गज़ल
बहुत दिन से किसी के ब्लाग पर नहीं आ पायी जिस के लिये क्षमा चाहती हूँ।
कुछ दिन से अस्वस्थ हूँ। डा़ ने आराम करने की सलाह दी है। मगर 2-4 दिन मे ही लगने लगा है कि जैसे दुनिया से कट गयी हूँ।बच्चे मुझे नेट पर भी नहीं बैठने देते। ब्लोग नहीं लिखने देते तो सारा दिन बिस्तर पर पडा आदमी तो और बीमार हो जायेगा। कल अचानक शाम को 5 बजे एक फोन आया कि *मैं अकबर खान बोल रहा हूँ। [अकबर खान जी The NetPress.Com vaale] हम लोग नंगल आये थे तो सोचा कि आपसे भी मिलते चलें।* मैं उस समय सो रही थी। एक दम से पता नहीं कहाँ से इतनी फुर्ती आ गयी कि मुझे लगा ही नहीं कि बीमार हूँ। उनके आने की इतनी खुशी हुई कि बता नहीं सकती। काफी देर ब्लोगिन्ग के बारे मे बातें हुई। और इस पर भी चर्चा हुई कि एक ब्लागर्ज़ मीट नंगल् मे रखी जाये। सेहत ठीक होते ही इस पर विचार करेंगे । उनकी पत्नि हमारे शहर से है ये जान कर और भी खुशी हुई। दोनो पति पत्नि इस तरह मिले जैसे हम लोग कई वर्षों से जानते हों। जाते हुये मुझ से आशीर्वाद मांगा तो मन भीग सा गया। इस ब्लाग्गिंग ने मुझे कितने रिश्ते कितनी खुशियां दी हैं सोचती हूँ तो मन भर आता है। जीने के लिये और क्या चाहिये? ऐसा लगता है कि अब हर खुशी और हर गम मेरी ब्लागिन्ग से ही जुडा हुया है। कहते हैं कि जिस इन्सान का बुढापा सुखमय और खुशियों से भरा हो वो इन्सान खुशनसीब होता है। क्यों कि जवानी मे तो iइन्सान के पास हिम्मत होती है सहनशक्ति होती है मगर बुढापे मे दुख सहन करने की ताकत नहीं होती। इस हिसाब से मैं खुशनसीब हूँ उमर चाहे कम हो या अधिक क्या फर्क पडता है जितनी भी हो सुखमय हो बस । । अकबरखान जी का धन्यवाद कि उन्होंने मुझे याद रखा और मेरे घर आने का कष्ट किया।
एक छोटी सी गज़ल ठेल रही हूँ पता नहीं बहर मे है या नहीं। आप देखें।ये मिसरा अनुज सुबीर जी ने दीपावली पर तरही मुशायरे पर दिया था उसी पर ये एक और गज़ल है jजो वहाँ नहीं भेज पाई थी।
कुछ दिन से अस्वस्थ हूँ। डा़ ने आराम करने की सलाह दी है। मगर 2-4 दिन मे ही लगने लगा है कि जैसे दुनिया से कट गयी हूँ।बच्चे मुझे नेट पर भी नहीं बैठने देते। ब्लोग नहीं लिखने देते तो सारा दिन बिस्तर पर पडा आदमी तो और बीमार हो जायेगा। कल अचानक शाम को 5 बजे एक फोन आया कि *मैं अकबर खान बोल रहा हूँ। [अकबर खान जी The NetPress.Com vaale] हम लोग नंगल आये थे तो सोचा कि आपसे भी मिलते चलें।* मैं उस समय सो रही थी। एक दम से पता नहीं कहाँ से इतनी फुर्ती आ गयी कि मुझे लगा ही नहीं कि बीमार हूँ। उनके आने की इतनी खुशी हुई कि बता नहीं सकती। काफी देर ब्लोगिन्ग के बारे मे बातें हुई। और इस पर भी चर्चा हुई कि एक ब्लागर्ज़ मीट नंगल् मे रखी जाये। सेहत ठीक होते ही इस पर विचार करेंगे । उनकी पत्नि हमारे शहर से है ये जान कर और भी खुशी हुई। दोनो पति पत्नि इस तरह मिले जैसे हम लोग कई वर्षों से जानते हों। जाते हुये मुझ से आशीर्वाद मांगा तो मन भीग सा गया। इस ब्लाग्गिंग ने मुझे कितने रिश्ते कितनी खुशियां दी हैं सोचती हूँ तो मन भर आता है। जीने के लिये और क्या चाहिये? ऐसा लगता है कि अब हर खुशी और हर गम मेरी ब्लागिन्ग से ही जुडा हुया है। कहते हैं कि जिस इन्सान का बुढापा सुखमय और खुशियों से भरा हो वो इन्सान खुशनसीब होता है। क्यों कि जवानी मे तो iइन्सान के पास हिम्मत होती है सहनशक्ति होती है मगर बुढापे मे दुख सहन करने की ताकत नहीं होती। इस हिसाब से मैं खुशनसीब हूँ उमर चाहे कम हो या अधिक क्या फर्क पडता है जितनी भी हो सुखमय हो बस । । अकबरखान जी का धन्यवाद कि उन्होंने मुझे याद रखा और मेरे घर आने का कष्ट किया।
