ये गज़ल दोबारा पोस्ट की पहले एक दो गल्तियाँ थी उन्हें सही करते हुये पोस्ट डिलीट हो गयी कृप्या इसे दोबारा देखें। असुविधा के लिये खेद है।
गज़ल
गज़ल
देखो उनकी यारी रामा
दुनियाँ है दो धारी रामा
खाली बैठे तोडें कुर्सी
नौकर हैं सरकारी रामा
माँग रहे बेटों की कीमत
रिश्तों के व्यापारी रामा
कैसे कैसे नाच दिखाये
नारी की मत मारी रामा
मजबूरी रिश्ते ढोने की
पिछला कर्जा भारी रामा
सात जनम का झूठा वादा
एक जनम ही भारी रामा
खोटे सिक्के शान से चलते
सच्चाई तो हारी रामा
ऊपर है बाना साधू का
मन मे पर मक्कारी रामा
झूठे रिश्ते झूठे नाते
ये है दुनियादारी रामा
होड लगी है बस दौलत की
होती मारा मारी रामा
दाल दही थाली से गायब
हो गयी चीनी खारी रामा
रोटी कपडों के लाले हैं
लोगों की लाचारी रामा
रिश्वत दे कर सम्मानों की
करते दावेदारी रामा
दुनियाँ है दो धारी रामा
खाली बैठे तोडें कुर्सी
नौकर हैं सरकारी रामा
माँग रहे बेटों की कीमत
रिश्तों के व्यापारी रामा
कैसे कैसे नाच दिखाये
नारी की मत मारी रामा
मजबूरी रिश्ते ढोने की
पिछला कर्जा भारी रामा
सात जनम का झूठा वादा
एक जनम ही भारी रामा
खोटे सिक्के शान से चलते
सच्चाई तो हारी रामा
ऊपर है बाना साधू का
मन मे पर मक्कारी रामा
झूठे रिश्ते झूठे नाते
ये है दुनियादारी रामा
होड लगी है बस दौलत की
होती मारा मारी रामा
दाल दही थाली से गायब
हो गयी चीनी खारी रामा
रोटी कपडों के लाले हैं
लोगों की लाचारी रामा
रिश्वत दे कर सम्मानों की
करते दावेदारी रामा
68 comments:
आदरणीय निर्मला जी
नमस्कार !
.............सुन्दर सशक्त संदेश
.हर शेर का एक ख़ास मतलब है ...बढ़िया गजल ...शुक्रिया
अज अपनी गलती सही करते हुये मुझ से पोस्ट ही डिलीट हो गयी जिस पर इन सब के कमेन्ट्स आ चुके थे
1 संजय भास्कर [दोबारा कमेन्ट देने के लिये शुक्रिया\
2आशा जी
3 सोमेश सक्सेना जी
4 अजीत गुप्ता जी
5 वन्दना जी
6 अभि जी
7 इस्मत ज़ैदी जी
8 रश्मि जी
9 हर्षवर्धन जी
10 सदा जी
11 सुशील बकलीवाल जी
12सुरिन्द्र मुह्लिद
12डा. रूपचन्द शास्त्री मंयक जी
14 वाणी जी
15 अन्तर सोहिल जी
16 अरविन्द जी
17 ग्यानचंद मर्मग्य जी
इन्दर्जीत भट्टाचार्य सैल जी
18 श्री दिनेश राय दिवेदी जी
इन सब से क्षमा चाहती हूँ। कृ्प्या अन्यथा न लें।
अरे कोई बात नहीं...ये तो होता रहता है...आप बेवजह ही क्षमा मांग रही हैं ... :)
jai siya rama,jai siya rama---------------------------------------------------------------------------------rama,rama
Nirmala jee, kshama mang kar hamein sharminda na karein ... aapki lajawaab ghazal ko phir se kya baar baar padhne ko jee karta hai ...
सबकी सामत आयी रामा !
कोई बात नही जी, यह हो जाता हे, धन्यवाद
हर शेर का एक ख़ास मतलब है ...बढ़िया गजल ...शुक्रिया
हर शेर का एक ख़ास मतलब है ...बढ़िया गजल ...शुक्रिया
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल है निर्मला जी.... हर एक शेअर मायनेखेज़ है...
