गज़ल
शोखियाँ नाज़ नखरे उठाते रहे
वो हमे देख कर मुस्कुराते रहे
हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड जाते रहे
याद उसकी हमे यूँ परेशाँ करे
पाँव मेरे सदा डगमगाते रहे
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीबे हमे यूँ रुलाते रहे
वो वफा का सिला दे सके क्यों नहीं
बेवफा से वफा हम निभाते रहे
शाख से टूट कर हम जमीं पर गिरे
लोग आते रहे रोंद जाते रहे
जब चली तोप सीना तना ही रहा
लाज हम देश की यूँ बचाते रहे
[ये शेर मेजर गौतम राज रिशी जी के लिये लिखा था]
मुझे एक शब्द में कहने दीजिये..."उम्दा.."
ReplyDeleteआपने बहुत ही बढ़िया गजल पेश की है।
ReplyDeleteआभार!
बेवफा से हम वफ़ा निभाते रहे ....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल...
बेहद खूबसूरत रचना प्रस्तुत की है आपने। आपकी वापसी देखकर खुश हूँ।
ReplyDeleteजब चली तोप सीना तना ही रहा
ReplyDeleteलाज हम देश की यूं बचाते रहे...
गौतम भाई और देश के सभी रणबांकुरों के लिए आपने हम ब्लॉगर्स के विचारों को सुंदर अभिव्यक्ति दी है...
आपकी पोस्ट पढ़कर जान में जान आई...जब से आपने तबीयत खराब होने की बात बताई है...ईश्वर से यही
प्रार्थना है कि आपको जल्दी से जल्दी पूरी तरह स्वस्थ कर दे...
जय हिंद...
निर्मला दी,
ReplyDeleteबड़े प्यारे शेर निकले हैं....दिल की बात करते से लगते हैं... वाह...
हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड़ जाते रहे
*******
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
साधू ! साधू!!
हाथ से टूटती ही लकीरे रही
ReplyDeleteये नसीब हमें यूँ ही रुलाते रहे
बेहद खूबसूरत !
nirmalaji ek ek sher cha gaya hai zahan par .bahut sunder . badhai!
ReplyDeletenirmalaji ek ek sher cha gaya hai zahan par .bahut sunder . badhai!
ReplyDeleteयाद उसकी हमे यूँ परेशाँ करे
ReplyDeleteपाँव मेरे सदा डगमगाते रहे
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीबे हमे यूँ रुलाते रहे
जब चली तोप सीना तना ही रहा
लाज हम देश की यूं बचाते रहे...
सभी शेर खूबसूरती से अहसास बयाँ कर रहे हैं. बहुत बहुत धन्यवाद आपका!
bahut badhiya lagi yeh ghazal.......
ReplyDeletesundar gazal -badhai
ReplyDeleteनिर्मला जी
ReplyDeleteअच्छी गजल। मेरे ब्लाग पर आपकी अनुपस्थिति खल रही है, सूनापन लग रह है।
हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
ReplyDeleteजो मिले भी हमे छोड़ जाते रहे
----------------------
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
बेहद खुबसूरत लगे यह ख्याल ........आप्की रचनाओ मे अनुभव देखने को मिलता है जिससे अर्थ गहरा हो जाताहै .........बहुत बहुत ही सुन्दर रचना!
सुन्दर सरस रचना के लिए बधाई
ReplyDeletevery nice poetry..mind blowing
ReplyDeleteNirmala ji...bahut badhiya gazal ek baar fir se badhiya abhivyakti..
ReplyDeletekahani ho ya gazal har post behtareen..dhanywaad...
बहुत समय बाद अच्छा लगा दुबारा आपको ब्लॉग पर देख कर ..........
ReplyDeleteइस कमाल की ग़ज़ल में सब शेर कमाल के हैं ............ आदरणीय प्राण जी जिस ग़ज़ल को हाथ लगादे वो तो वैसे ही निखर जाती है ...........
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ReplyDeleteये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
ye sher khasa pasand aaya ....
अच्छी रचना -धन्यवाद !
