क्या ये नशा है?
सब ओर एक अजीब सा सन्नाटा। अभी बच्चों के जाने के बाद 2-3 दिन मे सब कुछ ठीक हो गया था फिर आज क्या हुया? समझ नहीं आ रही थी। घर की हर चीज़ जैसे मायूस सी थी । घर की हर चीज़ जैसे मुझ से नज़रें चुरा रही थी। सब कुछ अजनबी सा लग रहा था सोचा चलो आज फ्री हूँ कुछ सफाई कर लेती हूँ। तस्वीरें उठा कर साफ करने लगी तो वो भी उदास । नातिन की एक गुडिया यहाँ रह गयी थी उसे साफ करने लगी तो वो जैसे रोने लगी कि उसके जाने के बाद मैने उसे भी नहीं पूछा। खैर किसी तरह सब काम निपटाया। नाश्ता किया । काम खत्म । अब क्या किया जाये? बस घए मे एक मात्र प्राणे हमारे पति देव मन्द मन्द ,मुस्कुराते नज़र आये तो इनसे कहा कि चलो आज किसी के घर हो आते हैं बहुत दिन हो गये तो व्यंग से मुस्कुराये --हाँ आज तुम फ्री हो न मगर मुझे बहुत काम है। बस आ कर अपने बिस्तर मे बैठ गयी । जनाब एक बजे तक 3 गज़लें तडा तड लिख लीं-- है न चमत्कार? फिर खाना बनाया। आराम किया । शाम को इन से कहा कि चलो अब एक ताश की बजी लगाते हैं मगर जनाब ऐसे नाराज़ कि कहते मुझे खेलना भूल गया।शायद मुझे इस ब्लाग के नशे के बिना जीना सिखा रहे थे। मैं तो तंग आ गयी अब समय कैसे बिताया जाये फिर उठा ली कलम कागज़ दो गज़लें और लिख ली। खुद भी हैरान हूँ। बहुत मुश्किल से वो दिन बिताया आगले दिन फिर वही हाल अब तो कलम उठाने को भी मन नहीं किया।
बस सोचती रही कि इतनी उदास क्यों हूँ। क्या आप सब को समझ आया? नहीं न तो बताये देती हूँ दो दिन से कम्पयूटर खराब था ब्लाग पर जो नहीं आ पाई थीूअपने ब्लाग परिवार से दूर रही तो उदास तो होना ही था । या ये नशा था ब्लाग का? या आप सब का स्नेह? आप बतायें। आज लिखने को कुछ नहीं वो गज़लें अभी पास होने के लिये भेजनी हैं।अज एक पुरानी कविता से काम चला लेते हैं। कल मिलते हैं एक नई रचना के साथ । नमस्कार ।
कविता
सतलुज की लहरों ने
जीवन का सार बताया
सीमा मे बन्ध कर रहने का
गौरव उसने समझाया
कहा! उन्मुक्त बहूँ तो
सिर्फ उत्पात मचाती हूँ
भाखडा बान्ध मे हो सीमित
गोबिन्द सागर कहलाती हूँ
देती हूँ बिजली घर घर
फस्लों को पानी पहुँचाते हूँ
सब ओर एक अजीब सा सन्नाटा। अभी बच्चों के जाने के बाद 2-3 दिन मे सब कुछ ठीक हो गया था फिर आज क्या हुया? समझ नहीं आ रही थी। घर की हर चीज़ जैसे मायूस सी थी । घर की हर चीज़ जैसे मुझ से नज़रें चुरा रही थी। सब कुछ अजनबी सा लग रहा था सोचा चलो आज फ्री हूँ कुछ सफाई कर लेती हूँ। तस्वीरें उठा कर साफ करने लगी तो वो भी उदास । नातिन की एक गुडिया यहाँ रह गयी थी उसे साफ करने लगी तो वो जैसे रोने लगी कि उसके जाने के बाद मैने उसे भी नहीं पूछा। खैर किसी तरह सब काम निपटाया। नाश्ता किया । काम खत्म । अब क्या किया जाये? बस घए मे एक मात्र प्राणे हमारे पति देव मन्द मन्द ,मुस्कुराते नज़र आये तो इनसे कहा कि चलो आज किसी के घर हो आते हैं बहुत दिन हो गये तो व्यंग से मुस्कुराये --हाँ आज तुम फ्री हो न मगर मुझे बहुत काम है। बस आ कर अपने बिस्तर मे बैठ गयी । जनाब एक बजे तक 3 गज़लें तडा तड लिख लीं-- है न चमत्कार? फिर खाना बनाया। आराम किया । शाम को इन से कहा कि चलो अब एक ताश की बजी लगाते हैं मगर जनाब ऐसे नाराज़ कि कहते मुझे खेलना भूल गया।