23 June, 2009

एक साँस का फासला

ज़िन्दगी और मौत
केवल एक साँस का फासला
और तुम
कितनी आसानी से
अटक गये उस पर
नहीं बढाया कदम
दूसरी साँस की ओर
शायद तुम्हारा प्रतिशोध था
अपनी ज़िन्दगी से
शायद तुम सही थे
तुम इस फासले के
घोर सन्नाटे का
एहसास करवाना चाहते थे
और जीने वालों के लिये
छोड जाना चाहते थे
कुछ नमूने कि
तुम भी जी कर दिखाओ
मेरी तरह जी कर
देना चाहते थे एक टीस
जो मौत से भी असह है
देखना चाहती हूँ मै भी
इस सन्नाटे का एक एक पल
तुम कैसे जीये
हाँ बस इतना ही कर सकती हूँ
ह ! क्या तकदीर है
किसी की मौत पर जीना
और उसके अँदाज़ मे जीना

25 comments:

अजय कुमार झा said...

बस इक सांस का फासला..
जिन्दगी छोड़,
मौत की,,आस का फासला...

वह निर्मला जी अद्भुत ..पंक्तियाँ...

संगीता पुरी said...

बहुत गंभीर रचना .. गजब का प्रस्‍तुतीकरण।

Unknown said...

zindgi aur maut ke beech ka faasla..........
faasle ke darmiyan sannata..........
sannate ki tees
tees ka dard
jiyo!
jiyo nirmalaji
bahut bahut badhaai aapki lekhni ko ..............

विनोद कुमार पांडेय said...

क्या भाव पिरोया आपने,
बधाई हो,
सुंदर कविता

ओम आर्य said...

इतने सुन्दर भाव मे संजोया है इस कविता को समझ मे नही आता कि कैसे कुछ लिखे ...........एक साँस का फासला ही तो ऐसी दूरी बना देता है जो प्रकाश वर्ष की दूरी मे तबदील हो जाती है ...........बढिया

सदा said...

बहुत ही बेहतरीन रचना, बधाई

vandana gupta said...

adbhut bhavon ko piroya hai.......har bhav lajawaab

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

नमस्कार निर्मला जी आप की कवितायों में हर बार कुछ न कुछ नया पॅन होता है और गंम्भीरता तो एक एक शब्द में समायी होती है जीवन के प्रति स्पंदन पैदा करती रचना
बहुत खूब बहुत ही सुंदर बधाई मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

P.N. Subramanian said...

. बहुत सुन्दर. केवल एक ही सांस का फासला है. आगे आपकी अभिव्यक्ति और भी सुन्दर हो चली है. आभार.

राज भाटिय़ा said...

झंझजोर कर रख दिया , जिन्दगी को इतने नजदीक से दिखाया आप ने , बहुत सुंदर.
धन्यव्बाद

दिगम्बर नासवा said...

जीने और मरने के बीच के पल को जीना................ क्या लाजवाब कल्पना है आपके.......... बहूत खूब

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"ज़िन्दगी और मौत
केवल एक साँस का फासला
और तुम
कितनी आसानी से
अटक गये उस पर
नहीं बढाया कदम
दूसरी साँस की ओर
शायद तुम्हारा प्रतिशोध था"

वाह कपिला जी।
भाव भरी कविता पढ़वाने का शुक्रिया।

रंजना said...

दिल में सीधे उतरती रचना....बहुत ही भावपूर्ण !!! वाह !!!

Yogesh Verma Swapn said...

gazab ki prastuti, nirmala ji badhai sweekaren.

मुकेश कुमार तिवारी said...

निर्मला जी,

एक नये विचारों वाली कविता, कुछ भी रूटीन नही, कुछ भी सतही नही।

इस गंभीर और सार्थक रचना के लिये बधाई।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

ताऊ रामपुरिया said...

एक असलियत को आपने काव्य मे पिरो दिया. आपके भाव और शब्द संयोजन लाजवाब हैं. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

"अर्श" said...

IS KAVITAA PE MERAA KUCHH NAA KAHNAA HI SAHI HAI.... PAHALI PANKTI BAS EK SANS KA FAASALAA......... ITANI GAHARI BAAT LIKHNE KE LIYE KITNE GAHARAI ME UTARNAA HOGAA YE SOCH KE HI STABHDH HUN....KITANI SAMEDANSHILTA HAI IS KAVITAA ME JISE AAPNE BAHOT HI KARINE SE SAJAAYA HAI... KUCHH BHI NAHI KAHNE KE LAYAK HUN HUN...


ARSH

Prem Farukhabadi said...

गंभीर और सार्थक रचना के लिये .
बधाई!!!

Udan Tashtari said...

बहुत गहरी रचना..वाह!

प्रदीप मानोरिया said...

जिन्दगी के यथार्थ को बयान करती सार्थक रचना बहुत बहुत बधाई ऐसे सार्थक सृजन के लिए

सर्वत एम० said...

यात्रा में सहयात्री के साथ छोड़ देने का एहसास जैसा आपने इस कविता में पिरोया है, कम पढ़ने को मिलता है. आपकी रचना की मैं तारीफ क्या करूं , सारा देश आपकी सराहना करता हैं. मैं अपनी खुशकिस्मती मानता हूँ कि इतनी महान रचनाकार ने, गज़लों के एक अदना से ब्लॉगर के, पागलपन में लिखे गये एक लेख को महत्व दिया. यह आपकी सम्वेदना के जीवित रहने का प्रमाण है. लखनऊ की यह घटना तो कुछ भी नहीं थी, आलम ये है कि :
सड़क पे अस्मतें लुटती हैं दिनों लेकिन
कहीं किसी को भी शर्मिंदगी नहीं होती
धन्यवाद

vijay kumar sappatti said...

आदरणीय निर्मला जी

मैं बहुत देर से आपकी इस कविता को पढ़ रहा हूँ [ 5 times ] .. देरी से आने के लिए क्षमा चाहूँगा ..कविता की कुछ तारीफ करना ...सिर्फ थोडा सा ही होंगा... मैं पढ़ रहा हूँ ..बहुत बार ......एक पंक्ति पर आकर मैं सिहर जाता हूँ ....

" शायद तुम सही थे " ....और ये भी
" देना चाहते थे एक टीस, जो मौत से भी असह है"

और अंतिम पंक्तियाँ तो जैसे बस निशब्द करने के लिए काफी है ....

" हाँ बस इतना ही कर सकती हूँ ,
ह ! क्या तकदीर है
किसी की मौत पर जीना
और उसके अँदाज़ मे जीना "

मेरा नमन स्वीकार करिए आप ...आपकी कविता की शशक्त अभिव्यक्ति ने मेरे मन के भीतर एक हलचल सी मचा दी है ... प्रेम और त्याग की इस अनुपम कृति को मेरा प्रणाम ...

आपका बहुत आभार

विजय
09849746500

अमिताभ श्रीवास्तव said...

bahut achhi rachna he, bas ik saans ka faasla..jindagi chhor mout ki aas kaa faslaa...//darshanyukt rachnaye dil ko bahut bhaa jaati he..

Ashutosh said...

बहुत सुंदर.

Smart Indian said...

इस अलग सी और भावप्रणव रचना को बांटने के लिए धन्यवाद!

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