gazal
hm sb ki gazal ho gayi hai
sach ! parh kar bahut achhaa lagaa

aapki achhee sehat ke liye
Bhagwaan ji se prarthnaa kartaa hooN

हरकीरत ' हीर' said...

हम फकीरों से पूछो न हाले जहां
जो मिले भी हमें छोड़ जाते रहे

वाह निर्मला जी बहुत ही लाजवाब.....!!

शाख से टूट कर......वाला भी बढिया लगा .....

और मेजर गौतम वाले को सैल्यूट ....!!

rashmi ravija said...
This comment has been removed by the author.
rashmi ravija said...

हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
khubsoorat gazal hai..har sher lazabaab,hamesha ki tarah..

rashmi ravija said...
This comment has been removed by the author.
वन्दना अवस्थी दुबे said...

शाख से टूट कर हम जमीं पर गिरे
लोग आते रहे रोंद जाते रहे
kyaa baat hai. bahut sundar.

अर्कजेश said...

हम फकीरों से पूछो न हाले जहां
जो मिले भी हमें छोड़ जाते रहे

वा‍ह । बहुत खूब लिखा ।

वाणी गीत said...

वो वफा का सिला दे सके क्यों नहीं
बेवफा से वफा हम निभाते रहे
वफादार निभाते ही रहे है
बेवफाई को भी यूँ ही ...!!
मेजर साहब को समर्पित शेर का तो कहना ही क्या सलाम ..!!

mark rai said...

shaandaar gazal............thanks

ज्योति सिंह said...

हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड़ जाते रहे
*******
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
gautam ji aapka jawab nahi ,padhkar hum bejuban ho gaye ,laazwaab kuchh sher to kamaal ke hai .

रचना दीक्षित said...

निर्मला जी मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ऐसे ही हौसला देते रहिये. इतनी अच्छी ग़ज़ल है आपकी कि सिर्फ इतना ही कह सकती हूँ
वन्दे मातरम्

रचना दीक्षित

Ashutosh said...

आपने बहुत ही बढ़िया गजल पेश की है।
हिन्दीकुंज

रंजना said...

Behtareen gazal !!! Sabhi sher lajawaab hain !!!

Prem said...

bahut hisunder kavita aur andaz to bahut hi badiya hai good wishes

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुंदर और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! बधाई!

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