ReplyDeleteग़ज़ल तो पहले ही तरही में वाह वाही लूट चुकी है । दी आपका स्वास्थ्य कैसा है । अपना खयाल रखियेगा । नेट वगैरह तो होता रहेगा किन्तु अभी तो डाक्टर का कहा मानें ।
ReplyDeleteहाथ से टूटती ही लकीरें रही
ReplyDeleteये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
बहुत ही सुन्दर रचना, आपका स्वास्थ्य कैसा है ।
निर्मला जी,
ReplyDeleteइतनी खूबसूरत गज़ल जो तरही की समापन किश्त में प्रकाशित हुई और एक दीपवली के उपहार की तरह ही है।
दुबारा पढ़ी और गुनगुनायी।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
didi
ReplyDeletehat sher dil mein ghar kar gaye
रूमानी जज्बों की सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
waah !
ReplyDeletegazab..............
kya khoob gazal
बहुत सुंदर गजल लिखी आप ने.धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल लिखी आप ने.धन्यवाद
ReplyDeletebahut umda gjal
ReplyDeleteaasha hai ab aapka svasth theek hoga ?
bahut umda gjal
ReplyDeleteaasha hai ab aapka svasth theek hoga ?
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ReplyDeleteये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
बिलकुल सही लिखा आप ने, बहुत सुंदर गजल कही आप ने.
धन्यवाद
बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना........
ReplyDeleteआभार्!
निर्मला जी,
ReplyDeleteआपको गजल कहते देख बहुत बहुत अच्छा लग रहा है...
कितनी ख़ुशी हुई है बता नहीं सकता....
मतले से शुरू करके...आखिरी मेजर साब वाले शे'र तक गजल पढने में मजा आ गया.....
अगली गजल का इंतज़ार है...
बहुत ही सुंदर और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteबढ़िया गजल पेश की है।
ReplyDeleteइस ग़ज़ल के और आपके नये अंदाज़े-बयां के हम तो कायल हो गये थे उसी दिन से....
ReplyDeleteऔर ये गुरूजी जो ऊपर लिख रहे हैं...क्या सचमुच? क्या हुआ है आपको??
अपना ख्याल रखिये!
gazal to pahale hi ustadana rahi , tarahi me khub dhum machaya hai isne... aapki tabiyat sudhaar par hai jaankar khushi hui... agali dhamaakedaar gazal ka intazaar kar rahaa hun....
ReplyDeletearsh
जब चली तोप सीना तना ही रहा
ReplyDeleteलाज हम देश की यूँ बचाते रहे
aapki gazal
hm sb ki gazal ho gayi hai
sach ! parh kar bahut achhaa lagaa
aapki achhee sehat ke liye
Bhagwaan ji se prarthnaa kartaa hooN
हम फकीरों से पूछो न हाले जहां
ReplyDeleteजो मिले भी हमें छोड़ जाते रहे
वाह निर्मला जी बहुत ही लाजवाब.....!!
शाख से टूट कर......वाला भी बढिया लगा .....
और मेजर गौतम वाले को सैल्यूट ....!!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहाथ से टूटती ही लकीरें रही
ReplyDeleteये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
khubsoorat gazal hai..har sher lazabaab,hamesha ki tarah..
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteशाख से टूट कर हम जमीं पर गिरे
ReplyDeleteलोग आते रहे रोंद जाते रहे
kyaa baat hai. bahut sundar.
हम फकीरों से पूछो न हाले जहां
ReplyDeleteजो मिले भी हमें छोड़ जाते रहे
वाह । बहुत खूब लिखा ।
वो वफा का सिला दे सके क्यों नहीं
ReplyDeleteबेवफा से वफा हम निभाते रहे
वफादार निभाते ही रहे है
बेवफाई को भी यूँ ही ...!!
मेजर साहब को समर्पित शेर का तो कहना ही क्या सलाम ..!!
shaandaar gazal............thanks
ReplyDeleteहम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
ReplyDeleteजो मिले भी हमे छोड़ जाते रहे
*******
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीब हमे यूँ रुलाते रहे
gautam ji aapka jawab nahi ,padhkar hum bejuban ho gaye ,laazwaab kuchh sher to kamaal ke hai .
निर्मला जी मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ऐसे ही हौसला देते रहिये. इतनी अच्छी ग़ज़ल है आपकी कि सिर्फ इतना ही कह सकती हूँ
ReplyDeleteवन्दे मातरम्
रचना दीक्षित
आपने बहुत ही बढ़िया गजल पेश की है।
ReplyDeleteहिन्दीकुंज
Behtareen gazal !!! Sabhi sher lajawaab hain !!!
ReplyDeletebahut hisunder kavita aur andaz to bahut hi badiya hai good wishes
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDelete