इस हद तक जाना
तुम्हारी मौत को
शब्दों मे भुनाना
और
वाह वाह लूट कर
खुद को खुद की
नज़रों मे गिराना
क्या कहते हो
क्या ये सज़ा कम है
कागज़ की काली कँटीली
पगडँडियों पर चलने की व्यथा
क्या कम है
नित नये शब्द घडने की कथा
क्या कम है
खुद को टीस दे कर
दिल सताने की अदा
क्या कम है
मगर ये सज़ा पाना चाहती हूँ
आखिरी पल का
वादा निभाना चाहती हूँ
तुम्हारे अंदाज़ मे
पल पल मर कर
मुस्कराना चाहती हूँ
21 comments:
दिल सताने की अदा
क्या कम है
मगर ये सज़ा पाना चाहती हूँ
आखिरी पल का
वादा निभाना चाहती हूँ
तुम्हारे अंदाज़ मे
पल पल मर कर
मुस्कराना चाहती हूँ
AAPNE JO BAAT IN PANKTIYON KE MAADHYAM SE KAH DALI HAI..............BAS EK HI BAAT DIL SE NIKAL RAHI HAI KI ........BAS YAHI EK KHWAHISH HONA CHAHIYE EK DIL SE DUSARE DI TAK PAHUCHANE KE LIYE..
JITANI BHI TARIF KARU KAM PADEGI IN PANKTIYON KE LIYE...........
बहुत सही भावाभिव्यक्ति !
बहुत सही भावाभिव्यक्ति !
Toooo much... Tooooo good.
Aur koi ahabd hi nahi mile.
बेहतरीन अभिव्यक्ति.
रामराम.
आखिरी पल का
वादा निभाना चाहती हूँ
तुम्हारे अंदाज़ मे
पल पल मर कर
मुस्कराना चाहती हूँ
बहुत ही बढिया भाव अभिव्यक्ति.......आभार
पल पल मर कर
मुस्कराना चाहती हूँ
kaleja nikaal liya ji aapne toh
waah waah
umda rachna......badhaai !
बहुत ही सुंदर भाव भरी अभिव्यक्ति ,
दर्शाया है आपने,
बधाई स्वीकारें.
कम शब्दों में सुन्दर अभिव्यक्ति।
बधाई।
सच में...मोहब्बत भी क्या चीज है...मरना भी हो तो उसी के अंदाज में...पल पल...ताकि मरने को भी जिया जा सके...मुस्कुराते हुए...अच्छी लगी कविता.
जबाब नही , बहुत ही खुब्सुरती से आप ने दिल की बात कह दी..
धन्यवाद
badi hi khoobsoorti se gahri baat kah di.
निर्मला जी कैसी हैं? बहुत सुन्दर कविता है!
निर्मला जी,
हाल-ए-दिल बयां करने के इस बहाने से
जाने कितने कागजों को रंगा हमने खूं से
बहुत अच्छी रचना।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आखिरी पल का
वादा निभाना चाहती हूँ
तुम्हारे अंदाज़ मे
पल पल मर कर
मुस्कराना चाहती हूँ !
बहुत ही गहरे भावों के साथ,
सुन्दर अभिव्यक्ति, आभार ।
आखिरी पल का
वादा निभाना चाहती हूँ
तुम्हारे अंदाज़ मे
पल पल मर कर
मुस्कराना चाहती हूँ
गहरी अभिव्यक्ति है इस रचना में...... बड़ा मुश्किल होता है ऐसा करना
कागज़ की काली कँटीली
पगडँडियों पर चलने की व्यथा
क्या कम है
vah kya abhivykti.bhut khoob
badhai
bahot hi samvadanshil kavitaa hai dil ko chirati hui dharaatal pe le aati hai ... pataa nahi maun pade shabd ko kaise aap aawaaz deti hai pichhali kavitaa bhi aisi hi thi... dono me gahavaa bhav ka purnata se samaavesh hai...is behad hi bhavuk kavitaa pe kaise badhaayee dun samajh nahi aaraha hai ...
arsh
wah nirmala ji, bahut umda rachna,..........khas kar. pal pal markar muskurana chahti hun.
wah. badhai sweekaren.
आखिरी पल का
वादा निभाना चाहती हूँ
तुम्हारे अंदाज़ मे
पल पल मर कर
मुस्कराना चाहती हूँ
बेहतरीन !!
बहुत उम्दा..बेहतरीन!
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