शायद मुझे इस ब्लाग के नशे के बिना जीना सिखा रहे थे। मैं तो तंग आ गयी अब समय कैसे बिताया जाये फिर उठा ली कलम कागज़ दो गज़लें और लिख ली। खुद भी हैरान हूँ। बहुत मुश्किल से वो दिन बिताया आगले दिन फिर वही हाल अब तो कलम उठाने को भी मन नहीं किया।
बस सोचती रही कि इतनी उदास क्यों हूँ। क्या आप सब को समझ आया? नहीं न तो बताये देती हूँ दो दिन से कम्पयूटर खराब था ब्लाग पर जो नहीं आ पाई थीूअपने ब्लाग परिवार से दूर रही तो उदास तो होना ही था । या ये नशा था ब्लाग का? या आप सब का स्नेह? आप बतायें। आज लिखने को कुछ नहीं वो गज़लें अभी पास होने के लिये भेजनी हैं।अज एक पुरानी कविता से काम चला लेते हैं। कल मिलते हैं एक नई रचना के साथ । नमस्कार ।
कविता
सतलुज की लहरों ने
जीवन का सार बताया
सीमा मे बन्ध कर रहने का
गौरव उसने समझाया
कहा! उन्मुक्त बहूँ तो
सिर्फ उत्पात मचाती हूँ
भाखडा बान्ध मे हो सीमित
गोबिन्द सागर कहलाती हूँ
देती हूँ बिजली घर घर
फस्लों को पानी पहुँचाते हूँ
पीने को पानी देती हूँ
सब को सुख पहुँचाती हूँ
जो समाज के नियम मे जीयेगा
वही इन्सान कहायेगा
जो तोडेगा इस के नियम
वो उपद्रवी कहलायेगा
तुम भी अनुशास्न मे रहना सीखो
मानव धर्म कमाओ
सतलुज की लहरों की मानिंद
जो समाज के नियम मे जीयेगा
वही इन्सान कहायेगा
जो तोडेगा इस के नियम
वो उपद्रवी कहलायेगा
तुम भी अनुशास्न मे रहना सीखो
मानव धर्म कमाओ
सतलुज की लहरों की मानिंद
49 comments:
निज पर निज का शासन
यही होता है अनुशासन
बहुत सुंदर-आभार
लोहड़ी की बधाईयाँ।
सारे परिवार को
बात सही है,
ब्लॉग पर आया जाया कीजिये
कुछ सुनिए कुछ सुनाया कीजिये
लोहड़ी की बधाई!
Mom ...... वाकई में यह चमत्कार है... एक साथ तीन ग़ज़ल लिखना .....
सुंदर पंक्तियों के साथ बहुत सुंदर रचना......
आपको लोहड़ी कि बहुत बहुत शुभकामनाएं....
अच्छी रचना! कंप्यूटर बंद रहे तो ऐसा ही होता है जैसे जीवन का कोई तार खिसक गया।
लोहड़ी पर शुभकामनाएँ!
निर्मला दी,
सचमें अचानक घर मैं आये बच्चे चले जाएँ तो घर से ज्यादा मन कही तो जाता है...जब भी हम लखनऊ से यहाँ आते हैं कई दोनों तक माँ-पिताजी से खाली घर और उनके विरक्त मन से बारे मैं ही सुनते हैं... कविता भी अच्छी है. "सतलुज की लहरों से भो जीवन का फलसफा कोई कवी ह्रदय ही पढ़ सकता हैं...
सादर
बहुत खूब , अनुशासित जीवन श्रेष्ठ जीवन है
bahut sunder sandeshliye pyaree rachana bilkul dil ko bha jane walee ! Badhai
बच्चो के बिना घर सूना और कंप्यूटर के बिना मन सूना ...:) अनुशासन सही में बहुत जरुरी है जीवन के लिए ..अच्छी लगी आपकी यह रचना ..शुक्रिया
सतलुज की लहरों ने
जीवन का सार बताया
सीमा मे बन्ध कर रहने का
गौरव उसने समझाया
Bahut sundar !
बहुत ही सुंदर लिखा आप्ने, शुभकामनाएं.
लोहडी पर्व की बधाईयां.
रामराम.