एक छोटी सी गज़ल ठेल रही हूँ पता नहीं बहर मे है या नहीं। आप देखें।ये मिसरा अनुज सुबीर जी ने दीपावली पर तरही मुशायरे पर दिया था उसी पर ये एक और गज़ल है jजो वहाँ नहीं भेज पाई थी।
दीप जलते रहे झिलमिलाते रहे
दौर खुशियों के हम को लुभाते रहे
कौल करके निभाना न आया तुझे
यूँ निरे झूठ हम को बताते रहे
क्या गिला है मुझे कुछ बता तो सही
कौन से फासले बीच आते रहे
दूरियाँ यूँ बनी देखते ही गये
पास रहते हुये दूर जाते रहे
जश्न ऐसे मनाया तेरी मौत का
हम बने आग खुद को जलाते रहे
चाह कर भी भुला ना सकी मैं तुझे
रोज़ ही ख्वाब तेरे रुलाते रहे
खुर्सियाँ राजसी खून से हैं सनी
होलियाँ खून की वो मनाते रहे
दौर खुशियों के हम को लुभाते रहे
कौल करके निभाना न आया तुझे
यूँ निरे झूठ हम को बताते रहे
क्या गिला है मुझे कुछ बता तो सही
कौन से फासले बीच आते रहे
दूरियाँ यूँ बनी देखते ही गये
पास रहते हुये दूर जाते रहे
जश्न ऐसे मनाया तेरी मौत का
हम बने आग खुद को जलाते रहे
चाह कर भी भुला ना सकी मैं तुझे
रोज़ ही ख्वाब तेरे रुलाते रहे
खुर्सियाँ राजसी खून से हैं सनी
होलियाँ खून की वो मनाते रहे
kya gila hai........aate rahe.
ReplyDeletesabhi sher umda. nirmala ji badhai sweekaren.
सर्वप्रथम सभी ब्लोगर मित्रो को गुरुनानक जयंती की हार्दिक शुभकामनाये !
ReplyDeleteवाहे गुरु सतनाम, सतनाम वाहे गुरु !
जश्न ऐसे मनाया तेरी मौत का
हम बने आग खुद को जलाते रही
बहुत खूब, निर्मलाजी !
वाह....!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल लगाई है।
आपको स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूँ!
श्री गुरू नानकदेव जयन्ती और
कार्तिक पूर्णिमा की बधाई!
"हम आग बने खुद को जलाते रहे"
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
आप शीघ्रातिशीघ्र स्वास्थ्य लाभ-प्राप्त करें!
सबसे पहले आपके स्वास्थ्य हेतु शुभ कामनाएं........
ReplyDeleteआपका और खान दम्पत्ति का मिलन खुश कर गया.........ये भावना इस बात को बल देती है कि साहित्य जोड़ता है ........दिल को दिल से......
ग़ज़ल बहुत उम्दा है..........मुबारक हो !
निर्मला दी,
ReplyDeleteसर्वप्रथम तो ईश्वर से आपके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थी हूँ. आशा है के आप जल्द ही स्वस्थ होकर एक बार फिर हम लोगों का मार्गदर्शन करेंगी. ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी विशेष तौर पर "जश्न ऐसे मनाया.." और "चाह कर भी..." वाले शेर दिल को छू गए.
सादर
माँ जी को पायँ लागु ।
ReplyDeleteआप के पोस्ट के द्वारा आप के बीमारी का पता चला।
मै आप के स्वास्थ्य होने कामना की करता हु ।
खुबसुरत गजल .....
महान गुरु नानकदेव जी के जन्म-दिवस की ढ़ेरों शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteआप जल्दी स्वस्थ हों वैसे हम भी गर्दन के दर्द से बीत रहे हैं।
पुनः शुभकामनाएँ!
Mom...... mujhe yeh bahut dukh hua jaankar ki aapki tabiyat kharaab hai.... ab aap kaisi hain...? aapke jald swasth hone ki kaamna karta hoon.......
ReplyDeleteghazal bahut sunder hai.....
शीघ्र स्वस्थ होइए। बीमारी का इलाज तो शरीर खुद करता है। दवाइयाँ सहयोग करती हैं। लेकिन वे तभी काम करती हैं जब बीमार का मन भी सहयोग करे। अच्छा हुआ अकबर खान जी आप से मिलने आए। आप की आधी बीमारी तो दूर हो चुकी है। अधिक नहीं पर कुछ तो आप नेट पर आ सकती हैं। इस से बीमारी जल्दी दूर भागेगी।
ReplyDeleteग़ज़ल अच्छी है।
ग़ज़ल बहुत उम्दा है
ReplyDeleteहर शेर बेहतरीन
अरे आप बीमार हो गयी और हमें आज पता चल रहा है
वो तो ब्लोगिंग है नहीं तो हमें पता भी न चलता
मैं ईश्वर से कामना करता हूँ कि आप बहुत जल्दी चंगी हो जाएँ
आप बिमार नहीं थे, कुछ अच्छा रचने के लिए बिस्तर पर चले गए थे। कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है इस रचना को पढ़ने के बाद। बिरह का दर्द चर्म सीमा पर चला गया लगता है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना . आप जल्द स्वस्थ हो . ....शुभकामनाओ के साथ .
ReplyDeleteमैं समझता हूँ कि इसी तरह लिखते रहिये तो बीमारी यूँ ही दूर क्या काफूर हो जायगी। शीघ्र स्वस्थ होने की कामना।
ReplyDeleteबहुत भाव पूर्ण रचना है आपकी। चलिए मैं भी आदत के अनुसार कुछ तुकबंदी कर दूँ आपकी ही तर्ज पर-
हम हँसते रहे वो हँसाते रहे।
आईना से मुँह क्यों चुराते रहे?
रौशनी का वो मालिक बना आज है।
सारे घर के जो दीपक बुझाते रहे।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteकुछ दिनों से नेट पर आपकी अनुपस्थिति खल रही थी .. पर मैने समझा आप कहीं व्यस्त होंगी .. आपकी तबीयत ठीक हो जाए .. यही कामना है .. बीमारी के बावजूद एक ब्लागर परिवार से मिलना आपके लिए इतना सुखद रहा .. आपकी रचना भी अच्छी लगी !!
ReplyDeleteआप भी तो माँ बनकर सबपर अतुल्य स्नेह लुटाती रहती हैं...प्रत्युत्तर में प्यार तो मिलेगा ही...आपके जल्दी स्वस्थ होने की शुभकामनाएं
ReplyDeleteग़ज़ल बहुत सुन्दर है..खासकर ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
क्या गिला है तुझे,बता तो सही
कौन से फासले बीच में आते रहें....
sabse pahle to aapki sehat jaldi thik ho iski kaamna karti hun.
ReplyDeletekya gial hai mujhe kuch bata to sahi
kaun se fasle beech aate rahe
bahut hi umda gazal..........behtreen hai.
jashn aise manaya teri maut ka
hum bane aag khud ko jalate rahe
kya kahun ...........lajawaab prastuti.
निर्मला जी, बहुत उम्दा गजल है, हर शेर पर दाद देने को मन करता है। आप शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ करें, यही शुभकामना है।
ReplyDeleteआप माँ बनकर अपने बच्चों को ऐसा आशीर्वाद देते रहते हो की आपका सबको बेसब्र इन्तजार रहता है. क्यूँ न हो एक माँ ही अपनी बेटी का और एक बेटी ही तो है जो माँ के लिए सबसे अधिक चिंतित रहती है. काश सबका आप का मन होता, तो यह जहाँ कितना सुखमय होता. ईश्वर आपको हमेशा स्वस्थ रखे और दीर्घायु प्रदान करे. स्वास्थ्य हेतु शुभ कामनाएं........
ReplyDeleteगजल की ये पंक्तिया बहुत अच्छी लगी....
क्या गिला है तुझे,बता तो सही
कौन से फासले बीच में आते रहें....
दूरियां यूँ बनी देखते रह गए
निर्मला जी,
ReplyDeleteसब से पहले गुरपूरब की लख लख वधाइयां...वाहे गुरु जी से यही अरदास हमारी निर्मला जी को जल्दी पूरी तरह चंगा कर दे...जिससे हमें उनके ज्ञान की गंगा बिना किसी रुकावट हमेशा-हमेशा मिलती रहे...