वाह ! बहुत सुंदर :)
एकदम अलग तरह की गज़ल है
बहुत ही बढ़िया.
समाज की विसंगतियों पर
बहुत ही बढ़िया, रचना
इस रचना में आपने बहुत से भावों को समेटा है. 'रामा' ने मानवीय व्यथा ढोने का कर्तव्य निभाया है. बहुत अच्छी ग़ज़ल.
bahut badiya rachna
आनंद दायक पोस्ट ...शुभकामनायें !
sabhi sher kaabile-taareef.
निम्मो दी!!
समाज की वर्त्तमान स्थिति को आईना दिखाती ग़ज़ल!!
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है निर्मला जी ।
नव वर्ष की शुभकामनायें ।
ग़ज़ल पर ऐसे ऐसे प्रयोग,
ब्लॉगिंग की महिमा न्यारी रामा ;)
ऐसे ग़ज़ल तो कहीं नहीं पढ़े ;)
लिखते रहिये ....
• इस ग़ज़ल में अपने समय और समाज की गहरी पहचान नज़र आता है।
खुबसूरत शेर बहुत बहुत बधाई
नव वर्ष की शुभकामनाये ,नया साल आपको खुशियाँ प्रदान करे
लो हम फिर से आ गए।
पुरानी टिप्पणियों को मेरे खयाल से ब्लागर में जा कर देखा जा सकता है।
वाह!आज तो कुछ नया ही पढ़ने को मिला।
..कविता को आम जन से जोड़ने के लिए आम जन द्वारा समझी जा सकनी भाषा में भी अवश्य लिखा जाना चाहिए। इस कोशिश में यह ध्यान रखना होगा कि सरलतम भाषा में गहनतम चिंतन रखा जा सके क्योंकि आमजन भाषा नहीं सार बखूबी समझते हैं। इस दृष्टि से आपकी इस गज़ल महत्व अधिक है।
ला-जवाब, बेहतरीन गजल....
हर शेर उम्दा!!!
निर्मम और सपाट व्यंग।
कपिला जी, बहुत ही अच्चा व्यंग कसा है आपने इस ग़ज़ल के माध्यम से ... संदर प्रस्तुति.
सात जनम का झूठा वादा
एक जनम ही भारी रामा
रिश्ता अगर बोझ हो, तो हर पल भारी हो जाता है, बहुत ही सच्चा शेर है...
खोटे सिक्के शान से चलते
सच्चाई तो हारी रामा...
हर तरफ़ यही देखने को मिल रहा है...
बहुत अच्छी ग़ज़ल है.
लाजवाब..... एक एक शेर खजाने से ढूंढ़ कर लायीं हैं आप
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है !!
रिश्वत देकर,सम्मानों की '
करते दावेदारी रामा। बेहतरीन शे'र , सार्थक और उम्दा ग़ज़ल , निर्मला कपिला जी को मुबारकबाद।
एक से बढ़कर एक..
बढ़िया गजल.
chaliye isi bahane phir aapka post upar aa gaya aur ek baar phir main gazal ke saath ho gai ....
अब क्या होगा रे रामा
देश तेरे भरोसे रे रामा
लाजवाब
arey anayatha lene wali kya baat hai ji.......achi rachna hai....
raama re raama!
हर एक शेर पर सिर्फ वाह वाह वाह कहते चले जाने को जी चाह रहा है...
क्या लिखा है आपने...ओह..लाजवाब !!!!
आपको और आपके कलम को नमन,इस अद्वितीय कृति के लिए....
आप इतना सुन्दर लेख, कहानियां, कवितायेँ, ग़ज़ल आदि कैसे लिख लेती है निर्मला जी?..... मैंने तो जब भी लिखना चाहा, एक सिरा पकड़ो तो दूसरा छूट जाता है .......... बहरहाल!
इस सुन्दर रचना के लिए आभार.
वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर!
बहुत बढ़िया गज़ल है निर्मला दी ! हर शेर गहन भाव को समेटे हुए है और हर व्यंग चुटीला है ! अपनी रचना में आपने जीवन की विषमताओं को बड़ी खूबी से अभिव्यक्त किया है ! मेरी शुभकानाएं स्वीकार करें !
