एक साँस का फासला
ज़िन्दगी और मौत
केवल एक साँस का फासला
और तुम
कितनी आसानी से
अटक गये उस पर
नहीं बढाया कदम
दूसरी साँस की ओर
शायद तुम्हारा प्रतिशोध था
अपनी ज़िन्दगी से
शायद तुम सही थे
तुम इस फासले के
घोर सन्नाटे का
एहसास करवाना चाहते थे
और जीने वालों के लिये
छोड जाना चाहते थे
कुछ नमूने कि
तुम भी जी कर दिखाओ
मेरी तरह जी कर
देना चाहते थे एक टीस
जो मौत से भी असह है
देखना चाहती हूँ मै भी
इस सन्नाटे का एक एक पल
तुम कैसे जीये
हाँ बस इतना ही कर सकती हूँ
ह ! क्या तकदीर है
किसी की मौत पर जीना
और उसके अँदाज़ मे जीना
ज़िन्दगी और मौत
केवल एक साँस का फासला
और तुम
कितनी आसानी से
अटक गये उस पर
नहीं बढाया कदम
दूसरी साँस की ओर
शायद तुम्हारा प्रतिशोध था
अपनी ज़िन्दगी से
शायद तुम सही थे
तुम इस फासले के
घोर सन्नाटे का
एहसास करवाना चाहते थे
और जीने वालों के लिये
छोड जाना चाहते थे
कुछ नमूने कि
तुम भी जी कर दिखाओ
मेरी तरह जी कर
देना चाहते थे एक टीस
जो मौत से भी असह है
देखना चाहती हूँ मै भी
इस सन्नाटे का एक एक पल
तुम कैसे जीये
हाँ बस इतना ही कर सकती हूँ
ह ! क्या तकदीर है
किसी की मौत पर जीना
और उसके अँदाज़ मे जीना
25 comments:
बस इक सांस का फासला..
जिन्दगी छोड़,
मौत की,,आस का फासला...
वह निर्मला जी अद्भुत ..पंक्तियाँ...
बहुत गंभीर रचना .. गजब का प्रस्तुतीकरण।
zindgi aur maut ke beech ka faasla..........
faasle ke darmiyan sannata..........
sannate ki tees
tees ka dard
jiyo!
jiyo nirmalaji
bahut bahut badhaai aapki lekhni ko ..............
क्या भाव पिरोया आपने,
बधाई हो,
सुंदर कविता
इतने सुन्दर भाव मे संजोया है इस कविता को समझ मे नही आता कि कैसे कुछ लिखे ...........एक साँस का फासला ही तो ऐसी दूरी बना देता है जो प्रकाश वर्ष की दूरी मे तबदील हो जाती है ...........बढिया
बहुत ही बेहतरीन रचना, बधाई
adbhut bhavon ko piroya hai.......har bhav lajawaab
नमस्कार निर्मला जी आप की कवितायों में हर बार कुछ न कुछ नया पॅन होता है और गंम्भीरता तो एक एक शब्द में समायी होती है जीवन के प्रति स्पंदन पैदा करती रचना
बहुत खूब बहुत ही सुंदर बधाई मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
. बहुत सुन्दर. केवल एक ही सांस का फासला है. आगे आपकी अभिव्यक्ति और भी सुन्दर हो चली है. आभार.
झंझजोर कर रख दिया , जिन्दगी को इतने नजदीक से दिखाया आप ने , बहुत सुंदर.
धन्यव्बाद
जीने और मरने के बीच के पल को जीना................ क्या लाजवाब कल्पना है आपके.......... बहूत खूब
"ज़िन्दगी और मौत
केवल एक साँस का फासला
और तुम
कितनी आसानी से
अटक गये उस पर
नहीं बढाया कदम
दूसरी साँस की ओर
शायद तुम्हारा प्रतिशोध था"
वाह कपिला जी।
भाव भरी कविता पढ़वाने का शुक्रिया।
दिल में सीधे उतरती रचना....बहुत ही भावपूर्ण !!! वाह !!!
gazab ki prastuti, nirmala ji badhai sweekaren.
निर्मला जी,
एक नये विचारों वाली कविता, कुछ भी रूटीन नही, कुछ भी सतही नही।
इस गंभीर और सार्थक रचना के लिये बधाई।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
एक असलियत को आपने काव्य मे पिरो दिया. आपके भाव और शब्द संयोजन लाजवाब हैं. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
IS KAVITAA PE MERAA KUCHH NAA KAHNAA HI SAHI HAI.... PAHALI PANKTI BAS EK SANS KA FAASALAA......... ITANI GAHARI BAAT LIKHNE KE LIYE KITNE GAHARAI ME UTARNAA HOGAA YE SOCH KE HI STABHDH HUN....KITANI SAMEDANSHILTA HAI IS KAVITAA ME JISE AAPNE BAHOT HI KARINE SE SAJAAYA HAI... KUCHH BHI NAHI KAHNE KE LAYAK HUN HUN...
ARSH
गंभीर और सार्थक रचना के लिये .
बधाई!!!
बहुत गहरी रचना..वाह!
जिन्दगी के यथार्थ को बयान करती सार्थक रचना बहुत बहुत बधाई ऐसे सार्थक सृजन के लिए
यात्रा में सहयात्री के साथ छोड़ देने का एहसास जैसा आपने इस कविता में पिरोया है, कम पढ़ने को मिलता है. आपकी रचना की मैं तारीफ क्या करूं , सारा देश आपकी सराहना करता हैं. मैं अपनी खुशकिस्मती मानता हूँ कि इतनी महान रचनाकार ने, गज़लों के एक अदना से ब्लॉगर के, पागलपन में लिखे गये एक लेख को महत्व दिया. यह आपकी सम्वेदना के जीवित रहने का प्रमाण है. लखनऊ की यह घटना तो कुछ भी नहीं थी, आलम ये है कि :
सड़क पे अस्मतें लुटती हैं दिनों लेकिन
कहीं किसी को भी शर्मिंदगी नहीं होती
धन्यवाद
आदरणीय निर्मला जी
मैं बहुत देर से आपकी इस कविता को पढ़ रहा हूँ [ 5 times ] .. देरी से आने के लिए क्षमा चाहूँगा ..कविता की कुछ तारीफ करना ...सिर्फ थोडा सा ही होंगा... मैं पढ़ रहा हूँ ..बहुत बार ......एक पंक्ति पर आकर मैं सिहर जाता हूँ ....
" शायद तुम सही थे " ....और ये भी
" देना चाहते थे एक टीस, जो मौत से भी असह है"
और अंतिम पंक्तियाँ तो जैसे बस निशब्द करने के लिए काफी है ....
" हाँ बस इतना ही कर सकती हूँ ,
ह ! क्या तकदीर है
किसी की मौत पर जीना
और उसके अँदाज़ मे जीना "
मेरा नमन स्वीकार करिए आप ...आपकी कविता की शशक्त अभिव्यक्ति ने मेरे मन के भीतर एक हलचल सी मचा दी है ... प्रेम और त्याग की इस अनुपम कृति को मेरा प्रणाम ...
आपका बहुत आभार
विजय
09849746500
bahut achhi rachna he, bas ik saans ka faasla..jindagi chhor mout ki aas kaa faslaa...//darshanyukt rachnaye dil ko bahut bhaa jaati he..
बहुत सुंदर.
इस अलग सी और भावप्रणव रचना को बांटने के लिए धन्यवाद!
Post a Comment