जय हिंद...
ब्लॉगर और बीमार!?
ReplyDeleteहुँह… कभी नहीं
(बतर्ज़: पान पसंद विज्ञापन)
आपके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना
बी एस पाबला
बहुत बढिया गजल है।बधाई।
ReplyDeleteशीघ्र ही स्वास्थ लाभ पाएं...
गुरु नानक जयंती की शुभकामनाएं
bahut hee sunder gazal hai .
ReplyDeleteab aapaka swasthy kaisa hai ? Dhyan rakhiyega .
सबसे पहले देर से आने के लिये माफी चाहुंगा...........भगवांन से प्रार्थना भी करताहूँ कि आप जल्द से जल्द ठीक हो जाये..........और आराम भी करे ताकि आप ठीक जल्दी होंगी...........तब तक हम ब्लोगर आपका इंतजार दुआओ के साथ कर लेंगे........बहुत ही बेहतरीन है आपकी यह पोस्ट ............सादर
ReplyDeleteओम
ये पढ़ कर बहुत फ़िक्र हुआ क
ReplyDeleteआप की सेहत अभी ठीक नहीं है
खुदा वंद से दुआ करता हूँ कि आप जल्द
ही सेहत याब हो जाएं और फिर से
अदब कि खिदमत में जुट जाएं ...आमीन
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ...
ReplyDeleteआपके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कमाना के साथ प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनायें ....!!
अब आप आशा है ठीक होंगी ..स्वस्थ रहे यही दुआ है ..गजल बेहद पसंद आई ..
ReplyDeleteवाह दीदी
ReplyDeleteआपकी बाते पढ़कर मन भीग गया |सचमुच ब्लागिग से ढेर सारा प्यार और अपनत्व पाकर एक अनमोल खजाना मिल गया |
बहुत ही उम्दा गजल आपको सभी ब्लॉग पर देखकर और आपके द्वारा लिखी गई सकारात्मक टिप्पणियों से बहुत कुछ सीखा है मैंने |
आभार
क्या गिला है मुझे कुछ बता तो सही
ReplyDeleteकौन से फासले बीच आते रहे
शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना के साथ !
"दूरियां यूँ बढीं...." वाह...बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने निर्मला जी...आनंद आ गाया...हसीं इतेफाक है की आज मैंने भी अपने ब्लॉग पर पंकज जी के ब्लॉग पर भेजी तरही ग़ज़ल पोस्ट की है...
ReplyDeleteआप जल्द स्वस्थ हों इसी कामना के साथ...
नीरज
दी
ReplyDeleteआपके शीघ्र स्वास्थ्य की कामना करता हूं । आपकी कहानियों का आनंद ले रहा हूं इन दिनों आपके दोनों संग्रहों में । प्रणाम करता हूं आपकी जिंद को कि आपने न केवल ग़ज़ल नाम के अडि़यल घोड़े पर काबू कर लिया है बल्कि उस पर सवारी भी कर ली है । आपने सिद्ध कर दिया कि वो बात ग़लत नहीं है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती है । ग़ज़ल का आनंद तो तरही में ही ले चुका हूं । आपके शेरों में सम सामयिक चिंतन तथा व्यंग्य देख कर अच्छा लगता है ।
आपका ही अनुज
सुबीर
बहुत बढ़िया! अपना ध्यान रखिये और जल्दी स्वस्थ होइए!
ReplyDeleteनिर्मला जी, अपने स्वास्थ का ध्यान दीजिए जो सबसे पहले आता है आप हम लोगो से हमेशा जुड़ी है और हम लोगों के बीच है आपकी कविताएँ और कहानी हमारे लिए एक प्रेरणा श्रोत है..
ReplyDeleteभगवान आपको स्वास्थलाभ प्रदान करें और फिर आप हाज़िर हो अपनी बेहतरीन कहानियों और ग़ज़लों को लेकर...
अरे आप ने बताया नही कि आप बीमार है, चलिये अब जल्दी से ठीक हो जाये, हमारी शुभकामनायेआप के लिये...आप की चंद लाईने कि "कहते है कि जिस आदमी का बुढापा...... यह आप ने एक सच लिख दिया.धन्यवाद
ReplyDeleteवाह....!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल लगाई है।
आपको स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूँ!
श्री गुरू नानकदेव जयन्ती और
कार्तिक पूर्णिमा की बधाई!