इतनी सुंदर गजल लिखी है
मैं तो हूं बलिहारी रामा ।
गजल के शब्द बहुत सुन्दर और गहन अर्थ लिए हुए हैं |बधाई |
आशा
aadarniy mam
abhi tak to aapke lekh v sasmaran hi padhti aai thi,par aap gazal bhi utni hi khubsurati ke saath likhti hain ,aapki likhi pichhle gazlo ko bhi padha .bahut hi bahatreen tath yatharthata se bhari bilkul sateek gazlen hai aapki---
hardik bhinadan karti hun---
poonam
मांग रहे बेटों की कीमत
रिश्तों के व्योपारी, रामा
खोते सिक्के शान से चलते
सच्चाई तो हारी, रामा
ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में सम्पूर्ण है
भाव और कहन लाजवाब हैं ...
बधाई .
मांग रहे बेटों की कीमत
रिश्तों के व्योपारी, रामा
खोते सिक्के शान से चलते
सच्चाई तो हारी, रामा
....माँ जी!
जीवन का कटु सत्य उजागर कर रही है आपकी ग़ज़ल की हर पंक्ति.....
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना
har pangti lajabab.
छोटी बहर पे लिखी लाजवाब ग़ज़ल है ...
आपके विचार स्पष्ट और अभिव्यक्ति कमाल की होती है हमेशा ..
निर्मला जी, छोटी बहर में बहुत प्यारी गजल।
---------
पति को वश में करने का उपाय।
जीना हुआ मुहाल रे रामा.
वाह क्या बात है
बहुत खूब - बहुत सुन्दर
"सात जनम का झूठा वादा
एक जनम ही भारी रामा
खोटे सिक्के शान से चलते
सच्चाई तो हारी रामा"
पूरी रचना में हमारे समाज की नब्ज है.
हर पंक्ति सत्यता लिए असरदार है
एक जगह पर थोड़ी मुस्कान आ गयी :
"दाल दही थाली से गायब
हो गयी चीनी खारी रामा"
सोच रहे थे की यहाँ चीनी की जगह
प्याज हो सकता है कि नहीं :)
राम-राम!
निर्मला जी,
मुझे तो बार बार पढ़कर भी यह ग़ज़ल नई लगती है !
आज के दौर की संवेदना से लबालब भरी है आपकी ग़ज़ल !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
वाह, निर्मला जी, बेहतरीन ग़ज़ल है यह।
समाज की विसंगतियों पर अच्छा कटाक्ष किया है आपने।
बधाई।
बहुत खूब निर्मलाजी । आज की समाज की मानसिकता को दर्शाती हुई एक सुन्दर गज़ल ।
नये साल की बधाई स्वीकारे ।
wahwa....achhi rachna....sadhuwad..
बेहतरीन रचना
वाह वाह वाह!
क्या बेहतरीन रचना है ये..
बहुत ही सुन्दर..
आभार
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है|धन्यवाद|
बहुत खूबसूरत गजल........... प्रत्येक शेर मेँ बेशकीमती भाव कलमबद्ध किया है आपने ।
आपको एवं आपके परिवार को मकर संक्रान्ति की शुभकामनायेँ
"गजल............ आईँ थी जब सामने मेरे तुम"
बेहतरीन रचना ..... आइना है
आज के सामाजिक और व्यावहारिक पक्ष का
बहुत ही गहरी बात कही है आपने !
होड लगी है बस दौलत की
होती मारा मारी रामा......
बिल्कुल सही कहा है आपने ....
कर दिया है
दौलत की दौड़ में
खुदा लापता !
आभार
हरदीप
सक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें......सादर
कर दिया है
दौलत की दौड़ में
खुदा लापता !……………यही होता है।
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उतरायाण: मकर सक्रांति, लोहड़ी, और पोंगल पर बधाई, धान्य समृद्धि की शुभकामनाएँ॥
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Nice post .
शब्द,भाव,लय हर तरीके से दुरुस्त एक बेहतरीन ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई..प्रणाम माता जी
निर्मला जी , बहुत करारा व्यंग्य है ।
duniyaa kee bahut saari visangatiyon par comment karti hui rachna hai ...bahut acchi lagi
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