इस एकान्त के दो ही सहारे हैं एक लेखन और दूसरा ब्लोगिंग। अभी 5 तारीख को ही बच्चे गए हैं तब से ही अपनी व्यस्ताएं सम्भाल रही हूँ। लेकिन ब्लागिंग का अभाव भी और यह नवीन परिवार भी बहुत याद आता है।
behtareen
निर्मला जी,
ब्लॉगवुड में आपके कितने सारे बच्चे हैं...भौगोलिक तौर पर बेशक आपसे दूर हों लेकिन दिल से सब आपके हर वक्त करीब है...कभी सोचता हूं आपको तो बच्चों के किसी बहुत बड़े होम की केयर टेकर होना चाहिए था...सब बच्चों को
संस्कार और वात्सल्य इतना मिलता कि उनका जीवन धन्य हो जाता...एक थीं मदर टेरेसा...एक हैं मदर निर्मला...और अपनी इस मदर के शतायु और सदा स्वस्थ रहने की कामना करता हूं...
लोहड़ी और मकर संक्रांति की बहुत-बहुत बधाई...
जय हिंद...
achhi kavita. net kharab hone per itani dher sari gajalen likhi ja sakati hain to yah sauda bura nahain hai. Badhayi.
अगर मनुष्य सतलज की लहरों से इतनी ही सीख ले ले, तो ये धरती स्वर्ग बन जाए।
--------
अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
waah bahut hi sundar kavita hai prerna deti huyi.
aur ye blog se door rahna to sach mein kisi sazaa se kam nhi lagta ........bahut mushkil hota hai ab iske bina jeena.
उदासी भी बढिया है जी
इसके बीत जाने के बाद खुशी ज्यादा महसूस होगी
इस उदासी के समय में जो रचनायें हुई हैं उनकी गुणवत्ता भी अलग ही होगी
प्रणाम स्वीकार करें
तुम भी अनुशास्न मे रहना सीखो
मानव धर्म कमाओ
बिलकुल सही कहा दीदी आपने। जीवन की अभिव्यक्ति का सच।
बात तो सौ फीसदी सही है !!! समाज में रहने वाले ही इंसान है बाद बाकी उपद्रवी !!! सुन्दर !!
अकेलापन भी कहाँ उतना अकेला सा होता है अब..चलिये इतना सृजन तो हुआ...माँ वाग्देवी आप पर यूँ ही कृपा बनाये रखें..!
लेख आपने बहुत अच्छा लिखा है. सच, बच्चों के चले जाने के बाद घर भूतों का डेरा हो जाता है. किसी काम में मन नहीं लगता. फिर, उनकी यादें और भी कचोटती हैं. एक अजीब सी उदासी पसर जाती है.
एक दिन में ३ गजलें!!! बहन जी! ये लक्षण ठीक नहीं हैं. क्वालिटी और quantity में से किसी एक को चुनना होगा.
कविता के बारे में कुछ नहीं कहूँगा.
ek baar phir bahut he achhi rachna aunty ji...
likhte rahiye...
निर्मला जी सर्वप्रथम लोहड़ी की बधाईयाँ......!।
आपकी यह कविता महफूज़ के ब्लॉग पे भी पढ़ी थी ....बहुत अच्छे भाव हैं ....पर ये समझ आते आते आएगी .....!!
बहुत उदास लग रही है आप, अजी कुछ दिनो के लिये बेटी से मिलने के लिये दिल्ली का प्रोगराम बना ले, आप के आने से हम भी अपनी प्यारी से बडी बहिन के दर्शन कर लेगे ओर आप की उदासी भी दुर हो जायेगी.
bataooooooooo comp.k bina ye haal hai ye to samajh me aa gaya...dil laga jab comp.babu se to aur koi kiya cheez hai (ha.ha.ha.) lekin ek baat samajh nahi aayi aap bhi kisi se apni gazel approve karvati hai???????
baaaaaaaaap rey fir sada ki hoyega asi paas karaan lage te sare no. kat jane aur asi ta fail ho javange.
anushasan per apki kavita acchhi nahi hai......bahuuuuuuuuuuuut achhhi hai.
अनुशासित जीवन का सार समझाने का प्रतीक बहुत सुन्दर है ....प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है उनमे से एक अनुशासन में रहना भी है यदि कोई इसे समझे तो ....
Maaji लोहड़ी or makar sakranti की बधाईयाँ सारे परिवार को. Aaj kuch achha swasthya sudhar hua hai to mauka milte hi blog par ayee hun thodi der ke liye.... Sach mein internet mein blog ke madhyam se hum sab kitne kareeb aa jate hai.. ek duje ki chinta karte hai...... sabka apnapan dekh man ko bahut sukun milta hai....