पहले तो आप अपने स्वास्थय का ख्याल रखें....स्वास्थय पहले, पोस्ट का क्या है! ये तो चार दिन रूक के भी लिखी जा सकती है...बस आप चिकित्सक के कहे अनुसार कुछ दिन विश्राम कीजिए..
ReplyDeleteधन्यवाद्!
waah ji waah..bas kuchh din aur doctor ki sun ke aaram kar lijiye...aur jaldi se theek ho ke likhte rahiye :)
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया ग़ज़ल है और सारे शेर एक से बढ़कर एक हैं! बेहद पसंद आया आपका ये शानदार ग़ज़ल! लिखते रहिये!
ReplyDeleteजश्न ऐसे मनाया तेरी मौत का,
ReplyDeleteहम बने आग खुद को जलाते रहे ।
हर शब्द दिल को छूता हुआ हर पंक्ति गहरे भावों से सजी, हमें आपकी कमी बहुत खलती है, लेकिन आप अस्वस्थ्य हैं इस बात से और तकलीफ हुई, ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आप जल्दी से स्वस्थ्य हो जायें ।
शुभकामनाओं के साथ
सदा
इस MISRE पर बहुत SHER PADHE .......... पर आपके लाजवाब SHER तो और भी कमाल के हैं ......... सब SHER एक से BADH कर एक हैं ...
ReplyDeleteनिर्मला जी नमस्कार
ReplyDeleteआप अस्वस्थ्य हैं..??
आप शीघ्र स्वास्थ्य लाभ करें ..व साथ में थोडा आराम भी...!!
आप के लिए सुन्दर ताजे फूलों का गुलदस्ता भेजती हूँ..सप्रेम ...... उधर से..:)
आप फूलों की ही तरह मुस्कुराते रहें !!
दूरियां यूं बनी देखते ही रहे
ReplyDeleteपैस रहतो हिए दूर जाते हुए
वाह !
बहुत सुंदर गज़ल । आप जल्दी ही स्वास्थ्य लाभ करें इस कामना के साथ
जल्दी से स्वस्थ हो जायं -आपकी कमी अब लगने लगी है !
ReplyDeleteकिसने कहा कि आपका बुढापा आ गया ? ऐसी झूठी झूठी बाते न करें । बीमार तो कोई भी हो सकता है । आप लिखती रहे तो वह भी नही होंगी । शुभकामनायें ।
ReplyDeleteवाह....!
ReplyDeleteबहुत उम्दा ग़ज़ल आपकी।
बढ़कर बेफ़िकरी आपकी॥
सुभानाल्लाह....निर्मला जी गज़ब....गज़ब.....गज़ब.....!!
ReplyDeleteसोच रही थी की रात लिखी नई नज़्म डालूं तो आपका कमेन्ट दिखा .....बीच में कई जगह आपकी टिप्पणियों से पता चला आप अस्वस्थ हैं ....भगवान से दुआ है आप जल्दी स्वस्थ हो और ऐसे ही लिखती रहे .....!!
मीटर का तो पता नहीं निरला जी पर शे'र गज़ब के हैं खास करके ये .....
चाह कर भी भुला न सकी मैं तुझे
रोज़ ही ख्वाब तेरे रुलाते रहे
ये 'खुर्सियाँ' शब्द समझ नहीं आया .....!!
हरकीरत जी धन्यवाद तहाँ कुर्सियाँ राजसी का मतलव राज गद्दियाँ है। आपसब पाठकों का धन्यवाद जो मेरे लिये दुया की और मुझे प्रोत्साहित किया मैं आपसब की शुभकामनाइं से ठीक हो रही हूँ बस पाँवों की सूजन के कारण अभी अधिक देर बैठने से मना किया है फिर से आप सब का धन्यवाद्
ReplyDeleteखुर्सियॉं की जगह कुर्सियॉं होगा, नहीं?
ReplyDeleteKUCH DINO SE AAP BLOG PAR NAHI HAIN ... AASHA HAI AAPKA SWASTH THEEK HOGA ..... HAMAARI SHUBHKAAMNAYEN HAIN ....
ReplyDeleteजश्न ऐसे मनाया तेरी मौत का,
ReplyDeleteहम बने आग़ खुन को जलाते रहे।
इस शेर के बहाने आपने बहुत ही गहरे भाव व्यक्त किये हैं, मैं मंत्रमुग्ध सा हो गया हूं इसे पढकर। बधाई स्वीकारें।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आप जल्दी से पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करें, हमारी यही कामना है।
ReplyDelete------------------
और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।