02 July, 2009

प्रकृति आहत है ---1 भाग्

वक्त के पाँव नहीं होते
फिर भी भागता है
उसका शरीर रँग रूप
नहीं होता
फिर भी करवाता है
अपने अस्तित्व का एहसास
अतीत को छोड कर
वर्तमान को जीते हुये
चलता है अपने लक्ष्य
भविश्य की ओरे
कोई दिन वार महीना
उसे बाँध नहीं पाता
अपने मोहपाश मे
मगर इन्सान
प्रकृति की अनुपम रचना
भूल जाती है आगे बढना
वर्तमान मे जीते हुये
जमाये रखती है एक पाँव
अतीत की कश्ती मे
और नहीं छू पाती
भविश्य के मील पत्थर को
निश्चित ही
प्रकृति आहत होगी
अपनी इस रचना के व्यवहार से

27 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

khoobsoorat.

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

बहुत ही सुंदर और और भावार्थक रचना सुबह -सुबह पढ़ने को मिली साथ -साथ ''सफ़र के बीच " की प्रशंसा ,धन्यवाद |
लगता है आप फिर से गुरुमुखी पढ़ना सिखा कर ही मानेगीं '' ਪੰਜਾਬ ਇ ਖੁਸ਼ਬੂ " ਬੜੀ ਸੋਨੀ ਲਾਗੀ "

लोग कहते हैं वक्त ठहरता नहीं ,
मेरी निगाह में है ये इक भरम,
वक्त को रोक बांध लेते हैं हम ,
फिर उसे दोहराते हैं बार-बार ,
और इसे ही तो यादें कहते हैं हम||

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

"ਲਾਗੀ ਤੋਂ ਲਗੀ ਪੜ੍ਹਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈਂਗੀ "

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"मगर इन्सान
प्रकृति की अनुपम रचना
भूल जाती है आगे बढना"

जो वक्त से शिक्षा नही लेता,
पतन के गर्त में गिरता है।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

"वक्त के पाँव नहीं होते
फिर भी भागता है
उसका शरीर रँग रूप
नहीं होता
फिर भी करवाता है
अपने अस्तित्व का एहसास"
इन पंक्तियों का जवाब नहीं...
बहुत बहुत बधाई...

sanjay vyas said...

अनुपम. प्रकृति की ये रचना काल के तीनों आयामों को बांधना चाहती है इसी लिए उसकी दौड़ अंतहीन है....

अविनाश वाचस्पति said...

त्रिकालीय कविता का सुंदर रूप।

Riya Sharma said...

वक्त के नज़ाकत को कितनी सही शब्दों में ढाला है आपने
सुन्दर !!

Saadar

अनिल कान्त said...

बहुत सुन्दर रचना...और अच्छे भाव से लिखी गयी

विनोद कुमार पांडेय said...

भाव से भरे इस सुंदर कविता की जितनी तारीफ की जाए कम है.
गागर मे सागर

ओम आर्य said...

bahut hi sundar bhawarth ................jisame kuchh to baat hai ..............prakriti bhi aahat hogi ................badhiya

vijay kumar sappatti said...

aadarniya nirmala ji;

namaskar .. aapne atit , vartmaan aur bhavishya ko jodte hue itni acchi kavita likhi hai ki main kya kahun .......ye sach hai ki hamare karm ,hamare atit se jude hote hai aur vartmaan me jeete hai aur bhavishya ke liye sochte hai


..aapki shashakt lekhni ne bahut prabhavit kiya hai ji

mera naman aapko

vijay

P.N. Subramanian said...

बहुत ही सुन्दर रचना. हम तो अतीत से चिपके रहने में आनंदित होते हैं..

MANVINDER BHIMBER said...

थोड़े से शब्दों में गहरी बात कहना तो आपकी हस्ती में शुमार है......
बहूत ही गहरी और शशक्त अभिव्यक्ति है इस रचना मैं
आपकी शब्द बुनकरी मनहर है।
रचना पढने को विवश करती है

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.

रामराम.

mamta said...

सुंदर अभिव्यक्ति !

विवेक सिंह said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति !

कौन प्रकृति का हत्यारा ?
पुत्र उसी का सबसे प्यारा !

नीरज गोस्वामी said...

बहुत सार्थक रचना...सीधी सच्ची अच्छी बात...वाह.
नीरज

राज भाटिय़ा said...

वर्तमान मे जीते हुये
जमाये रखती है एक पाँव
अतीत की कश्ती मे
और नहीं छू पाती
भविश्य के मील पत्थर को
निश्चित ही
प्रकृति आहत होगी
अपनी इस रचना के व्यवहार से
बहुत सुंदर बात कही लेकिन इंसान समझता नही ओर जब समझ आती है तो अंत सामने खडा होता है.
बहुत सुंदर कविता कही आप ने धन्यवाद

रंजना said...

शब्दशः सत्य.....अतिसुन्दर अभिव्यक्ति.....मन को बांधने वाली इस रचना के लिए आपका आभार.

Deepak Tiruwa said...

bahut khoobsurti se baat kahi hai aapne ,kathya aur kathan donon sundar hain....

"अर्श" said...

IS KAVITAA KI JITANI TAARIF KARI JAAYE KAM HAI ... BAHOT HI THOS PRAYAAS HAI SAMAY KE BAARE ME LIKHNAA AUR USKA EHSAAS KUBSURAT SHABDON KE DWARA KARWANAA... BAHOT HI KAM PADHNE KO MILTI HAI AISI RACHANAAYEN... DUSARE BHAAG KA INTAZAAR RAHEGA... DHERO BADHAAYEE


ARSH

शोभना चौरे said...

प्रकृति आहत होगी
अपनी इस रचना के व्यवहार से

bilkul saty bat hki hai aapne .
dhnywad

vandana gupta said...

badi gahrayi se prakriti ke dard ko shabdon mein dhala hai.

Vinay said...

अति सुन्दर
---
विज्ञान । HASH OUT SCIENCE

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर
धन्यवाद

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

बक्त वे बहुत ही सुंदर कविता हम अगर वक्त के असली रूप को समझ जाए तो तो जीवन की असली गति मेंमें जीने लगे पर येसा नहीं होता है हम चलते हुए वक्त को ठहरा हुआ और जाते हुए वक्त को रुका हुआ मान कर अपनी नश्वरता के प्रति अस्वस्त रहते है
मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
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