20 May, 2009

मुझे निभाना है प्रण ( कविता )

जीवन मे हमने
आपस मे
बहुत कुछ बाँटा
बहुत कुछ पाया
दुख सुख
कर्तव्य अधिकार
इतने लंबे सफर मे
जब टूटे हैं सब
भ्रमपाश हुये मोह भँग
क्या बचा
एक सन्नाटे के सिवा
मै जानती थी
यही होगा सिला
और मैने सहेज रखे थे
कुछ हसीन पल
कुछ यादें
हम दोनो के
कुछ क्षणो के साक्षी1
मगर अब उन्हें भी
तुम से नहीं बाँट सकती
क्यों कि मै हर दिन
उन पलों को
अपनी कलम मे
सहेजती रही हूँ
जब तुम
मेरे पास होते हुये भी
मेरे पास नही होते
तो ये कलम मेरे
प्रेम गीत लिखती
मुझे बहलाती
मेरे ज़ख्मों को सहलाती
तुम्हारे साथ होने का
एहसास देती
अब कैसे छोडूँइसका साथ्
अब् कैसे दूँ वो पल तुम्हें
मगर अब भी चलूँगी
तुम्हारे साथ साथ्
पहले की तरह्
क्यों की मुझे निभाना है
अग्निपथ पर
किये वादों का प्रण

14 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"मगर अब भी चलूँगी
तुम्हारे साथ साथ्
पहले की तरह्
क्यों की मुझे निभाना है
अग्निपथ पर
किये वादों का प्रण"

सुन्दर भाव,
अच्छी कविता।

अनिल कान्त said...

bahut hi khoobsurat bhaav liye hue
mujhe bahut bahut bahut achchhi lagi

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

P.N. Subramanian said...

निश्चित ही बीते हुए पल तो वापस आ नासकेंगे आगे आने वाले पालो के प्रति समर्पण युक्तिसंगत है. बहुत ही सुन्दर रचना आभार.

संध्या आर्य said...

khubasurat ehasas ko samete our uname jine marane ke kasam bahut khub ......ek sundar abhiwyakti

"अर्श" said...

kitni maasumiyat se aapne apne ehsaasaat ko sanjoyaa hai aur sajaaya.. hai... itni khubsurat kavitaa ke liye .. dhero badhaayee aur aapke lekhani ko salaam...


arsh

Vinay said...

saath dene kii baat ke main sadke...

दिगम्बर नासवा said...

जीवन में आये सन्नाटे को utaar लिया कविता में.......फिर भी साथ निभाने का वादा पूरा करने का संकल्प............ लाजवाब है

vandana gupta said...

kuch pal aise bhi aate hain aur unhein nibhana bhi hota hai...........bahut h saralta se is katu satya ko apni lekhni se ujagar kiya hai aapne..........bahut badhiya.

शोभना चौरे said...

जब टूटे हैं सब
भ्रमपाश हुये मोह भँग
क्या बचा
एक सन्नाटे के सिवा
मै जानती थी
यही होगा सिला
bhut shi kha .chlte jana hai.

Urmi said...

निर्मला जी, आप जैसे महान लेखिका का टिपण्णी मिलने पर लिखने का उत्साह और बढ जाता है पर आपके कविता के सामने मेरी शायरी कुछ भी नहीं है! आप एक उम्दा लेखिका हैं और आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है!
आपका ये कविता मुझे बेहद पसंद आया ! बहुत बढ़िया !

रंजना said...

आपकी इन पंक्तियों ने तो मौन कर दिया....क्या कहूँ....

Udan Tashtari said...

मगर अब भी चलूँगी
तुम्हारे साथ साथ्
पहले की तरह्
क्यों की मुझे निभाना है
अग्निपथ पर
किये वादों का प्रण


-बहुत बेहतरीन भावाव्यक्ति!! सुन्दर रचना!

ओम आर्य said...

जब प्रण कर लिया जाए, पथ अग्निपथ हो ही जाता है निर्मला जी

Yogesh Verma Swapn said...

kitna pyaar sanjoya maine
sab tukdon men bikhar gaya
kuchh aansoo men kuchh ahon men
kuchh geeton men nikhar gaya

aapki khoobsurat kavita/khayalaat ko dekh ye muktak yaad aa gaya. badhai sweekaren.

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