कविता तो लाजवाब है,मन को छू गयी.
निर्मला जी, कल तो अपना भी यही हाल था।
कल ही इनवर्टर खराब हो गया और कल ही बिजली तीन घंटे गायब रही शाम को।
बिजली आने पर हमारे चेहरे पर मुस्कान देखकर पत्नी ने कहा --अब समझ में आया -क्यों इतने परेशान थे।
ब्लोगिंग दुखी मन की दवा है या वज़ह, ये तो रब जाने।
अभी तो लोहड़ी की बधाई।
रचना क साथ कथ्य भी बढ़िया है!
लोहिड़ी पर्व और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
भाव तो अच्छे हैं लेकिन सच तो यह है की मुझे आपकी ये कृति बहुत अच्छी नहीं लगी.
आपको लोहड़ी और मकर संक्रान्ति की बधाई , ।
अच्छी रचना......
लोहिड़ी पर्व और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
अच्छी रचना......
लोहिड़ी पर्व और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
मकर संक्रांति की शुभकामनायें! बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! बधाई!
मकर संक्रांति की शुभकामनायें!
निर्मला जी,
आपने सही कहा है की ब्लॉग्गिंग एक नशा है....इसके बिना मन उदास हो जाता है..
कविता के माध्यम से आपने सत्य का सन्देश दिया है की जीवन में अनुशासन बहुत ज़रूरी है.....सुन्दर रचना..
हां दी, ब्लॉग्गिंग एक नशा ही है. वैसे ये बहुत अच्छा नशा है. दुनिया के तमाम शराबी अगर इस नशे की लत पाल लें तो कितना अच्छा हो.
सच में दूसरों को सुख देने में जो आनंद मिलता है वो किसी और बात में कहाँ है .......... बहुत अच्छा संदेश देती है आपकी रचना ......... आपको मकर संक्रांति की बहुत बहुत शुभकामनाएँ .......
सतलुज की लहरों ने
जीवन का सार बताया
सीमा मे बन्ध कर रहने का
गौरव उसने समझाया।।
बहुत सुन्दर रचना......प्रकृ्ति अपने प्रत्येक क्रियाकलाप के माध्यम से सदैव हमें मर्यादित जीवन का पाठ पढाती रहती है....लेकिन इन्सान उसे फिर भी समझना नहीं चहता।
मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाऎँ!!!
बहुत सुंदर रचना.
हिन्दीकुंज
कविता बहुत अच्छी लगी.
Aadarneey Nirmla ji
wo blog ka nasha bhi tha padhne ki lalak bhi aur apne hone ka ehsaas bhi
ab ye sahitya ki duniya jise blog ka duniya kah sakte hain hamari zindgi hai jeevan ka hissa hai
bahut achchi kavita hai aapki nayi gazlon ka intezaar rahega
khubsurat kavita hai Nirmala ji ! badhai swikaren
निर्मला दी..सच कहा आपने..सबका यही हाल है....नेट और कम्प्यूटर खराब हो जाए तो सब अधुरा सा लगता है...
बहुत ही अच्छी कविता है हमेशा की तरह
निर्मला दी
आपने बिलकुल सही कहा
आपकी कविता बहुत अच्छी लगी
मुझे कल एक पोस्ट देनी थी पर इंटरनेट बार बार फेल हो जाता बड़ी मुश्किल से आज जैसे तैसे पोस्ट कर पाई
आपने सत्य कहा बड़ा अच्छा नशा है ब्लॉग का .
नई गजल का इंतजार है
Maasi pichhli gazal bhi kamaal hai aur ye kavita bhi, wapas UK pahunch gaya hoon.. dukh hai aap aur mausa ji akele rah gaye.. apna khyaal rakhiyega, kabhi yaad aaye to 0044-7515474909 par missed call den.
निर्मला जी आप क्या टेलीपैथी जानती हैं मैने अभी अभी मराढी में लिखी हुई घो ना दांडेकर साहब की आम्ही भगीरथा चे पुत्र (हम भगीरथ के पुत्र, 1959 में प्रकाशित पर उसका चौथा संस्करण 2007 में प्रकाशित हुआ था )पढ कर खत्म की है सब कुछ जहन में अभी ताजा ताजा ही था और आपकी ये कविता पढ कर आनंद आ गया । लेख तो अच्छा है ही उदासी ङी तो सृजन का सबब बनती है ।
वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
निकल कर आंखों से चुप चाप
बही होगी कविता अनजान
कवि का नाम आप जानती ही हैं ।
कृपया गो नी दांडेकर और मराठी पढें
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