बस जीना है
जीवन के सागर मंथन मे
नारी ने क्या पाया
उसके हिस्से तो बस
विष ही आया
फिर भी जीवन से
डरती नही
मरती नही
क्यों कि
माँ न यही सिखाया
जब रिश्तों की
गठरी को थमाया
फर्ज़ों का सँदूक दिया
खुद से ज़ुदा किया
वो तब भी नही घबराई
फिर से दुनिया बसाई
उमडती घुमड्ती
सपने सँजोती
आशा के मोती पिरोती
जीवन के यथार्थ से टकराती
जब थक जाती
आँखों से तकदीर टपकाती
डरती नही
और ना मरती है
हारती तब है जब्
ये सृ्ष्टि की रचयित
अपनी ही रचना दुआरा
ठगी जाती है
ठुकराई जाती है
पर वो अपने कर्तव्य् को
तब भी नही भूलती
इस सत्य को जानते हुये
कि अगर वो
इस विष को
अमृ्त नही बना पायी
तो वो अपने रचयिता को
क्या मुँह दिखलायेगी
क्यों कि वो जानती है
अपनी रचना दुआरा
रचयिता को
ठगे जाने का दुख
फिर भी
चलती है जीती है
और ये विष पीती है
16 comments:
जब थक जाती
आँखों से तकदीर टपकाती
डरती नही
और ना मरती है
aapke ye kavitaa apne aap me paripurn hai ... kitne karine se aapne naari rupi jiwan ko abhibyakt kiya hai... ye upar ke line bahot hi naye hai mere liye aur shayad kavitawo ke lekhan me bhi jahaan tak main maantaa hun... bahot hi khubsurat prastuti...
dhero badhaayeeyaan aur shubhkaamanawon sahit aapki kushalataa ki kaamnaa karte huye...
arsh
क्यों कि वो जानती है
अपनी रचना दुआरा
रचयिता को
ठगे जाने का दुख
इसलिये
उसे चलना है जीना है
और ये विष पीना है
nirmala ji mujhe lagta hai mahilaon ki bhavnaon ki abhivyakti aapse zyada achchi maine abhi tak kisi blog par nahin dekhi, bahut achcha likhti hain aap , pichhli rachna to public men aani chahiye
अमृत-रस को पीने वाला , केवल देव कहाया।
जिसने विष को पिया उसी ने महादेव पद पाया।
माँ न यही सिखाया
जब रिश्तों की
गठरी को थमाया
फर्ज़ों का सँदूक दिया
खुद से ज़ुदा किया
वो तब भी नही घबराई
फिर से दुनिया बसाई
उमडती घुमड्ती
सपने सँजोती
आशा के मोती पिरोती
जीवन के यथार्थ से टकराती
जब थक जाती
आँखों से तकदीर टपकाती
डरती नही
naari की shakti....naari की vyathaa.............naari की sahan shakti...........सब कुछ तो लिख diyaa है आपने एक ही prastuti में............लाजवाब लिखा है....सोचने पर मजबूर करता huva
aap sab ka bahut bahutdhanyvad main veerbahuti hoon na is liye naree ki sanvednaon ko achhe se samajhati hoon
apke utsah se hi to vish ko amrit bana pati hoon dhanyvad
"माँ न यही सिखाया
जब रिश्तों की
गठरी को थमाया
फर्ज़ों का सँदूक दिया
खुद से ज़ुदा किया
वो तब भी नही घबराई"
बहुत सुन्दर....सुन्दर अभिव्यक्ति...
माँ न यही सिखाया
जब रिश्तों की
गठरी को थमाया
फर्ज़ों का सँदूक दिया
खुद से ज़ुदा किया
वो तब भी नही घबराई
फिर से दुनिया बसाई
बहुत सुन्दर लिखा है....
nari ki vedna ,uska har roop ek hi kavita mein aise sanjoya hai jaise kisi mala mein gunthe huye phool hon.
yahi nari ki niyati hai ,wo karm karne par vishwas karti hai.....rishton ko nibhana janti hai........bas maat khati hai to tab jab koi apna hi use thukrata hai........phir bhi wo janti hai chalte rahna hi zindagi hai , shayad isiliye kabh har nhi manti.
बस जीना है
जीवन के सागर मंथन मे
नारी ने क्या पाया
उसके हिस्से तो बस
विष ही आया.........
ise me Vedna kahu yaa kyaa kahu samjh se pare he kyoki me jo sochta hoo thoda ulta sochta hoo../..nari mere liye poojniya rahi he../kyo rahi he- vish peena...saral nahi hota///
aapko bata doo, vish peene vaale hi 'shankar' hojate he.// shankar yaani mahadev..aour naaree yaani shaqti..//// ise krupiya vedna se mat likhiye//
kavita bahut maarmik he..//
नारीवाद से अलग अनूठी रचना का मंत्र है, बहुत बढ़िया
बहुत ही सुन्दर रचना. शिव जी ने भी विष का पान किया है.हम अकेले आप को इसका श्रेय नहीं दे सकते.
आपने इतने कम शब्दों में भी जिस प्रकार संपूर्ण नारी जीवन, उसके चरित्र, उसकी वेदना एवं महानता का चित्रण किया है, वह वास्तव में प्रशंसनीय है.
साभार
हमसफ़र यादों का.......
वो जानती है
अपनी रचना दुआरा
रचयिता को
ठगे जाने का दुख
इसलिये
उसे चलना है जीना है
और ये विष पीना है
Nari ke charitr ka vastavik chitran hua hai is rachna mein.
नारी जीवन की सच्चाई को इतने सरल शब्दों में समझाने के लिए धन्यवाद...भावपूर्ण अभिव्यक्ति,मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..
बहुत बेहतरीन रचना..कुछ अलग से भाव लिए हुए.
very beautifully written poem...Every sentence has a deeper meaning,you have done a commendable job by bringing out dark yet true meaning of relationship these days.
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